ਆਇਆ ਗਇਆ ਮੁਇਆ ਨਾਉ ॥
आइआ गइआ मुइआ नाउ ॥
वह इस संसार में आया था और चला गया है और उसका नाम भी मर मिट गया है।
ਪਿਛੈ ਪਤਲਿ ਸਦਿਹੁ ਕਾਵ ॥
पिछै पतलि सदिहु काव ॥
उसके उपरांत पत्तलों पर भोजन दिया जाता है और कौए बुलाए जाते हैं अर्थात् श्राद्ध किए जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧੁ ਪਿਆਰੁ ॥
नानक मनमुखि अंधु पिआरु ॥
हे नानक ! स्वेच्छाचारी जीव का जगत् से मोह ज्ञानहीनों वाला है।
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਡੁਬਾ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥
बाझु गुरू डुबा संसारु ॥२॥
गुरु के बिना सारा जगत् ही भवसागर में डूब रहा है॥ २ ॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਦਸ ਬਾਲਤਣਿ ਬੀਸ ਰਵਣਿ ਤੀਸਾ ਕਾ ਸੁੰਦਰੁ ਕਹਾਵੈ ॥
दस बालतणि बीस रवणि तीसा का सुंदरु कहावै ॥
मनुष्य के दस वर्ष बचपन में बीत जाते हैं। बीस वर्ष का युवक और तीस वर्ष का सुन्दर कहा जाता है।
ਚਾਲੀਸੀ ਪੁਰੁ ਹੋਇ ਪਚਾਸੀ ਪਗੁ ਖਿਸੈ ਸਠੀ ਕੇ ਬੋਢੇਪਾ ਆਵੈ ॥
चालीसी पुरु होइ पचासी पगु खिसै सठी के बोढेपा आवै ॥
चालीस पर वह पूर्ण होता है। पचास वर्ष में उसके पग पीछे मुड़ जाते हैं और साठ वर्ष में वृद्धावस्था आ जाती है।
ਸਤਰਿ ਕਾ ਮਤਿਹੀਣੁ ਅਸੀਹਾਂ ਕਾ ਵਿਉਹਾਰੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥
सतरि का मतिहीणु असीहां का विउहारु न पावै ॥
सत्तर वर्ष में उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और अस्सी वर्ष की आयु में वह अपने कार्य नहीं कर सकता।
ਨਵੈ ਕਾ ਸਿਹਜਾਸਣੀ ਮੂਲਿ ਨ ਜਾਣੈ ਅਪ ਬਲੁ ॥
नवै का सिहजासणी मूलि न जाणै अप बलु ॥
नब्बे वर्ष में उसका आसन बिस्तर पर होता है और क्षीण होने के कारण वह बिल्कुल नहीं समझता कि शक्ति क्या है?
ਢੰਢੋਲਿਮੁ ਢੂਢਿਮੁ ਡਿਠੁ ਮੈ ਨਾਨਕ ਜਗੁ ਧੂਏ ਕਾ ਧਵਲਹਰੁ ॥੩॥
ढंढोलिमु ढूढिमु डिठु मै नानक जगु धूए का धवलहरु ॥३॥
खोज-तलाश करके मैंने देख लिया है, हे नानक ! यह संसार धुएँ का क्षणभंगुर महल है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਆਪਿ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਤੀ ॥
तूं करता पुरखु अगमु है आपि स्रिसटि उपाती ॥
हे कर्ता प्रभु ! तू सर्वशक्तिमान एवं अगम्य है। तूने स्वयं सृष्टि की रचना की है।
ਰੰਗ ਪਰੰਗ ਉਪਾਰਜਨਾ ਬਹੁ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਭਾਤੀ ॥
रंग परंग उपारजना बहु बहु बिधि भाती ॥
तूने अनेक प्रकार के रंग तथा विविध प्रकार के पक्षियों के रंग-बिरंगे पंख उपजाए हैं।
ਤੂੰ ਜਾਣਹਿ ਜਿਨਿ ਉਪਾਈਐ ਸਭੁ ਖੇਲੁ ਤੁਮਾਤੀ ॥
तूं जाणहि जिनि उपाईऐ सभु खेलु तुमाती ॥
तू ही जिसने यह सृष्टि-रचना की है, इस भेद को जानता है कि क्यों रचना की है। यह जगत् तेरी एक लीला है।
ਇਕਿ ਆਵਹਿ ਇਕਿ ਜਾਹਿ ਉਠਿ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮਰਿ ਜਾਤੀ ॥
इकि आवहि इकि जाहि उठि बिनु नावै मरि जाती ॥
कई प्राणी जन्म लेते हैं और कई संसार त्याग कर चले जाते हैं। नाम सिमरन के बिना सभी नाश हो जाते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲਿਆ ਰੰਗਿ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ॥
गुरमुखि रंगि चलूलिआ रंगि हरि रंगि राती ॥
गुरमुख सदैव भगवान के प्रेम में गहरे लाल रंग की भाँति मग्न रहते हैं।
ਸੋ ਸੇਵਹੁ ਸਤਿ ਨਿਰੰਜਨੋ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤੀ ॥
सो सेवहु सति निरंजनो हरि पुरखु बिधाती ॥
उस सदैव सत्य एवं निरंजन प्रभु की सेवा करो जो हम सबका विधाता है।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਆਪਿ ਸੁਜਾਣੁ ਹੈ ਵਡ ਪੁਰਖੁ ਵਡਾਤੀ ॥
तूं आपे आपि सुजाणु है वड पुरखु वडाती ॥
हे प्रभु ! तू स्वयं चतुर है और जगत् में सबसे बड़ा महापुरुष है।
ਜੋ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਤੁਧੁ ਧਿਆਇਦੇ ਮੇਰੇ ਸਚਿਆ ਬਲਿ ਬਲਿ ਹਉ ਤਿਨ ਜਾਤੀ ॥੧॥
जो मनि चिति तुधु धिआइदे मेरे सचिआ बलि बलि हउ तिन जाती ॥१॥
हे मेरे सत्य परमेश्वर ! मैं उन पर तन-मन से न्यौछावर हूँ जो एकाग्रचित होकर तेरा ध्यान करते रहते हैं॥ १ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਜੀਉ ਪਾਇ ਤਨੁ ਸਾਜਿਆ ਰਖਿਆ ਬਣਤ ਬਣਾਇ ॥
जीउ पाइ तनु साजिआ रखिआ बणत बणाइ ॥
भगवान ने पंचभूतक तन की रचना करके उसमें प्राण कला प्रदान की है और इसकी रक्षा का प्रबंध किया है।
ਅਖੀ ਦੇਖੈ ਜਿਹਵਾ ਬੋਲੈ ਕੰਨੀ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਇ ॥
अखी देखै जिहवा बोलै कंनी सुरति समाइ ॥
मनुष्य अपने नेत्रों से देखता है, और जिव्हा से बोलता है। इसके कानों में सुनने की शक्ति समाई हुई है।
ਪੈਰੀ ਚਲੈ ਹਥੀ ਕਰਣਾ ਦਿਤਾ ਪੈਨੈ ਖਾਇ ॥
पैरी चलै हथी करणा दिता पैनै खाइ ॥
वह पैरों से चलता है, हाथों से कार्य करता है और जो कुछ उसे मिलता है, उसको पहनता एवं सेवन करता है।
ਜਿਨਿ ਰਚਿ ਰਚਿਆ ਤਿਸਹਿ ਨ ਜਾਣੈ ਅੰਧਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥
जिनि रचि रचिआ तिसहि न जाणै अंधा अंधु कमाइ ॥
लेकिन बड़े दुःख की बात है कि जिस परमात्मा ने मानव की रचना की है, उसे यह जानता ही नहीं। अंधा मनुष्य ज्ञानहीन होने के कारण बुरे कर्म करता है।
ਜਾ ਭਜੈ ਤਾ ਠੀਕਰੁ ਹੋਵੈ ਘਾੜਤ ਘੜੀ ਨ ਜਾਇ ॥
जा भजै ता ठीकरु होवै घाड़त घड़ी न जाइ ॥
जब मनुष्य का शरीर रूपी घड़ा टूटता है तो वह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है और इसकी बनावट पुनः नहीं की जा सकती।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਨਾਹਿ ਪਤਿ ਪਤਿ ਵਿਣੁ ਪਾਰਿ ਨ ਪਾਇ ॥੧॥
नानक गुर बिनु नाहि पति पति विणु पारि न पाइ ॥१॥
हे नानक ! गुरु के बिना मान-सम्मान नहीं मिलता और इस मान-सम्मान के अलावा मनुष्य संसार से पार नहीं हो सकता ॥ १॥
ਮਃ ੨ ॥
मः २ ॥
महला २ ॥
ਦੇਂਦੇ ਥਾਵਹੁ ਦਿਤਾ ਚੰਗਾ ਮਨਮੁਖਿ ਐਸਾ ਜਾਣੀਐ ॥
देंदे थावहु दिता चंगा मनमुखि ऐसा जाणीऐ ॥
मनमुख ऐसा समझता है कि देने वाले प्रभु से उसकी दी हुई वस्तु उत्तम है।
ਸੁਰਤਿ ਮਤਿ ਚਤੁਰਾਈ ਤਾ ਕੀ ਕਿਆ ਕਰਿ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀਐ ॥
सुरति मति चतुराई ता की किआ करि आखि वखाणीऐ ॥
उसकी बुद्धिमत्ता, समझ एवं चतुरता बारे क्या कथन किया जाए ?
ਅੰਤਰਿ ਬਹਿ ਕੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ਸੋ ਚਹੁ ਕੁੰਡੀ ਜਾਣੀਐ ॥
अंतरि बहि कै करम कमावै सो चहु कुंडी जाणीऐ ॥
चाहे वह अपने घर में बैठकर छिपकर दुष्कर्म करता है परन्तु फिर भी चारों दिशाओं में लोगों को इनका पता लग जाता है।
ਜੋ ਧਰਮੁ ਕਮਾਵੈ ਤਿਸੁ ਧਰਮ ਨਾਉ ਹੋਵੈ ਪਾਪਿ ਕਮਾਣੈ ਪਾਪੀ ਜਾਣੀਐ ॥
जो धरमु कमावै तिसु धरम नाउ होवै पापि कमाणै पापी जाणीऐ ॥
जो व्यक्ति धर्म करता है, उसका नाम धर्मात्मा हो जाता है और जो पाप करता है, वह पापी जाना जाता है।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਖੇਲ ਕਰਹਿ ਸਭਿ ਕਰਤੇ ਕਿਆ ਦੂਜਾ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀਐ ॥
तूं आपे खेल करहि सभि करते किआ दूजा आखि वखाणीऐ ॥
हे सृजनहार प्रभु ! तुम स्वयं ही समस्त लीलाएँ रचते हो। किसी अन्य की क्यों बात एवं कथा करें?
ਜਿਚਰੁ ਤੇਰੀ ਜੋਤਿ ਤਿਚਰੁ ਜੋਤੀ ਵਿਚਿ ਤੂੰ ਬੋਲਹਿ ਵਿਣੁ ਜੋਤੀ ਕੋਈ ਕਿਛੁ ਕਰਿਹੁ ਦਿਖਾ ਸਿਆਣੀਐ ॥
जिचरु तेरी जोति तिचरु जोती विचि तूं बोलहि विणु जोती कोई किछु करिहु दिखा सिआणीऐ ॥
हे प्रभु ! जब तक तेरी ज्योति मानव शरीर में है, तब तक तुम ज्योतिमान देहि में बोलते हो। यदि कोई प्राणी दिखा दे कि उसने तेरी ज्योति के अलावा कुछ कर लिया है तो मैं उसको बुद्धिमान कहूँगा।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ਹਰਿ ਇਕੋ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਣੀਐ ॥੨॥
नानक गुरमुखि नदरी आइआ हरि इको सुघड़ु सुजाणीऐ ॥२॥
हे नानक ! गुरमुख को तो सर्वत्र एक चतुर एवं सर्वज्ञ प्रभु ही दिखाई देता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇ ਕੈ ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਧੰਧੈ ਲਾਇਆ ॥
तुधु आपे जगतु उपाइ कै तुधु आपे धंधै लाइआ ॥
प्रभु ! तुमने स्वयं ही जगत् को उत्पन्न किया और तुमने स्वयं ही इसको कामकाज में लगा दिया है।
ਮੋਹ ਠਗਉਲੀ ਪਾਇ ਕੈ ਤੁਧੁ ਆਪਹੁ ਜਗਤੁ ਖੁਆਇਆ ॥
मोह ठगउली पाइ कै तुधु आपहु जगतु खुआइआ ॥
सांसारिक मोह रूपी नशीली बूटी खाने के लिए देकर तुमने स्वयं ही संसार को कुमार्ग लगा दिया है।
ਤਿਸਨਾ ਅੰਦਰਿ ਅਗਨਿ ਹੈ ਨਹ ਤਿਪਤੈ ਭੁਖਾ ਤਿਹਾਇਆ ॥
तिसना अंदरि अगनि है नह तिपतै भुखा तिहाइआ ॥
प्राणी के भीतर तृष्णा की अग्नि विद्यमान है। वह तृप्त नहीं होता और भूखा तथा प्यासा ही रहता है।
ਸਹਸਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਹੈ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਆਇਆ ਜਾਇਆ ॥
सहसा इहु संसारु है मरि जमै आइआ जाइआ ॥
यह संसार सहसा भूल-भुलैया है। यह मरता, जन्म लेता, आता और जाता रहता है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੋਹੁ ਨ ਤੁਟਈ ਸਭਿ ਥਕੇ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ॥
बिनु सतिगुर मोहु न तुटई सभि थके करम कमाइआ ॥
सतिगुरु के बिना मोह नहीं टूटता। सभी प्राणी अपने कर्म करके थक चुके हैं।
ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸੁਖਿ ਰਜਾ ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਇਆ ॥
गुरमती नामु धिआईऐ सुखि रजा जा तुधु भाइआ ॥
हे स्वामी ! जब तुझे अच्छा लगता है, गुरु के उपदेश से प्राणी तेरे नाम की आराधना करके प्रसन्नता से संतुष्ट हो जाता है।
ਕੁਲੁ ਉਧਾਰੇ ਆਪਣਾ ਧੰਨੁ ਜਣੇਦੀ ਮਾਇਆ ॥
कुलु उधारे आपणा धंनु जणेदी माइआ ॥
वह अपने वंश का कल्याण कर लेता है। ऐसे व्यक्ति को जन्म देने वाली माता धन्य है।