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ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਮੁਲ ਖਰੀਦੀ ਲਾਲਾ ਗੋਲਾ ਮੇਰਾ ਨਾਉ ਸਭਾਗਾ ॥
मुल खरीदी लाला गोला मेरा नाउ सभागा ॥
मैं मूल्य चुकाकर खरीदा हुआ मालिक का सेवक गुलाम हूँ और मेरा नाम भाग्यवान् पड़ गया है।

ਗੁਰ ਕੀ ਬਚਨੀ ਹਾਟਿ ਬਿਕਾਨਾ ਜਿਤੁ ਲਾਇਆ ਤਿਤੁ ਲਾਗਾ ॥੧॥
गुर की बचनी हाटि बिकाना जितु लाइआ तितु लागा ॥१॥
मैं गुरु के वचन से दुकान पर बिका हुआ हूँ, जिधर मुझे लगाया है, मैं उधर ही लगा हूँ॥ १॥

ਤੇਰੇ ਲਾਲੇ ਕਿਆ ਚਤੁਰਾਈ ॥
तेरे लाले किआ चतुराई ॥
तेरे सेवक को कोई चतुराई नहीं आती,

ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साहिब का हुकमु न करणा जाई ॥१॥ रहाउ ॥
मुझसे मालिक के हुक्म का पालन भी अच्छी तरह नहीं होता॥ १॥ रहाउ॥

ਮਾ ਲਾਲੀ ਪਿਉ ਲਾਲਾ ਮੇਰਾ ਹਉ ਲਾਲੇ ਕਾ ਜਾਇਆ ॥
मा लाली पिउ लाला मेरा हउ लाले का जाइआ ॥
मेरी माता तेरी दासी है, मेरा पिता भी तेरा दास है और दासों की औलाद हूँ।

ਲਾਲੀ ਨਾਚੈ ਲਾਲਾ ਗਾਵੈ ਭਗਤਿ ਕਰਉ ਤੇਰੀ ਰਾਇਆ ॥੨॥
लाली नाचै लाला गावै भगति करउ तेरी राइआ ॥२॥
हे मेरे मालिक ! दास-दासी बनकर मेरे माता-पिता तेरी भक्ति में नाचते रहे, और अब मैं भी तेरी ही भक्ति करता हूँ॥ २॥

ਪੀਅਹਿ ਤ ਪਾਣੀ ਆਣੀ ਮੀਰਾ ਖਾਹਿ ਤ ਪੀਸਣ ਜਾਉ ॥
पीअहि त पाणी आणी मीरा खाहि त पीसण जाउ ॥
हे स्वामी ! यदि तुझे प्यास लगी हो तो मैं तेरे पीने लिए पानी लेकर आऊँ। अगर कुछ खाना हो तो तेरे लिए दाने पीसने के लिए जाऊँ।

ਪਖਾ ਫੇਰੀ ਪੈਰ ਮਲੋਵਾ ਜਪਤ ਰਹਾ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥੩॥
पखा फेरी पैर मलोवा जपत रहा तेरा नाउ ॥३॥
मैं तुझे पंखा करता रहूँ, तेरे पैर मलता रहूँ और तेरा ही नाम जपता रहूँ॥ ३॥

ਲੂਣ ਹਰਾਮੀ ਨਾਨਕੁ ਲਾਲਾ ਬਖਸਿਹਿ ਤੁਧੁ ਵਡਿਆਈ ॥
लूण हरामी नानकु लाला बखसिहि तुधु वडिआई ॥
नानक कहते हैं कि हे मालिक ! इसके बावजूद भी मैं तेरा एहसान-फरामोश सेवक हूँ, यदि तू क्षमादान कर दे तो यह तेरा बड़प्पन है।

ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਦਇਆਪਤਿ ਦਾਤਾ ਤੁਧੁ ਵਿਣੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈ ॥੪॥੬॥
आदि जुगादि दइआपति दाता तुधु विणु मुकति न पाई ॥४॥६॥
युगों-युगान्तरों से केवल तू ही दयालु दाता है, तेरे बिना मुक्ति नहीं मिल सकती॥ ४॥ ६॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਕੋਈ ਆਖੈ ਭੂਤਨਾ ਕੋ ਕਹੈ ਬੇਤਾਲਾ ॥
कोई आखै भूतना को कहै बेताला ॥
कोई भूत कहता है, तो कोई मुझे बेताल कह देता है और

ਕੋਈ ਆਖੈ ਆਦਮੀ ਨਾਨਕੁ ਵੇਚਾਰਾ ॥੧॥
कोई आखै आदमी नानकु वेचारा ॥१॥
कोई कहता है कि यह आदमी तो बेचारा नानक ही है॥ १॥

ਭਇਆ ਦਿਵਾਨਾ ਸਾਹ ਕਾ ਨਾਨਕੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥
भइआ दिवाना साह का नानकु बउराना ॥
परन्तु सत्य तो यह है कि बावला नानक तो अपने मालिक का दीवाना हो गया है।

ਹਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ हरि बिनु अवरु न जाना ॥१॥ रहाउ ॥
में तो ईश्वर के अलावा अन्य किसी को नहीं जानता।॥ १॥ रहाउ॥

ਤਉ ਦੇਵਾਨਾ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਭੈ ਦੇਵਾਨਾ ਹੋਇ ॥
तउ देवाना जाणीऐ जा भै देवाना होइ ॥
वास्तव में उसे ही दीवाना समझना चाहिए, जो परमात्मा की भक्ति-भय में दीवाना हो जाए।

ਏਕੀ ਸਾਹਿਬ ਬਾਹਰਾ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥੨॥
एकी साहिब बाहरा दूजा अवरु न जाणै कोइ ॥२॥
वह परमेश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य को न जाने॥ २॥

ਤਉ ਦੇਵਾਨਾ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਏਕਾ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
तउ देवाना जाणीऐ जा एका कार कमाइ ॥
दीवाना तो उसे ही समझो, जो एक ही काम (प्रमु-भक्ति) करता हो।

ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਖਸਮ ਕਾ ਦੂਜੀ ਅਵਰ ਸਿਆਣਪ ਕਾਇ ॥੩॥
हुकमु पछाणै खसम का दूजी अवर सिआणप काइ ॥३॥
अपने मालिक के हुक्म को पहचानता हो, अन्य कोई चतुराई न करता हो॥ ३॥

ਤਉ ਦੇਵਾਨਾ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਸਾਹਿਬ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥
तउ देवाना जाणीऐ जा साहिब धरे पिआरु ॥
किसी को तभी दीवाना समझना चाहिए, जो मालिक का प्रेम हृदय में धारण करे।

ਮੰਦਾ ਜਾਣੈ ਆਪ ਕਉ ਅਵਰੁ ਭਲਾ ਸੰਸਾਰੁ ॥੪॥੭॥
मंदा जाणै आप कउ अवरु भला संसारु ॥४॥७॥
वह खुद को बुरा समझता हो और संसार को भला मानता हो।॥ ४॥ ७॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਇਹੁ ਧਨੁ ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥
इहु धनु सरब रहिआ भरपूरि ॥
यह नाम रूपी धन सर्वव्यापी है परन्तु

ਮਨਮੁਖ ਫਿਰਹਿ ਸਿ ਜਾਣਹਿ ਦੂਰਿ ॥੧॥
मनमुख फिरहि सि जाणहि दूरि ॥१॥
स्वेच्छाचारी जीव स्थान-स्थान भटकते हुए इसे दूर समझते हैं।॥ १॥

ਸੋ ਧਨੁ ਵਖਰੁ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਹਮਾਰੈ ॥
सो धनु वखरु नामु रिदै हमारै ॥
नाम रूपी धन पदार्थ हमारे हृदय में ही मौजूद है।

ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਹਿ ਤਿਸੈ ਨਿਸਤਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसु तू देहि तिसै निसतारै ॥१॥ रहाउ ॥
हे ईश्वर ! यह धन जिसे तू देता है, उसका उद्धार हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥

ਨ ਇਹੁ ਧਨੁ ਜਲੈ ਨ ਤਸਕਰੁ ਲੈ ਜਾਇ ॥
न इहु धनु जलै न तसकरु लै जाइ ॥
यह धन न तो अग्नि में जलता है और न ही चोर इसे चुरा कर ले जा सकते हैं।

ਨ ਇਹੁ ਧਨੁ ਡੂਬੈ ਨ ਇਸੁ ਧਨ ਕਉ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥੨॥
न इहु धनु डूबै न इसु धन कउ मिलै सजाइ ॥२॥
न यह धन पानी में डूबता है और न ही इस धन वाले को कोई दण्ड मिलता है।॥ २॥

ਇਸੁ ਧਨ ਕੀ ਦੇਖਹੁ ਵਡਿਆਈ ॥
इसु धन की देखहु वडिआई ॥
इस नाम-धन की कीर्ति देखो;

ਸਹਜੇ ਮਾਤੇ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਈ ॥੩॥
सहजे माते अनदिनु जाई ॥३॥
इसके धनी का दिन-रात सहज ही मस्ती में व्यतीत हो जाता है॥ ३॥

ਇਕ ਬਾਤ ਅਨੂਪ ਸੁਨਹੁ ਨਰ ਭਾਈ ॥
इक बात अनूप सुनहु नर भाई ॥
हे जिज्ञासुओ, एक अनूप बात सुनो;

ਇਸੁ ਧਨ ਬਿਨੁ ਕਹਹੁ ਕਿਨੈ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥੪॥
इसु धन बिनु कहहु किनै परम गति पाई ॥४॥
इस धन के बिना किसने परमगति प्राप्त की है॥ ४॥

ਭਣਤਿ ਨਾਨਕੁ ਅਕਥ ਕੀ ਕਥਾ ਸੁਣਾਏ ॥
भणति नानकु अकथ की कथा सुणाए ॥
नानक अकथनीय परमेश्वर की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਇਹੁ ਧਨੁ ਪਾਏ ॥੫॥੮॥
सतिगुरु मिलै त इहु धनु पाए ॥५॥८॥
जिसे सतगुरु मिल जाता है, उसे यह धन प्राप्त हो जाता है।॥ ५॥ ८॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਸੂਰ ਸਰੁ ਸੋਸਿ ਲੈ ਸੋਮ ਸਰੁ ਪੋਖਿ ਲੈ ਜੁਗਤਿ ਕਰਿ ਮਰਤੁ ਸੁ ਸਨਬੰਧੁ ਕੀਜੈ ॥
सूर सरु सोसि लै सोम सरु पोखि लै जुगति करि मरतु सु सनबंधु कीजै ॥
पिंगला नाड़ी को रेचक क्रिया द्वारा सुखा लो, इडा नाड़ी को पूरक क्रिया द्वारा प्राणवायु से भर लो। प्राणायाम की यह युक्ति उपयोग करके सुषुम्ना नाड़ी से संबंध जोड़ लो।

ਮੀਨ ਕੀ ਚਪਲ ਸਿਉ ਜੁਗਤਿ ਮਨੁ ਰਾਖੀਐ ਉਡੈ ਨਹ ਹੰਸੁ ਨਹ ਕੰਧੁ ਛੀਜੈ ॥੧॥
मीन की चपल सिउ जुगति मनु राखीऐ उडै नह हंसु नह कंधु छीजै ॥१॥
चंचल मछली सरीखी ऐसी युक्ति से यदि मन को स्थिर करके रखा जाए तो फिर यह आत्मा भटकती नहीं और न ही यह शरीर रूपी दीवार ध्वस्त होती है।॥ १॥

ਮੂੜੇ ਕਾਇਚੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾ ॥
मूड़े काइचे भरमि भुला ॥
अरे मूर्ख ! क्यों भ्रम में भटक रहा है ?

ਨਹ ਚੀਨਿਆ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ਬੈਰਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नह चीनिआ परमानंदु बैरागी ॥१॥ रहाउ ॥
तूने परमानंद निर्लिप्त परमेश्वर की पहचान नहीं की॥ १॥ रहाउ॥

ਅਜਰ ਗਹੁ ਜਾਰਿ ਲੈ ਅਮਰ ਗਹੁ ਮਾਰਿ ਲੈ ਭ੍ਰਾਤਿ ਤਜਿ ਛੋਡਿ ਤਉ ਅਪਿਉ ਪੀਜੈ ॥
अजर गहु जारि लै अमर गहु मारि लै भ्राति तजि छोडि तउ अपिउ पीजै ॥
अजर कामादिक विकारों को जला दो, मोह-माया को समाप्त कर दो, भ्रांतियों को छोड़कर नामामृत पान करो।

ਮੀਨ ਕੀ ਚਪਲ ਸਿਉ ਜੁਗਤਿ ਮਨੁ ਰਾਖੀਐ ਉਡੈ ਨਹ ਹੰਸੁ ਨਹ ਕੰਧੁ ਛੀਜੈ ॥੨॥
मीन की चपल सिउ जुगति मनु राखीऐ उडै नह हंसु नह कंधु छीजै ॥२॥
चंचल मछली सरीखी ऐसी युक्ति से यदि मन को नियंत्रण में किया जाए तो आवागमन छूट जाता है, आत्मा न ही भटकती है और न ही शरीर रूपी दीवार ध्वस्त होती है।॥२॥

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