ਐਸੇ ਘਰ ਹਮ ਬਹੁਤੁ ਬਸਾਏ ॥
ऐसे घर हम बहुतु बसाए ॥
उससे पहले मैंने ऐसे बहुत से शरीरों में निवास किया था॥
ਜਬ ਹਮ ਰਾਮ ਗਰਭ ਹੋਇ ਆਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जब हम राम गरभ होइ आए ॥१॥ रहाउ ॥
हे राम ! जब मैं अपनी माता के गर्भ में डाला गया था १॥ रहाउ ॥
ਜੋਗੀ ਜਤੀ ਤਪੀ ਬ੍ਰਹਮਚਾਰੀ ॥
जोगी जती तपी ब्रहमचारी ॥
मैं कभी योगी, कभी यती, कभी तपस्वी एवं कभी ब्रह्मचारी बना और
ਕਬਹੂ ਰਾਜਾ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਕਬਹੂ ਭੇਖਾਰੀ ॥੨॥
कबहू राजा छत्रपति कबहू भेखारी ॥२॥
कभी मैं छत्रपति राजा बना और कभी भिखारी बना॥ २॥
ਸਾਕਤ ਮਰਹਿ ਸੰਤ ਸਭਿ ਜੀਵਹਿ ॥
साकत मरहि संत सभि जीवहि ॥
शाक्त इन्सान मर जाएँगे परन्तु साधु सभी जीवित रहेंगे
ਰਾਮ ਰਸਾਇਨੁ ਰਸਨਾ ਪੀਵਹਿ ॥੩॥
राम रसाइनु रसना पीवहि ॥३॥
और अपनी जिव्हा से राम-अमृत का पान करेंगे ॥ ३॥
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ॥ਹਾਰਿ ਪਰੇ ਅਬ ਪੂਰਾ ਦੀਜੈ ॥੪॥੧੩॥
कहु कबीर प्रभ किरपा कीजै ॥हारि परे अब पूरा दीजै ॥४॥१३॥
कबीर का कथन है कि हे मेरे प्रभु ! मुझ पर कृपा करो, अब मैं थक-टूट गया हूँ, अब मुझे पूर्ण ज्ञान दीजिए॥ ४ ॥ १३ ॥
ਗਉੜੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ਕੀ ਨਾਲਿ ਰਲਾਇ ਲਿਖਿਆ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी कबीर जी की नालि रलाइ लिखिआ महला ५ ॥
गउड़ी कबीर जी की नालि रलाइ लिखिआ महला ५ ॥
ਐਸੋ ਅਚਰਜੁ ਦੇਖਿਓ ਕਬੀਰ ॥
ऐसो अचरजु देखिओ कबीर ॥
हे कबीर ! मैंने यह अदभुत कौतुक देखा है
ਦਧਿ ਕੈ ਭੋਲੈ ਬਿਰੋਲੈ ਨੀਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दधि कै भोलै बिरोलै नीरु ॥१॥ रहाउ ॥
कि मनुष्य दहीं के अम में जल का मन्थन कर रहा है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰੀ ਅੰਗੂਰੀ ਗਦਹਾ ਚਰੈ ॥
हरी अंगूरी गदहा चरै ॥
गधा हरी अंगूरी चरता है और
ਨਿਤ ਉਠਿ ਹਾਸੈ ਹੀਗੈ ਮਰੈ ॥੧
नित उठि हासै हीगै मरै ॥१॥
प्रतिदिन उठकर वह हँसता, हींगता रहता है आखिरकार मर जाता है (अर्थात् मूर्ख जीव मनभावन विकार भोगता है, इस प्रकार हैंसता तथा ही-ही करता रहता है अंतः जन्म-मरण के चक्र में पड़ जाता है) ॥ १ ॥
ਮਾਤਾ ਭੈਸਾ ਅੰਮੁਹਾ ਜਾਇ ॥
माता भैसा अमुहा जाइ ॥
मतवाला भैसा अनियंत्रित होकर भागता फिरता है।
ਕੁਦਿ ਕੁਦਿ ਚਰੈ ਰਸਾਤਲਿ ਪਾਇ ॥੨॥
कुदि कुदि चरै रसातलि पाइ ॥२॥
वह नाचता, कूदता, खाता और आखिरकार नरक में पड़ जाता है॥ २॥
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਪਰਗਟੁ ਭਈ ਖੇਡ ॥
कहु कबीर परगटु भई खेड ॥
हे कबीर ! यह अदभुत खेल प्रकट हो गई है।
ਲੇਲੇ ਕਉ ਚੂਘੈ ਨਿਤ ਭੇਡ ॥੩॥
लेले कउ चूघै नित भेड ॥३॥
भेड़ हमेशा अपने लेले को चूंघती है।
ਰਾਮ ਰਮਤ ਮਤਿ ਪਰਗਟੀ ਆਈ ॥
राम रमत मति परगटी आई ॥
राम का नाम उच्चरित करने से मेरी बुद्धि उज्ज्वल हो गई है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਗੁਰਿ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥੪॥੧॥੧੪॥
कहु कबीर गुरि सोझी पाई ॥४॥१॥१४॥
हे कबीर ! गुरु ने मुझे यह ज्ञान प्रदान किया है॥ ४॥ १॥ १४॥
ਗਉੜੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ਪੰਚਪਦੇ ॥
गउड़ी कबीर जी पंचपदे ॥
गउड़ी कबीर जी पंचपदे ॥
ਜਿਉ ਜਲ ਛੋਡਿ ਬਾਹਰਿ ਭਇਓ ਮੀਨਾ ॥ ਪੂਰਬ ਜਨਮ ਹਉ ਤਪ ਕਾ ਹੀਨਾ ॥੧॥
जिउ जल छोडि बाहरि भइओ मीना ॥ पूरब जनम हउ तप का हीना ॥१॥
जैसे मछली जल को त्यागकर बाहर निकल आती है (तो पीड़ित होकर प्राण त्याग देती है, वैसे ही) मैंने भी पूर्व जन्मों में तपस्या नहीं की थी।॥ १॥
ਅਬ ਕਹੁ ਰਾਮ ਕਵਨ ਗਤਿ ਮੋਰੀ ॥
अब कहु राम कवन गति मोरी ॥
हे मेरे राम ! अब बताओ, मेरी क्या गति होगी ?
ਤਜੀ ਲੇ ਬਨਾਰਸ ਮਤਿ ਭਈ ਥੋਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तजी ले बनारस मति भई थोरी ॥१॥ रहाउ ॥
लोग मुझे कहते हैं कि जब मैं बनारस छोड़ गया तो मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई ?॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਜਨਮੁ ਸਿਵ ਪੁਰੀ ਗਵਾਇਆ ॥ ਮਰਤੀ ਬਾਰ ਮਗਹਰਿ ਉਠਿ ਆਇਆ ॥੨॥
सगल जनमु सिव पुरी गवाइआ ॥ मरती बार मगहरि उठि आइआ ॥२॥
मैंने अपनी समस्त आयु शिवपुरी (काशी) में गंवा दी है। मृत्यु के समय (काशी) छोड़कर मगहर चला आया हूँ॥ २॥
ਬਹੁਤੁ ਬਰਸ ਤਪੁ ਕੀਆ ਕਾਸੀ ॥
हुतु बरस तपु कीआ कासी ॥
मैंने कई वर्ष काशी में रहकर तप किया।
ਮਰਨੁ ਭਇਆ ਮਗਹਰ ਕੀ ਬਾਸੀ ॥੩॥
मरनु भइआ मगहर की बासी ॥३॥
अब जब मृत्यु का समय आया तो मगहर आकर निवास कर लिया है॥ ३॥
ਕਾਸੀ ਮਗਹਰ ਸਮ ਬੀਚਾਰੀ ॥
कासी मगहर सम बीचारी ॥
मैंने काशी और मगहर को एक समान समझ लिया है,
ਓਛੀ ਭਗਤਿ ਕੈਸੇ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰੀ ॥੪॥
ओछी भगति कैसे उतरसि पारी ॥४॥
आोच्छी भक्ति से कोई किस प्रकार भवसागर से पार हो सकता है ?॥ ४॥
ਕਹੁ ਗੁਰ ਗਜ ਸਿਵ ਸਭੁ ਕੋ ਜਾਨੈ ॥
कहु गुर गज सिव सभु को जानै ॥
हे कबीर ! मेरा गुरु (रामानंद), गणेश एवं भगवान शिव सभी जानते हैं कि
ਮੁਆ ਕਬੀਰੁ ਰਮਤ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮੈ ॥੫॥੧੫॥
मुआ कबीरु रमत स्री रामै ॥५॥१५॥
कबीर श्री राम के नाम का जाप करता हुआ मर गया ॥ ५॥ १५॥
ਗਉੜੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ॥
गउड़ी कबीर जी ॥
गउड़ी कबीर जी ॥
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਮਰਦਨ ਅੰਗਾ ॥
चोआ चंदन मरदन अंगा ॥
जिस सुन्दर शरीर के अंगों पर इत्र एवं चन्दन मला जाता है,
ਸੋ ਤਨੁ ਜਲੈ ਕਾਠ ਕੈ ਸੰਗਾ ॥੧॥
सो तनु जलै काठ कै संगा ॥१॥
वह आखिरकार लकड़ियों से जला दिया जाता है॥ १॥
ਇਸੁ ਤਨ ਧਨ ਕੀ ਕਵਨ ਬਡਾਈ ॥
इसु तन धन की कवन बडाई ॥
इस शरीर एवं धन पर क्या अभिमान करना हुआ ?
ਧਰਨਿ ਪਰੈ ਉਰਵਾਰਿ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
धरनि परै उरवारि न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
ये यहाँ पृथ्वी पर पड़े रह जाते हैं और प्राणी के साथ परलोक को नहीं जाते ॥ १॥ रहाउ ॥
ਰਾਤਿ ਜਿ ਸੋਵਹਿ ਦਿਨ ਕਰਹਿ ਕਾਮ ॥
राति जि सोवहि दिन करहि काम ॥
जो व्यक्ति रात सोने में बिता देते हैं और दिन में काम करते हैं
ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਲੇਹਿ ਨ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮ ॥੨॥
इकु खिनु लेहि न हरि को नाम ॥२॥
और एक क्षणमात्र भी भगवान का नाम याद नहीं करते॥ २॥
ਹਾਥਿ ਤ ਡੋਰ ਮੁਖਿ ਖਾਇਓ ਤੰਬੋਰ ॥
हाथि त डोर मुखि खाइओ त्मबोर ॥
जिनके हाथ में डोर है और मुख में पान चबा रहे हैं,
ਮਰਤੀ ਬਾਰ ਕਸਿ ਬਾਧਿਓ ਚੋਰ ॥੩॥
मरती बार कसि बाधिओ चोर ॥३॥
ऐसे व्यक्ति मृत्यु के समय चोरों की भाँति कसकर बाँधे जाते हैं।॥ ३॥
ਗੁਰਮਤਿ ਰਸਿ ਰਸਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥
गुरमति रसि रसि हरि गुन गावै ॥
जो इन्सान गुरु की मति लेकर प्रेमपूर्वक भगवान के गुण गाता है,
ਰਾਮੈ ਰਾਮ ਰਮਤ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੪॥
रामै राम रमत सुखु पावै ॥४॥
वह केवल प्रभु-परमेश्वर को ही याद करके सुख हासिल करता है॥ ४॥
ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕੈ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਈ ॥
किरपा करि कै नामु द्रिड़ाई ॥
जिस व्यक्ति के भीतर कृपा धारण करके प्रभु अपना नाम बसा देता है,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਾਸੁ ਸੁਗੰਧ ਬਸਾਈ ॥੫॥
हरि हरि बासु सुगंध बसाई ॥५॥
वह हरि-परमेश्वर की महक एवं सुगन्ध को अपने हृदय में बसा लेता है॥ ५॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਚੇਤਿ ਰੇ ਅੰਧਾ ॥
कहत कबीर चेति रे अंधा ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे मूर्ख जीव ! (अपने परमेश्वर को) याद कर,
ਸਤਿ ਰਾਮੁ ਝੂਠਾ ਸਭੁ ਧੰਧਾ ॥੬॥੧੬॥
सति रामु झूठा सभु धंधा ॥६॥१६॥
चूंकि राम ही सत्य है और दुनिया के शेष धन्धे क्षणभंगुर हैं। ६॥ १६॥
ਗਉੜੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ਤਿਪਦੇ ਚਾਰਤੁਕੇ ॥
गउड़ी कबीर जी तिपदे चारतुके ॥
गउड़ी कबीर जी तिपदे चारतुके ॥
ਜਮ ਤੇ ਉਲਟਿ ਭਏ ਹੈ ਰਾਮ ॥
जम ते उलटि भए है राम ॥
यम (मृत्यु) की तरफ जाने की बजाय अब मैंने राम का पक्ष ले लिया है।
ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖ ਕੀਓ ਬਿਸਰਾਮ ॥
दुख बिनसे सुख कीओ बिसराम ॥
जिससे मेरे दुःख मिट गए हैं और मैं सुखपूर्वक विश्राम करता हूँ।
ਬੈਰੀ ਉਲਟਿ ਭਏ ਹੈ ਮੀਤਾ ॥
बैरी उलटि भए है मीता ॥
मेरे शत्रु भी बदलकर मेरे मित्र बन गए हैं।
ਸਾਕਤ ਉਲਟਿ ਸੁਜਨ ਭਏ ਚੀਤਾ ॥੧॥
साकत उलटि सुजन भए चीता ॥१॥
भगवान से टूटे हुए शाक्त पुरुष बदलकर भद्रपुरुष बन गए हैं।॥ १॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਸਰਬ ਕੁਸਲ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ॥
अब मोहि सरब कुसल करि मानिआ ॥
अब मुझे समस्त सुख एवं मंगल प्रतीत हो रहे हैं,
ਸਾਂਤਿ ਭਈ ਜਬ ਗੋਬਿਦੁ ਜਾਨਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सांति भई जब गोबिदु जानिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जब से मैंने गोविन्द को अनुभव किया है, मेरे भीतर सुख-शांति हो गई है॥ १॥ रहाउ॥