ਗੁਰੁ ਦਰੀਆਉ ਸਦਾ ਜਲੁ ਨਿਰਮਲੁ ਮਿਲਿਆ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਹਰੈ ॥
गुरु दरीआउ सदा जलु निरमलु मिलिआ दुरमति मैलु हरै ॥
गुरु ऐसा दरिया है, जिसका जल सदैव निर्मल है, जिस में मिलने से दुर्मति की मैल दूर हो जाती है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪਾਇਐ ਪੂਰਾ ਨਾਵਣੁ ਪਸੂ ਪਰੇਤਹੁ ਦੇਵ ਕਰੈ ॥੨॥
सतिगुरि पाइऐ पूरा नावणु पसू परेतहु देव करै ॥२॥
सच्चे गुरु से साक्षात्कार होने पर तीर्थ-स्नान पूर्ण होता है और वह तो पशु प्रेतों को भी देवता समान बना देता है॥ २॥
ਰਤਾ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਤਲ ਹੀਅਲੁ ਸੋ ਗੁਰੁ ਪਰਮਲੁ ਕਹੀਐ ॥
रता सचि नामि तल हीअलु सो गुरु परमलु कहीऐ ॥
जो दिल की गहराई तक सत्यनाम में लीन रहता है, उस गुरु को चन्दन कहना चाहिए,
ਜਾ ਕੀ ਵਾਸੁ ਬਨਾਸਪਤਿ ਸਉਰੈ ਤਾਸੁ ਚਰਣ ਲਿਵ ਰਹੀਐ ॥੩॥
जा की वासु बनासपति सउरै तासु चरण लिव रहीऐ ॥३॥
क्योंकि उसकी खुशबू से आस-पास की वनस्पति भी महकदार हो जाती है, अतः उसके चरणों में लीन रहना चाहिए॥ ३॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਉਪਜਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਿਵ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ॥
गुरमुखि जीअ प्रान उपजहि गुरमुखि सिव घरि जाईऐ ॥
गुरु से जीवन-प्राणों का संचार होता है, गुरु से शान्ति प्राप्त होती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਜ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ॥੪॥੬॥
गुरमुखि नानक सचि समाईऐ गुरमुखि निज पदु पाईऐ ॥४॥६॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- गुरु से ही सत्य में समाहित हुआ जाता है और गुरु के द्वारा आत्म-स्वरूप प्राप्त होता है॥ ४॥ ६॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਵਿਦਿਆ ਵੀਚਾਰੈ ਪੜਿ ਪੜਿ ਪਾਵੈ ਮਾਨੁ ॥
गुर परसादी विदिआ वीचारै पड़ि पड़ि पावै मानु ॥
गुरु की कृपा से मनुष्य विद्या पाता है और पढ़कर ख्याति प्राप्त करता है।
ਆਪਾ ਮਧੇ ਆਪੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਪਾਇਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ॥੧॥
आपा मधे आपु परगासिआ पाइआ अम्रितु नामु ॥१॥
नामामृत को पाकर वह अन्तर्मन में प्रकाश अनुभव करता है॥ १॥
ਕਰਤਾ ਤੂ ਮੇਰਾ ਜਜਮਾਨੁ ॥
करता तू मेरा जजमानु ॥
हे कर्ता ! तू मेरा यजमान है,
ਇਕ ਦਖਿਣਾ ਹਉ ਤੈ ਪਹਿ ਮਾਗਉ ਦੇਹਿ ਆਪਣਾ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इक दखिणा हउ तै पहि मागउ देहि आपणा नामु ॥१॥ रहाउ ॥
मैं तुझसे एक दक्षिणा मांगता हूँ कि मुझे अपना नाम दो॥ १॥रहाउ॥
ਪੰਚ ਤਸਕਰ ਧਾਵਤ ਰਾਖੇ ਚੂਕਾ ਮਨਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
पंच तसकर धावत राखे चूका मनि अभिमानु ॥
तुमने काम-क्रोध इत्यादि पाँच लुटेरों से मुझे बचा लिया है और मेरे मन का अभिमान दूर हो गया है।
ਦਿਸਟਿ ਬਿਕਾਰੀ ਦੁਰਮਤਿ ਭਾਗੀ ਐਸਾ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੁ ॥੨॥
दिसटि बिकारी दुरमति भागी ऐसा ब्रहम गिआनु ॥२॥
तुमने ऐसा ब्रह्मज्ञान प्रदान किया है कि विकारों वाली दृष्टि एवं खोटी बुद्धि भाग गई है॥ २॥
ਜਤੁ ਸਤੁ ਚਾਵਲ ਦਇਆ ਕਣਕ ਕਰਿ ਪ੍ਰਾਪਤਿ ਪਾਤੀ ਧਾਨੁ ॥
जतु सतु चावल दइआ कणक करि प्रापति पाती धानु ॥
यतीत्व-शालीनता के चावल, दया का गेहूँ, सत्य का धान रखकर पतल-दान प्राप्त करना चाहता हूँ।
ਦੂਧੁ ਕਰਮੁ ਸੰਤੋਖੁ ਘੀਉ ਕਰਿ ਐਸਾ ਮਾਂਗਉ ਦਾਨੁ ॥੩॥
दूधु करमु संतोखु घीउ करि ऐसा मांगउ दानु ॥३॥
मैं ऐसा दान मांगता हूँ जिसमें तुम्हारी कृपा का दूध तथा संतोष का घी शामिल हो।॥ ३॥
ਖਿਮਾ ਧੀਰਜੁ ਕਰਿ ਗਊ ਲਵੇਰੀ ਸਹਜੇ ਬਛਰਾ ਖੀਰੁ ਪੀਐ ॥
खिमा धीरजु करि गऊ लवेरी सहजे बछरा खीरु पीऐ ॥
क्षमा तथा धैर्य की दुधारू गाय प्रदान करो, जिसका सहज ही बछड़ा दूध पीता है।
ਸਿਫਤਿ ਸਰਮ ਕਾ ਕਪੜਾ ਮਾਂਗਉ ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਾਨਕ ਰਵਤੁ ਰਹੈ ॥੪॥੭॥
सिफति सरम का कपड़ा मांगउ हरि गुण नानक रवतु रहै ॥४॥७॥
नानक की विनती है कि मैं तुम्हारी स्तुति हेतु उद्यम का कपड़ा मांगता हूँ ताकि तेरे गुणगान में लीन रहूँ॥ ४॥ ७॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਆਵਤੁ ਕਿਨੈ ਨ ਰਾਖਿਆ ਜਾਵਤੁ ਕਿਉ ਰਾਖਿਆ ਜਾਇ ॥
आवतु किनै न राखिआ जावतु किउ राखिआ जाइ ॥
जब जन्म से कोई रोक नहीं सका तो फिर भला मौत के मुँह में जाने से कैसे बचा जा सकता है।
ਜਿਸ ਤੇ ਹੋਆ ਸੋਈ ਪਰੁ ਜਾਣੈ ਜਾਂ ਉਸ ਹੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥
जिस ते होआ सोई परु जाणै जां उस ही माहि समाइ ॥१॥
जिससे पैदा होता है, वही अच्छी तरह जानता है और जीव उसी में लीन हो जाता है॥ १॥
ਤੂਹੈ ਹੈ ਵਾਹੁ ਤੇਰੀ ਰਜਾਇ ॥
तूहै है वाहु तेरी रजाइ ॥
वाह परमेश्वर ! तू वाह वाह है, तेरी रज़ा सर्वोपरि है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਹਿ ਸੋਈ ਪਰੁ ਹੋਇਬਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो किछु करहि सोई परु होइबा अवरु न करणा जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जो कुछ तू करता है, वह निश्चय होता है, कोई दूसरा कुछ नहीं कर सकता॥ १॥रहाउ॥
ਜੈਸੇ ਹਰਹਟ ਕੀ ਮਾਲਾ ਟਿੰਡ ਲਗਤ ਹੈ ਇਕ ਸਖਨੀ ਹੋਰ ਫੇਰ ਭਰੀਅਤ ਹੈ ॥
जैसे हरहट की माला टिंड लगत है इक सखनी होर फेर भरीअत है ॥
जैसे रहट वाले कूप की माला में बर्तन चलता है, एक खाली होता है और दूसरा भरता जाता है,
ਤੈਸੋ ਹੀ ਇਹੁ ਖੇਲੁ ਖਸਮ ਕਾ ਜਿਉ ਉਸ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥
तैसो ही इहु खेलु खसम का जिउ उस की वडिआई ॥२॥
वैसे ही यह मालिक की लीला है, मरने के बाद दूसरा जन्म लेता है, इसी में उसकी कीर्ति है।॥ २॥
ਸੁਰਤੀ ਕੈ ਮਾਰਗਿ ਚਲਿ ਕੈ ਉਲਟੀ ਨਦਰਿ ਪ੍ਰਗਾਸੀ ॥
सुरती कै मारगि चलि कै उलटी नदरि प्रगासी ॥
ज्ञान के मार्ग पर चलकर दृष्टि संसार से उलट कर प्रकाशमान हो गई है।
ਮਨਿ ਵੀਚਾਰਿ ਦੇਖੁ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕਉਨੁ ਗਿਰਹੀ ਕਉਨੁ ਉਦਾਸੀ ॥੩॥
मनि वीचारि देखु ब्रहम गिआनी कउनु गिरही कउनु उदासी ॥३॥
हे ब्रह्मज्ञानी ! मन में चिंतन करके देख लो कौन गृहस्थी है और कौन त्यागी है॥ ३॥
ਜਿਸ ਕੀ ਆਸਾ ਤਿਸ ਹੀ ਸਉਪਿ ਕੈ ਏਹੁ ਰਹਿਆ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥
जिस की आसा तिस ही सउपि कै एहु रहिआ निरबाणु ॥
जिसने आशाओं को उत्पन्न किया है, उसी को सौंपकर जीव निर्वाण प्राप्त करता है।
ਜਿਸ ਤੇ ਹੋਆ ਸੋਈ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ਨਾਨਕ ਗਿਰਹੀ ਉਦਾਸੀ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥੪॥੮॥
जिस ते होआ सोई करि मानिआ नानक गिरही उदासी सो परवाणु ॥४॥८॥
गुरु नानक का फुरमान है कि जिस ईश्वर से पैदा हुआ है, वही मानता है कि असल में गृहस्थी अथवा त्यागी कौन परवान होता है॥ ४॥ ८॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਦਿਸਟਿ ਬਿਕਾਰੀ ਬੰਧਨਿ ਬਾਂਧੈ ਹਉ ਤਿਸ ਕੈ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
दिसटि बिकारी बंधनि बांधै हउ तिस कै बलि जाई ॥
मैं उस व्यक्ति पर बलिहारी जाता हूँ जो विकारों वाली दृष्टि को नियंत्रण में करता है।
ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ਭੂਲਾ ਫਿਰੈ ਅਜਾਈ ॥੧॥
पाप पुंन की सार न जाणै भूला फिरै अजाई ॥१॥
पाप-पुण्य की महत्ता को न जानने वाला बेकार ही भटकता फिरता है॥ १॥
ਬੋਲਹੁ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾਰ ॥
बोलहु सचु नामु करतार ॥
जो ईश्वर के नाम का भजन करता है,
ਫੁਨਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਆਵਣ ਵਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
फुनि बहुड़ि न आवण वार ॥१॥ रहाउ ॥
वह पुनः संसार में नहीं आता॥ १॥रहाउ॥
ਊਚਾ ਤੇ ਫੁਨਿ ਨੀਚੁ ਕਰਤੁ ਹੈ ਨੀਚ ਕਰੈ ਸੁਲਤਾਨੁ ॥
ऊचा ते फुनि नीचु करतु है नीच करै सुलतानु ॥
ईश्वर की रज़ा हो तो वह धनवान से भिखारी कर देता है और भिखारी को बादशाह बना देता है।
ਜਿਨੀ ਜਾਣੁ ਸੁਜਾਣਿਆ ਜਗਿ ਤੇ ਪੂਰੇ ਪਰਵਾਣੁ ॥੨॥
जिनी जाणु सुजाणिआ जगि ते पूरे परवाणु ॥२॥
जिन्होंने परमात्मा की महिमा को माना है, वही व्यक्ति संसार में पूर्ण परवान होते हैं।॥ २॥
ਤਾ ਕਉ ਸਮਝਾਵਣ ਜਾਈਐ ਜੇ ਕੋ ਭੂਲਾ ਹੋਈ ॥
ता कउ समझावण जाईऐ जे को भूला होई ॥
उसे ही समझाया जाता है, यदि कोई भूल करता है।