Hindi Page 1035

ਹਮ ਦਾਸਨ ਕੇ ਦਾਸ ਪਿਆਰੇ ॥
हम दासन के दास पिआरे ॥
हे प्यारे ! हम तेरे दासों के दास हैं,

ਸਾਧਿਕ ਸਾਚ ਭਲੇ ਵੀਚਾਰੇ ॥
साधिक साच भले वीचारे ॥
वही साधक, सत्यवादी एवं भले हैं, जो तेरा चिंतन करते हैं।

ਮੰਨੇ ਨਾਉ ਸੋਈ ਜਿਣਿ ਜਾਸੀ ਆਪੇ ਸਾਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਦਾ ॥੧੦॥
मंने नाउ सोई जिणि जासी आपे साचु द्रिड़ाइदा ॥१०॥
जो निष्ठापूर्वक नाम का मनन करता है, वह जीवनबाजी जीत लेता है और सत्य में ही दृढ़ रहता है॥ १०॥

ਪਲੈ ਸਾਚੁ ਸਚੇ ਸਚਿਆਰਾ ॥
पलै साचु सचे सचिआरा ॥
जिसके पास सत्य है, वास्तव में वही सत्यशील है।

ਸਾਚੇ ਭਾਵੈ ਸਬਦੁ ਪਿਆਰਾ ॥
साचे भावै सबदु पिआरा ॥
जिसे शब्द से प्रेम होता है, वही सच्चे प्रभु को भाता है।

ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਸਾਚੁ ਕਲਾ ਧਰਿ ਥਾਪੀ ਸਾਚੇ ਹੀ ਪਤੀਆਇਦਾ ॥੧੧॥
त्रिभवणि साचु कला धरि थापी साचे ही पतीआइदा ॥११॥
तीनों लोकों में ईश्वर ने सत्य को शक्ति रूप में स्थिर किया हुआ है और वह सत्यशील पर ही प्रसन्न होता है॥ ११॥

ਵਡਾ ਵਡਾ ਆਖੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
वडा वडा आखै सभु कोई ॥
हर कोई ईश्वर को बड़ा एवं महान् बताता है किन्तु

ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਸੋਝੀ ਕਿਨੈ ਨ ਹੋਈ ॥
गुर बिनु सोझी किनै न होई ॥
गुरु के बिना किसी को भी सूझ नहीं हुई।

ਸਾਚਿ ਮਿਲੈ ਸੋ ਸਾਚੇ ਭਾਏ ਨਾ ਵੀਛੁੜਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੨॥
साचि मिलै सो साचे भाए ना वीछुड़ि दुखु पाइदा ॥१२॥
जो सत्य में मिल जाते हैं, वही सच्चे प्रभु को भाते हैं और फिर उससे बिछुड़ कर दुखी नहीं होते॥ १२॥

ਧੁਰਹੁ ਵਿਛੁੰਨੇ ਧਾਹੀ ਰੁੰਨੇ ॥
धुरहु विछुंने धाही रुंने ॥
जो प्रारम्भ से ही बिछुड़े हुए हैं, वे फूट-फूट कर रोते हैं।

ਮਰਿ ਮਰਿ ਜਨਮਹਿ ਮੁਹਲਤਿ ਪੁੰਨੇ ॥
मरि मरि जनमहि मुहलति पुंने ॥
जब उनकी जीवन-अवधि पूरी हो जाती है, वे मरते-जन्मते रहते हैं।

ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਤਿਸੁ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਮੇਲਿ ਨ ਪਛੋਤਾਇਦਾ ॥੧੩॥
जिसु बखसे तिसु दे वडिआई मेलि न पछोताइदा ॥१३॥
लेकिन जिस पर ईश्वर कृपा करता है, उसे ही बड़ाई देता है, और मिलाकर पछताता नहीं॥ १३॥

ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਭੁਗਤਾ ॥
आपे करता आपे भुगता ॥
कर्ता भोक्ता,

ਆਪੇ ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਆਪੇ ਮੁਕਤਾ ॥
आपे त्रिपता आपे मुकता ॥
तृप्त एवं मुक्त ईश्वर ही है।

ਆਪੇ ਮੁਕਤਿ ਦਾਨੁ ਮੁਕਤੀਸਰੁ ਮਮਤਾ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਦਾ ॥੧੪॥
आपे मुकति दानु मुकतीसरु ममता मोहु चुकाइदा ॥१४॥
मुक्ति देने वाला वह मुक्तीश्वर खुद ही ममता-मोह मिटा देता है॥ १४॥

ਦਾਨਾ ਕੈ ਸਿਰਿ ਦਾਨੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥
दाना कै सिरि दानु वीचारा ॥
उसका दिया दान ही सर्वश्रेष्ठ दान है,

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਅਪਾਰਾ ॥
करण कारण समरथु अपारा ॥
वह अपरंपार करने करवाने में समर्थ है।

ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਕੀਤਾ ਅਪਣਾ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਕਰਾਇਦਾ ॥੧੫॥
करि करि वेखै कीता अपणा करणी कार कराइदा ॥१५॥
वह पैदा कर-करके अपनी रचना को देखता रहता है और कमों के अनुसार ही कर्म करवाता है॥ १५॥

ਸੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਾਚੇ ਭਾਵਹਿ ॥
से गुण गावहि साचे भावहि ॥
हे सत्यस्वरूप ! जो तुझे भाते हैं, वही तेरा गुणगान करते हैं।

ਤੁਝ ਤੇ ਉਪਜਹਿ ਤੁਝ ਮਾਹਿ ਸਮਾਵਹਿ ॥
तुझ ते उपजहि तुझ माहि समावहि ॥
सब जीव तुझ से पैदा होकर तुझ में ही समा जाते हैं।

ਨਾਨਕੁ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਮਿਲਿ ਸਾਚੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੬॥੨॥੧੪॥
नानकु साचु कहै बेनंती मिलि साचे सुखु पाइदा ॥१६॥२॥१४॥
नानक विनयपूर्वक सत्य ही कहता है कि परम-सत्य ईश्वर को मिलकर ही सुख प्राप्त होता है॥ १६॥ २॥ १४॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਅਰਬਦ ਨਰਬਦ ਧੁੰਧੂਕਾਰਾ ॥
अरबद नरबद धुंधूकारा ॥
सृष्टि-रचना से पूर्व अरबों-खरबों वर्ष धुंध रूपी घोर अंधेरा ही बना रहा।

ਧਰਣਿ ਨ ਗਗਨਾ ਹੁਕਮੁ ਅਪਾਰਾ ॥
धरणि न गगना हुकमु अपारा ॥
तब न धरती थी, न गगन था, अपितु परमात्मा का हुक्म ही व्याप्त था।

ਨਾ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਨ ਚੰਦੁ ਨ ਸੂਰਜੁ ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਇਦਾ ॥੧॥
ना दिनु रैनि न चंदु न सूरजु सुंन समाधि लगाइदा ॥१॥
दिन-रात, सूर्य एवं चाँद भी नहीं था, तब ईश्वर शून्य समाधि में ही लीन था।॥ १॥

ਖਾਣੀ ਨ ਬਾਣੀ ਪਉਣ ਨ ਪਾਣੀ ॥
खाणी न बाणी पउण न पाणी ॥
तब उत्पति के चार स्रोत-अण्डज, जेरज, स्वदेज और उद्भज्ज भी नहीं थे, वाणी, पवन एवं पानी भी नहीं था।

ਓਪਤਿ ਖਪਤਿ ਨ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥
ओपति खपति न आवण जाणी ॥
तब न किसी प्रकार की उत्पति होती थी, न ही मृत्यु होती थी और न ही कोई जन्मता एवं मरता था।

ਖੰਡ ਪਤਾਲ ਸਪਤ ਨਹੀ ਸਾਗਰ ਨਦੀ ਨ ਨੀਰੁ ਵਹਾਇਦਾ ॥੨॥
खंड पताल सपत नही सागर नदी न नीरु वहाइदा ॥२॥
तब न ब्रह्माण्ड के खण्ड थे, न सात पाताल थे, सागर एवं कोई नदिया भी नहीं थी जिन में जल बहता है॥ २॥

ਨਾ ਤਦਿ ਸੁਰਗੁ ਮਛੁ ਪਇਆਲਾ ॥
ना तदि सुरगु मछु पइआला ॥
तब स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताललोक का भी अस्तित्व नहीं था।

ਦੋਜਕੁ ਭਿਸਤੁ ਨਹੀ ਖੈ ਕਾਲਾ ॥
दोजकु भिसतु नही खै काला ॥
तब कोई दोजख एवं बिहिश्त भी नहीं था और न ही मारने वाला काल था।

ਨਰਕੁ ਸੁਰਗੁ ਨਹੀ ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਨਾ ਕੋ ਆਇ ਨ ਜਾਇਦਾ ॥੩॥
नरकु सुरगु नही जमणु मरणा ना को आइ न जाइदा ॥३॥
नरक-स्वर्ग, जन्म-मरण का कोई चक्र भी नहीं था और न ही कोई जन्म लेता था और न ही मृत्यु को प्राप्त होता था॥ ३॥

ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਨ ਕੋਈ ॥
ब्रहमा बिसनु महेसु न कोई ॥
तब ब्रह्मा, विष्णु, महेश-त्रिदेव भी नहीं थे,

ਅਵਰੁ ਨ ਦੀਸੈ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥
अवरु न दीसै एको सोई ॥
एक परमेश्वर के अलावा अन्य कोई दृष्टिमान नहीं था।

ਨਾਰਿ ਪੁਰਖੁ ਨਹੀ ਜਾਤਿ ਨ ਜਨਮਾ ਨਾ ਕੋ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੪॥
नारि पुरखु नही जाति न जनमा ना को दुखु सुखु पाइदा ॥४॥
तब न कोई नारी-पुरुष था, न जाति एवं जन्म का अन्तर था और न ही कोई दुख-सुख की अनूभुति करता था॥ ४॥

ਨਾ ਤਦਿ ਜਤੀ ਸਤੀ ਬਨਵਾਸੀ ॥
ना तदि जती सती बनवासी ॥
तब कोई ब्रह्मचारी, संन्यासी एवं वन में रहने वाला भी नहीं था,

ਨਾ ਤਦਿ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਸੁਖਵਾਸੀ ॥
ना तदि सिध साधिक सुखवासी ॥
न ही कोई सिद्ध, साधिक और सुख में रहने वाला गृहस्थी था।

ਜੋਗੀ ਜੰਗਮ ਭੇਖੁ ਨ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋ ਨਾਥੁ ਕਹਾਇਦਾ ॥੫॥
जोगी जंगम भेखु न कोई ना को नाथु कहाइदा ॥५॥
योगी, जंगम एवं कोई सम्प्रदाय भी नहीं था और न ही कोई नाथ कहलवाता था॥ ५॥

ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਨਾ ਬ੍ਰਤ ਪੂਜਾ ॥
जप तप संजम ना ब्रत पूजा ॥
तव न कोई जप, तप एवं संयम करता था और न ही कोई व्रत एवं पूजा-अर्चना करता था।

ਨਾ ਕੋ ਆਖਿ ਵਖਾਣੈ ਦੂਜਾ ॥
ना को आखि वखाणै दूजा ॥
न ही कोई द्वैत-भाव को व्यक्त करने वाला था।

ਆਪੇ ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਵਿਗਸੈ ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇਦਾ ॥੬॥
आपे आपि उपाइ विगसै आपे कीमति पाइदा ॥६॥
तब स्वयंभू परमेश्वर स्वयं में ही प्रसन्न रहता था और स्वयं ही अपनी सही कीमत आंकने वाला था॥ ६॥

ਨਾ ਸੁਚਿ ਸੰਜਮੁ ਤੁਲਸੀ ਮਾਲਾ ॥
ना सुचि संजमु तुलसी माला ॥
तब शुद्धता, तुलसी की पूजा एवं माला भी नहीं थी;

ਗੋਪੀ ਕਾਨੁ ਨ ਗਊ ਗੋੁਆਲਾ ॥
गोपी कानु न गऊ गोआला ॥
न ही गोपी, कृष्ण-कन्हैया, गाय एवं ग्वाला था।

ਤੰਤੁ ਮੰਤੁ ਪਾਖੰਡੁ ਨ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋ ਵੰਸੁ ਵਜਾਇਦਾ ॥੭॥
तंतु मंतु पाखंडु न कोई ना को वंसु वजाइदा ॥७॥
तन्त्र-मन्त्र, पाखण्ड एवं बाँसुरी बजाने वाला भी कोई नहीं था॥ ७॥

ਕਰਮ ਧਰਮ ਨਹੀ ਮਾਇਆ ਮਾਖੀ ॥
करम धरम नही माइआ माखी ॥
तब धर्म-कर्म, माया की मक्खी का भी अस्तित्व नहीं था और

ਜਾਤਿ ਜਨਮੁ ਨਹੀ ਦੀਸੈ ਆਖੀ ॥
जाति जनमु नही दीसै आखी ॥
कोई जाति-जन्म भी नजर नहीं आता था;

ਮਮਤਾ ਜਾਲੁ ਕਾਲੁ ਨਹੀ ਮਾਥੈ ਨਾ ਕੋ ਕਿਸੈ ਧਿਆਇਦਾ ॥੮॥
ममता जालु कालु नही माथै ना को किसै धिआइदा ॥८॥
तब ममता का जाल एवं माथे पर काल भी नहीं था और न ही कोई किसी का ध्यान करता था॥ ८॥

ਨਿੰਦੁ ਬਿੰਦੁ ਨਹੀ ਜੀਉ ਨ ਜਿੰਦੋ ॥
निंदु बिंदु नही जीउ न जिंदो ॥
न ही कोई किसी की निंदा-अपमान करता था, न कोई जीव एवं प्राण थे।

ਨਾ ਤਦਿ ਗੋਰਖੁ ਨਾ ਮਾਛਿੰਦੋ ॥
ना तदि गोरखु ना माछिंदो ॥
तब न ही कोई गोरखनाथ एवं मछन्दरनाथ थे।

ਨਾ ਤਦਿ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਕੁਲ ਓਪਤਿ ਨਾ ਕੋ ਗਣਤ ਗਣਾਇਦਾ ॥੯॥
ना तदि गिआनु धिआनु कुल ओपति ना को गणत गणाइदा ॥९॥
तब ज्ञान, ध्यान, वंशावलि एवं कमों का लेखा-जोखा भी नहीं था।॥९॥

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