Hindi Page 1244

ਬੇਦੁ ਵਪਾਰੀ ਗਿਆਨੁ ਰਾਸਿ ਕਰਮੀ ਪਲੈ ਹੋਇ ॥
बेदु वपारी गिआनु रासि करमी पलै होइ ॥
वेद व्यापारी ही हैं, जो ज्ञान राशि का पूंजी के रूप में इस्तेमाल करते हैं, पर ज्ञान तो प्रभु-कृपा से प्राप्त होता है।

ਨਾਨਕ ਰਾਸੀ ਬਾਹਰਾ ਲਦਿ ਨ ਚਲਿਆ ਕੋਇ ॥੨॥
नानक रासी बाहरा लदि न चलिआ कोइ ॥२॥
हे नानक ! ज्ञान-राशि के बिना कोई भी लाभ कमाकर नहीं जाता ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਨਿੰਮੁ ਬਿਰਖੁ ਬਹੁ ਸੰਚੀਐ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥
निमु बिरखु बहु संचीऐ अम्रित रसु पाइआ ॥
अगर नीम का वृक्ष अमृत रस से सींच लिया जाए, इसके बावजूद कड़वा ही रहता है।

ਬਿਸੀਅਰੁ ਮੰਤ੍ਰਿ ਵਿਸਾਹੀਐ ਬਹੁ ਦੂਧੁ ਪੀਆਇਆ ॥
बिसीअरु मंत्रि विसाहीऐ बहु दूधु पीआइआ ॥
साँप पर भरोसा करके मंत्र से उसे बहुत दूध पिलाया जाए तो भी वह अपनी आदत नहीं छोड़ता।

ਮਨਮੁਖੁ ਅਭਿੰਨੁ ਨ ਭਿਜਈ ਪਥਰੁ ਨਾਵਾਇਆ ॥
मनमुखु अभिंनु न भिजई पथरु नावाइआ ॥
मन की मर्जी करने वाला अपने स्वभावानुसार वैसा ही रहता है, जैसे पत्थर को स्नान कराने के बावजूद भी नहीं भीगता।

ਬਿਖੁ ਮਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਿੰਚੀਐ ਬਿਖੁ ਕਾ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
बिखु महि अम्रितु सिंचीऐ बिखु का फलु पाइआ ॥
यदि जहर में अमृत डाला जाए तो भी जहर का फल ही मिलता है।

ਨਾਨਕ ਸੰਗਤਿ ਮੇਲਿ ਹਰਿ ਸਭ ਬਿਖੁ ਲਹਿ ਜਾਇਆ ॥੧੬॥
नानक संगति मेलि हरि सभ बिखु लहि जाइआ ॥१६॥
हे नानक ! यदि प्रभु अच्छी संगत में मिला दे तो सारा जहर उतर जाता है।॥ १६॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥

ਮਰਣਿ ਨ ਮੂਰਤੁ ਪੁਛਿਆ ਪੁਛੀ ਥਿਤਿ ਨ ਵਾਰੁ ॥
मरणि न मूरतु पुछिआ पुछी थिति न वारु ॥
मौत कोई मुहूर्त नहीं पूछती और न ही किसी दिन या तिथि का इंतजार करती है।

ਇਕਨੑੀ ਲਦਿਆ ਇਕਿ ਲਦਿ ਚਲੇ ਇਕਨੑੀ ਬਧੇ ਭਾਰ ॥
इकन्ही लदिआ इकि लदि चले इकन्ही बधे भार ॥
कई मौत की नींद सो गए हैं, कुछ मौत की आगोश में चले गए हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जो पापों का बोझ उठाकर चलने के लिए तैयार हैं।

ਇਕਨੑਾ ਹੋਈ ਸਾਖਤੀ ਇਕਨੑਾ ਹੋਈ ਸਾਰ ॥
इकन्हा होई साखती इकन्हा होई सार ॥
कोई घोड़ा तैयार करके जाने के लिए तैयार है और कोई संभाल कर रहा है।

ਲਸਕਰ ਸਣੈ ਦਮਾਮਿਆ ਛੁਟੇ ਬੰਕ ਦੁਆਰ ॥
लसकर सणै दमामिआ छुटे बंक दुआर ॥
आखिरकार बड़ी-बड़ी फौज, दमामे, सुन्दर घर द्वार छोड़ने ही पड़ते हैं।

ਨਾਨਕ ਢੇਰੀ ਛਾਰੁ ਕੀ ਭੀ ਫਿਰਿ ਹੋਈ ਛਾਰ ॥੧॥
नानक ढेरी छारु की भी फिरि होई छार ॥१॥
गुरु नानक साहिब चेताते हैं कि शरीर पहले भी धूल मिट्टी था और दोबारा मिट्टी ही हो जाता है॥१॥

ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥

ਨਾਨਕ ਢੇਰੀ ਢਹਿ ਪਈ ਮਿਟੀ ਸੰਦਾ ਕੋਟੁ ॥
नानक ढेरी ढहि पई मिटी संदा कोटु ॥
मिट्टी का शरीर रूपी किला खत्म होकर मिट्टी का ढेर बन जाता है।

ਭੀਤਰਿ ਚੋਰੁ ਬਹਾਲਿਆ ਖੋਟੁ ਵੇ ਜੀਆ ਖੋਟੁ ॥੨॥
भीतरि चोरु बहालिआ खोटु वे जीआ खोटु ॥२॥
इसके भीतर चोर बैठा हुआ था, हे जीव ! इस तरह सब दोष ही दोष है।॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਜਿਨ ਅੰਦਰਿ ਨਿੰਦਾ ਦੁਸਟੁ ਹੈ ਨਕ ਵਢੇ ਨਕ ਵਢਾਇਆ ॥
जिन अंदरि निंदा दुसटु है नक वढे नक वढाइआ ॥
जिनके अन्तर्मन में निन्दा है, ऐसे लोग दुष्ट तथा बेशर्म हैं और दूसरों का भी तिरस्कार करवाते हैं।

ਮਹਾ ਕਰੂਪ ਦੁਖੀਏ ਸਦਾ ਕਾਲੇ ਮੁਹ ਮਾਇਆ ॥
महा करूप दुखीए सदा काले मुह माइआ ॥
माया में लीन वे सदैव दुखी एवं बदशक्ल होते हैं और अपना मुँह काला करवाते हैं।

ਭਲਕੇ ਉਠਿ ਨਿਤ ਪਰ ਦਰਬੁ ਹਿਰਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਚੁਰਾਇਆ ॥
भलके उठि नित पर दरबु हिरहि हरि नामु चुराइआ ॥
वे हर रोज सुबह उठकर पराया धन चुराते हैं और हरि-नाम जपने से मन चुराते हैं।

ਹਰਿ ਜੀਉ ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਮਤ ਕਰਹੁ ਰਖਿ ਲੇਹੁ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
हरि जीउ तिन की संगति मत करहु रखि लेहु हरि राइआ ॥
हे प्रभु! ऐसे लोगों से मुझे बचा लो और इनकी संगत में हरगिज मत डालना।

ਨਾਨਕ ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਵਦੇ ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੧੭॥
नानक पइऐ किरति कमावदे मनमुखि दुखु पाइआ ॥१७॥
नानक का कथन है कि स्वेच्छाचारी कर्मालेखानुसार ही आचरण करते हैं और दुखी होते हैं।॥ १७ ॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४ ॥

ਸਭੁ ਕੋਈ ਹੈ ਖਸਮ ਕਾ ਖਸਮਹੁ ਸਭੁ ਕੋ ਹੋਇ ॥
सभु कोई है खसम का खसमहु सभु को होइ ॥
सब कुछ मालिक का है, उसी से समूची रचना होती है।

ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਖਸਮ ਕਾ ਤਾ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ਕੋਇ ॥
हुकमु पछाणै खसम का ता सचु पावै कोइ ॥
जो मालिक के हुक्म को मानता है, वही सत्य पाता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਪਛਾਣੀਐ ਬੁਰਾ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਇ ॥
गुरमुखि आपु पछाणीऐ बुरा न दीसै कोइ ॥
गुरु द्वारा आत्म-ज्ञान की पहचान होने से कोई बुरा दिखाई नहीं देता।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਹਿਲਾ ਆਇਆ ਸੋਇ ॥੧॥
नानक गुरमुखि नामु धिआईऐ सहिला आइआ सोइ ॥१॥
हे नानक ! गुरु के माध्यम से हरि-नाम का चिंतन करने से जीवन सफल हो जाता है।॥१॥

ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४ ॥

ਸਭਨਾ ਦਾਤਾ ਆਪਿ ਹੈ ਆਪੇ ਮੇਲਣਹਾਰੁ ॥
सभना दाता आपि है आपे मेलणहारु ॥
सबको देने वाला ईश्वर ही है, वह स्वयं ही मिलाने वाला है।

ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਮਿਲੇ ਨ ਵਿਛੁੜਹਿ ਜਿਨਾ ਸੇਵਿਆ ਹਰਿ ਦਾਤਾਰੁ ॥੨॥
नानक सबदि मिले न विछुड़हि जिना सेविआ हरि दातारु ॥२॥
नानक हैं कि जो शब्द गुरु द्वारा दाता प्रभु की आराधना करता है, वह मिलकर कभी नहीं बिछुड़ता ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਸਾਂਤਿ ਹੈ ਨਾਉ ਉਗਵਿ ਆਇਆ ॥
गुरमुखि हिरदै सांति है नाउ उगवि आइआ ॥
गुरमुख के अन्तर्मन में नाम-सुमिरन (स्मरण) उत्पन्न हो जाता है, जिससे उसके हृदय में सदा शान्ति रहती है।

ਜਪ ਤਪ ਤੀਰਥ ਸੰਜਮ ਕਰੇ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ॥
जप तप तीरथ संजम करे मेरे प्रभ भाइआ ॥
उसका जप, तपस्या, तीर्थ एवं संयम मेरे प्रभु को उपयुक्त लगता है।

ਹਿਰਦਾ ਸੁਧੁ ਹਰਿ ਸੇਵਦੇ ਸੋਹਹਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
हिरदा सुधु हरि सेवदे सोहहि गुण गाइआ ॥
वह शुद्ध हृदय से परमात्मा की आराधना करता है और गुण-गान करते सुन्दर लगता है।

ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਜੀਉ ਏਵੈ ਭਾਵਦਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰਾਇਆ ॥
मेरे हरि जीउ एवै भावदा गुरमुखि तराइआ ॥
मेरे प्रभु को यही अच्छा लगता है, वह गुरमुख को संसार-सागर से पार कर देता है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲਿਅਨੁ ਹਰਿ ਦਰਿ ਸੋਹਾਇਆ ॥੧੮॥
नानक गुरमुखि मेलिअनु हरि दरि सोहाइआ ॥१८॥
हे नानक ! प्रभु गुरमुख को साथ मिला लेता है और वह उसके द्वार में सुन्दर लगता है॥ १८ ॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥

ਧਨਵੰਤਾ ਇਵ ਹੀ ਕਹੈ ਅਵਰੀ ਧਨ ਕਉ ਜਾਉ ॥
धनवंता इव ही कहै अवरी धन कउ जाउ ॥
धनवान् यही कहता है कि इससे भी अधिक धन-दौलत इकट्टी की जाए।

ਨਾਨਕੁ ਨਿਰਧਨੁ ਤਿਤੁ ਦਿਨਿ ਜਿਤੁ ਦਿਨਿ ਵਿਸਰੈ ਨਾਉ ॥੧॥
नानकु निरधनु तितु दिनि जितु दिनि विसरै नाउ ॥१॥
लेकिन नानक तो उस दिन खुद को निर्धन मानता है, जिस दिन उसे परमात्मा का नाम भूल जाता है ॥१॥

ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १ ॥

ਸੂਰਜੁ ਚੜੈ ਵਿਜੋਗਿ ਸਭਸੈ ਘਟੈ ਆਰਜਾ ॥
सूरजु चड़ै विजोगि सभसै घटै आरजा ॥
ज्यों-ज्यों सूर्योदय एवं अस्त होता है, हर रोज उम्र घटती जाती है।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਰਤਾ ਭੋਗਿ ਕੋਈ ਹਾਰੈ ਕੋ ਜਿਣੈ ॥
तनु मनु रता भोगि कोई हारै को जिणै ॥
मनुष्य का तन मन भोग-पदार्थों में लीन रहता है, कोई जिंदगी हार जाता है तो कोई जीत जाता है।

ਸਭੁ ਕੋ ਭਰਿਆ ਫੂਕਿ ਆਖਣਿ ਕਹਣਿ ਨ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹੀਐ ॥
सभु को भरिआ फूकि आखणि कहणि न थम्हीऐ ॥
हर कोई अभिमान से भरा हुआ है, समझाने के बावजूद भी बात नहीं मानता।

ਨਾਨਕ ਵੇਖੈ ਆਪਿ ਫੂਕ ਕਢਾਏ ਢਹਿ ਪਵੈ ॥੨॥
नानक वेखै आपि फूक कढाए ढहि पवै ॥२॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि ईश्वर सब देखता है, प्राण छूटते ही मनुष्य खत्म हो जाता है।॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਸਤਸੰਗਤਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਜਿਥਹੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ॥
सतसंगति नामु निधानु है जिथहु हरि पाइआ ॥
संतों की संगत हरिनाम रूपी सुखों का घर है, जहाँ परमात्मा प्राप्त होता है।

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