ਗੁਰੁ ਪੁਛਿ ਦੇਖਿਆ ਨਾਹੀ ਦਰੁ ਹੋਰੁ ॥
गुरु पुछि देखिआ नाही दरु होरु ॥
मैंने गुरु से पूछ कर देख लिया है कि भगवान के बिना दूसरा सुख का द्वार नहीं।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਭਾਣੈ ਤਿਸੈ ਰਜਾਇ ॥
दुखु सुखु भाणै तिसै रजाइ ॥
दुःख एवं सुख उसके हुक्म एवं इच्छा में है।
ਨਾਨਕੁ ਨੀਚੁ ਕਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੮॥੪॥
नानकु नीचु कहै लिव लाइ ॥८॥४॥
विनीत नानक कहता है – हे प्राणी ! तू प्रभु के साथ वृति लगा ॥ ८ ॥ ४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਦੂਜੀ ਮਾਇਆ ਜਗਤ ਚਿਤ ਵਾਸੁ ॥
दूजी माइआ जगत चित वासु ॥
द्वैतवाद उत्पन्न करने वाली माया दुनिया के लोगों के मन में निवास करती है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਹੰਕਾਰ ਬਿਨਾਸੁ ॥੧॥
काम क्रोध अहंकार बिनासु ॥१॥
कामवासना, क्रोध एवं अहंकार ने दुनिया के लोगों का जीवन नष्ट कर दिया है॥ १ ॥
ਦੂਜਾ ਕਉਣੁ ਕਹਾ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
दूजा कउणु कहा नही कोई ॥
मैं दूसरा किसे कहूँ, जब प्रभु के सिवाय दूसरा कोई है ही नहीं ?
ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभ महि एकु निरंजनु सोई ॥१॥ रहाउ ॥
समस्त प्राणियों में वह एक पवित्र प्रभु ही मौजूद है॥ १॥ रहाउ॥
ਦੂਜੀ ਦੁਰਮਤਿ ਆਖੈ ਦੋਇ ॥
दूजी दुरमति आखै दोइ ॥
द्वैतवाद उत्पन्न करने वाली माया ही इन्सान की खोटी बुद्धि को कहती रहती है कि उसका अस्तित्व परमात्मा से अलग है।
ਆਵੈ ਜਾਇ ਮਰਿ ਦੂਜਾ ਹੋਇ ॥੨॥
आवै जाइ मरि दूजा होइ ॥२॥
जिसके फलस्वरूप इन्सान दुनिया में जन्मता-मरता रहता है जो द्वैतवाद की प्रीति धारण करता
ਧਰਣਿ ਗਗਨ ਨਹ ਦੇਖਉ ਦੋਇ ॥
धरणि गगन नह देखउ दोइ ॥
रती एवं अम्बर पर मुझे दूसरा कोई दिखाई नहीं देता।
ਨਾਰੀ ਪੁਰਖ ਸਬਾਈ ਲੋਇ ॥੩॥
नारी पुरख सबाई लोइ ॥३॥
तमाम नारियों एवं पुरुषों में ईश्वर की ज्योति मौजूद है॥३॥
ਰਵਿ ਸਸਿ ਦੇਖਉ ਦੀਪਕ ਉਜਿਆਲਾ ॥
रवि ससि देखउ दीपक उजिआला ॥
मैं सूर्य, चन्द्रमा एवं दीपकों में ईश्वर का प्रकाश देखता हूँ।
ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਬਾਲਾ ॥੪॥
सरब निरंतरि प्रीतमु बाला ॥४॥
प्रत्येक व्यक्ति के अन्तर में मेरा यौवन सम्पन्न प्रियतम प्रभु ही दिखाई दे रहा है॥ ४॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਰਾ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥
करि किरपा मेरा चितु लाइआ ॥
अपनी कृपा करके गुरु ने मेरा मन प्रभु के साथ लगा दिया है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਏਕੁ ਬੁਝਾਇਆ ॥੫॥
सतिगुरि मो कउ एकु बुझाइआ ॥५॥
सतिगुरु ने मुझे एक ईश्वर दिखा दिया है॥ ५॥
ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ॥
एकु निरंजनु गुरमुखि जाता ॥
गुरमुख एक निरंजन को ही जानता है।
ਦੂਜਾ ਮਾਰਿ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥੬॥
दूजा मारि सबदि पछाता ॥६॥
सांसारिक मोह को मिटा कर वह प्रभु को पहचान लेता है ॥६॥
ਏਕੋ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਲੋਈ ॥
एको हुकमु वरतै सभ लोई ॥
ईश्वर का हुक्म ही समस्त लोकों में क्रियाशील है।
ਏਕਸੁ ਤੇ ਸਭ ਓਪਤਿ ਹੋਈ ॥੭॥
एकसु ते सभ ओपति होई ॥७॥
एक ईश्वर से ही सभी उत्पन्न हुए हैं॥ ७॥
ਰਾਹ ਦੋਵੈ ਖਸਮੁ ਏਕੋ ਜਾਣੁ ॥
राह दोवै खसमु एको जाणु ॥
“(मनमुख एवं गुरमुख) मार्ग दो हैं परन्तु सबका मालिक एक है, उसे ही समझो।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੁ ॥੮॥
गुर कै सबदि हुकमु पछाणु ॥८॥
गुरु के शब्द द्वारा उसके हुक्म को पहचान ॥ ८ ॥
ਸਗਲ ਰੂਪ ਵਰਨ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
सगल रूप वरन मन माही ॥
जो तमाम रूपों, रंगों एवं ह्रदयों में व्यापक है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਸਾਲਾਹੀ ॥੯॥੫॥
कहु नानक एको सालाही ॥९॥५॥
हे नानक ! मैं एक ईश्वर की प्रशंसा करता हूँ ॥ ६ ॥ ५ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਅਧਿਆਤਮ ਕਰਮ ਕਰੇ ਤਾ ਸਾਚਾ ॥
अधिआतम करम करे ता साचा ॥
यदि मनुष्य आध्यात्मिक कर्म करे तो ही वह सत्यवादी है।
ਮੁਕਤਿ ਭੇਦੁ ਕਿਆ ਜਾਣੈ ਕਾਚਾ ॥੧॥
मुकति भेदु किआ जाणै काचा ॥१॥
झूठा मनुष्य मोक्ष के भेद को क्या समझ सकता है ? ॥ १॥
ਐਸਾ ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਬੀਚਾਰੈ ॥
ऐसा जोगी जुगति बीचारै ॥
ऐसा मनुष्य ही योगी है, जो प्रभु के मिलन-मार्ग का विचार करता है
ਪੰਚ ਮਾਰਿ ਸਾਚੁ ਉਰਿ ਧਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पंच मारि साचु उरि धारै ॥१॥ रहाउ ॥
तथा पाँच कट्टर शत्रुओं (कामादिक विकारों) का वध करके सत्य (परमेश्वर) को अपने हृदय से लगाकर रखता है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਸ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਵਸਾਵੈ ॥
जिस कै अंतरि साचु वसावै ॥
ईश्वर जिसके हृदय में सत्य को बसाता है।
ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਪਾਵੈ ॥੨॥
जोग जुगति की कीमति पावै ॥२॥
वह उसके साथ योग युक्ति (मिलन मार्ग) के मूल्य को अनुभव कर लेता है॥ २॥
ਰਵਿ ਸਸਿ ਏਕੋ ਗ੍ਰਿਹ ਉਦਿਆਨੈ ॥
रवि ससि एको ग्रिह उदिआनै ॥
एक ईश्वर को वह सूर्य, चन्द्रमा, गृह एवं वन में देखता है।
ਕਰਣੀ ਕੀਰਤਿ ਕਰਮ ਸਮਾਨੈ ॥੩॥
करणी कीरति करम समानै ॥३॥
ईश्वर का यश रूपी कर्म उसकी सामान्य करनी है॥ ३ ॥
ਏਕ ਸਬਦ ਇਕ ਭਿਖਿਆ ਮਾਗੈ ॥
एक सबद इक भिखिआ मागै ॥
वह केवल नाम का भजन करता है और एक ही ईश्वर के नाम का दान माँगता है।
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਜੁਗਤਿ ਸਚੁ ਜਾਗੈ ॥੪॥
गिआनु धिआनु जुगति सचु जागै ॥४॥
वह ज्ञान, ध्यान, जीवन युक्ति एवं सत्य में ही जागृत रहता है॥ ४॥
ਭੈ ਰਚਿ ਰਹੈ ਨ ਬਾਹਰਿ ਜਾਇ ॥
भै रचि रहै न बाहरि जाइ ॥
वह ईश्वर के भय में लीन रहता है और कदापि उस भय से बाहर नहीं होता।
ਕੀਮਤਿ ਕਉਣ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੫॥
कीमति कउण रहै लिव लाइ ॥५॥
वह प्रभु की वृति में लीन रहता है। ऐसे योगी का मूल्य कौन पा सकता है॥ ५॥
ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
आपे मेले भरमु चुकाए ॥
ईश्वर उसकी दुविधा दूर कर देता है और उसे अपने साथ मिला लेता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਏ ॥੬॥
गुर परसादि परम पदु पाए ॥६॥
गुरु की कृपा से वह परम पद प्राप्त कर लेता है॥ ६॥
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੁ ॥
गुर की सेवा सबदु वीचारु ॥
वह गुरु की सेवा करता और शब्द का चिंतन करता रहता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ॥੭॥
हउमै मारे करणी सारु ॥७॥
वह अपने अहंकार को मिटाकर शुभ कर्म करता है॥ ७ ॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਪਾਠ ਪੁਰਾਣੁ ॥
जप तप संजम पाठ पुराणु ॥
जाप, तपस्या, संयम एवं पुराणों का पाठ
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਪਰੰਪਰ ਮਾਨੁ ॥੮॥੬॥
कहु नानक अपर्मपर मानु ॥८॥६॥
हे नानक ! अपरंपार ईश्वर में आस्था धारण करना ही है॥ ८॥ ६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਖਿਮਾ ਗਹੀ ਬ੍ਰਤੁ ਸੀਲ ਸੰਤੋਖੰ ॥
खिमा गही ब्रतु सील संतोखं ॥
क्षमा कर देने का स्वभाव धारण करना मेरे लिए उपवास, उत्तम आचरण एवं संतोष है।
ਰੋਗੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ਨਾ ਜਮ ਦੋਖੰ ॥
रोगु न बिआपै ना जम दोखं ॥
इसलिए न रोग और न ही मृत्यु की पीड़ा मुझे तंग करती है।
ਮੁਕਤ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਰੂਪ ਨ ਰੇਖੰ ॥੧॥
मुकत भए प्रभ रूप न रेखं ॥१॥
मैं रूपरेखा रहित ईश्वर में लीन होकर मुक्त हो गया हूँ॥ १॥
ਜੋਗੀ ਕਉ ਕੈਸਾ ਡਰੁ ਹੋਇ ॥
जोगी कउ कैसा डरु होइ ॥
उस योगी को कैसा भय हो सकता है,
ਰੂਖਿ ਬਿਰਖਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਾਹਰਿ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रूखि बिरखि ग्रिहि बाहरि सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
जब वह प्रभु पेड़-पौधों एवं घर के भीतर एवं बाहर सर्वत्र व्यापक है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਿਰਭਉ ਜੋਗੀ ਨਿਰੰਜਨੁ ਧਿਆਵੈ ॥
निरभउ जोगी निरंजनु धिआवै ॥
निर्भय योगी निरंजन प्रभु का ध्यान करता रहता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥
अनदिनु जागै सचि लिव लावै ॥
वह रात-दिन मोह-माया से जाग्रत रहता है और सत्य नाम के साथ वृति लगाता है।
ਸੋ ਜੋਗੀ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥੨॥
सो जोगी मेरै मनि भावै ॥२॥
ऐसा योगी मेरे मन को भला लगता है॥ २॥
ਕਾਲੁ ਜਾਲੁ ਬ੍ਰਹਮ ਅਗਨੀ ਜਾਰੇ ॥
कालु जालु ब्रहम अगनी जारे ॥
मृत्यु के जाल को वह ब्रह्म (के तेज) की अग्नि से जला देता है।
ਜਰਾ ਮਰਣ ਗਤੁ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰੇ ॥
जरा मरण गतु गरबु निवारे ॥
वह बुढापे एवं मृत्यु के भय को निवृत्त कर देता है और अपने अहंकार को मिटा देता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਪਿਤਰੀ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥
आपि तरै पितरी निसतारे ॥३॥
ऐसा योगी स्वयं तो भवसागर पार हो जाता है और अपने पूर्वजों को भी बचा लेता है ॥३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸੋ ਜੋਗੀ ਹੋਇ ॥
सतिगुरु सेवे सो जोगी होइ ॥
वही व्यक्ति योगी है, जो सतिगुरु की सेवा करता है।
ਭੈ ਰਚਿ ਰਹੈ ਸੁ ਨਿਰਭਉ ਹੋਇ ॥
भै रचि रहै सु निरभउ होइ ॥
जो ईश्वर के भय में लीन रहता है, वह निडर हो जाता है।
ਜੈਸਾ ਸੇਵੈ ਤੈਸੋ ਹੋਇ ॥੪॥
जैसा सेवै तैसो होइ ॥४॥
प्राणी जैसे प्रभु की सेवा करता है, वैसा ही आप बन जाता है॥ ४॥