ਤੇਰੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਭਉ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਜਮੁ ਨਹੀ ਆਵੈ ਨੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरे सेवक कउ भउ किछु नाही जमु नही आवै नेरे ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे सेवक को कोई भय नहीं लगता और यम भी उसके निकट नहीं आता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੋ ਤੇਰੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨੑ ਕਾ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਨਾਸਾ ॥
जो तेरै रंगि राते सुआमी तिन्ह का जनम मरण दुखु नासा ॥
हे स्वामी ! जो तेरे रंग में रंगे हुए हैं, उनका जन्म-मरण का दुख नाश हो गया है।
ਤੇਰੀ ਬਖਸ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਈ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਦਿਲਾਸਾ ॥੨॥
तेरी बखस न मेटै कोई सतिगुर का दिलासा ॥२॥
सतगुरु ने मुझे यह दिलासा दिया हुआ है कि तेरी बख्शिश को कोई मिटा नहीं सकता॥ २॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਨਿ ਸੁਖ ਫਲ ਪਾਇਨਿ ਆਠ ਪਹਰ ਆਰਾਧਹਿ ॥
नामु धिआइनि सुख फल पाइनि आठ पहर आराधहि ॥
परमात्मा के नाम का ध्यान करने वाले फल के रूप में सुख ही हासिल करते हैं और आठों प्रहर प्रभु की आराधना करते रहते हैं।
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਤੇਰੈ ਭਰਵਾਸੈ ਪੰਚ ਦੁਸਟ ਲੈ ਸਾਧਹਿ ॥੩॥
तेरी सरणि तेरै भरवासै पंच दुसट लै साधहि ॥३॥
तेरी शरण एवं तेरे भरोसे पर वे काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार-पाँच दुष्टों को अपने वश में कर लेते हैं।॥ ३॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਕਿਛੁ ਕਰਮੁ ਨ ਜਾਣਾ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਾ ਤੇਰੀ ॥
गिआनु धिआनु किछु करमु न जाणा सार न जाणा तेरी ॥
हे प्रभु ! मैं ज्ञान, ध्यान एवं धर्म-कर्म कुछ भी नहीं जानता और तेरी महत्ता को भी नहीं जानता।
ਸਭ ਤੇ ਵਡਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨਿ ਕਲ ਰਾਖੀ ਮੇਰੀ ॥੪॥੧੦॥੫੭॥
सभ ते वडा सतिगुरु नानकु जिनि कल राखी मेरी ॥४॥१०॥५७॥
है नानक! सतिगुरु सबसे बड़ा है, जिसने मेरी इज्जत रख ली है॥ ४॥ १०॥ ५७ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਗੁਰ ਸਰਣੀ ਆਇਆ ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥
सगल तिआगि गुर सरणी आइआ राखहु राखनहारे ॥
मैं सबकुछ त्याग कर गुरु की शरण में आया हूँ। हे रखवाले ! मेरी रक्षा करो।
ਜਿਤੁ ਤੂ ਲਾਵਹਿ ਤਿਤੁ ਹਮ ਲਾਗਹ ਕਿਆ ਏਹਿ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੇ ॥੧॥
जितु तू लावहि तितु हम लागह किआ एहि जंत विचारे ॥१॥
जिस तरफ तू हमें लगाता है, हम उधर ही लग जाते हैं। यह जीव बेचारे क्या कर सकते हैं।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਜੀ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
मेरे राम जी तूं प्रभ अंतरजामी ॥
हे मेरे राम जी ! तू अन्तर्यामी प्रभु है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਦੇਵ ਦਇਆਲਾ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਨਿਤ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा गुरदेव दइआला गुण गावा नित सुआमी ॥१॥ रहाउ ॥
हे दयालु गुरुदेव ! कृपा करो ताकि मैं नित्य ही अपने स्वामी का गुणगान करता रहूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਧਿਆਈਐ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭਉ ਤਰੀਐ ॥
आठ पहर प्रभु अपना धिआईऐ गुर प्रसादि भउ तरीऐ ॥
आठों प्रहर प्रभु का ध्यान करना चाहिए। गुरु की कृपा से भवसागर से पार हुआ जा सकता है।
ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ਹੋਈਐ ਸਭ ਰੇਣਾ ਜੀਵਤਿਆ ਇਉ ਮਰੀਐ ॥੨॥
आपु तिआगि होईऐ सभ रेणा जीवतिआ इउ मरीऐ ॥२॥
अपना अभिमान छोड़कर सबकी चरण-धूलि बन जाना चाहिए, इस प्रकार जीवित ही दुनिया के मोह से मरा जाता है॥ २ ॥
ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਤਿਸ ਕਾ ਜਗ ਭੀਤਰਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਉ ਜਾਪੇ ॥
सफल जनमु तिस का जग भीतरि साधसंगि नाउ जापे ॥
जो व्यक्ति साधुओं की संगति में रहकर परमात्मा का नाम जपता रहता है, संसार में उसका जन्म सफल हो जाता है।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਤਿਸ ਕੇ ਪੂਰਨ ਜਿਸੁ ਦਇਆ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ॥੩॥
सगल मनोरथ तिस के पूरन जिसु दइआ करे प्रभु आपे ॥३॥
जिस पर प्रभु स्वयं दया करता है, उसके सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।॥ ३॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਦਇਆਲਾ ॥
दीन दइआल क्रिपाल प्रभ सुआमी तेरी सरणि दइआला ॥
हे मेरे स्वामी प्रभु ! तू दीनदयाल एवं कृपालु है। हे दया के घर ! मैं तेरी शरण में आया हूँ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨਾ ਨਾਮੁ ਦੀਜੈ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਰਵਾਲਾ ॥੪॥੧੧॥੫੮॥
करि किरपा अपना नामु दीजै नानक साध रवाला ॥४॥११॥५८॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपना नाम एवं साधुओं की चरण-धूलि प्रदान करो ॥ ४॥ ११॥ ५८ ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧
रागु सूही असटपदीआ महला १ घरु १
रागु सूही असटपदीआ महला १ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਭਿ ਅਵਗਣ ਮੈ ਗੁਣੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
सभि अवगण मै गुणु नही कोई ॥
मुझ में अवगुण ही भरे हुए हैं और कोई गुण नहीं है।
ਕਿਉ ਕਰਿ ਕੰਤ ਮਿਲਾਵਾ ਹੋਈ ॥੧॥
किउ करि कंत मिलावा होई ॥१॥
फिर पति-परमेश्वर से कैसे मेरा मिलाप हो सकता है॥ १॥
ਨਾ ਮੈ ਰੂਪੁ ਨ ਬੰਕੇ ਨੈਣਾ ॥
ना मै रूपु न बंके नैणा ॥
न मेरा रूप सुन्दर है और न ही मेरे नयन सुन्दर हैं।
ਨਾ ਕੁਲ ਢੰਗੁ ਨ ਮੀਠੇ ਬੈਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ना कुल ढंगु न मीठे बैणा ॥१॥ रहाउ ॥
न मेरा कुलीन आचरण है और न ही मेरे मीठे बोल हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਹਜਿ ਸੀਗਾਰ ਕਾਮਣਿ ਕਰਿ ਆਵੈ ॥
सहजि सीगार कामणि करि आवै ॥
जो जीव-स्त्री सहजावरथा का श्रृंगार करके अपने पति-परमेश्वर के पास आती है,
ਤਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਜਾ ਕੰਤੈ ਭਾਵੈ ॥੨॥
ता सोहागणि जा कंतै भावै ॥२॥
तो वही सुहागिन परमेश्वर को भाती है॥ २॥
ਨਾ ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਕਾਈ ॥
ना तिसु रूपु न रेखिआ काई ॥
उस प्रभु का न कोई रूप है और न कोई चिन्ह है।
ਅੰਤਿ ਨ ਸਾਹਿਬੁ ਸਿਮਰਿਆ ਜਾਈ ॥੩॥
अंति न साहिबु सिमरिआ जाई ॥३॥
वह मालिक अंतकाल याद नहीं किया जा सकता ॥ ३॥
ਸੁਰਤਿ ਮਤਿ ਨਾਹੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥
सुरति मति नाही चतुराई ॥
मुझ में सुरति, बुद्धि एवं चतुराई नहीं है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਲਾਵਹੁ ਪਾਈ ॥੪॥
करि किरपा प्रभ लावहु पाई ॥४॥
हे प्रभु ! कृपा करके अपने चरणों में लगा लो॥ ४ ॥
ਖਰੀ ਸਿਆਣੀ ਕੰਤ ਨ ਭਾਣੀ ॥
खरी सिआणी कंत न भाणी ॥
जो जीव-स्त्री बहुत ज्यादा चतुर बनती है, वह पति-परमेश्वर को अच्छी नहीं लगती।
ਮਾਇਆ ਲਾਗੀ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀ ॥੫॥
माइआ लागी भरमि भुलाणी ॥५॥
माया में फँसी हुई जीव-स्त्री भ्रम में ही भूली रहती है। ५॥
ਹਉਮੈ ਜਾਈ ਤਾ ਕੰਤ ਸਮਾਈ ॥
हउमै जाई ता कंत समाई ॥
यदि जीव-स्त्री अपना अहंत्व दूर कर दे तो वह पति-परमेश्वर में विलीन हो सकती है और
ਤਉ ਕਾਮਣਿ ਪਿਆਰੇ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੬॥
तउ कामणि पिआरे नव निधि पाई ॥६॥
तब ही उसे नवनिधियों का स्वामी प्यारा-प्रभु प्राप्त होता है॥ ६॥
ਅਨਿਕ ਜਨਮ ਬਿਛੁਰਤ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
अनिक जनम बिछुरत दुखु पाइआ ॥
हे प्रियतम प्रभु ! अनेक जन्म तुझसे बिझुड़कर मैंने दुख ही पाया है,
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਰਾਇਆ ॥੭॥
करु गहि लेहु प्रीतम प्रभ राइआ ॥७॥
अतः मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपना बना लो॥ ७ ॥
ਭਣਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਹੁ ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ॥
भणति नानकु सहु है भी होसी ॥
नानक कथन करते हैं कि प्रभु वर्तमान में भी स्थित है और भविष्य में भी होगा।
ਜੈ ਭਾਵੈ ਪਿਆਰਾ ਤੈ ਰਾਵੇਸੀ ॥੮॥੧॥
जै भावै पिआरा तै रावेसी ॥८॥१॥
जो जीव-स्त्री उसे अच्छी लगती है, वह प्यारा-प्रभु उससे ही प्रेम करता है। ८॥ १॥