ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਮਨਾ ਖਿਨੁ ਨ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥
हरि हरि धिआइ मना खिनु न विसारीऐ ॥
हे मन ! परमात्मा का मनन करो और उसे एक क्षण के लिए भी नहीं भुलाना चाहिए।
ਰਾਮ ਰਾਮਾ ਰਾਮ ਰਮਾ ਕੰਠਿ ਉਰ ਧਾਰੀਐ ॥
राम रामा राम रमा कंठि उर धारीऐ ॥
प्यारे राम को हृदय एवं कण्ठ में धारण करके उसकी महिमागान करो।
ਉਰ ਧਾਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਪੂਰਨੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਿਰੰਜਨੋ ॥
उर धारि हरि हरि पुरखु पूरनु पारब्रहमु निरंजनो ॥
उस परमपुरुष, पूर्ण परब्रह्म, मायातीत ईश्वर को हृदय में बसाकर रखो ।
ਭੈ ਦੂਰਿ ਕਰਤਾ ਪਾਪ ਹਰਤਾ ਦੁਸਹ ਦੁਖ ਭਵ ਖੰਡਨੋ ॥
भै दूरि करता पाप हरता दुसह दुख भव खंडनो ॥
वह सब भय दूर करने वाला, पाप नाश करने वाला, असह्य दुख नष्ट करने वाला और जन्म-मरण का चक्र खंडन करने वाला है।
ਜਗਦੀਸ ਈਸ ਗੋੁਪਾਲ ਮਾਧੋ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਵੀਚਾਰੀਐ ॥
जगदीस ईस गोपाल माधो गुण गोविंद वीचारीऐ ॥
उस जगदीश, ईश, गोपाल, माधो गोविंद के गुणों का चिंतन करते रहो।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮਿਲਿ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਚਿਤਾਰੀਐ ॥੧॥
बिनवंति नानक मिलि संगि साधू दिनसु रैणि चितारीऐ ॥१॥
नानक की विनती है कि साधुओं की संगति में मिलकर दिन-रात उसे स्मरण करना चाहिए ॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਧਾਰੁ ਜਨ ਕਾ ਆਸਰਾ ॥
चरन कमल आधारु जन का आसरा ॥
परमात्मा के चरण-कमल ही भक्तजनों का आसरा है।
ਮਾਲੁ ਮਿਲਖ ਭੰਡਾਰ ਨਾਮੁ ਅਨੰਤ ਧਰਾ ॥
मालु मिलख भंडार नामु अनंत धरा ॥
प्रभु का अनंत नाम ही धन-सम्पति एवं सुखों का भण्डार है।
ਨਾਮੁ ਨਰਹਰ ਨਿਧਾਨੁ ਜਿਨ ਕੈ ਰਸ ਭੋਗ ਏਕ ਨਰਾਇਣਾ ॥
नामु नरहर निधानु जिन कै रस भोग एक नराइणा ॥
प्रभु का नाम ही निधि है, नारायण का नाम जपना ही सब रसों को भोगना है।
ਰਸ ਰੂਪ ਰੰਗ ਅਨੰਤ ਬੀਠਲ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਧਿਆਇਣਾ ॥
रस रूप रंग अनंत बीठल सासि सासि धिआइणा ॥
श्वास-श्वास से नाम का ध्यान करना ही के रस, रूप, रंग एवं अनंत भण्डार हैं।
ਕਿਲਵਿਖ ਹਰਣਾ ਨਾਮ ਪੁਨਹਚਰਣਾ ਨਾਮੁ ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਹਰਾ ॥
किलविख हरणा नाम पुनहचरणा नामु जम की त्रास हरा ॥
प्रभु नाम सब पापों को नष्ट करने वाला प्रायश्चित कर्म है और नाम ही यम के भय को दूर करने वाला है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਸਿ ਜਨ ਕੀ ਚਰਨ ਕਮਲਹ ਆਸਰਾ ॥੨॥
बिनवंति नानक रासि जन की चरन कमलह आसरा ॥२॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि भगवान के चरण-कमल का आसरा ही दास की जीवन राशि है॥ २॥
ਗੁਣ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੇ ਕੋਇ ਨ ਜਾਨਈ ॥
गुण बेअंत सुआमी तेरे कोइ न जानई ॥
हे स्वामी ! तेरे गुण बेअंत हैं, पर कोई भी तेरे गुणों को नहीं जानता।
ਦੇਖਿ ਚਲਤ ਦਇਆਲ ਸੁਣਿ ਭਗਤ ਵਖਾਨਈ ॥
देखि चलत दइआल सुणि भगत वखानई ॥
हे दीनदयाल ! तेरी अद्भुत लीला को देखकर एवं सुनकर भक्त तेरी महिमा का ही बखान करते हैं।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੁਝੁ ਧਿਆਵਹਿ ਪੁਰਖਪਤਿ ਪਰਮੇਸਰਾ ॥
जीअ जंत सभि तुझु धिआवहि पुरखपति परमेसरा ॥
हे पुरुषोत्तम परमेश्वर ! सब जीव तेरा ही ध्यान करते रहते हैं।
ਸਰਬ ਜਾਚਿਕ ਏਕੁ ਦਾਤਾ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਜਗਦੀਸਰਾ ॥
सरब जाचिक एकु दाता करुणा मै जगदीसरा ॥
हे करुणामय जगदीश्वर ! केवल एक तू ही दाता है, अन्य सब जीव तेरे याचक हैं।
ਸਾਧੂ ਸੰਤੁ ਸੁਜਾਣੁ ਸੋਈ ਜਿਸਹਿ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਮਾਨਈ ॥
साधू संतु सुजाणु सोई जिसहि प्रभ जी मानई ॥
जिसे प्रभु गौरव देता है, वही साधु, संत एवं ज्ञानवान है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਸੋਇ ਤੁਝਹਿ ਪਛਾਨਈ ॥੩॥
बिनवंति नानक करहु किरपा सोइ तुझहि पछानई ॥३॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! जिस पर तू कृपा करता है, वही तुझे पहचानता है॥ ३॥
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਣ ਅਨਾਥੁ ਸਰਣੀ ਆਇਆ ॥
मोहि निरगुण अनाथु सरणी आइआ ॥
मैं गुणविहीन अनाथ तेरी शरण में आया हूँ।
ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਗੁਰਦੇਵ ਜਿਨਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥
बलि बलि बलि गुरदेव जिनि नामु द्रिड़ाइआ ॥
मैं अपने गुरुदेव पर कुर्बान जाता हूँ जिसने मुझे नाम स्मरण करवाया है।
ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਆ ਕੁਸਲੁ ਥੀਆ ਸਰਬ ਇਛਾ ਪੁੰਨੀਆ ॥
गुरि नामु दीआ कुसलु थीआ सरब इछा पुंनीआ ॥
गुरु ने मुझे नाम-दान दिया है, जिसे जपने से सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं और सुखी हो गया हूँ।
ਜਲਨੇ ਬੁਝਾਈ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ਮਿਲੇ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥
जलने बुझाई सांति आई मिले चिरी विछुंनिआ ॥
नाम ने मेरी सारी जलन बुझा दी है, मन को शान्ति मिल गई है और चिरकाल से बिछुड़े हुए को मिला दिया है।
ਆਨੰਦ ਹਰਖ ਸਹਜ ਸਾਚੇ ਮਹਾ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
आनंद हरख सहज साचे महा मंगल गुण गाइआ ॥
मैंने सच्चे परमेश्वर की महिमा का मंगलगान किया है, जिससे मन में आनंद, हर्ष एवं सहज सुख उपलब्ध हो गया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥੪॥੨॥
बिनवंति नानक नामु प्रभ का गुर पूरे ते पाइआ ॥४॥२॥
नानक विनती करते हैं कि पूर्ण गुरु से मुझे प्रभु का नाम प्राप्त हो गया है॥ ४॥ २॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਰੁਣ ਝੁਣੋ ਸਬਦੁ ਅਨਾਹਦੁ ਨਿਤ ਉਠਿ ਗਾਈਐ ਸੰਤਨ ਕੈ ॥
रुण झुणो सबदु अनाहदु नित उठि गाईऐ संतन कै ॥
नित्य सुबह उठकर संतों के साथ सुरीले अनहद शब्द का गान करना चाहिए।
ਕਿਲਵਿਖ ਸਭਿ ਦੋਖ ਬਿਨਾਸਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਗੁਰ ਮੰਤਨ ਕੈ ॥
किलविख सभि दोख बिनासनु हरि नामु जपीऐ गुर मंतन कै ॥
गुरु-उपदेश द्वारा हरि-नाम का जाप करने से सब पाप एवं दोष नष्ट हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੀਜੈ ਅਮਿਉ ਪੀਜੈ ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਅਰਾਧੀਐ ॥
हरि नामु लीजै अमिउ पीजै रैणि दिनसु अराधीऐ ॥
हरि-नाम स्मरण करो, नामामृत का पान करो और दिन-रात उसकी हो आराधना करो।
ਜੋਗ ਦਾਨ ਅਨੇਕ ਕਿਰਿਆ ਲਗਿ ਚਰਣ ਕਮਲਹ ਸਾਧੀਐ ॥
जोग दान अनेक किरिआ लगि चरण कमलह साधीऐ ॥
प्रभु के चरणों में लगने से योग, दान-पुण्य, एवं शुभ कर्मो का फल प्राप्त हो जाता है।
ਭਾਉ ਭਗਤਿ ਦਇਆਲ ਮੋਹਨ ਦੂਖ ਸਗਲੇ ਪਰਹਰੈ ॥
भाउ भगति दइआल मोहन दूख सगले परहरै ॥
दयालु प्रभु की प्रेम-भक्ति से सब दुख नाश हो जाते हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਤਰੈ ਸਾਗਰੁ ਧਿਆਇ ਸੁਆਮੀ ਨਰਹਰੈ ॥੧॥
बिनवंति नानक तरै सागरु धिआइ सुआमी नरहरै ॥१॥
नानक विनती करते हैं केि स्वामी परमेश्वर का मनन करने से जीव संसार-सागर से पार हो जाता है॥ १॥
ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿਮਰਣੁ ਭਗਤ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਰਾਮ ॥
सुख सागर गोबिंद सिमरणु भगत गावहि गुण तेरे राम ॥
हे गोविंद ! तू सुखों का सागर है, सब भक्त तेरा ही सिमरन एवं स्तुतिगान करते रहते हैं।
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਾਗੇ ਪਾਏ ਸੂਖ ਘਨੇਰੇ ਰਾਮ ॥
अनद मंगल गुर चरणी लागे पाए सूख घनेरे राम ॥
गुरु के चरणों में लगकर उन्हें बड़ा आनंद, कल्याण एवं अनेक सुख उपलब्ध होते हैं।
ਸੁਖ ਨਿਧਾਨੁ ਮਿਲਿਆ ਦੂਖ ਹਰਿਆ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖਿਆ ॥
सुख निधानु मिलिआ दूख हरिआ क्रिपा करि प्रभि राखिआ ॥
प्रभु ने कृपा करके रक्षा की है, उनके सब दुख दूर कर दिए हैं और उन्हें सुखों की निधि मिल गई है।
ਹਰਿ ਚਰਣ ਲਾਗਾ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ਭਾਖਿਆ ॥
हरि चरण लागा भ्रमु भउ भागा हरि नामु रसना भाखिआ ॥
प्रभु के चरणों में लगने से सारा भ्रम एवं भय दूर हो जाता है और जीभ हरि-नाम ही जपती रहती है।
ਹਰਿ ਏਕੁ ਚਿਤਵੈ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਗਾਵੈ ਹਰਿ ਏਕੁ ਦ੍ਰਿਸਟੀ ਆਇਆ ॥
हरि एकु चितवै प्रभु एकु गावै हरि एकु द्रिसटी आइआ ॥
जो भक्तजन एक परमात्मा का स्मरण करते हैं, उस एक का ही गुणगान करते हैं, उन्हें हर तरफ एक परमेश्वर ही नजर आता है।