Hindi Page 1302

ਬਿਸਮ ਬਿਸਮ ਬਿਸਮ ਹੀ ਭਈ ਹੈ ਲਾਲ ਗੁਲਾਲ ਰੰਗਾਰੈ ॥
बिसम बिसम बिसम ही भई है लाल गुलाल रंगारै ॥
दुनिया उसके प्रेम लाल रंग में आश्चर्यचकित हो गई है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੰਤਨ ਰਸੁ ਆਈ ਹੈ ਜਿਉ ਚਾਖਿ ਗੂੰਗਾ ਮੁਸਕਾਰੈ ॥੨॥੧॥੨੦॥
कहु नानक संतन रसु आई है जिउ चाखि गूंगा मुसकारै ॥२॥१॥२०॥
हे नानक ! संत पुरुषों को ऐसा आनंद प्राप्त होता है, ज्यों गूंगा मिठाई खाकर मुस्कुराहट व्यक्त करता है॥२॥१॥२०॥

ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥

ਨ ਜਾਨੀ ਸੰਤਨ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨੁ ਆਨ ॥
न जानी संतन प्रभ बिनु आन ॥
भक्तजन प्रभु के सिवा किसी अन्य को नहीं जानते।

ਊਚ ਨੀਚ ਸਭ ਪੇਖਿ ਸਮਾਨੋ ਮੁਖਿ ਬਕਨੋ ਮਨਿ ਮਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऊच नीच सभ पेखि समानो मुखि बकनो मनि मान ॥१॥ रहाउ ॥
कोई ऊँचा हो अथवा नीचा हो, वे सब को समान ही मानते हैं। वे मुँह से प्रभु का भजन करते हैं और मन में उसी का मनन करते हैं।१॥रहाउ॥

ਘਟਿ ਘਟਿ ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਭੈ ਭੰਜਨ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ॥
घटि घटि पूरि रहे सुख सागर भै भंजन मेरे प्रान ॥
घट घट में सुखों का सागर ईश्वर ही व्याप्त है, वह सब भय नाश करने वाला है, वही मेरे प्राण हैं।

ਮਨਹਿ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਭਇਓ ਭ੍ਰਮੁ ਨਾਸਿਓ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਓ ਗੁਰ ਕਾਨ ॥੧॥
मनहि प्रगासु भइओ भ्रमु नासिओ मंत्रु दीओ गुर कान ॥१॥
गुरु ने मुझे ऐसा मंत्र दिया है, जिससे मन में प्रकाश हो गया है और भ्रम नष्ट हो गया है॥१॥

ਕਰਤ ਰਹੇ ਕ੍ਰਤਗੵ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਗੵਿਾਨ ॥
करत रहे क्रतग्य करुणा मै अंतरजामी िग्यान ॥
वह करुणामय, ज्ञान का सागर, अन्तर्यामी हमें कृतार्थ करता रहता है।

ਆਠ ਪਹਰ ਨਾਨਕ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ਮਾਂਗਨ ਕਉ ਹਰਿ ਦਾਨ ॥੨॥੨॥੨੧॥
आठ पहर नानक जसु गावै मांगन कउ हरि दान ॥२॥२॥२१॥
गुरु नानक का कथन है कि परमात्मा से भक्ति दान मांगने के लिए वह आठ प्रहर उसी का यशोगान करता है॥२॥२॥२१॥

ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥

ਕਹਨ ਕਹਾਵਨ ਕਉ ਕਈ ਕੇਤੈ ॥
कहन कहावन कउ कई केतै ॥
कहने-कहलवाने वाले तो पता नहीं कितने ही हैं,

ਐਸੋ ਜਨੁ ਬਿਰਲੋ ਹੈ ਸੇਵਕੁ ਜੋ ਤਤ ਜੋਗ ਕਉ ਬੇਤੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऐसो जनु बिरलो है सेवकु जो तत जोग कउ बेतै ॥१॥ रहाउ ॥
परन्तु ऐसा कोई सेवक विरला ही होता है जो तत्ववेत्ता कहलाता है।॥१॥रहाउ॥

ਦੁਖੁ ਨਾਹੀ ਸਭੁ ਸੁਖੁ ਹੀ ਹੈ ਰੇ ਏਕੈ ਏਕੀ ਨੇਤੈ ॥
दुखु नाही सभु सुखु ही है रे एकै एकी नेतै ॥
ऐसे भक्त एक ईश्वर को ही नयनों में बसाकर रखते हैं, उनके लिए कोई दुख नहीं होता अपितु सब सुख ही सुख मानते हैं।

ਬੁਰਾ ਨਹੀ ਸਭੁ ਭਲਾ ਹੀ ਹੈ ਰੇ ਹਾਰ ਨਹੀ ਸਭ ਜੇਤੈ ॥੧॥
बुरा नही सभु भला ही है रे हार नही सभ जेतै ॥१॥
उनके लिए कोई बुरा नहीं, सब भला ही भला है, वे सदैव विजय प्राप्त करते हैं और जीवन में कभी हार नहीं मानते॥१॥

ਸੋਗੁ ਨਾਹੀ ਸਦਾ ਹਰਖੀ ਹੈ ਰੇ ਛੋਡਿ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਲੇਤੈ ॥
सोगु नाही सदा हरखी है रे छोडि नाही किछु लेतै ॥
उनके लिए कोई गम नहीं, सदा खुशी ही रहती है और भक्ति के आनंद को छोड़कर कुछ भी नहीं लेते।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹੈ ਕਤ ਆਵੈ ਕਤ ਰਮਤੈ ॥੨॥੩॥੨੨॥
कहु नानक जनु हरि हरि हरि है कत आवै कत रमतै ॥२॥३॥२२॥
हे नानक ! हरि-भक्त हरि की भक्ति में लीन रहता है, वह कहाँ आता और कहाँ भटकता है अर्थात् आवागमन से मुक्त हो जाता है।॥२॥३॥२२॥

ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥

ਹੀਏ ਕੋ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਬਿਸਰਿ ਨ ਜਾਇ ॥
हीए को प्रीतमु बिसरि न जाइ ॥
मेरे हृदय से प्रियतम प्रभु भूल मत जाना,

ਤਨ ਮਨ ਗਲਤ ਭਏ ਤਿਹ ਸੰਗੇ ਮੋਹਨੀ ਮੋਹਿ ਰਹੀ ਮੋਰੀ ਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तन मन गलत भए तिह संगे मोहनी मोहि रही मोरी माइ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा तन मन उसी में लीन है, पर मोहिनी माया भी मुझे मोह रही है॥१॥रहाउ॥

ਜੈ ਜੈ ਪਹਿ ਕਹਉ ਬ੍ਰਿਥਾ ਹਉ ਅਪੁਨੀ ਤੇਊ ਤੇਊ ਗਹੇ ਰਹੇ ਅਟਕਾਇ ॥
जै जै पहि कहउ ब्रिथा हउ अपुनी तेऊ तेऊ गहे रहे अटकाइ ॥
जिस-जिसके पास अपनी व्यथा बताता हूँ, वही व्यक्ति को माया ने जकड़ा और अटका रखा है,

ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਕੀ ਏਕੈ ਜਾਲੀ ਤਾ ਕੀ ਗੰਠਿ ਨਹੀ ਛੋਰਾਇ ॥੧॥
अनिक भांति की एकै जाली ता की गंठि नही छोराइ ॥१॥
यह अनेक प्रकार का एक मायाजाल है, उसकी गांठ छुड़ाई नहीं जा सकती॥१॥

ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਆਇਓ ਸੰਤਨ ਹੀ ਸਰਨਾਇ ॥
फिरत फिरत नानक दासु आइओ संतन ही सरनाइ ॥
दास नानक भटक-भटक कर संत पुरुषों की शरण में आया है।

ਕਾਟੇ ਅਗਿਆਨ ਭਰਮ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਲੀਓ ਕੰਠਿ ਲਗਾਇ ॥੨॥੪॥੨੩॥
काटे अगिआन भरम मोह माइआ लीओ कंठि लगाइ ॥२॥४॥२३॥
उन्होंने मेरे अज्ञान, भ्रम, मोह-माया का जाल काटकर गले लगा लिया है॥२॥४॥२३॥

ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥

ਆਨਦ ਰੰਗ ਬਿਨੋਦ ਹਮਾਰੈ ॥
आनद रंग बिनोद हमारै ॥
हमारे यहाँ आनंद, खुशियाँ एवं हर्षोल्लास बन गया है।

ਨਾਮੋ ਗਾਵਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਨੁ ਨਾਮੁ ਹਮਾਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामो गावनु नामु धिआवनु नामु हमारे प्रान अधारै ॥१॥ रहाउ ॥
हम हरिनाम का गुण-गान करते हैं, नाम का ही ध्यान-मनन करते हैं और हरिनाम ही हमारे प्राणों का आधार है॥१॥रहाउ॥

ਨਾਮੋ ਗਿਆਨੁ ਨਾਮੁ ਇਸਨਾਨਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਮਾਰੇ ਕਾਰਜ ਸਵਾਰੈ ॥
नामो गिआनु नामु इसनाना हरि नामु हमारे कारज सवारै ॥
हरिनाम ही हमारा ज्ञान एवं स्नान है, हरिनाम का मनन हमारे सब कार्य सम्पन्न करता है।

ਹਰਿ ਨਾਮੋ ਸੋਭਾ ਨਾਮੁ ਬਡਾਈ ਭਉਜਲੁ ਬਿਖਮੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਤਾਰੈ ॥੧॥
हरि नामो सोभा नामु बडाई भउजलु बिखमु नामु हरि तारै ॥१॥
हरिनाम से ही शोभा एवं कीर्ति प्राप्त होती है, हरिनाम भयानक संसार-समुद्र से तारने वाला है।॥१॥

ਅਗਮ ਪਦਾਰਥ ਲਾਲ ਅਮੋਲਾ ਭਇਓ ਪਰਾਪਤਿ ਗੁਰ ਚਰਨਾਰੈ ॥
अगम पदारथ लाल अमोला भइओ परापति गुर चरनारै ॥
यह अगम्य, अमूल्य हरिनाम रूपी पदार्थ गुरु के चरणों में प्राप्त हुआ है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲਾ ਮਗਨ ਭਏ ਹੀਅਰੈ ਦਰਸਾਰੈ ॥੨॥੫॥੨੪॥
कहु नानक प्रभ भए क्रिपाला मगन भए हीअरै दरसारै ॥२॥५॥२४॥
हे नानक ! प्रभु की कृपा हुई तो हृदय में उसके दर्शन करके अन्तर्मन उसी में मग्न हो गया।॥२॥५॥२४॥

ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥

ਸਾਜਨ ਮੀਤ ਸੁਆਮੀ ਨੇਰੋ ॥
साजन मीत सुआमी नेरो ॥
हमारा सज्जन, मित्र, स्वामी निकट ही है।

ਪੇਖਤ ਸੁਨਤ ਸਭਨ ਕੈ ਸੰਗੇ ਥੋਰੈ ਕਾਜ ਬੁਰੋ ਕਹ ਫੇਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पेखत सुनत सभन कै संगे थोरै काज बुरो कह फेरो ॥१॥ रहाउ ॥
वह सबके साथ रहकर देखता एवं सुनता है, फिर छोटे से जीवन में भला क्यों बुरे काम करते हो॥१॥रहाउ॥

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜੇਤੋ ਲਪਟਾਇਓ ਕਛੂ ਨਹੀ ਨਾਹੀ ਕਛੁ ਤੇਰੋ ॥
नाम बिना जेतो लपटाइओ कछू नही नाही कछु तेरो ॥
हरिनाम स्मरण के बिना जितना भी दुनिया के रंगों में लिपटते हो, इनमें से कुछ भी तेरा नहीं।

ਆਗੈ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਆਵਤ ਸਭ ਪਰਗਟ ਈਹਾ ਮੋਹਿਓ ਭਰਮ ਅੰਧੇਰੋ ॥੧॥
आगै द्रिसटि आवत सभ परगट ईहा मोहिओ भरम अंधेरो ॥१॥
आगे परलोक में किए सब कर्म प्रगट हो जाते हैं, क्यों भ्रम के अंधेरे में यहाँ मोहित हो॥१॥

ਅਟਕਿਓ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ਸੰਗ ਮਾਇਆ ਦੇਵਨਹਾਰੁ ਦਾਤਾਰੁ ਬਿਸੇਰੋ ॥
अटकिओ सुत बनिता संग माइआ देवनहारु दातारु बिसेरो ॥
जीव अपने पुत्र, पत्नी एवं धन-दौलत में अटका हुआ है और देने वाले दाता को उसने भुला दिया है।

error: Content is protected !!