ਗੁਰਿ ਸੰਗਿ ਦਿਖਾਇਓ ਰਾਮ ਰਾਇ ॥੧॥
गुरि संगि दिखाइओ राम राइ ॥१॥
(उत्तर) यदि गुरु का साथ प्राप्त हो जाए तो वह प्रभु के दर्शन करवा देता है॥१॥
ਮਿਲੁ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਹਰਿ ਗੁਨ ਬਨੇ ॥
मिलु सखी सहेली हरि गुन बने ॥
हे सखी सहेलियो ! मिलकर ईश्वर का यशगान करना ही अच्छा है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਖੇਲਹਿ ਵਰ ਕਾਮਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਤ ਮਨ ਮਨੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि प्रभ संगि खेलहि वर कामनि गुरमुखि खोजत मन मने ॥१॥ रहाउ ॥
जीव रूपी कामिनी प्रभु के संग मिलकर रमण करती है और गुरु द्वारा खोजकर उसका मन आनंदित हो जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਮਨਮੁਖੀ ਦੁਹਾਗਣਿ ਨਾਹਿ ਭੇਉ ॥
मनमुखी दुहागणि नाहि भेउ ॥
मनमुखी बदनसीब जीव स्त्रियों को यह रहस्य मालूम नहीं कि
ਓਹੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਾਵੈ ਸਰਬ ਪ੍ਰੇਉ ॥
ओहु घटि घटि रावै सरब प्रेउ ॥
वह सबका प्यारा प्रभु घट-घट में रमण कर रहा है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਥਿਰੁ ਚੀਨੈ ਸੰਗਿ ਦੇਉ ॥
गुरमुखि थिरु चीनै संगि देउ ॥
गुरु उपदेशानुसार अनुसरण करने वाली जीव-स्त्रियां इस भेद को जान लेती हैं कि प्रभु हमारे साथ ही मन में स्थिर है।
ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਜਪੁ ਜਪੇਉ ॥੨॥
गुरि नामु द्रिड़ाइआ जपु जपेउ ॥२॥
गुरु ने उनके अन्तर्मन में प्रभु-नाम ही दृढ़ करवाया है, अतः वे प्रभु का नाम जपती रहती हैं॥२॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਗਤਿ ਨ ਭਾਉ ਹੋਇ ॥
बिनु गुर भगति न भाउ होइ ॥
गुरु के बिना परमात्मा की भक्ति व चिन्तन नहीं
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੰਤ ਨ ਸੰਗੁ ਦੇਇ ॥
बिनु गुर संत न संगु देइ ॥
गुरु के बिना संतों की संगत भी संभव नहीं,
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਅੰਧੁਲੇ ਧੰਧੁ ਰੋਇ ॥
बिनु गुर अंधुले धंधु रोइ ॥
गुरु शरण बिना अंधे जीव संसार के कार्यों में लग रोते है
ਮਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲੁ ਮਲੁ ਸਬਦਿ ਖੋਇ ॥੩॥
मनु गुरमुखि निरमलु मलु सबदि खोइ ॥३॥
गुरु की शरण में आने से मन निर्मल हो जाता है और गुरु का उपदेश विकारों की मेल धो देता है॥३॥
ਗੁਰਿ ਮਨੁ ਮਾਰਿਓ ਕਰਿ ਸੰਜੋਗੁ ॥
गुरि मनु मारिओ करि संजोगु ॥
गुरु संयोग बनाकर मन को मार देता है,
ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਾਵੇ ਭਗਤਿ ਜੋਗੁ ॥
अहिनिसि रावे भगति जोगु ॥
तदन्तर मन दिन-रात प्रभु-भक्ति में लीन रहता है।
ਗੁਰ ਸੰਤ ਸਭਾ ਦੁਖੁ ਮਿਟੈ ਰੋਗੁ ॥ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਵਰੁ ਸਹਜ ਜੋਗੁ ॥੪॥੬॥
गुर संत सभा दुखु मिटै रोगु ॥ जन नानक हरि वरु सहज जोगु ॥४॥६॥
गुरु-संत के संपर्क में रहने से तमाम दुख-रोग मिट जाते हैं। गुरु नानक का मत है कि प्रभु से मिलकर सहजावस्था प्राप्त हो जाती है।॥४॥ ६॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
बसंतु महला १ ॥
बसंतु महला १॥
ਆਪੇ ਕੁਦਰਤਿ ਕਰੇ ਸਾਜਿ ॥
आपे कुदरति करे साजि ॥
परमात्मा ही सम्पूर्ण सृष्टि की रचना करता है,
ਸਚੁ ਆਪਿ ਨਿਬੇੜੇ ਰਾਜੁ ਰਾਜਿ ॥
सचु आपि निबेड़े राजु राजि ॥
वह स्वयं ही अपने हुक्म से किए गए कर्मो के आधार पर जीवों का निर्णय करता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਊਤਮ ਸੰਗਿ ਸਾਥਿ ॥
गुरमति ऊतम संगि साथि ॥
गुरु के उपदेश से उत्तम प्रभु साथ ही अनुभव होता है और
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਸਾਇਣੁ ਸਹਜਿ ਆਥਿ ॥੧॥
हरि नामु रसाइणु सहजि आथि ॥१॥
सहज स्वभाव ही हरि नाम रूपी धन प्राप्त हो जाता है॥ १॥
ਮਤ ਬਿਸਰਸਿ ਰੇ ਮਨ ਰਾਮ ਬੋਲਿ ॥
मत बिसरसि रे मन राम बोलि ॥
हे मन ! राम नाम का भजन कर, भूल मत जाना।
ਅਪਰੰਪਰੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਤੁਲਾਏ ਅਤੁਲੁ ਤੋਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपर्मपरु अगम अगोचरु गुरमुखि हरि आपि तुलाए अतुलु तोलि ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपरंपार, मन-वाणी से परे है और वह स्वयं ही गुरु से अपनी महिमा का गुणगान करवाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰੇਵਹਿ ਗੁਰਸਿਖ ਤੋਰ ॥
गुर चरन सरेवहि गुरसिख तोर ॥
गुरु के शिष्य गुरु चरणों की पूजा-वन्दना करते हैं,
ਗੁਰ ਸੇਵ ਤਰੇ ਤਜਿ ਮੇਰ ਤੋਰ ॥
गुर सेव तरे तजि मेर तोर ॥
वे गुरु की सेवा द्वारा अहम् भावना को त्यागकर संसार-सागर से मुक्त हो जाते हैं।
ਨਰ ਨਿੰਦਕ ਲੋਭੀ ਮਨਿ ਕਠੋਰ ॥
नर निंदक लोभी मनि कठोर ॥
निंदा करने वाले पुरुष सदा लोभ करते हैं और उनका मन भी बड़ा कठोर होता है।
ਗੁਰ ਸੇਵ ਨ ਭਾਈ ਸਿ ਚੋਰ ਚੋਰ ॥੨॥
गुर सेव न भाई सि चोर चोर ॥२॥
उनको गुरु की सेवा बिल्कुल अच्छी नहीं लगती, दरअसल वे सबसे बड़े चोर हैं।॥२॥
ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਬਖਸੇ ਭਗਤਿ ਭਾਉ ॥
गुरु तुठा बखसे भगति भाउ ॥
यदि गुरु प्रसन्न हो जाए तो वह प्रेम-भक्ति की बख्शिश कर देता है,
ਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਮਹਲਿ ਠਾਉ ॥
गुरि तुठै पाईऐ हरि महलि ठाउ ॥
गुरु के खुश होने से ही ईश्वर का घर प्राप्त होता है।
ਪਰਹਰਿ ਨਿੰਦਾ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਜਾਗੁ ॥
परहरि निंदा हरि भगति जागु ॥
वह निंदा छोड़कर भगवान की भक्ति में जाग्रत रहता है,
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਕਰਮਿ ਭਾਗੁ ॥੩॥
हरि भगति सुहावी करमि भागु ॥३॥
उत्तम भाग्य से भगवान की भक्ति सुन्दर लगती है॥३॥
ਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈ ਕਰੇ ਦਾਤਿ ॥
गुरु मेलि मिलावै करे दाति ॥
जिसका गुरु से मिलाप हो जाता है, वह उसे नाम-स्मरण का दान प्रदान करता है।
ਗੁਰਸਿਖ ਪਿਆਰੇ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ॥
गुरसिख पिआरे दिनसु राति ॥
गुरु के प्यारे शिष्य दिन-रात हरिनामोच्चारण में लीन रहते हैं।
ਫਲੁ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਗੁਰੁ ਤੁਸਿ ਦੇਇ ॥
फलु नामु परापति गुरु तुसि देइ ॥
गुरु जिस पर प्रसन्नता के घर में आता है, उसे फल रूप में नाम ही प्राप्त होता है, और
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪਾਵਹਿ ਵਿਰਲੇ ਕੇਇ ॥੪॥੭॥
कहु नानक पावहि विरले केइ ॥४॥७॥
गुरु नानक का मत है कि कोई विरले ही नाम पाते हैं॥ ४॥ ७॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੩ ਇਕ ਤੁਕਾ ॥
बसंतु महला ३ इक तुका ॥
बसंतु महला ३ इक तुका॥
ਸਾਹਿਬ ਭਾਵੈ ਸੇਵਕੁ ਸੇਵਾ ਕਰੈ ॥
साहिब भावै सेवकु सेवा करै ॥
मालिक की मर्जी से ही सेवक सेवा करता है,
ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਸਭਿ ਕੁਲ ਉਧਰੈ ॥੧॥
जीवतु मरै सभि कुल उधरै ॥१॥
वह संसार में मोह-माया से निर्लिप्त रहकर सभी कुलों का उद्धार कर देता है।॥१॥
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਨ ਛੋਡਉ ਕਿਆ ਕੋ ਹਸੈ ॥
तेरी भगति न छोडउ किआ को हसै ॥
हे मालिक ! बेशक कोई मुझ पर हँसता रहे, तेरी भक्ति नहीं छोड़ सकता,
ਸਾਚੁ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साचु नामु मेरै हिरदै वसै ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे हृदय में तेरा शाश्वत नाम बस गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੈਸੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਗਲਤੁ ਰਹੈ ॥
जैसे माइआ मोहि प्राणी गलतु रहै ॥
जैसे प्राणी माया-मोह में लीन रहते हैं,
ਤੈਸੇ ਸੰਤ ਜਨ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰਵਤ ਰਹੈ ॥੨॥
तैसे संत जन राम नाम रवत रहै ॥२॥
वैसे ही भक्तजन प्रभु-भजन में ही मग्न रहते हैं।॥२॥
ਮੈ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਊਪਰਿ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ॥
मै मूरख मुगध ऊपरि करहु दइआ ॥
हे दयासागर ! मुझ मूर्ख नासमझ पर दया करो,
ਤਉ ਸਰਣਾਗਤਿ ਰਹਉ ਪਇਆ ॥੩॥
तउ सरणागति रहउ पइआ ॥३॥
मैं सदा तेरी शरण में पड़ा रहूँ॥३॥
ਕਹਤੁ ਨਾਨਕੁ ਸੰਸਾਰ ਕੇ ਨਿਹਫਲ ਕਾਮਾ ॥
कहतु नानकु संसार के निहफल कामा ॥
नानक कहते हैं कि संसार के काम धंधे निरर्थक हैं और
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਪਾਵੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮਾ ॥੪॥੮॥
गुर प्रसादि को पावै अम्रित नामा ॥४॥८॥
गुरु की कृपा से ही कोई हरि-नामामृत प्राप्त करता है।॥४॥ ८॥
ਮਹਲਾ ੧ ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲ ਘਰੁ ੨
महला १ बसंतु हिंडोल घरु २
महला १ बसंतु हिंडोल घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਸਾਲ ਗ੍ਰਾਮ ਬਿਪ ਪੂਜਿ ਮਨਾਵਹੁ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਤੁਲਸੀ ਮਾਲਾ ॥
साल ग्राम बिप पूजि मनावहु सुक्रितु तुलसी माला ॥
हे ब्राह्मण ! तुम शालग्राम की पूजा-अर्चना करते हो, उसे मनाते हो, शुभ आचरण के तौर पर तुलसी की माला फेरते हो।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਬੇੜਾ ਬਾਂਧਹੁ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਦਇਆਲਾ ॥੧॥
राम नामु जपि बेड़ा बांधहु दइआ करहु दइआला ॥१॥
राम नाम का जाप करो, इसे भवसागर पार करने के लिए बेड़े के रूप में तैयार करो और यही सच्ची वन्दना करो कि हे दया सागर ! हम पर दया करो॥ १॥