ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਸੰਗਿ ਕਰਿ ਬਿਉਹਾਰ ॥
राम राम संगि करि बिउहार ॥
हे जीव ! राम नाम से ही व्यवहार करो,
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ॥
राम राम राम प्रान अधार ॥
क्योंकि राम ही प्राणों का एकमात्र आधार है।
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਇ ॥
राम राम राम कीरतनु गाइ ॥
राम का ही कीर्तिगान करना चाहिए,
ਰਮਤ ਰਾਮੁ ਸਭ ਰਹਿਓ ਸਮਾਇ ॥੧॥
रमत रामु सभ रहिओ समाइ ॥१॥
क्योंकि प्यारा राम सब में ही समाया हुआ है॥ १॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਬੋਲਹੁ ਰਾਮ ॥
संत जना मिलि बोलहु राम ॥
संतजनों के साथ मिलकर राम नाम ही बोलो,
ਸਭ ਤੇ ਨਿਰਮਲ ਪੂਰਨ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभ ते निरमल पूरन काम ॥१॥ रहाउ ॥
यही सबसे पावन है और मनोकामना पूर्ण करने वाला है॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਧਨੁ ਸੰਚਿ ਭੰਡਾਰ ॥
राम राम धनु संचि भंडार ॥
राम नाम का धन संचित करके भण्डार भर लो।
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਕਰਿ ਆਹਾਰ ॥
राम राम राम करि आहार ॥
राम नाम का अपना भोजन बना लो।
ਰਾਮ ਰਾਮ ਵੀਸਰਿ ਨਹੀ ਜਾਇ ॥
राम राम वीसरि नही जाइ ॥
राम नाम कभी नहीं भुलाना चाहिए,
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬਤਾਇ ॥੨॥
करि किरपा गुरि दीआ बताइ ॥२॥
गुरु ने कृपा कर यह बता दिया है ॥ २॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਸਦਾ ਸਹਾਇ ॥
राम राम राम सदा सहाइ ॥
राम सदा ही मेरी सहायता करता है,
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
राम राम राम लिव लाइ ॥
इसलिए राम नाम में ही लगन लगा ली है।
ਰਾਮ ਰਾਮ ਜਪਿ ਨਿਰਮਲ ਭਏ ॥
राम राम जपि निरमल भए ॥
राम नाम जपकर हम निर्मल हो गए हैं और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਗਏ ॥੩॥
जनम जनम के किलबिख गए ॥३॥
इससे जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो गए हैं।॥ ३॥
ਰਮਤ ਰਾਮ ਜਨਮ ਮਰਣੁ ਨਿਵਾਰੈ ॥
रमत राम जनम मरणु निवारै ॥
राम नाम का सिमरन जन्म-मरण का चक्र मिटा देता है।
ਉਚਰਤ ਰਾਮ ਭੈ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੈ ॥
उचरत राम भै पारि उतारै ॥
राम नाम का उच्चारण भवसागर से पार करवा देता है।
ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਰਾਮ ਪਰਗਾਸ ॥
सभ ते ऊच राम परगास ॥
राम नाम का प्रकाश सर्वोत्तम है।
ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ॥੪॥੮॥੧੦॥
निसि बासुर जपि नानक दास ॥४॥८॥१०॥
हे दास नानक ! दिन-रात राम को जपते रहो ॥ ४ ॥ ८ ॥ १० ॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥
ਉਨ ਕਉ ਖਸਮਿ ਕੀਨੀ ਠਾਕਹਾਰੇ ॥
उन कउ खसमि कीनी ठाकहारे ॥
मेरे मालिक ने काम, क्रोध, मोह, लोभ एवं अहंकार को रोक दिया है।
ਦਾਸ ਸੰਗ ਤੇ ਮਾਰਿ ਬਿਦਾਰੇ ॥
दास संग ते मारि बिदारे ॥
प्रभु ने उन्हें अपने दास को मिलने से मार कर भगा दिया है।
ਗੋਬਿੰਦ ਭਗਤ ਕਾ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
गोबिंद भगत का महलु न पाइआ ॥
इन विकारों ने गोविंद के भक्त का ठिकाना नहीं पाया।
ਰਾਮ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥੧॥
राम जना मिलि मंगलु गाइआ ॥१॥
राम के भक्तजनों ने मिलकर उसका ही मंगलगान किया है॥ १॥
ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕੇ ਪੰਚ ਸਿਕਦਾਰ ॥
सगल स्रिसटि के पंच सिकदार ॥
ये पाँचों चाहे सारी सृष्टि के सरदार हैं
ਰਾਮ ਭਗਤ ਕੇ ਪਾਨੀਹਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम भगत के पानीहार ॥१॥ रहाउ ॥
लेकिन राम-भक्तों के पानी भरने वाले सेवक हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਗਤ ਪਾਸ ਤੇ ਲੇਤੇ ਦਾਨੁ ॥
जगत पास ते लेते दानु ॥
यह जगत् से तो कर (टैक्स) लेते हैं लेकिन
ਗੋਬਿੰਦ ਭਗਤ ਕਉ ਕਰਹਿ ਸਲਾਮੁ ॥
गोबिंद भगत कउ करहि सलामु ॥
गोविंद के भक्तों को हमेशा सलाम करते हैं।
ਲੂਟਿ ਲੇਹਿ ਸਾਕਤ ਪਤਿ ਖੋਵਹਿ ॥
लूटि लेहि साकत पति खोवहि ॥
ये पदार्थवादी जीवों के शुभ गुणों को लूट लेते हैं और उनकी इज्जत गंवा देते हैं परन्तु
ਸਾਧ ਜਨਾ ਪਗ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੋਵਹਿ ॥੨॥
साध जना पग मलि मलि धोवहि ॥२॥
साधुजनों के पैर मल-मलकर धोते हैं।॥ २॥
ਪੰਚ ਪੂਤ ਜਣੇ ਇਕ ਮਾਇ ॥
पंच पूत जणे इक माइ ॥
एक माया माई ने इन पाँचों पुत्रों को जन्म दिया है और
ਉਤਭੁਜ ਖੇਲੁ ਕਰਿ ਜਗਤ ਵਿਆਇ ॥
उतभुज खेलु करि जगत विआइ ॥
उसने उद्भिज, अण्डज, जेरज और स्वेदज के जीवों की खेल रच कर जगत् को उत्पन्न किया है।
ਤੀਨਿ ਗੁਣਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਰਚਿ ਰਸੇ ॥
तीनि गुणा कै संगि रचि रसे ॥
रजोगुणी, तमोगुणी एवं सतोगुणी जीवों के साथ मिलकर आनंद करते है
ਇਨ ਕਉ ਛੋਡਿ ਊਪਰਿ ਜਨ ਬਸੇ ॥੩॥
इन कउ छोडि ऊपरि जन बसे ॥३॥
इन विकारो को छोड़ कर भक्तजन इनसे ऊपर बसते हैं।॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਨ ਲੀਏ ਛਡਾਇ ॥
करि किरपा जन लीए छडाइ ॥
ईश्वर ने कृपा करके भक्तजनों को छुड़ा लिया है,
ਜਿਸ ਕੇ ਸੇ ਤਿਨਿ ਰਖੇ ਹਟਾਇ ॥
जिस के से तिनि रखे हटाइ ॥
जिसके ये पैदा किए हुए हैं, उसने ही इन्हे विकारो से दूर किया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਸਾਰੁ ॥
कहु नानक भगति प्रभ सारु ॥
हे नानक ! प्रभु की भक्ति उत्तम है
ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਸਭ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥੪॥੯॥੧੧॥
बिनु भगती सभ होइ खुआरु ॥४॥९॥११॥
भक्ति के बिना सब तंग होते है।॥४॥९॥११॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਮਿਟੇ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥
कलि कलेस मिटे हरि नाइ ॥
हरि का नाम जपने से सभी कलह-कलेश मिट जाते हैं।
ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖ ਕੀਨੋ ਠਾਉ ॥
दुख बिनसे सुख कीनो ठाउ ॥
इससे दुखों का नाश हो जाता है और सुख ही सुख बना रहता है।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਅਘਾਏ ॥
जपि जपि अम्रित नामु अघाए ॥
प्रभु का अमृत नाम जप-जप कर जीव तृप्त हो जाता है और
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਗਲ ਫਲ ਪਾਏ ॥੧॥
संत प्रसादि सगल फल पाए ॥१॥
संतों की कृपा से सभी फल प्राप्त हो जाते हैं।१॥
ਰਾਮ ਜਪਤ ਜਨ ਪਾਰਿ ਪਰੇ ॥
राम जपत जन पारि परे ॥
राम-नाम जपकर भक्तजन भवसागर से पार हो जाते हैं और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਪਾਪ ਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनम जनम के पाप हरे ॥१॥ रहाउ ॥
उनके जन्म-जन्मांतर के पाप नाश हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਰਿਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
गुर के चरन रिदै उरि धारे ॥
गुरु के चरण हृदय में धारण कर लो
ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਤੇ ਉਤਰੇ ਪਾਰੇ ॥
अगनि सागर ते उतरे पारे ॥
इससे संसार रूपी अग्नि सागर से पार हुआ जा सकता है और
ਜਨਮ ਮਰਣ ਸਭ ਮਿਟੀ ਉਪਾਧਿ ॥
जनम मरण सभ मिटी उपाधि ॥
जन्म-मरण की सारी पीड़ा मिट जाती है और
ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ॥੨॥
प्रभ सिउ लागी सहजि समाधि ॥२॥
सहज ही प्रभु से समाधि लग जाती है।॥ २॥
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਏਕੋ ਸੁਆਮੀ ॥
थान थनंतरि एको सुआमी ॥
एक स्वामी ही सबमें बसा हुआ है।
ਸਗਲ ਘਟਾ ਕਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
सगल घटा का अंतरजामी ॥
और वह सबके दिल की बात जानता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਾ ਕਉ ਮਤਿ ਦੇਇ ॥
करि किरपा जा कउ मति देइ ॥
अपनी कृपा करके वह जिसे भी उपदेश देता है,
ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਉ ਲੇਇ ॥੩॥
आठ पहर प्रभ का नाउ लेइ ॥३॥
वह आठ प्रहर प्रभु का नाम ही लेता रहता है॥ ३॥
ਜਾ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਵਸੈ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ॥
जा कै अंतरि वसै प्रभु आपि ॥
जिसके अन्तर्मन में प्रभु स्वयं आ बसता है,”
ਤਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥
ता कै हिरदै होइ प्रगासु ॥
उसके हृदय में प्रकाश हो जाता है।
ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਕਰੀਐ ॥
भगति भाइ हरि कीरतनु करीऐ ॥
भक्ति-भाव से हरि का कीर्तन करना चाहिए।
ਜਪਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਾਨਕ ਨਿਸਤਰੀਐ ॥੪॥੧੦॥੧੨॥
जपि पारब्रहमु नानक निसतरीऐ ॥४॥१०॥१२॥
हे नानक ! परब्रह्म को जपकर मुक्तिं प्राप्त हो जाती है॥ ४॥ १०॥ १२॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥