Hindi Page 987

ਬੂਝਤ ਦੀਪਕ ਮਿਲਤ ਤਿਲਤ ॥
बूझत दीपक मिलत तिलत ॥
बुझ रहे दीपक को तेल मिल जाता है,

ਜਲਤ ਅਗਨੀ ਮਿਲਤ ਨੀਰ ॥
जलत अगनी मिलत नीर ॥
जैसे अग्नि में जल रहे व्यक्ति को पानी मिल जाता है,

ਜੈਸੇ ਬਾਰਿਕ ਮੁਖਹਿ ਖੀਰ ॥੧॥
जैसे बारिक मुखहि खीर ॥१॥
जैसे रोते बालक के मुँह में दूध प्राप्त हो जाता है॥ १॥

ਜੈਸੇ ਰਣ ਮਹਿ ਸਖਾ ਭ੍ਰਾਤ ॥
जैसे रण महि सखा भ्रात ॥
जैसे युद्ध में भाई सहायक होता है,

ਜੈਸੇ ਭੂਖੇ ਭੋਜਨ ਮਾਤ ॥
जैसे भूखे भोजन मात ॥
जैसे भोजन भूखे आदमी की भूख को ख़त्म कर देता है,

ਜੈਸੇ ਕਿਰਖਹਿ ਬਰਸ ਮੇਘ ॥
जैसे किरखहि बरस मेघ ॥
जैसे बादल वर्षा करके कृषि को बचा लेता है और

ਜੈਸੇ ਪਾਲਨ ਸਰਨਿ ਸੇਂਘ ॥੨॥
जैसे पालन सरनि सेंघ ॥२॥
जैसे शेर अर्थात् बलशाली की शरण में रक्षा हो जाती है।॥ २॥

ਗਰੁੜ ਮੁਖਿ ਨਹੀ ਸਰਪ ਤ੍ਰਾਸ ॥
गरुड़ मुखि नही सरप त्रास ॥
जिसके मुँह में गरुड़-मंत्र होता है, उसे साँपों का भय नहीं रहता

ਸੂਆ ਪਿੰਜਰਿ ਨਹੀ ਖਾਇ ਬਿਲਾਸੁ ॥
सूआ पिंजरि नही खाइ बिलासु ॥
पिंजरे में बैठे तोते को बिल्ली नहीं खा सकती।

ਜੈਸੋ ਆਂਡੋ ਹਿਰਦੇ ਮਾਹਿ ॥
जैसो आंडो हिरदे माहि ॥
जैसे हृदय में याद करने से कुंज के अण्डे खराब नहीं होते,

ਜੈਸੋ ਦਾਨੋ ਚਕੀ ਦਰਾਹਿ ॥੩॥
जैसो दानो चकी दराहि ॥३॥
जैसे चक्की की किल्ली से लगे दाने नहीं पिसते॥ ३॥

ਬਹੁਤੁ ਓਪਮਾ ਥੋਰ ਕਹੀ ॥
बहुतु ओपमा थोर कही ॥
हरि नाम की उपमा तो बहुत है, किन्तु मैंने थोड़ी सी बयान की है।

ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਤੁਹੀ ॥
हरि अगम अगम अगाधि तुही ॥
हे हरि ! तू ही अगम्य, अगोचर, अगाध,

ਊਚ ਮੂਚੌ ਬਹੁ ਅਪਾਰ ॥
ऊच मूचौ बहु अपार ॥
अपरंपार एवं सर्वोपरि है।

ਸਿਮਰਤ ਨਾਨਕ ਤਰੇ ਸਾਰ ॥੪॥੩॥
सिमरत नानक तरे सार ॥४॥३॥
नानक कहते हैं किं तुझे याद करने से सब का उद्धार हो जाता है॥ ४॥ ३॥

ਮਾਲੀ ਗਉੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माली गउड़ा महला ५ ॥
माली गउड़ा महला ५।

ਇਹੀ ਹਮਾਰੈ ਸਫਲ ਕਾਜ ॥ ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਲੇਹੁ ਨਿਵਾਜਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इही हमारै सफल काज ॥ अपुने दास कउ लेहु निवाजि ॥१॥ रहाउ ॥
यही हमारे कार्य सफल करने वाला है हे परमात्मा ! अपने दास पर उपकार करो॥ १॥ रहाउ॥

ਚਰਨ ਸੰਤਹ ਮਾਥ ਮੋਰ ॥
चरन संतह माथ मोर ॥
मेरा माथा संतों के चरणों में झुका रहें,

ਨੈਨਿ ਦਰਸੁ ਪੇਖਉ ਨਿਸਿ ਭੋਰ ॥
नैनि दरसु पेखउ निसि भोर ॥
मेरे नयन रात-दिन उनके दर्शन करते रहें।

ਹਸਤ ਹਮਰੇ ਸੰਤ ਟਹਲ ॥
हसत हमरे संत टहल ॥
मेरे हाथ संतों की सेवा में तल्लीन रहें और

ਪ੍ਰਾਨ ਮਨੁ ਧਨੁ ਸੰਤ ਬਹਲ ॥੧॥
प्रान मनु धनु संत बहल ॥१॥
प्राण, मन एवं धन सब उनको अर्पण हैं।॥ १॥

ਸੰਤਸੰਗਿ ਮੇਰੇ ਮਨ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
संतसंगि मेरे मन की प्रीति ॥
मेरे मन में संतों के संग प्रेम बना रहे और

ਸੰਤ ਗੁਨ ਬਸਹਿ ਮੇਰੈ ਚੀਤਿ ॥
संत गुन बसहि मेरै चीति ॥
मेरे चित्त में उनके गुण बस जाएँ।

ਸੰਤ ਆਗਿਆ ਮਨਹਿ ਮੀਠ ॥
संत आगिआ मनहि मीठ ॥
संतों की आज्ञा मेरे मन को मधुर लगती है और

ਮੇਰਾ ਕਮਲੁ ਬਿਗਸੈ ਸੰਤ ਡੀਠ ॥੨॥
मेरा कमलु बिगसै संत डीठ ॥२॥
उनको देखकर मेरा हृदय-कमल खिल जाता है॥ २॥

ਸੰਤਸੰਗਿ ਮੇਰਾ ਹੋਇ ਨਿਵਾਸੁ ॥
संतसंगि मेरा होइ निवासु ॥
मेरा निवास संतों के संग सदा बना रहे और

ਸੰਤਨ ਕੀ ਮੋਹਿ ਬਹੁਤੁ ਪਿਆਸ ॥
संतन की मोहि बहुतु पिआस ॥
मृझे उनकी ही तीव्र लालसा है।

ਸੰਤ ਬਚਨ ਮੇਰੇ ਮਨਹਿ ਮੰਤ ॥
संत बचन मेरे मनहि मंत ॥
संतों के वचन ही मेरे मन में मंत्र हैं और

ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੇਰੇ ਬਿਖੈ ਹੰਤ ॥੩॥
संत प्रसादि मेरे बिखै हंत ॥३॥
उनकी कृपा से मेरे विकारों का नाश हो गया है॥ ३॥

ਮੁਕਤਿ ਜੁਗਤਿ ਏਹਾ ਨਿਧਾਨ ॥
मुकति जुगति एहा निधान ॥
संतों का संग ही मेरा कोष है और यही मुक्ति पाने की युक्ति है।

ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ਮੋਹਿ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨ ॥
प्रभ दइआल मोहि देवहु दान ॥
हे दयालु प्रभु ! मुझे यही वरदान दीजिए।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ॥
नानक कउ प्रभ दइआ धारि ॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! कृपा करो,

ਚਰਨ ਸੰਤਨ ਕੇ ਮੇਰੇ ਰਿਦੇ ਮਝਾਰਿ ॥੪॥੪॥
चरन संतन के मेरे रिदे मझारि ॥४॥४॥
ताकि संतों के चरण मेरे हृदय में बसते रहें॥ ४॥ ४॥

ਮਾਲੀ ਗਉੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माली गउड़ा महला ५ ॥
माली गउड़ा महला ५।

ਸਭ ਕੈ ਸੰਗੀ ਨਾਹੀ ਦੂਰਿ ॥
सभ कै संगी नाही दूरि ॥
ईश्वर सब के साथ ही है और वह कहीं दूर नहीं है।

ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਹਾਜਰਾ ਹਜੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करन करावन हाजरा हजूरि ॥१॥ रहाउ ॥
सब करने-करवाने वाला सदा ही प्रत्यक्ष है॥ १॥ रहाउ॥

ਸੁਨਤ ਜੀਓ ਜਾਸੁ ਨਾਮੁ ॥
सुनत जीओ जासु नामु ॥
जिसका नाम सुनकर जीवन प्राप्त होता है,

ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖ ਕੀਓ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥
दुख बिनसे सुख कीओ बिस्रामु ॥
दुख नष्ट हो जाते हैं और सुख शांति प्राप्त होती है।

ਸਗਲ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥
सगल निधि हरि हरि हरे ॥
परमेश्वर का नाम सब निधियाँ हैं और

ਮੁਨਿ ਜਨ ਤਾ ਕੀ ਸੇਵ ਕਰੇ ॥੧॥
मुनि जन ता की सेव करे ॥१॥
मुनिजन उसकी सेवा में ही लीन रहते हैं।॥ १॥

ਜਾ ਕੈ ਘਰਿ ਸਗਲੇ ਸਮਾਹਿ ॥
जा कै घरि सगले समाहि ॥
जिसके घर में सर्व कोष समाए हुए हैं,

ਜਿਸ ਤੇ ਬਿਰਥਾ ਕੋਇ ਨਾਹਿ ॥
जिस ते बिरथा कोइ नाहि ॥
जिसके द्वार से कोई भी खाली नहीं लौटता,

ਜੀਅ ਜੰਤ੍ਰ ਕਰੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
जीअ जंत्र करे प्रतिपाल ॥
जो सब जीवों का पोषण करता है।

ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੇਵਹੁ ਕਿਰਪਾਲ ॥੨॥
सदा सदा सेवहु किरपाल ॥२॥
अतः सदैव उस कृपानिधि परमेश्वर की उपासना करो ॥२॥

ਸਦਾ ਧਰਮੁ ਜਾ ਕੈ ਦੀਬਾਣਿ ॥
सदा धरमु जा कै दीबाणि ॥
जिसके दरबार में सदा धर्म-न्याय होता है,

ਬੇਮੁਹਤਾਜ ਨਹੀ ਕਿਛੁ ਕਾਣਿ ॥
बेमुहताज नही किछु काणि ॥
वह बेपरवाह है, उसे कोई कमी नहीं है।

ਸਭ ਕਿਛੁ ਕਰਨਾ ਆਪਨ ਆਪਿ ॥
सभ किछु करना आपन आपि ॥
वह स्वयं ही सबकुछ करने वाला है।

ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੂ ਤਾ ਕਉ ਜਾਪਿ ॥੩॥
रे मन मेरे तू ता कउ जापि ॥३॥
हे मेरे मन ! तू उसका ही जाप कर॥ ३॥

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕਉ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰ ॥
साधसंगति कउ हउ बलिहार ॥
मैं साधु-संगति पर कुर्बान जाता हूँ,

ਜਾਸੁ ਮਿਲਿ ਹੋਵੈ ਉਧਾਰੁ ॥
जासु मिलि होवै उधारु ॥
जिसे मिलकर उद्धार हो जाता है।

ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਮਨ ਤਨਹਿ ਰਾਤ ॥ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭਿ ਕਰੀ ਦਾਤਿ ॥੪॥੫॥
नाम संगि मन तनहि रात ॥ नानक कउ प्रभि करी दाति ॥४॥५॥
हे प्रभु ! मन-तन सदैव नाम के संग लीन रहे नानक को ऐसी देन प्रदान करो ॥४॥५॥

ਮਾਲੀ ਗਉੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ
माली गउड़ा महला ५ दुपदे
माली गउड़ा महला ५ दुपदे

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਹਰਿ ਸਮਰਥ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥
हरि समरथ की सरना ॥
मैं समर्थ ईश्वर की शरण में आ गया हूँ

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ਮੇਰੀ ਪ੍ਰਭ ਏਕ ਕਾਰਨ ਕਰਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीउ पिंडु धनु रासि मेरी प्रभ एक कारन करना ॥१॥ रहाउ ॥
सर्वकर्ता एक प्रभु ही मेरे प्राण, शरीर, धन एवं राशि है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਜੀਵਣੈ ਕਾ ਮੂਲੁ ॥
सिमरि सिमरि सदा सुखु पाईऐ जीवणै का मूलु ॥
उसे स्मरण करने से सदैव सुख प्राप्त होता है और वही जीवन का मूल है।

ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬਤ ਠਾਈ ਸੂਖਮੋ ਅਸਥੂਲ ॥੧॥
रवि रहिआ सरबत ठाई सूखमो असथूल ॥१॥
वह निराकार एवं साकार रूप में सर्वत्र रमण कर रहा है ॥१॥

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