ਜਿਸ ਕੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸੁ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥
जिस की स्रिसटि सु करणैहारु ॥
जिसकी यह सृष्टि है, वही उसका सृजनहार है।
ਅਵਰ ਨ ਬੂਝਿ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰੁ ॥
अवर न बूझि करत बीचारु ॥
कोई दूसरा उसको नहीं समझता, चाहे वह कैसे विचार करे।
ਕਰਤੇ ਕੀ ਮਿਤਿ ਨ ਜਾਨੈ ਕੀਆ ॥
करते की मिति न जानै कीआ ॥
करतार का विस्तार, उसका उत्पन्न किया हुआ जीव नहीं जान सकता।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਵਰਤੀਆ ॥੭॥
नानक जो तिसु भावै सो वरतीआ ॥७॥
हे नानक ! जो कुछ उसे लुभाता है, केवल वही होता है। ७॥
ਬਿਸਮਨ ਬਿਸਮ ਭਏ ਬਿਸਮਾਦ ॥
बिसमन बिसम भए बिसमाद ॥
प्रभु के अद्भुत, आश्चर्यजनक कौतुक देखकर मैं चकित हो गया हूँ।
ਜਿਨਿ ਬੂਝਿਆ ਤਿਸੁ ਆਇਆ ਸ੍ਵਾਦ ॥
जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद ॥
जो प्रभु की महिमा को समझता है, वही आनन्द प्राप्त करता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਾਚਿ ਜਨ ਰਹੇ ॥
प्रभ कै रंगि राचि जन रहे ॥
प्रभु के सेवक उसके प्रेम में लीन रहते हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਪਦਾਰਥ ਲਹੇ ॥
गुर कै बचनि पदारथ लहे ॥
गुरु के उपदेश द्वारा वह (नाम) पदार्थ को प्राप्त कर लेते हैं।
ਓਇ ਦਾਤੇ ਦੁਖ ਕਾਟਨਹਾਰ ॥
ओइ दाते दुख काटनहार ॥
वह दानी एवं दुःख दूर करने वाले हैं।
ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰੈ ਸੰਸਾਰ ॥
जा कै संगि तरै संसार ॥
उनकी संगति में संसार का कल्याण हो जाता है।
ਜਨ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਸੋ ਵਡਭਾਗੀ ॥
जन का सेवकु सो वडभागी ॥
ऐसे सेवकों का सेवक सौभाग्यशाली है।
ਜਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
जन कै संगि एक लिव लागी ॥
उसके सेवक की संगति में मनुष्य की वृति एक ईश्वर से लग जाती है।
ਗੁਨ ਗੋਬਿਦ ਕੀਰਤਨੁ ਜਨੁ ਗਾਵੈ ॥
गुन गोबिद कीरतनु जनु गावै ॥
प्रभु का सेवक उसकी गुणस्तुति एवं भजन गायन करता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ॥੮॥੧੬॥
गुर प्रसादि नानक फलु पावै ॥८॥१६॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से वह फल प्राप्त कर लेता है॥ ८॥ १६॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥
आदि सचु जुगादि सचु ॥
भगवान सृष्टि-रचना से पहले सत्य था, युगों के प्रारम्भ में भी सत्य था,
ਹੈ ਭਿ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭਿ ਸਚੁ ॥੧॥
है भि सचु नानक होसी भि सचु ॥१॥
अब वर्तमान में उसी का अस्तित्व है। हे नानक ! भविष्य में भी उस सत्यस्वरूप भगवान का अस्तित्व होगा ॥१॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥
असटपदी ॥
अष्टपदी॥
ਚਰਨ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪਰਸਨਹਾਰ ॥
चरन सति सति परसनहार ॥
प्रभु के चरण सत्य हैं और सत्य है वह जो उसके चरण-स्पर्श करता है।
ਪੂਜਾ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸੇਵਦਾਰ ॥
पूजा सति सति सेवदार ॥
उसकी पूजा सत्य है एवं उसकी पूजा करने वाला भी सत्य है।
ਦਰਸਨੁ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪੇਖਨਹਾਰ ॥
दरसनु सति सति पेखनहार ॥
उसके दर्शन सत्य हैं और दर्शन करने वाला भी सत्य है।
ਨਾਮੁ ਸਤਿ ਸਤਿ ਧਿਆਵਨਹਾਰ ॥
नामु सति सति धिआवनहार ॥
उसका नाम सत्य है और वह भी सत्य है जो इसका ध्यान करता है।
ਆਪਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਭ ਧਾਰੀ ॥
आपि सति सति सभ धारी ॥
वह स्वयं सत्यस्वरूप है, सत्य है वह प्रत्येक वस्तु जिसे उसने सहारा दिया हुआ है।
ਆਪੇ ਗੁਣ ਆਪੇ ਗੁਣਕਾਰੀ ॥
आपे गुण आपे गुणकारी ॥
वह स्वयं ही गुण है और स्वयं ही गुणकारी है।
ਸਬਦੁ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬਕਤਾ ॥
सबदु सति सति प्रभु बकता ॥
प्रभु की वाणी सत्य है और वह सत्य वक्ता है।
ਸੁਰਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਜਸੁ ਸੁਨਤਾ ॥
सुरति सति सति जसु सुनता ॥
वह कान सत्य हैं जो सद्पुरुष का यशोगान सुनते हैं।
ਬੁਝਨਹਾਰ ਕਉ ਸਤਿ ਸਭ ਹੋਇ ॥
बुझनहार कउ सति सभ होइ ॥
जो प्रभु को समझता है, उसके लिए सब सत्य ही है।
ਨਾਨਕ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥
नानक सति सति प्रभु सोइ ॥१॥
हे नानक ! वह प्रभु सदा सर्वदा सत्य है॥ १॥
ਸਤਿ ਸਰੂਪੁ ਰਿਦੈ ਜਿਨਿ ਮਾਨਿਆ ॥
सति सरूपु रिदै जिनि मानिआ ॥
जो मनुष्य अपने हृदय में सत्यस्वरूप परमात्मा पर आस्था धारण करता है,
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਤਿਨਿ ਮੂਲੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥
करन करावन तिनि मूलु पछानिआ ॥
वह सब कुछ करने वाले एवं कराने वाले (सृष्टि के) मूल को समझ लेता है।
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਬਿਸ੍ਵਾਸੁ ਪ੍ਰਭ ਆਇਆ ॥
जा कै रिदै बिस्वासु प्रभ आइआ ॥
जिसके हृदय में प्रभु का विश्वास प्रवेश कर गया है,
ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ਤਿਸੁ ਮਨਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥
ततु गिआनु तिसु मनि प्रगटाइआ ॥
उसके मन में तत्व ज्ञान प्रत्यक्ष होता है।
ਭੈ ਤੇ ਨਿਰਭਉ ਹੋਇ ਬਸਾਨਾ ॥
भै ते निरभउ होइ बसाना ॥
डर को त्याग कर वह निडर होकर बसता है
ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜਿਆ ਤਿਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥
जिस ते उपजिआ तिसु माहि समाना ॥
और जिससे वह उत्पन्न हुआ था, उस में ही समा जाता है।
ਬਸਤੁ ਮਾਹਿ ਲੇ ਬਸਤੁ ਗਡਾਈ ॥ ਤਾ ਕਉ ਭਿੰਨ ਨ ਕਹਨਾ ਜਾਈ ॥
बसतु माहि ले बसतु गडाई ॥ ता कउ भिंन न कहना जाई ॥
जब एक वस्तु अपनी प्रकार की दूसरी वस्तु से मिल जाती है तो वह इससे भिन्न नहीं कही जा सकती।
ਬੂਝੈ ਬੂਝਨਹਾਰੁ ਬਿਬੇਕ ॥
बूझै बूझनहारु बिबेक ॥
इस विचार को कोई सूझवान ही समझता है।
ਨਾਰਾਇਨ ਮਿਲੇ ਨਾਨਕ ਏਕ ॥੨॥
नाराइन मिले नानक एक ॥२॥
हे नानक ! जो प्राणी नारायण से मिल चुके हैं, वे उसके साथ एक हो चुके हैं।॥ २॥
ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਆਗਿਆਕਾਰੀ ॥
ठाकुर का सेवकु आगिआकारी ॥
भगवान का सेवक उसका आज्ञाकारी होता है।
ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਸਦਾ ਪੂਜਾਰੀ ॥
ठाकुर का सेवकु सदा पूजारी ॥
भगवान का सेवक सदा उसकी ही पूजा करता रहता है।
ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕੈ ਮਨਿ ਪਰਤੀਤਿ ॥
ठाकुर के सेवक कै मनि परतीति ॥
ईश्वर के सेवक के मन में आस्था होती है।
ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥
ठाकुर के सेवक की निरमल रीति ॥
प्रभु के सेवक का जीवन-आचरण पवित्र होता है।
ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਸੇਵਕੁ ਜਾਨੈ ਸੰਗਿ ॥
ठाकुर कउ सेवकु जानै संगि ॥
प्रभु का सेवक जानता है कि उसका स्वामी सदैव उसके साथ है।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸੇਵਕੁ ਨਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥
प्रभ का सेवकु नाम कै रंगि ॥
परमेश्वर का सेवक उसके नाम की प्रीति में बसता है।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਪਾਲਨਹਾਰਾ ॥
सेवक कउ प्रभ पालनहारा ॥
अपने सेवक का प्रभु पालन-पोषणहार है।
ਸੇਵਕ ਕੀ ਰਾਖੈ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
सेवक की राखै निरंकारा ॥
निरंकार प्रभु अपने सेवक की प्रतिष्ठा रखता है।
ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਜਿਸੁ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਧਾਰੈ ॥
सो सेवकु जिसु दइआ प्रभु धारै ॥
वही सेवक है, जिस पर प्रभु दया करता है।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮਾਰੈ ॥੩॥
नानक सो सेवकु सासि सासि समारै ॥३॥
हे नानक ! वह सेवक प्रत्येक श्वास से ईश्वर को स्मरण करता रहता है ॥ ३ ॥
ਅਪੁਨੇ ਜਨ ਕਾ ਪਰਦਾ ਢਾਕੈ ॥
अपुने जन का परदा ढाकै ॥
परमात्मा अपने सेवक का पद रखता है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਸਰਪਰ ਰਾਖੈ ॥
अपने सेवक की सरपर राखै ॥
वह अपने सेवक की निश्चित ही प्रतिष्ठा रखता है।
ਅਪਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਦੇਇ ਵਡਾਈ ॥
अपने दास कउ देइ वडाई ॥
प्रभु अपने सेवक को मान-सम्मान प्रदान करता है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਨਾਮੁ ਜਪਾਈ ॥
अपने सेवक कउ नामु जपाई ॥
अपने सेवक से वह अपने नाम का जाप करवाता है।
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਆਪਿ ਪਤਿ ਰਾਖੈ ॥
अपने सेवक की आपि पति राखै ॥
अपने सेवक की वह स्वयं ही लाज रखता है।
ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕੋਇ ਨ ਲਾਖੈ ॥
ता की गति मिति कोइ न लाखै ॥
उसकी गति एवं अनुमान को कोई नहीं जानता।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਕੋ ਨ ਪਹੂਚੈ ॥
प्रभ के सेवक कउ को न पहूचै ॥
कोई भी व्यक्ति प्रभु के सेवक की बराबरी नहीं कर सकता।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਊਚ ਤੇ ਊਚੇ ॥
प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे ॥
ईश्वर के सेवक सर्वोच्च हैं।
ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੀ ਸੇਵਾ ਲਾਇਆ ॥
जो प्रभि अपनी सेवा लाइआ ॥
प्रभु जिसको अपनी सेवा में लगाता है,
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਦਹ ਦਿਸਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥੪॥
नानक सो सेवकु दह दिसि प्रगटाइआ ॥४॥
हे नानक ! वह सेवक दसों दिशाओं में लोकप्रिय हो जाता है ॥४॥
ਨੀਕੀ ਕੀਰੀ ਮਹਿ ਕਲ ਰਾਖੈ ॥
नीकी कीरी महि कल राखै ॥
यदि प्रभु छोटी-सी चींटी में शक्ति भर दे तो
ਭਸਮ ਕਰੈ ਲਸਕਰ ਕੋਟਿ ਲਾਖੈ ॥
भसम करै लसकर कोटि लाखै ॥
वह लाखों, करोड़ों लश्करों को भस्म बना सकती है।
ਜਿਸ ਕਾ ਸਾਸੁ ਨ ਕਾਢਤ ਆਪਿ ॥
जिस का सासु न काढत आपि ॥
जिस प्राणी का श्वास परमेश्वर स्वयं नहीं निकालता,