ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪੁ ਜਪਿ ਜਗੰਨਾਥੇ ॥
मेरे मन जपु जपि जगंनाथे ॥
हे मेरे मन ! संसार के स्वामी प्रभु का भजन करो;
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਓ ਸਭਿ ਕਿਲਬਿਖ ਦੁਖ ਲਾਥੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर उपदेसि हरि नामु धिआइओ सभि किलबिख दुख लाथे ॥१॥ रहाउ ॥
यदि गुरु के उपदेश से परमात्मा का ध्यान किया जाए तो सब पाप-दुख निवृत्त हो जाते हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਰਸਨਾ ਏਕ ਜਸੁ ਗਾਇ ਨ ਸਾਕੈ ਬਹੁ ਕੀਜੈ ਬਹੁ ਰਸੁਨਥੇ ॥
रसना एक जसु गाइ न साकै बहु कीजै बहु रसुनथे ॥
हे प्रभु ! हमारी एक जीभ तुम्हारा यश नहीं गा सकती, अतः अनेक जीभों वाला बना दो।
ਬਾਰ ਬਾਰ ਖਿਨੁ ਪਲ ਸਭਿ ਗਾਵਹਿ ਗੁਨ ਕਹਿ ਨ ਸਕਹਿ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਨਥੇ ॥੧॥
बार बार खिनु पल सभि गावहि गुन कहि न सकहि प्रभ तुमनथे ॥१॥
अगर ये सभी बार-बार हर पल तुम्हारा गुणगान करेंगी तो भी तेरे गुणों का कथन नहीं कर सकती॥ १॥
ਹਮ ਬਹੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਲੋਚਹ ਪ੍ਰਭੁ ਦਿਖਨਥੇ ॥
हम बहु प्रीति लगी प्रभ सुआमी हम लोचह प्रभु दिखनथे ॥
हे स्वामी प्रभु! हमने तुम्हारे साथ प्रेम लगा लिया है, अब हम तेरे ही दर्शन चाहते हैं।
ਤੁਮ ਬਡ ਦਾਤੇ ਜੀਅ ਜੀਅਨ ਕੇ ਤੁਮ ਜਾਨਹੁ ਹਮ ਬਿਰਥੇ ॥੨॥
तुम बड दाते जीअ जीअन के तुम जानहु हम बिरथे ॥२॥
तुम सब जीवों के बड़े दाता हो, तुम ही हमारी पीड़ा को जानते हो।॥ २॥
ਕੋਈ ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਬਤਾਵੈ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਕਹੁ ਤਿਨ ਕਉ ਕਿਆ ਦਿਨਥੇ ॥
कोई मारगु पंथु बतावै प्रभ का कहु तिन कउ किआ दिनथे ॥
अगर कोई मुझे प्रभु का मार्ग बताता है तो उसे भला क्या अर्पण करूँ ?
ਸਭੁ ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਉ ਅਰਪਿ ਅਰਾਪਉ ਕੋਈ ਮੇਲੈ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਥੇ ॥੩॥
सभु तनु मनु अरपउ अरपि अरापउ कोई मेलै प्रभ मिलथे ॥३॥
अगर कोई प्रभु से मिलाता है, तो तन-मन सर्वस्व अर्पण कर दूँ॥ ३॥
ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਬਹੁਤ ਬਹੁਤ ਬਹੁ ਸੋਭਾ ਹਮ ਤੁਛ ਕਰਿ ਕਰਿ ਬਰਨਥੇ ॥
हरि के गुन बहुत बहुत बहु सोभा हम तुछ करि करि बरनथे ॥
परमात्मा के गुण बेअंत हैं, उसकी शोभा बेशुमार है, हम तुच्छ मात्र ही वर्णन करते हैं।
ਹਮਰੀ ਮਤਿ ਵਸਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸਮਰਥੇ ॥੪॥੩॥
हमरी मति वसगति प्रभ तुमरै जन नानक के प्रभ समरथे ॥४॥३॥
हे नानक के समर्थ प्रभु ! हमारी बुद्धि सब तुम्हारे वश में है॥ ४॥ ३॥
ਕਲਿਆਨ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कलिआन महला ४ ॥
कलिआनु महला ४ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਅਕਥ ਸੁਨਥਈ ॥
मेरे मन जपि हरि गुन अकथ सुनथई ॥
हे मेरे मन ! परमात्मा का भजन करो, उसके गुण अकथनीय सुने जाते हैं।
ਧਰਮੁ ਅਰਥੁ ਸਭੁ ਕਾਮੁ ਮੋਖੁ ਹੈ ਜਨ ਪੀਛੈ ਲਗਿ ਫਿਰਥਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
धरमु अरथु सभु कामु मोखु है जन पीछै लगि फिरथई ॥१॥ रहाउ ॥
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इत्यादि सब भक्तों के पीछे लगे रहते हैं॥ १॥रहाउ॥
ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ਹਰਿ ਜਨੁ ਜਿਸੁ ਬਡਭਾਗ ਮਥਈ ॥
सो हरि हरि नामु धिआवै हरि जनु जिसु बडभाग मथई ॥
वही भक्त परमात्मा का ध्यान करता है, जिसके माथे पर सौभाग्य होता है।
ਜਹ ਦਰਗਹਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲੇਖਾ ਮਾਗੈ ਤਹ ਛੁਟੈ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਥਈ ॥੧॥
जह दरगहि प्रभु लेखा मागै तह छुटै नामु धिआइथई ॥१॥
जहाँ प्रभु के दरबार में कमों का हिसाब मांगा जाता है, वहाँ हरिनाम का ध्यान करने वाला मुक्त हो जाता है॥ १॥
ਹਮਰੇ ਦੋਖ ਬਹੁ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਦੁਖੁ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਲਗਥਈ ॥
हमरे दोख बहु जनम जनम के दुखु हउमै मैलु लगथई ॥
हमने बहुत सारे दोष किए हैं, जन्म-जन्मांतर के दुख एवं अहंकार की मैल लगी हुई थी।
ਗੁਰਿ ਧਾਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਹਰਿ ਜਲਿ ਨਾਵਾਏ ਸਭ ਕਿਲਬਿਖ ਪਾਪ ਗਥਈ ॥੨॥
गुरि धारि क्रिपा हरि जलि नावाए सभ किलबिख पाप गथई ॥२॥
गुरु ने कृपा करके हरिनाम जल में स्नान करवाया तो सब पाप-दोष निवृत्त हो गए॥ २॥
ਜਨ ਕੈ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਭਜਥਈ ॥
जन कै रिद अंतरि प्रभु सुआमी जन हरि हरि नामु भजथई ॥
दास के हृदय में प्रभु बसा हुआ है, अतः वह हरि-भजन में लीन रहता है।
ਜਹ ਅੰਤੀ ਅਉਸਰੁ ਆਇ ਬਨਤੁ ਹੈ ਤਹ ਰਾਖੈ ਨਾਮੁ ਸਾਥਈ ॥੩॥
जह अंती अउसरु आइ बनतु है तह राखै नामु साथई ॥३॥
जब जीवन का अन्तिम समय आ जाता है, तब प्रभु का नाम ही साथी बनकर रक्षा करता है॥ ३॥
ਜਨ ਤੇਰਾ ਜਸੁ ਗਾਵਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਜਗੰਨਥਈ ॥
जन तेरा जसु गावहि हरि हरि प्रभ हरि जपिओ जगंनथई ॥
हे प्रभु ! सेवक हरदम तेरा ही यश गाता है, जगत के मालिक का भजन करता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖੇ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਪਾਥਰ ਰਖੁ ਬੁਡਥਈ ॥੪॥੪॥
जन नानक के प्रभ राखे सुआमी हम पाथर रखु बुडथई ॥४॥४॥
हे नानक के प्रभु ! तुम ही रक्षक हो, हम पत्थरों को डूबने से बचा लो॥ ४॥ ४॥
ਕਲਿਆਨ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कलिआन महला ४ ॥
कलिआनु महला ४ ॥
ਹਮਰੀ ਚਿਤਵਨੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨੈ ॥
हमरी चितवनी हरि प्रभु जानै ॥
हमारी भावना को प्रभु भलीभांति जानता है।
ਅਉਰੁ ਕੋਈ ਨਿੰਦ ਕਰੈ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਪ੍ਰਭੁ ਤਾ ਕਾ ਕਹਿਆ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਮਾਨੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अउरु कोई निंद करै हरि जन की प्रभु ता का कहिआ इकु तिलु नही मानै ॥१॥ रहाउ ॥
अगर कोई भक्त की निंदा करता है तो प्रभु उसका बिल्कुल कहना नहीं मानता॥ १॥रहाउ॥
ਅਉਰ ਸਭ ਤਿਆਗਿ ਸੇਵਾ ਕਰਿ ਅਚੁਤ ਜੋ ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਠਾਕੁਰੁ ਭਗਵਾਨੈ ॥
अउर सभ तिआगि सेवा करि अचुत जो सभ ते ऊच ठाकुरु भगवानै ॥
अन्य-सब कर्मकांड छोड़कर परमेश्वर की उपासना करो, जो सबसे बड़ा मालिक है।
ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਤੇ ਕਾਲੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਚਰਨੀ ਆਇ ਪਵੈ ਹਰਿ ਜਾਨੈ ॥੧॥
हरि सेवा ते कालु जोहि न साकै चरनी आइ पवै हरि जानै ॥१॥
भगवान की अर्चना करने से काल भी बुरी नजर नहीं डालता, बल्कि भक्त के चरणों में आ पड़ता है।॥ १॥
ਜਾ ਕਉ ਰਾਖਿ ਲੇਇ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਕਉ ਸੁਮਤਿ ਦੇਇ ਪੈ ਕਾਨੈ ॥
जा कउ राखि लेइ मेरा सुआमी ता कउ सुमति देइ पै कानै ॥
जिसको मेरा स्वामी बचा लेता है, उसके कानों में सुमति डाल देता है।
ਤਾ ਕਉ ਕੋਈ ਅਪਰਿ ਨ ਸਾਕੈ ਜਾ ਕੀ ਭਗਤਿ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮਾਨੈ ॥੨॥
ता कउ कोई अपरि न साकै जा की भगति मेरा प्रभु मानै ॥२॥
जिसकी भक्ति को मेरा प्रभु स्वीकार कर लेता है, उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता॥ २॥
ਹਰਿ ਕੇ ਚੋਜ ਵਿਡਾਨ ਦੇਖੁ ਜਨ ਜੋ ਖੋਟਾ ਖਰਾ ਇਕ ਨਿਮਖ ਪਛਾਨੈ ॥
हरि के चोज विडान देखु जन जो खोटा खरा इक निमख पछानै ॥
हे लोगो ! परमात्मा की अद्भुत लीला देखो, जो बुरे-भले को एक पल में पहचान लेता है।
ਤਾ ਤੇ ਜਨ ਕਉ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਹੈ ਰਿਦ ਸੁਧ ਮਿਲੇ ਖੋਟੇ ਪਛੁਤਾਨੈ ॥੩॥
ता ते जन कउ अनदु भइआ है रिद सुध मिले खोटे पछुतानै ॥३॥
तभी तो सेवक को आनंद पैदा हो गया है, दरअसल साफ दिल वाले ईश्वर से मिल जाते हैं और खोटे इन्सान पछताते ही रहते हैं।॥ ३॥
ਤੁਮ ਹਰਿ ਦਾਤੇ ਸਮਰਥ ਸੁਆਮੀ ਇਕੁ ਮਾਗਉ ਤੁਝ ਪਾਸਹੁ ਹਰਿ ਦਾਨੈ ॥
तुम हरि दाते समरथ सुआमी इकु मागउ तुझ पासहु हरि दानै ॥
हे परमेश्वर ! तू ही देने वाला है, सर्वशक्तिमान एवं जगत का स्वामी है, मैं तुझसे नाम दान मांगता हूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਦੀਜੈ ਸਦ ਬਸਹਿ ਰਿਦੈ ਮੋਹਿ ਹਰਿ ਚਰਾਨੈ ॥੪॥੫॥
जन नानक कउ हरि क्रिपा करि दीजै सद बसहि रिदै मोहि हरि चरानै ॥४॥५॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! मुझ पर कृपा करो, ताकि मेरे हृदय में सदैव तेरे चरण बसते रहें॥ ४॥ ५॥