ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਮਨਿ ਬਚਨ ਨ ਭਾਏ ਸਭ ਫੋਕਟ ਚਾਰ ਸੀਗਾਰੇ ॥੩॥
मेरे सतिगुर के मनि बचन न भाए सभ फोकट चार सीगारे ॥३॥
यदि मेरे सतगुरु के मन को उसकी बात ठीक नहीं लगी तो उसके किए सब श्रृंगार व्यर्थ हैं।॥ ३॥
ਮਟਕਿ ਮਟਕਿ ਚਲੁ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਗੁਨ ਸਾਰੇ ॥
मटकि मटकि चलु सखी सहेली मेरे ठाकुर के गुन सारे ॥
हे सखी-सहेली ! मटक-मटक कर प्रेमपूर्वक चलो, मेरे ठाकुर जी के गुणों को स्मरण करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਅਲਖੁ ਲਖਾਰੇ ॥੪॥
गुरमुखि सेवा मेरे प्रभ भाई मै सतिगुर अलखु लखारे ॥४॥
गुरु के दिशा-निर्देशानुसार की हुई सेवा ही मेरे प्रभु को अच्छी लगी है, सतगुरु ने अलख प्रभु को दिखा दिया है॥ ४॥
ਨਾਰੀ ਪੁਰਖੁ ਪੁਰਖੁ ਸਭ ਨਾਰੀ ਸਭੁ ਏਕੋ ਪੁਰਖੁ ਮੁਰਾਰੇ ॥
नारी पुरखु पुरखु सभ नारी सभु एको पुरखु मुरारे ॥
जगत् में जितने भी नारी पुरुष हैं, उन सबका मालिक एक परमेश्वर ही है।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਰੇਨੁ ਮਨਿ ਭਾਈ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੫॥
संत जना की रेनु मनि भाई मिलि हरि जन हरि निसतारे ॥५॥
जिन्हें संतजनों की चरण-धूलि मन में अच्छी लगी है, भक्तजनों से मिलकर उनकी मुक्ति हो गई है॥ ५॥
ਗ੍ਰਾਮ ਗ੍ਰਾਮ ਨਗਰ ਸਭ ਫਿਰਿਆ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਜਨ ਭਾਰੇ ॥
ग्राम ग्राम नगर सभ फिरिआ रिद अंतरि हरि जन भारे ॥
मैं ग्राम-ग्राम एवं सब नगरों में परमात्मा को ढूंढता रहा हूँ परन्तु हरि-भक्तों ने उसे हृदय में ही पा लिया है।
ਸਰਧਾ ਸਰਧਾ ਉਪਾਇ ਮਿਲਾਏ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਗੁਰ ਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੬॥
सरधा सरधा उपाइ मिलाए मो कउ हरि गुर गुरि निसतारे ॥६॥
गुरु ने मन में श्रद्धा उत्पन्न करके परमात्मा से मिलाकर मेरा उद्धार कर दिया है॥ ६॥
ਪਵਨ ਸੂਤੁ ਸਭੁ ਨੀਕਾ ਕਰਿਆ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥
पवन सूतु सभु नीका करिआ सतिगुरि सबदु वीचारे ॥
गुरु के शब्द का चिंतन करके जीवन-साँसों को सफल कर लिया है।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਜਾਇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪੀਆ ਬਿਨੁ ਨੈਨਾ ਜਗਤੁ ਨਿਹਾਰੇ ॥੭॥
निज घरि जाइ अम्रित रसु पीआ बिनु नैना जगतु निहारे ॥७॥
अब अपने सच्चे घर में जाकर नामामृत का रस पान कर लिया है और इन नेत्रों के बिना ज्ञान-चक्षुओं से जगत् का मोह देख लिया है॥ ७॥
ਤਉ ਗੁਨ ਈਸ ਬਰਨਿ ਨਹੀ ਸਾਕਉ ਤੁਮ ਮੰਦਰ ਹਮ ਨਿਕ ਕੀਰੇ ॥
तउ गुन ईस बरनि नही साकउ तुम मंदर हम निक कीरे ॥
हे ईश्वर ! हम तेरे गुण वर्णन नहीं कर सकते, तेरे सुन्दर घर में हम छोटे से कीड़े हैं।
ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਗੁਰ ਮੇਲਹੁ ਮੈ ਰਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨੁ ਧੀਰੇ ॥੮॥੫॥
नानक क्रिपा करहु गुर मेलहु मै रामु जपत मनु धीरे ॥८॥५॥
नानक वंदना करते हैं कि हे हरि ! कृपा करके मुझे गुरु से मिला दो,क्योकि तेरा नाम जपकर मन को धैर्य प्राप्त होता है॥ ८॥ ५॥
ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਭਜੁ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥
मेरे मन भजु ठाकुर अगम अपारे ॥
हे मेरे मन ! अगम्य-अपार ईश्वर का भजन करो;
ਹਮ ਪਾਪੀ ਬਹੁ ਨਿਰਗੁਣੀਆਰੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम पापी बहु निरगुणीआरे करि किरपा गुरि निसतारे ॥१॥ रहाउ ॥
हम बड़े पापी एवं गुणविहीन हैं परन्तु गुरु ने कृपा करके हमारा उद्धार कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਧੂ ਪੁਰਖ ਸਾਧ ਜਨ ਪਾਏ ਇਕ ਬਿਨਉ ਕਰਉ ਗੁਰ ਪਿਆਰੇ ॥
साधू पुरख साध जन पाए इक बिनउ करउ गुर पिआरे ॥
जिसने साधु पुरुष साधुजन पा लिए हैं, उस गुरु के प्यारे से मैं एक विनती करता हूँ कि
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਪੂਜੀ ਦੇਵਹੁ ਸਭੁ ਤਿਸਨਾ ਭੂਖ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥
राम नामु धनु पूजी देवहु सभु तिसना भूख निवारे ॥१॥
मुझे राम-नाम रूपी धन की पूंजी दे दो ताकि मेरी तृष्णा की भूख निवृत्त हो जाए॥ १॥
ਪਚੈ ਪਤੰਗੁ ਮ੍ਰਿਗ ਭ੍ਰਿੰਗ ਕੁੰਚਰ ਮੀਨ ਇਕ ਇੰਦ੍ਰੀ ਪਕਰਿ ਸਘਾਰੇ ॥
पचै पतंगु म्रिग भ्रिंग कुंचर मीन इक इंद्री पकरि सघारे ॥
पतंगा (दीये की रोशनी) मृग (नाद के कारण), भंवरा (फूल की सुगन्धि), हाथी (कामवासना) और मछली (लोभवश) सभी एक-एक इन्द्रिय के दोष में नष्ट हो जाते हैं।
ਪੰਚ ਭੂਤ ਸਬਲ ਹੈ ਦੇਹੀ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਪ ਨਿਵਾਰੇ ॥੨॥
पंच भूत सबल है देही गुरु सतिगुरु पाप निवारे ॥२॥
किन्तु हमारे शरीर में पाँच बलि तत्व (काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार) मौजूद हैं, परन्तु गुरु-सतगुरु ही इन पापों से छुटकारा दिलवा सकता है॥ २॥
ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਸੋਧਿ ਸੋਧਿ ਦੇਖੇ ਮੁਨਿ ਨਾਰਦ ਬਚਨ ਪੁਕਾਰੇ ॥
सासत्र बेद सोधि सोधि देखे मुनि नारद बचन पुकारे ॥
हमने शास्त्रों एवं वेदों का भलीभांति अध्ययन किया और नारद मुनि के वचनों का भी निरीक्षण कर लिया है,
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਪੜਹੁ ਗਤਿ ਪਾਵਹੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥
राम नामु पड़हु गति पावहु सतसंगति गुरि निसतारे ॥३॥
सब यही पुकार कर कहते हैं कि राम-नाम का पाठ पढ़ो और परमगति पा लो, मगर गुरु की सत्संगति में ही मुक्ति संभव है॥ ३॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਪ੍ਰਭ ਕੇਰੀ ਜਿਵ ਸੂਰਜੁ ਕਮਲੁ ਨਿਹਾਰੇ ॥
प्रीतम प्रीति लगी प्रभ केरी जिव सूरजु कमलु निहारे ॥
प्रियतम-प्रभु से ऐसी प्रीति लग गई है, जैसे कमल का फूल सूर्य को देखता रहता है,
ਮੇਰ ਸੁਮੇਰ ਮੋਰੁ ਬਹੁ ਨਾਚੈ ਜਬ ਉਨਵੈ ਘਨ ਘਨਹਾਰੇ ॥੪॥
मेर सुमेर मोरु बहु नाचै जब उनवै घन घनहारे ॥४॥
जैसे घटाएँ आने पर मेघ गरजते हैं तो वनों एवं पर्वतों में मोर खुशी-खुशी झूमते हुए नाचते हैं।॥ ४॥
ਸਾਕਤ ਕਉ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਹੁ ਸਿੰਚਹੁ ਸਭ ਡਾਲ ਫੂਲ ਬਿਸੁਕਾਰੇ ॥
साकत कउ अम्रित बहु सिंचहु सभ डाल फूल बिसुकारे ॥
यदि शाक्त रूपी पेड़ को अमृत-जल से सीचो तो भी उसकी सब शाखाएँ, पत्र, फूल विषैले ही रहते हैं।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਨਿਵਹਿ ਸਾਕਤ ਨਰ ਸੇਤੀ ਛੇੜਿ ਛੇੜਿ ਕਢੈ ਬਿਖੁ ਖਾਰੇ ॥੫॥
जिउ जिउ निवहि साकत नर सेती छेड़ि छेड़ि कढै बिखु खारे ॥५॥
ज्यों-ज्यों भला व्यक्ति मायावी व्यक्ति से नम्रता से बात करता है, वह उससे छेड़छाड़ द्वारा त्यों-त्यों विष रूपी कटु वचन ही बोलता है॥ ५॥
ਸੰਤਨ ਸੰਤ ਸਾਧ ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ਗੁਣ ਬੋਲਹਿ ਪਰਉਪਕਾਰੇ ॥
संतन संत साध मिलि रहीऐ गुण बोलहि परउपकारे ॥
संतों-साधुजनों के संग मिलकर रहना चाहिए चूंकि वे लोगों की भलाई के लिए शुभ वचन बोलते रहते हैं।
ਸੰਤੈ ਸੰਤੁ ਮਿਲੈ ਮਨੁ ਬਿਗਸੈ ਜਿਉ ਜਲ ਮਿਲਿ ਕਮਲ ਸਵਾਰੇ ॥੬॥
संतै संतु मिलै मनु बिगसै जिउ जल मिलि कमल सवारे ॥६॥
जब किसी भद्रपुरुष को कोई संत मिल जाता है तो उसका मन यों खिल जाता है, जैसे जल में कमल संवर जाता है॥ ६॥
ਲੋਭ ਲਹਰਿ ਸਭੁ ਸੁਆਨੁ ਹਲਕੁ ਹੈ ਹਲਕਿਓ ਸਭਹਿ ਬਿਗਾਰੇ ॥
लोभ लहरि सभु सुआनु हलकु है हलकिओ सभहि बिगारे ॥
लोभ की लहर में पड़ने वाला आदमी पागल कुते की तरह है, जो सब लोगों को काटकर वही बीमारी लगा देता है।
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੈ ਦੀਬਾਨਿ ਖਬਰਿ ਹੋੁਈ ਗੁਰਿ ਗਿਆਨੁ ਖੜਗੁ ਲੈ ਮਾਰੇ ॥੭॥
मेरे ठाकुर कै दीबानि खबरि होई गुरि गिआनु खड़गु लै मारे ॥७॥
जब मेरे ठाकुर जी के दरबार में इसकी खबर होती है तो गुरु ज्ञान-खड्ग लेकर इसका अन्त कर देता है॥ ७॥
ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਮੈ ਰਾਖਹੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥
राखु राखु राखु प्रभ मेरे मै राखहु किरपा धारे ॥
हे प्रभु ! कृपा करके मेरी रक्षा करो।
ਨਾਨਕ ਮੈ ਧਰ ਅਵਰ ਨ ਕਾਈ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੮॥੬॥ ਛਕਾ ੧ ॥
नानक मै धर अवर न काई मै सतिगुरु गुरु निसतारे ॥८॥६॥ छका १ ॥
नानक का कथन है कि मेरा अन्य कोई सहारा नहीं है परन्तु सतगुरु ही मुझे मुक्त कर सकता है॥ ८॥ ६॥ छका १॥ (महला ४ की छ: अष्टपदियों का संग्रह)