ਰਾਮਕਲੀ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੫
रामकली की वार महला ५
रामकली की वार महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਜੈਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੁਣੀਦਾ ਤੈਸੋ ਹੀ ਮੈ ਡੀਠੁ ॥
जैसा सतिगुरु सुणीदा तैसो ही मै डीठु ॥
जैसा सतिगुरु का यश सुना था, वैसा ही मैंने उसे देख लिया है।
ਵਿਛੁੜਿਆ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਕਾ ਬਸੀਠੁ ॥
विछुड़िआ मेले प्रभू हरि दरगह का बसीठु ॥
वह विछुड़े हुए जीवों को प्रभु से मिला देता है और हरि के दरबार का मध्यरथ है।
ਹਰਿ ਨਾਮੋ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਦਾ ਕਟੇ ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ॥
हरि नामो मंत्रु द्रिड़ाइदा कटे हउमै रोगु ॥
वह हरि-नाम का मंत्र जीवों को दृढ़ करवाता है और उनका अभिमान का रोग काट देता है।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਿਨਾ ਮਿਲਾਇਆ ਜਿਨਾ ਧੁਰੇ ਪਇਆ ਸੰਜੋਗੁ ॥੧॥
नानक सतिगुरु तिना मिलाइआ जिना धुरे पइआ संजोगु ॥१॥
नानक कहते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें ही सतिगुरु से मिलाया है, जिनकी तकदीर में ऐसा संयोग लिखा हुआ है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਇਕੁ ਸਜਣੁ ਸਭਿ ਸਜਣਾ ਇਕੁ ਵੈਰੀ ਸਭਿ ਵਾਦਿ ॥
इकु सजणु सभि सजणा इकु वैरी सभि वादि ॥
यदि एक ईश्वर मेरा सज्जन बन जाए तो सभी जीव मेरे सज्जन बन जाते हैं। यदि वह मेरा वैरी बन जाए तो सभी मुझसे झगड़ा करने लगते हैं।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੇਖਾਲਿਆ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸਭ ਬਾਦਿ ॥
गुरि पूरै देखालिआ विणु नावै सभ बादि ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे यह दिखा दिया है कि नाम के बिना सबकुछ व्यर्थ है।
ਸਾਕਤ ਦੁਰਜਨ ਭਰਮਿਆ ਜੋ ਲਗੇ ਦੂਜੈ ਸਾਦਿ ॥
साकत दुरजन भरमिआ जो लगे दूजै सादि ॥
जो द्वैतभाव के स्वाद में लगे रहे हैं, ऐसे दुष्ट शाक्त योनियों में ही भटकते रहे हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬੁਝਿਆ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਪਰਸਾਦਿ ॥੨॥
जन नानकि हरि प्रभु बुझिआ गुर सतिगुर कै परसादि ॥२॥
गुरु-सतगुरु के आशीर्वाद से नानक ने प्रभु को बूझ लिया है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਥਟਣਹਾਰੈ ਥਾਟੁ ਆਪੇ ਹੀ ਥਟਿਆ ॥
थटणहारै थाटु आपे ही थटिआ ॥
रचयिता परमेश्वर ने स्वयं ही जगत्-रचना की है।
ਆਪੇ ਪੂਰਾ ਸਾਹੁ ਆਪੇ ਹੀ ਖਟਿਆ ॥
आपे पूरा साहु आपे ही खटिआ ॥
स्वयं ही नाम रूपी धन का पूर्ण साहूकार है और उसने स्वयं ही नाम रूपी लाभ हासिल किया है।
ਆਪੇ ਕਰਿ ਪਾਸਾਰੁ ਆਪੇ ਰੰਗ ਰਟਿਆ ॥
आपे करि पासारु आपे रंग रटिआ ॥
वह स्वयं ही जगत्-प्रसार करके रंग तमाशों में प्रसन्न रहता है।
ਕੁਦਰਤਿ ਕੀਮ ਨ ਪਾਇ ਅਲਖ ਬ੍ਰਹਮਟਿਆ ॥
कुदरति कीम न पाइ अलख ब्रहमटिआ ॥
उस अलख ब्रह्म की कुदरत की सही कीमत ऑकी नहीं जा सकती।
ਅਗਮ ਅਥਾਹ ਬੇਅੰਤ ਪਰੈ ਪਰਟਿਆ ॥
अगम अथाह बेअंत परै परटिआ ॥
वह अगम्य, अथाह, अनंत एवं महान् है।
ਆਪੇ ਵਡ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਆਪਿ ਵਜੀਰਟਿਆ ॥
आपे वड पातिसाहु आपि वजीरटिआ ॥
वह स्वयं ही समूचे विश्व का बड़ा बादशाह है और स्वयं ही वजीर है।
ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੈ ਕੀਮ ਕੇਵਡੁ ਮਟਿਆ ॥
कोइ न जाणै कीम केवडु मटिआ ॥
कोई भी उसकी महिमा की कीमत नहीं जानता और न ही उसके धाम को जानता है।
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਆਪਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟਿਆ ॥੧॥
सचा साहिबु आपि गुरमुखि परगटिआ ॥१॥
वह सच्चा मालिक स्वयं ही अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए गुरु के माध्यम से प्रगट होता है॥ १॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਸੁਣਿ ਸਜਣ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮੇਰਿਆ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦੇਹੁ ਦਿਖਾਲਿ ॥
सुणि सजण प्रीतम मेरिआ मै सतिगुरु देहु दिखालि ॥
हे मेरे सज्जन, प्रियतम प्रभु ! सुनो; मुझे सतगुरु के दर्शन करवा दो।
ਹਉ ਤਿਸੁ ਦੇਵਾ ਮਨੁ ਆਪਣਾ ਨਿਤ ਹਿਰਦੈ ਰਖਾ ਸਮਾਲਿ ॥
हउ तिसु देवा मनु आपणा नित हिरदै रखा समालि ॥
मैं अपना मन उसे अर्पण कर दूँगा और नित्य ही हृदय में उसे स्मरण करता रहूँगा।
ਇਕਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਹਰਾ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਸੰਸਾਰਿ ॥
इकसु सतिगुर बाहरा ध्रिगु जीवणु संसारि ॥
एक सतगुरु के बिना संसार में जीना धिक्कार योग्य है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਿਨਾ ਮਿਲਾਇਓਨੁ ਜਿਨ ਸਦ ਹੀ ਵਰਤੈ ਨਾਲਿ ॥੧॥
जन नानक सतिगुरु तिना मिलाइओनु जिन सद ही वरतै नालि ॥१॥
हे नानक ! सच्चा गुरु उन्हें ही मिला है, जिनके साथ प्रभु रहता है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਲੋਚਾ ਮਿਲਣ ਕੀ ਕਿਉ ਪਾਵਾ ਪ੍ਰਭ ਤੋਹਿ ॥
मेरै अंतरि लोचा मिलण की किउ पावा प्रभ तोहि ॥
हे प्रभु! मेरे अन्तर्मन में तुझे मिलने की तीव्र लालसा है, मैं तुझे कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?”
ਕੋਈ ਐਸਾ ਸਜਣੁ ਲੋੜਿ ਲਹੁ ਜੋ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮੋਹਿ ॥
कोई ऐसा सजणु लोड़ि लहु जो मेले प्रीतमु मोहि ॥
कोई ऐसा सज्जन ढूंढना है, जो मुझे प्रियतम से मिला दे।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਲਾਇਆ ਜਤ ਦੇਖਾ ਤਤ ਸੋਇ ॥
गुरि पूरै मेलाइआ जत देखा तत सोइ ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे परमात्मा से मिला दिया है, अब जिधर भी देखता हूँ, उधर ही वह नजर आता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸੇਵਿਆ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੨॥
जन नानक सो प्रभु सेविआ तिसु जेवडु अवरु न कोइ ॥२॥
नानक ने उस प्रभु की उपासना की है, जिस जैसा महान् अन्य कोई नहीं है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਦੇਵਣਹਾਰੁ ਦਾਤਾਰੁ ਕਿਤੁ ਮੁਖਿ ਸਾਲਾਹੀਐ ॥
देवणहारु दातारु कितु मुखि सालाहीऐ ॥
सर्व सुख देने वाले उस दातार की किस मुख से प्रशंसा की जाए ?
ਜਿਸੁ ਰਖੈ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਰਿਜਕੁ ਸਮਾਹੀਐ ॥
जिसु रखै किरपा धारि रिजकु समाहीऐ ॥
वह अपनी कृपा करके जिसकी रक्षा करता है, उसे भोजन भी वही पहुँचाता है।
ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਹੀ ਵਸਿ ਸਭਨਾ ਇਕ ਧਰ ॥
कोइ न किस ही वसि सभना इक धर ॥
एक परमात्मा ही सबका आधार है और कोई भी जीव किसी के वश नहीं है।
ਪਾਲੇ ਬਾਲਕ ਵਾਗਿ ਦੇ ਕੈ ਆਪਿ ਕਰ ॥
पाले बालक वागि दे कै आपि कर ॥
वह स्वयं ही अपना हाथ देकर सब जीवों का बालक की तरह पोषण करता है।
ਕਰਦਾ ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਣੀਐ ॥
करदा अनद बिनोद किछू न जाणीऐ ॥
वह स्वयं ही आनंद-विनोद अनेक लीलाएं करता रहता है, जिसका ज्ञान जीवों को नहीं होता।
ਸਰਬ ਧਾਰ ਸਮਰਥ ਹਉ ਤਿਸੁ ਕੁਰਬਾਣੀਐ ॥
सरब धार समरथ हउ तिसु कुरबाणीऐ ॥
मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ, जो सर्वकला समर्थ एवं सबका जीवनाधार है।
ਗਾਈਐ ਰਾਤਿ ਦਿਨੰਤੁ ਗਾਵਣ ਜੋਗਿਆ ॥
गाईऐ राति दिनंतु गावण जोगिआ ॥
हमें रात-दिन उसका गुणगान करते रहना चाहिए चूंकि वही स्तुति योग्य है।
ਜੋ ਗੁਰ ਕੀ ਪੈਰੀ ਪਾਹਿ ਤਿਨੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਭੋਗਿਆ ॥੨॥
जो गुर की पैरी पाहि तिनी हरि रसु भोगिआ ॥२॥
जो व्यक्ति गुरु के चरणों में आ पड़े हैं, उन्होंने ही नाम रूपी हरि-रस भोगा है। २॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਭੀੜਹੁ ਮੋਕਲਾਈ ਕੀਤੀਅਨੁ ਸਭ ਰਖੇ ਕੁਟੰਬੈ ਨਾਲਿ ॥
भीड़हु मोकलाई कीतीअनु सभ रखे कुट्मबै नालि ॥
परमेश्वर ने परिवार सहित हमारी रक्षा की है और दुख संकटों से निकाल कर सुखी कर दिया है।
ਕਾਰਜ ਆਪਿ ਸਵਾਰਿਅਨੁ ਸੋ ਪ੍ਰਭ ਸਦਾ ਸਭਾਲਿ ॥
कारज आपि सवारिअनु सो प्रभ सदा सभालि ॥
उसने स्वयं ही हमारे सभी कार्य संवार दिए हैं, उस प्रभु का हम सदैव ध्यान करते हैं।
ਪ੍ਰਭੁ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਕੰਠਿ ਲਾਇਦਾ ਲਹੁੜੇ ਬਾਲਕ ਪਾਲਿ ॥
प्रभु मात पिता कंठि लाइदा लहुड़े बालक पालि ॥
प्रभु माता-पिता की तरह हमें गले से लगाकर रखता है और छोटे बालक की तरह पोषण करता रहता है।
ਦਇਆਲ ਹੋਏ ਸਭ ਜੀਅ ਜੰਤ੍ਰ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥
दइआल होए सभ जीअ जंत्र हरि नानक नदरि निहाल ॥१॥
सभी जीव-जंतु दयालु हो गए हैं, हे नानक ! परमेश्वर ने कृपा-दृष्टि करके निहाल कर दिया है॥ १॥
