ਬਿਖਮੋ ਬਿਖਮੁ ਅਖਾੜਾ ਮੈ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਜੀਤਾ ਰਾਮ ॥
बिखमो बिखमु अखाड़ा मै गुर मिलि जीता राम ॥
गुरु से मिलकर मैंने विषम जगत रूपी अखाड़ा जीत लिया है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਜੀਤਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕੀਤਾ ਤੂਟੀ ਭੀਤਾ ਭਰਮ ਗੜਾ ॥
गुर मिलि जीता हरि हरि कीता तूटी भीता भरम गड़ा ॥
मैंने यह जगत रूपी अखाड़ा गुरु से मिलकर जीत लिया है। जब मैंने परमात्मा का नाम याद किया तो मेरे मन में बनी भ्रम के किले की दीवार टूट गई।
ਪਾਇਆ ਖਜਾਨਾ ਬਹੁਤੁ ਨਿਧਾਨਾ ਸਾਣਥ ਮੇਰੀ ਆਪਿ ਖੜਾ ॥
पाइआ खजाना बहुतु निधाना साणथ मेरी आपि खड़ा ॥
मुझे अनेक खजानों की निधि (दौलत) प्राप्त हो गई है और प्रभु स्वयं मेरी सहायता के लिए खड़ा हुआ है।
ਸੋਈ ਸੁਗਿਆਨਾ ਸੋ ਪਰਧਾਨਾ ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨਾ ਕੀਤਾ ॥
सोई सुगिआना सो परधाना जो प्रभि अपना कीता ॥
वही पुरुष श्रेष्ठ ज्ञानी एवं सर्वोच्च है, जिसे प्रभु ने अपना बना लिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾਂ ਵਲਿ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਸਰਸੇ ਭਾਈ ਮੀਤਾ ॥੪॥੧॥
कहु नानक जां वलि सुआमी ता सरसे भाई मीता ॥४॥१॥
हे नानक ! जब स्वामी पक्षधर हो गया है तो उसके सभी मित्र एवं भाई भी खुश हो गए है॥ ४॥ १ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਅਕਥਾ ਹਰਿ ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਿਛੁ ਜਾਇ ਨ ਜਾਣੀ ਰਾਮ ॥
अकथा हरि अकथ कथा किछु जाइ न जाणी राम ॥
हरि की कथा अकथनीय है और वह थोड़ी-सी भी जानी नहीं जा सकती।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸਹਜਿ ਵਖਾਣੀ ਰਾਮ ॥
सुरि नर सुरि नर मुनि जन सहजि वखाणी राम ॥
देवताओं, मनुष्यों और मुनिजनों ने बड़ा सहजता से हरि-कथा का वर्णन किया है।
ਸਹਜੇ ਵਖਾਣੀ ਅਮਿਉ ਬਾਣੀ ਚਰਣ ਕਮਲ ਰੰਗੁ ਲਾਇਆ ॥
सहजे वखाणी अमिउ बाणी चरण कमल रंगु लाइआ ॥
जिन्होंने भगवान के सुन्दर चरणों से प्रेम लगाया है, उन्होंने सहज ही अमृत वाणी का बखान किया है।
ਜਪਿ ਏਕੁ ਅਲਖੁ ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
जपि एकु अलखु प्रभु निरंजनु मन चिंदिआ फलु पाइआ ॥
एक अलक्ष्य एवं निरंजन प्रभु का जाप करने से उन्होंने मनोवांछित फल पा लिया है।
ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਵਿਕਾਰੁ ਦੂਜਾ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥
तजि मानु मोहु विकारु दूजा जोती जोति समाणी ॥
अभिमान, मोह, द्वैतभाव एवं विकारों को त्याग कर वे ज्योति ज्योत समा गए हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਸਦਾ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀ ॥੧॥
बिनवंति नानक गुर प्रसादी सदा हरि रंगु माणी ॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि गुरु की कृपा से वे सर्वदा हरि रंग का आनंद लेते रहते हैं।॥ १॥
ਹਰਿ ਸੰਤਾ ਹਰਿ ਸੰਤ ਸਜਨ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ਸਹਾਈ ਰਾਮ ॥
हरि संता हरि संत सजन मेरे मीत सहाई राम ॥
हरि के संतजन ही मेरे सज्जन, मित्र एवं साथी हैं।
ਵਡਭਾਗੀ ਵਡਭਾਗੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਾਈ ਰਾਮ ॥
वडभागी वडभागी सतसंगति पाई राम ॥
हे राम ! बड़े सौभाग्य से मुझे सत्संगति प्राप्त हुई है।
ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਏ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਲਾਥੇ ਦੂਖ ਸੰਤਾਪੈ ॥
वडभागी पाए नामु धिआए लाथे दूख संतापै ॥
अहोभाग्य से मुझे सत्संगति मिली है और मैंने प्रभु का नाम सुमिरन किया है तथा मेरे दुःख एवं संताप निवृत्त हो गए हैं।
ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਾਗੇ ਭ੍ਰਮ ਭਉ ਭਾਗੇ ਆਪੁ ਮਿਟਾਇਆ ਆਪੈ ॥
गुर चरणी लागे भ्रम भउ भागे आपु मिटाइआ आपै ॥
मैं गुरु के चरणों से लगा हूँ, जिससे मेरा भ्रम एवं भय भाग गए हैं। परमात्मा ने स्वयं मेरा अहंत्व मिटा दिया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਵਿਛੁੜਿ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਈ ॥
करि किरपा मेले प्रभि अपुनै विछुड़ि कतहि न जाई ॥
प्रभु ने कृपा-दृष्टि करके मुझे अपने साथ मिला लिया है और अब मैं न जुदा होऊँगा और न ही कहीं जाऊँगा।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤੇਰਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥
बिनवंति नानक दासु तेरा सदा हरि सरणाई ॥२॥
नानक वन्दना करता है कि हे हरि ! मैं तेरा दास हूँ और सदा अपनी शरण में रखो ॥ २॥
ਹਰਿ ਦਰੇ ਹਰਿ ਦਰਿ ਸੋਹਨਿ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ॥
हरि दरे हरि दरि सोहनि तेरे भगत पिआरे राम ॥
हे हरि ! तेरे द्वार पर तेरे प्यारे भक्त शोभा देते हैं।
ਵਾਰੀ ਤਿਨ ਵਾਰੀ ਜਾਵਾ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ਰਾਮ ॥
वारी तिन वारी जावा सद बलिहारे राम ॥
हे राम ! मैं उन (भक्तों) पर सदा बलिहारी जाता हूँ।
ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ਕਰਿ ਨਮਸਕਾਰੇ ਜਿਨ ਭੇਟਤ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ॥
सद बलिहारे करि नमसकारे जिन भेटत प्रभु जाता ॥
मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ और सदा उन पर कुर्बान जाता हूँ, जिन से भेंट करने से मैंने भगवान को जान लिया है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਥਾਈ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
घटि घटि रवि रहिआ सभ थाई पूरन पुरखु बिधाता ॥
पूर्ण अकालपुरुष विधाता प्रत्येक हृदय में समाया हुआ है।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੇ ॥
गुरु पूरा पाइआ नामु धिआइआ जूऐ जनमु न हारे ॥
जिसने पूर्ण गुरु को पाकर परमात्मा का नाम स्मरण किया है, वह अपना जीवन जुए में नहीं हारता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੇਰੀ ਰਾਖੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥੩॥
बिनवंति नानक सरणि तेरी राखु किरपा धारे ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है-हे प्रभु ! मैंने तेरी शरण ली है, कृपा करके मेरी रक्षा करो।॥ ३॥
ਬੇਅੰਤਾ ਬੇਅੰਤ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਕੇਤਕ ਗਾਵਾ ਰਾਮ ॥
बेअंता बेअंत गुण तेरे केतक गावा राम ॥
हे राम ! तेरे गुण बेअंत हैं। फिर उनमें से कौन-से गुणों का गायन करूँ ?
ਤੇਰੇ ਚਰਣਾ ਤੇਰੇ ਚਰਣ ਧੂੜਿ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਵਾ ਰਾਮ ॥
तेरे चरणा तेरे चरण धूड़ि वडभागी पावा राम ॥
तेरे चरण एवं चरण-धूलि मुझे सौभाग्य से प्राप्त हुई है।
ਹਰਿ ਧੂੜੀ ਨੑਾਈਐ ਮੈਲੁ ਗਵਾਈਐ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖ ਲਾਥੇ ॥
हरि धूड़ी न्हाईऐ मैलु गवाईऐ जनम मरण दुख लाथे ॥
हरि की चरण-धूलि में स्नान करने से पापों की मैल धुल जाती है और जन्म-मरण का दुःख समाप्त हो जाता है।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਦਾ ਹਦੂਰੇ ਪਰਮੇਸਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਥੇ ॥
अंतरि बाहरि सदा हदूरे परमेसरु प्रभु साथे ॥
भीतर एवं बाहर परमेश्वर सदा जीव के साथ रहता है।
ਮਿਟੇ ਦੂਖ ਕਲਿਆਣ ਕੀਰਤਨ ਬਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਵਾ ॥
मिटे दूख कलिआण कीरतन बहुड़ि जोनि न पावा ॥
प्रभु का कीर्तन करने से कल्याण प्राप्त होता है, दुःख मिट जाते हैं और मनुष्य दोबारा योनियों के चक्र में नहीं आता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਰਣਿ ਤਰੀਐ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਾ ॥੪॥੨॥
बिनवंति नानक गुर सरणि तरीऐ आपणे प्रभ भावा ॥४॥२॥
नानक प्रार्थना करता है कि गुरु की शरण में आने से मनुष्य का संसार सागर से उद्धार हो जाता है और अपने प्रभु को वह प्रिय लगने लगता है॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪
आसा छंत महला ५ घरु ४
आसा छंत महला ५ घरु ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਕਿਛੁ ਆਨ ਨ ਮੀਠਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
हरि चरन कमल मनु बेधिआ किछु आन न मीठा राम राजे ॥
मेरा मन हरि के चरण-कमलों में बिंध गया है, इसलिए प्रभु के अलावा मुझे अन्य कुछ भी मीठा (अच्छा) नहीं लगता।
ਮਿਲਿ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਆਰਾਧਿਆ ਹਰਿ ਘਟਿ ਘਟੇ ਡੀਠਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
मिलि संतसंगति आराधिआ हरि घटि घटे डीठा राम राजे ॥
संतों की संगति में मिलकर मैंने हरि की आराधना की है और सबके हृदय में प्रभु के दर्शन करता हूँ।
ਹਰਿ ਘਟਿ ਘਟੇ ਡੀਠਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੋੁ ਵੂਠਾ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਨਾਠੇ ॥
हरि घटि घटे डीठा अम्रितो वूठा जनम मरन दुख नाठे ॥
मैं हरि को प्रत्येक हृदय में देखता हूँ और उसका नामामृत मुझ पर बरस गया है तथा जन्म-मरण का दु:ख मिट गया है।
ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗਾਇਆ ਸਭ ਦੂਖ ਮਿਟਾਇਆ ਹਉਮੈ ਬਿਨਸੀ ਗਾਠੇ ॥
गुण निधि गाइआ सभ दूख मिटाइआ हउमै बिनसी गाठे ॥
गुणों के भण्डार परमात्मा का गुणगान करने से मेरे सभी दु:ख नाश हो गए हैं और मेरी अहंत्व की गांठ खुल गई है।