ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਜਿ ਬੋਲਿਆ ਗੁਰਸਿਖਾ ਮੰਨਿ ਲਈ ਰਜਾਇ ਜੀਉ ॥
सतिगुरु पुरखु जि बोलिआ गुरसिखा मंनि लई रजाइ जीउ ॥
जैसे सतिगुरु अमरदास जी ने कहा, वैसे ही गुरु-शिष्यों ने उनकी रज़ा को मान लिया।
ਮੋਹਰੀ ਪੁਤੁ ਸਨਮੁਖੁ ਹੋਇਆ ਰਾਮਦਾਸੈ ਪੈਰੀ ਪਾਇ ਜੀਉ ॥
मोहरी पुतु सनमुखु होइआ रामदासै पैरी पाइ जीउ ॥
सर्वप्रथम सतिगुरु अमरदास जी का अपना पुत्र बाबा मोहरी उनके सम्मुख हुआ और सतिगुरु (अमरदास जी) ने उन्हें गुरु रामदास के चरण-स्पर्श करने के लिए कहा और
ਸਭ ਪਵੈ ਪੈਰੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੇਰੀ ਜਿਥੈ ਗੁਰੂ ਆਪੁ ਰਖਿਆ ॥
सभ पवै पैरी सतिगुरू केरी जिथै गुरू आपु रखिआ ॥
उन से गुरु रामदास के चरण-स्पर्श करवाए और सारे ही सिक्ख गुरु रामदास जी के चरणों में आ पड़े, जिनमें अमरदास जी ने अपनी ज्योति स्थापित की थी।
ਕੋਈ ਕਰਿ ਬਖੀਲੀ ਨਿਵੈ ਨਾਹੀ ਫਿਰਿ ਸਤਿਗੁਰੂ ਆਣਿ ਨਿਵਾਇਆ ॥
कोई करि बखीली निवै नाही फिरि सतिगुरू आणि निवाइआ ॥
यदि कोई इर्षा वश गुरु रामदास जी के आगे नहीं था तो सतगुरु ने उसे नम्रतापूर्वक शरण में ले लिया।
ਹਰਿ ਗੁਰਹਿ ਭਾਣਾ ਦੀਈ ਵਡਿਆਈ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਰਜਾਇ ਜੀਉ ॥
हरि गुरहि भाणा दीई वडिआई धुरि लिखिआ लेखु रजाइ जीउ ॥
गुरु अमरदास को परमात्मा रज़ा सहर्ष स्वीकार हुई और उन्होंने गुरु रामदास जी को गुरुयाई देकर बड़ाई प्रदान की।
ਕਹੈ ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਣਹੁ ਸੰਤਹੁ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਪੈਰੀ ਪਾਇ ਜੀਉ ॥੬॥੧॥
कहै सुंदरु सुणहु संतहु सभु जगतु पैरी पाइ जीउ ॥६॥१॥
सुन्दर जी कहते हैं कि हे सज्जनो ! सुनो; गुरु अमरदास जी ने गुरु रामदास को गुरुगद्दी पूरे जगत् को उनके चरणों में डाल दिया।॥ ६॥ १॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ
रामकली महला ५ छंत
रामकली महला ५ छंत
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਾਜਨੜਾ ਮੇਰਾ ਸਾਜਨੜਾ ਨਿਕਟਿ ਖਲੋਇਅੜਾ ਮੇਰਾ ਸਾਜਨੜਾ ॥
साजनड़ा मेरा साजनड़ा निकटि खलोइअड़ा मेरा साजनड़ा ॥
मेरा साजन प्रभु मेरे निकट ही खड़ा है।
ਜਾਨੀਅੜਾ ਹਰਿ ਜਾਨੀਅੜਾ ਨੈਣ ਅਲੋਇਅੜਾ ਹਰਿ ਜਾਨੀਅੜਾ ॥
जानीअड़ा हरि जानीअड़ा नैण अलोइअड़ा हरि जानीअड़ा ॥
यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है और उसके नयनों से दर्शन कर लिए हैं।
ਨੈਣ ਅਲੋਇਆ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸੋਇਆ ਅਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪ੍ਰਿਅ ਗੂੜਾ ॥
नैण अलोइआ घटि घटि सोइआ अति अम्रित प्रिअ गूड़ा ॥
मैंने अपने प्रेिय को नयनों से देख लिया है जो घट-घट में व्यापक है और मेरा प्रियतम अमृत के सामान मधुर है।
ਨਾਲਿ ਹੋਵੰਦਾ ਲਹਿ ਨ ਸਕੰਦਾ ਸੁਆਉ ਨ ਜਾਣੈ ਮੂੜਾ ॥
नालि होवंदा लहि न सकंदा सुआउ न जाणै मूड़ा ॥
जिव मन में स्थित प्रियतम का अनुभव नहीं कर सकता और वह मूर्ख तो अपने जीवन लक्ष्य को भी नहीं जानता है।
ਮਾਇਆ ਮਦਿ ਮਾਤਾ ਹੋਛੀ ਬਾਤਾ ਮਿਲਣੁ ਨ ਜਾਈ ਭਰਮ ਧੜਾ ॥
माइआ मदि माता होछी बाता मिलणु न जाई भरम धड़ा ॥
माया के नशे में मस्त बना हुआ वह व्यर्थ बातें करता रहता है और भ्रम के कारण प्रभु से उसका मिलन नहीं हो पाता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਸੂਝੈ ਹਰਿ ਸਾਜਨੁ ਸਭ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਖੜਾ ॥੧॥
कहु नानक गुर बिनु नाही सूझै हरि साजनु सभ कै निकटि खड़ा ॥१॥
हे नानक ! साजन प्रभु सबके निकट मौजूद है, परन्तु गुरु के बिना उसकी सूझ नहीं होती ॥१॥
ਗੋਬਿੰਦਾ ਮੇਰੇ ਗੋਬਿੰਦਾ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰਾ ਮੇਰੇ ਗੋਬਿੰਦਾ ॥
गोबिंदा मेरे गोबिंदा प्राण अधारा मेरे गोबिंदा ॥
मेरा गोविन्द मेरे प्राणों आधार है।
ਕਿਰਪਾਲਾ ਮੇਰੇ ਕਿਰਪਾਲਾ ਦਾਨ ਦਾਤਾਰਾ ਮੇਰੇ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥
किरपाला मेरे किरपाला दान दातारा मेरे किरपाला ॥
सब जीवों को देने वाला दाता बड़ा कृपालु है।
ਦਾਨ ਦਾਤਾਰਾ ਅਪਰ ਅਪਾਰਾ ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸੋਹਨਿਆ ॥
दान दातारा अपर अपारा घट घट अंतरि सोहनिआ ॥
वह अपरंपार दातार घट-घट सबके अन्तर्मन में शोभा दे रहा है।
ਇਕ ਦਾਸੀ ਧਾਰੀ ਸਬਲ ਪਸਾਰੀ ਜੀਅ ਜੰਤ ਲੈ ਮੋਹਨਿਆ ॥
इक दासी धारी सबल पसारी जीअ जंत लै मोहनिआ ॥
उसने माया रूपी एक दासी बनाई हुई है, उसका सारे जगत् में प्रसार और सब जीवों को उसने मोहित किया हुआ है।
ਜਿਸ ਨੋ ਰਾਖੈ ਸੋ ਸਚੁ ਭਾਖੈ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
जिस नो राखै सो सचु भाखै गुर का सबदु बीचारा ॥
जिसकी वह रक्षा करता है, वही सत्य कहता है और वही गुरु-शब्द का विचार करता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਭਾਣਾ ਤਿਸ ਹੀ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਪਿਆਰਾ ॥੨॥
कहु नानक जो प्रभ कउ भाणा तिस ही कउ प्रभु पिआरा ॥२॥
हे नानक ! जो प्रभु को अच्छा लगता है, उन्हें ही प्रभु प्यारा लगता है॥ २॥
ਮਾਣੋ ਪ੍ਰਭ ਮਾਣੋ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਮਾਣੋ ॥
माणो प्रभ माणो मेरे प्रभ का माणो ॥
मुझे अपने प्रभु पर मान है, सच तो यह है केि मुझे प्रभु पर ही मान है।
ਜਾਣੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣੋ ਸੁਆਮੀ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਣੋ ॥
जाणो प्रभु जाणो सुआमी सुघड़ु सुजाणो ॥
मेरा स्वामी प्रभु अन्तर्यामी, चतुर एवं बुद्धिमान है।
ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਨਾ ਸਦ ਪਰਧਾਨਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮਾ ॥
सुघड़ सुजाना सद परधाना अम्रितु हरि का नामा ॥
वह सदा ही चतुर, बुद्धिमान, सारी सृष्टि का प्रधान है। उस हरि का नाम अमृत के तुल्य है।
ਚਾਖਿ ਅਘਾਣੇ ਸਾਰਿਗਪਾਣੇ ਜਿਨ ਕੈ ਭਾਗ ਮਥਾਨਾ ॥
चाखि अघाणे सारिगपाणे जिन कै भाग मथाना ॥
जिनका भाग्य उज्ज्वल है, वे प्रभु के नामामृत का पान करके तृप्त हो गए हैं।
ਤਿਨ ਹੀ ਪਾਇਆ ਤਿਨਹਿ ਧਿਆਇਆ ਸਗਲ ਤਿਸੈ ਕਾ ਮਾਣੋ ॥
तिन ही पाइआ तिनहि धिआइआ सगल तिसै का माणो ॥
उन्होंने उसे प्राप्त किया है, उसका ही ध्यान किया है और सबको उस पर गर्व है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਥਿਰੁ ਤਖਤਿ ਨਿਵਾਸੀ ਸਚੁ ਤਿਸੈ ਦੀਬਾਣੋ ॥੩॥
कहु नानक थिरु तखति निवासी सचु तिसै दीबाणो ॥३॥
हे नानक ! अटल सिंहासन पर विराजमान परमात्मा का दरबार शाश्वत है॥ ३॥
ਮੰਗਲਾ ਹਰਿ ਮੰਗਲਾ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸੁਣੀਐ ਮੰਗਲਾ ॥
मंगला हरि मंगला मेरे प्रभ कै सुणीऐ मंगला ॥
मेरे प्रभु का मंगलगान सुनो।
ਸੋਹਿਲੜਾ ਪ੍ਰਭ ਸੋਹਿਲੜਾ ਅਨਹਦ ਧੁਨੀਐ ਸੋਹਿਲੜਾ ॥
सोहिलड़ा प्रभ सोहिलड़ा अनहद धुनीऐ सोहिलड़ा ॥
उस प्रभु के घर में अनहद ध्वनि वाला कीर्तन होता रहता है।
ਅਨਹਦ ਵਾਜੇ ਸਬਦ ਅਗਾਜੇ ਨਿਤ ਨਿਤ ਜਿਸਹਿ ਵਧਾਈ ॥
अनहद वाजे सबद अगाजे नित नित जिसहि वधाई ॥
उसके घर अनहद शब्द गूंजता रहता है और नित्य ही कल्याण की बधाई मिलती रहती है।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਈਐ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਪਾਈਐ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥
सो प्रभु धिआईऐ सभु किछु पाईऐ मरै न आवै जाई ॥
सो प्रभु का ध्यान करने से सबकुछ प्राप्त हो जाता है और आवागमन से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
ਚੂਕੀ ਪਿਆਸਾ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੁ ਨਿਰਗੁਨੀਐ ॥
चूकी पिआसा पूरन आसा गुरमुखि मिलु निरगुनीऐ ॥
प्रत्येक अभिलाषा पूर्ण हो जाती है और सब लालसाएँ मिट जाती हैं। निर्गुण परमात्मा को गुरु द्वारा पा लो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਘਰਿ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਕੈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਮੰਗਲੁ ਸੁਨੀਐ ॥੪॥੧॥
कहु नानक घरि प्रभ मेरे कै नित नित मंगलु सुनीऐ ॥४॥१॥
हे नानक ! हृदय-घर में सदैव मेरे प्रभु का मंगलगान सुनना चाहिए॥ ४॥ १॥