ਹੁਕਮੀ ਪੈਧਾ ਜਾਇ ਦਰਗਹ ਭਾਣੀਐ ॥
हुकमी पैधा जाइ दरगह भाणीऐ ॥
यदि विधाता को भला लगे तो मनुष्य प्रतिष्ठा की पोशाक पहन कर उसके दरबार में जाता है।
ਹੁਕਮੇ ਹੀ ਸਿਰਿ ਮਾਰ ਬੰਦਿ ਰਬਾਣੀਐ ॥੫॥
हुकमे ही सिरि मार बंदि रबाणीऐ ॥५॥
उसकी आज्ञा से ही यम प्राणी के सिर पर चोट करते हैं और उसे कैद में डाला जाता है॥ ५॥
ਲਾਹਾ ਸਚੁ ਨਿਆਉ ਮਨਿ ਵਸਾਈਐ ॥
लाहा सचु निआउ मनि वसाईऐ ॥
सत्य एवं न्याय को अपने मन में बसाने से मनुष्य लाभ प्राप्त करता है।
ਲਿਖਿਆ ਪਲੈ ਪਾਇ ਗਰਬੁ ਵਞਾਈਐ ॥੬॥
लिखिआ पलै पाइ गरबु वञाईऐ ॥६॥
जो कुछ उसके भाग्य में लिखा हुआ है, मनुष्य उसे पा लेता है अतः इन्सान को अहंकार त्याग देना चाहिए ॥ ६॥
ਮਨਮੁਖੀਆ ਸਿਰਿ ਮਾਰ ਵਾਦਿ ਖਪਾਈਐ ॥
मनमुखीआ सिरि मार वादि खपाईऐ ॥
स्वेच्छाचारी लोगों की खूब पिटाई होती है और विवादों में नष्ट हो जाते हैं।
ਠਗਿ ਮੁਠੀ ਕੂੜਿਆਰ ਬੰਨੑਿ ਚਲਾਈਐ ॥੭॥
ठगि मुठी कूड़िआर बंन्हि चलाईऐ ॥७॥
कपटियों को झूठ ने लूट लिया है। यमदूत उन्हें बांध कर आगे यमलोक ले जाते हैं।॥ ७ ॥
ਸਾਹਿਬੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਇ ਨ ਪਛੋਤਾਵਹੀ ॥
साहिबु रिदै वसाइ न पछोतावही ॥
जो मालिक को अपने हृदय में बसाते हैं, उन्हें पश्चाताप नहीं करना पड़ेगा।
ਗੁਨਹਾਂ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ਸਬਦੁ ਕਮਾਵਹੀ ॥੮॥
गुनहां बखसणहारु सबदु कमावही ॥८॥
यदि मनुष्य गुरु के उपदेश पर अनुसरण करे तो प्रभु उसके गुनाह क्षमा कर देता है॥ ८॥
ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਸਚੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਘਾਲੀਐ ॥
नानकु मंगै सचु गुरमुखि घालीऐ ॥
नानक सत्य ही माँगता है जो गुरु के माध्यम से प्राप्त होता है।
ਮੈ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੀਐ ॥੯॥੧੬॥
मै तुझ बिनु अवरु न कोइ नदरि निहालीऐ ॥९॥१६॥
हे प्रभु ! तेरे बिना मेरा कोई सहारा नहीं, मुझ पर अपनी कृपा-दृष्टि करो ॥९॥१६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥
ਕਿਆ ਜੰਗਲੁ ਢੂਢੀ ਜਾਇ ਮੈ ਘਰਿ ਬਨੁ ਹਰੀਆਵਲਾ ॥
किआ जंगलु ढूढी जाइ मै घरि बनु हरीआवला ॥
मैं जंगल में (भगवान को) ढूंढने हेतु क्यों जाऊँ, जबकि मेरा अपना घर (हृदय) ही एक हरा-भरा वन है अर्थात् इस में ही भगवान दृष्टि-मान होता है।
ਸਚਿ ਟਿਕੈ ਘਰਿ ਆਇ ਸਬਦਿ ਉਤਾਵਲਾ ॥੧॥
सचि टिकै घरि आइ सबदि उतावला ॥१॥
शब्द द्वारा सत्य हृदय-घर में बस जाता है और खुद भी मिलने हेतु उत्सुक है॥ १॥
ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਸੋਇ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੀਐ ॥
जह देखा तह सोइ अवरु न जाणीऐ ॥
जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ वहीं मेरा भगवान विद्यमान है। जग में उसके सिवाय कोई नहीं समझना चाहिए अर्थात् वह सारे जग में बसा हुआ है।
ਗੁਰ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ਮਹਲੁ ਪਛਾਣੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर की कार कमाइ महलु पछाणीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की सेवा करने से प्रभु के महल की पहचान हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਪਿ ਮਿਲਾਵੈ ਸਚੁ ਤਾ ਮਨਿ ਭਾਵਈ ॥
आपि मिलावै सचु ता मनि भावई ॥
जब सत्य परमेश्वर – जीव को अपने साथ मिला लेता है तो वह जीव के मन में अच्छा लगने लग जाता है।
ਚਲੈ ਸਦਾ ਰਜਾਇ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵਈ ॥੨॥
चलै सदा रजाइ अंकि समावई ॥२॥
जो मनुष्य सदैव ही प्रभु की रज़ा अनुसार चलता है, वह उसकी गोद में लीन हो जाता है॥ २॥
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਸੋਈ ॥
सचा साहिबु मनि वसै वसिआ मनि सोई ॥
सच्चा साहिब जिस प्राणी के हृदय में बस जाता है, उसे अपने हृदय में वही सत्य बसा हुआ दृष्टिगोचर होता है।
ਆਪੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈਆ ਦੇ ਤੋਟਿ ਨ ਹੋਈ ॥੩॥
आपे दे वडिआईआ दे तोटि न होई ॥३॥
भगवान स्वयं ही महानता प्रदान करता है। उसकी देनों में किसी पदार्थ की कमी नहीं ॥ ३॥
ਅਬੇ ਤਬੇ ਕੀ ਚਾਕਰੀ ਕਿਉ ਦਰਗਹ ਪਾਵੈ ॥
अबे तबे की चाकरी किउ दरगह पावै ॥
किसी ऐरा गैरा की सेवा करके मनुष्य भगवान के दरबार को कैसे प्राप्त हो सकता है?
ਪਥਰ ਕੀ ਬੇੜੀ ਜੇ ਚੜੈ ਭਰ ਨਾਲਿ ਬੁਡਾਵੈ ॥੪॥
पथर की बेड़ी जे चड़ै भर नालि बुडावै ॥४॥
यदि मनुष्य – पत्थर की नाव में सवार होकर जाए, वह इसके भार से ही डूब जाएगा ॥ ४ ॥
ਆਪਨੜਾ ਮਨੁ ਵੇਚੀਐ ਸਿਰੁ ਦੀਜੈ ਨਾਲੇ ॥
आपनड़ा मनु वेचीऐ सिरु दीजै नाले ॥
अपना मन गुरु के पास बेच देना चाहिए और अपना सिर भी साथ ही अर्पित कर देना चाहिए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਸਤੁ ਪਛਾਣੀਐ ਅਪਨਾ ਘਰੁ ਭਾਲੇ ॥੫॥
गुरमुखि वसतु पछाणीऐ अपना घरु भाले ॥५॥
फिर गुरु द्वारा ही नाम-पदार्थ पहचाना जाता है और मनुष्य को अपना हृदय घर मिल जाता है॥ ५॥
ਜੰਮਣ ਮਰਣਾ ਆਖੀਐ ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ ਕੀਆ ॥
जमण मरणा आखीऐ तिनि करतै कीआ ॥
लोग जन्म-मरण की बातें करते हैं। यह सब कुछ उस विधाता ने किया है।
ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਮਰਿ ਰਹੇ ਫਿਰਿ ਮਰਣੁ ਨ ਥੀਆ ॥੬॥
आपु गवाइआ मरि रहे फिरि मरणु न थीआ ॥६॥
जो अपना अहंकार गंवा कर मर जाते हैं, वे जन्म-मरण के चक्र में नहीं पड़ते॥ ६॥
ਸਾਈ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਧੁਰ ਕੀ ਫੁਰਮਾਈ ॥
साई कार कमावणी धुर की फुरमाई ॥
मनुष्य को वही कार्य करना चाहिए, जिस बारे विधाता ने उसे हुक्म किया है।
ਜੇ ਮਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਦੇ ਮਿਲੈ ਕਿਨਿ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥੭॥
जे मनु सतिगुर दे मिलै किनि कीमति पाई ॥७॥
यदि मनुष्य सतिगुरु से मिलकर अपना मन उसको अर्पित कर दे तो उसका मूल्यांकन कौन पा सकता है ?॥ ७॥
ਰਤਨਾ ਪਾਰਖੁ ਸੋ ਧਣੀ ਤਿਨਿ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥
रतना पारखु सो धणी तिनि कीमति पाई ॥
वह प्रभु स्वयं रत्नों की परख करता है और इनका मूल्यांकन करता है।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ॥੮॥੧੭॥
नानक साहिबु मनि वसै सची वडिआई ॥८॥१७॥
हे नानक ! यदि मालिक-प्रभु मन में बस जाए तो यही मेरे लिए सच्ची बडाई है॥८॥१७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥
ਜਿਨੑੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਦੂਜੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈ ॥
जिन्ही नामु विसारिआ दूजै भरमि भुलाई ॥
जिन लोगों ने भगवान के नाम को भुला दिया है, वे द्वैतवाद में फँसकर भ्रम में ही भटकते रहते हैं।
ਮੂਲੁ ਛੋਡਿ ਡਾਲੀ ਲਗੇ ਕਿਆ ਪਾਵਹਿ ਛਾਈ ॥੧॥
मूलु छोडि डाली लगे किआ पावहि छाई ॥१॥
जो मूल (भगवान) को त्यागकर पेड़ों की डालियों में लगे हैं, उन्हें जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता।॥ १॥
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕਿਉ ਛੂਟੀਐ ਜੇ ਜਾਣੈ ਕੋਈ ॥
बिनु नावै किउ छूटीऐ जे जाणै कोई ॥
नाम के बिना मनुष्य कैसे मुक्त हो सकता है ? अच्छा हो यदि कोई इसे समझ ले।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਤ ਛੂਟੀਐ ਮਨਮੁਖਿ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि होइ त छूटीऐ मनमुखि पति खोई ॥१॥ रहाउ ॥
यदि गुरुमुख हो जाए तो वह जन्म-मरण से छूट जाता है लेकिन स्वेच्छाचारी अपनी इज्जत गंवा लेता है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨੑੀ ਏਕੋ ਸੇਵਿਆ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਭਾਈ ॥
जिन्ही एको सेविआ पूरी मति भाई ॥
हे भाई ! जो मनुष्य एक ईश्वर की सेवा भक्ति करते हैं, उनकी बुद्धि पूर्ण है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਨਿਰੰਜਨਾ ਜਨ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥
आदि जुगादि निरंजना जन हरि सरणाई ॥२॥
निरंजन परमात्मा जगत के आदि में और युगों के आदि में भी था, भक्तजन उस हरि की शरण में ही पड़े हुए हैं।॥ २॥
ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ਏਕੁ ਹੈ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਭਾਈ ॥
साहिबु मेरा एकु है अवरु नही भाई ॥
हे भाई ! मेरा मालिक एक परमात्मा ही है, दूसरा कोई नहीं।
ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਾਚੇ ਪਰਥਾਈ ॥੩॥
किरपा ते सुखु पाइआ साचे परथाई ॥३॥
सच्चे परमात्मा की कृपा से मुझे सुख उपलब्ध हुआ है॥ ३॥
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਕੇਤੀ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ॥
गुर बिनु किनै न पाइओ केती कहै कहाए ॥
गुरु के बिना किसी को भी परमात्मा नहीं मिला चाहे कितनी ही दुनिया उसे पाने की अनेक विधियाँ बताती है।
ਆਪਿ ਦਿਖਾਵੈ ਵਾਟੜੀਂ ਸਚੀ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥੪॥
आपि दिखावै वाटड़ीं सची भगति द्रिड़ाए ॥४॥
भगवान स्वयं मार्ग दिखाता है और सच्ची भक्ति मनुष्य के हृदय में दृढ़ करता है॥ ४॥
ਮਨਮੁਖੁ ਜੇ ਸਮਝਾਈਐ ਭੀ ਉਝੜਿ ਜਾਏ ॥
मनमुखु जे समझाईऐ भी उझड़ि जाए ॥
यदि स्वेच्छाचारी को सद्मार्ग का उपदेश दिया जाए तो भी वह कुमार्ग ही जाता है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਛੂਟਸੀ ਮਰਿ ਨਰਕ ਸਮਾਏ ॥੫॥
बिनु हरि नाम न छूटसी मरि नरक समाए ॥५॥
हरि के नाम बिना वह जन्म-मरण से छुटकारा नहीं पा सकता और मर कर वह नरक में ही पड़ा रहता है॥ ५॥
ਜਨਮਿ ਮਰੈ ਭਰਮਾਈਐ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਲੇਵੈ ॥
जनमि मरै भरमाईऐ हरि नामु न लेवै ॥
जो मनुष्य हरि के नाम का सुमिरन नहीं करता, वह जन्म-मरण के चक्र में भटकता रहता है।
ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵੈ ॥੬॥
ता की कीमति ना पवै बिनु गुर की सेवै ॥६॥
गुरु की सेवा किए बिना उसका मूल्य नहीं पाया जा सकता ॥ ६॥