Hindi Page 1321

ਕਲਿਆਨ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कलिआन महला ४ ॥
कलिआनु महला ४ ॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀਜੈ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਹਮ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਹਗੇ ॥
प्रभ कीजै क्रिपा निधान हम हरि गुन गावहगे ॥
हे कृपा के घर, प्रभु ! हम पर कृपा करना ताकि तेरे गुण गाते रहें।

ਹਉ ਤੁਮਰੀ ਕਰਉ ਨਿਤ ਆਸ ਪ੍ਰਭ ਮੋਹਿ ਕਬ ਗਲਿ ਲਾਵਹਿਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ तुमरी करउ नित आस प्रभ मोहि कब गलि लावहिगे ॥१॥ रहाउ ॥
मैं नित्य तुम्हारी आशा करता हूँ, मुझे कब गले लगाओगे॥ १॥रहाउ॥

ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਮੁਗਧ ਇਆਨ ਪਿਤਾ ਸਮਝਾਵਹਿਗੇ ॥
हम बारिक मुगध इआन पिता समझावहिगे ॥
हम मूर्ख एवं नादान बच्चे हैं, पिता-प्रभु ही समझाने वाला है।

ਸੁਤੁ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਭੂਲਿ ਬਿਗਾਰਿ ਜਗਤ ਪਿਤ ਭਾਵਹਿਗੇ ॥੧॥
सुतु खिनु खिनु भूलि बिगारि जगत पित भावहिगे ॥१॥
पुत्र हर पल गलती करके कार्य बिगाड़ता है, यूं लगता है जैसे जगत पिता को यही अच्छा लगता है॥ १॥

ਜੋ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਤੁਮ ਦੇਹੁ ਸੋਈ ਹਮ ਪਾਵਹਗੇ ॥
जो हरि सुआमी तुम देहु सोई हम पावहगे ॥
हे स्वामी ! जो तुम देते हो, वही हम प्राप्त करते हैं।

ਮੋਹਿ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਠਉਰ ਜਿਸੁ ਪਹਿ ਹਮ ਜਾਵਹਗੇ ॥੨॥
मोहि दूजी नाही ठउर जिसु पहि हम जावहगे ॥२॥
हमारा अन्य कोई ठौर-ठिकाना नहीं, जहाँ हम जा सकते हैं।॥ २॥

ਜੋ ਹਰਿ ਭਾਵਹਿ ਭਗਤ ਤਿਨਾ ਹਰਿ ਭਾਵਹਿਗੇ ॥
जो हरि भावहि भगत तिना हरि भावहिगे ॥
जो भक्त परमात्मा को प्यारे लगते हैं, उनको भी प्रभु प्राणों से प्यारा होता है।

ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇ ਜੋਤਿ ਰਲਿ ਜਾਵਹਗੇ ॥੩॥
जोती जोति मिलाइ जोति रलि जावहगे ॥३॥
उनकी आत्म-ज्योति ईश्वर की परम-ज्योति में मिलकर एक ही हो जाती है॥ ३॥

ਹਰਿ ਆਪੇ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਆਪਿ ਲਿਵ ਲਾਵਹਿਗੇ ॥
हरि आपे होइ क्रिपालु आपि लिव लावहिगे ॥
ईश्वर स्वयं ही कृपालु होता है और स्वयं भक्ति में लगाता है।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਸਰਨਿ ਦੁਆਰਿ ਹਰਿ ਲਾਜ ਰਖਾਵਹਿਗੇ ॥੪॥੬॥ ਛਕਾ ੧ ॥
जनु नानकु सरनि दुआरि हरि लाज रखावहिगे ॥४॥६॥ छका १ ॥
नानक का कथन है कि जो ईश्वर की शरण में आता है, वह उसी की लाज रखता है॥ ४॥ ६॥ छका १॥

ਕਲਿਆਨੁ ਭੋਪਾਲੀ ਮਹਲਾ ੪
कलिआनु भोपाली महला ४
कलिआनु भोपाली महला ४

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸੁਰੁ ਸੁਆਮੀ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰਣੁ ਨਾਰਾਇਣੇ ॥
पारब्रहमु परमेसुरु सुआमी दूख निवारणु नाराइणे ॥
वह परब्रह्म परमेश्वर नारायण दुखों का निवारण करने वाला है।

ਸਗਲ ਭਗਤ ਜਾਚਹਿ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਭਵ ਨਿਧਿ ਤਰਣ ਹਰਿ ਚਿੰਤਾਮਣੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल भगत जाचहि सुख सागर भव निधि तरण हरि चिंतामणे ॥१॥ रहाउ ॥
सब भक्त सुखों के सागर से मांगते हैं, वह संसार-समुद्र से पार उतारने वाला जहाज है और हर मनोकामना पूरी करने वाला है॥ १॥रहाउ॥

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਜਗਦੀਸ ਦਮੋਦਰ ਹਰਿ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਗੋਬਿੰਦੇ ॥
दीन दइआल जगदीस दमोदर हरि अंतरजामी गोबिंदे ॥
वह जगदीश्वर दीनों-दुखियों पर सदा अपनी दया बनाए रखता है, वह संतों का हमदर्द एवं मन की भावना को जानने वाला है।

ਤੇ ਨਿਰਭਉ ਜਿਨ ਸ੍ਰੀਰਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਗੁਰਮਤਿ ਮੁਰਾਰਿ ਹਰਿ ਮੁਕੰਦੇ ॥੧॥
ते निरभउ जिन स्रीरामु धिआइआ गुरमति मुरारि हरि मुकंदे ॥१॥
असल में वही निर्भय हैं, जिन्होंने श्री राम का ध्यान किया है, गुरु की शिक्षा से प्रभु की अर्चना करते हैं।॥ १॥

ਜਗਦੀਸੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨ ਜੋ ਆਏ ਤੇ ਜਨ ਭਵ ਨਿਧਿ ਪਾਰਿ ਪਰੇ ॥
जगदीसुर चरन सरन जो आए ते जन भव निधि पारि परे ॥
जो लोग जगदीश्वर के चरणों की शरण में आए हैं, वे संसार-समुद्र से पार उतर गए हैं।

ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਪੈਜ ਹਰਿ ਰਾਖੈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ॥੨॥੧॥੭॥
भगत जना की पैज हरि राखै जन नानक आपि हरि क्रिपा करे ॥२॥१॥७॥
गुरु नानक का निष्ठापूर्वक यही वचन है कि ईश्वर स्वयं ही कृपा करके भक्तजनों की लाज बचाता है॥ २॥१॥७॥

ਰਾਗੁ ਕਲਿਆਨੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧
रागु कलिआनु महला ५ घरु १
रागु कलिआनु महला ५ घरु १

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਹਮਾਰੈ ਏਹ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ॥
हमारै एह किरपा कीजै ॥
हे कृपानिधान ! हम पर यह कृपा करो,

ਅਲਿ ਮਕਰੰਦ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਮਨੁ ਫੇਰਿ ਫੇਰਿ ਰੀਝੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अलि मकरंद चरन कमल सिउ मनु फेरि फेरि रीझै ॥१॥ रहाउ ॥
ज्यों भैंवरा मकरन्द पर आसक्त रहता है, वैसे ही यह मन तेरे चरणकमल पर बार-बार मंडराता रहे॥ १॥रहाउ॥

ਆਨ ਜਲਾ ਸਿਉ ਕਾਜੁ ਨ ਕਛੂਐ ਹਰਿ ਬੂੰਦ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਕਉ ਦੀਜੈ ॥੧॥
आन जला सिउ काजु न कछूऐ हरि बूंद चात्रिक कउ दीजै ॥१॥
अन्य जल से मेरा कोई मतलब नहीं, मुझ पपीहे को हरिनाम रूपी बूंद प्रदान करो॥ १॥

ਬਿਨੁ ਮਿਲਬੇ ਨਾਹੀ ਸੰਤੋਖਾ ਪੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਨਾਨਕੁ ਜੀਜੈ ॥੨॥੧॥
बिनु मिलबे नाही संतोखा पेखि दरसनु नानकु जीजै ॥२॥१॥
तेरे मिलन बिना संतोष नहीं होता, नानक तो तेरे दर्शन करके ही जीता है॥ २॥१॥

ਕਲਿਆਨ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कलिआन महला ५ ॥
कलिआन महला ५ ॥

ਜਾਚਿਕੁ ਨਾਮੁ ਜਾਚੈ ਜਾਚੈ ॥
जाचिकु नामु जाचै जाचै ॥
हे प्रभु ! यह याचक तो बार-बार तुझसे नाम ही मांगता है।

ਸਰਬ ਧਾਰ ਸਰਬ ਕੇ ਨਾਇਕ ਸੁਖ ਸਮੂਹ ਕੇ ਦਾਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब धार सरब के नाइक सुख समूह के दाते ॥१॥ रहाउ ॥
तू सबको धारण करने वाला है, सबका मालिक है और सब सुख देने वाला है॥ १॥रहाउ॥

ਕੇਤੀ ਕੇਤੀ ਮਾਂਗਨਿ ਮਾਗੈ ਭਾਵਨੀਆ ਸੋ ਪਾਈਐ ॥੧॥
केती केती मांगनि मागै भावनीआ सो पाईऐ ॥१॥
यह दुनिया कितनी ही वस्तुएँ मांगती है और मुँह मांगी मुरार्दे प्राप्त करती है॥ १॥

ਸਫਲ ਸਫਲ ਸਫਲ ਦਰਸੁ ਰੇ ਪਰਸਿ ਪਰਸਿ ਗੁਨ ਗਾਈਐ ॥
सफल सफल सफल दरसु रे परसि परसि गुन गाईऐ ॥
तेरे दर्शन जीवन सफल करने वाले हैं, तेरे चरणों में रहकर तेरे ही गुण गाते रहें।

ਨਾਨਕ ਤਤ ਤਤ ਸਿਉ ਮਿਲੀਐ ਹੀਰੈ ਹੀਰੁ ਬਿਧਾਈਐ ॥੨॥੨॥
नानक तत तत सिउ मिलीऐ हीरै हीरु बिधाईऐ ॥२॥२॥
हे नानक ! ज्यों (जल) तत्व (जल) तत्व से मिल जाता है, वैसे ईश्वर रूपी हीरे से मन रूपी हीरे को मिलाना चाहिए॥ २॥२॥

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