Hindi Page 1027

ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਲੈ ਜਗਿ ਆਇਆ ॥
चारि पदारथ लै जगि आइआ ॥
धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष-चार पदार्थों की कामना लेकर वह जगत् में आया,

ਸਿਵ ਸਕਤੀ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਇਆ ॥
सिव सकती घरि वासा पाइआ ॥
लेकिन जीव ने माया के जग रूपी घर में निवास पा लिया।

ਏਕੁ ਵਿਸਾਰੇ ਤਾ ਪਿੜ ਹਾਰੇ ਅੰਧੁਲੈ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਾ ਹੇ ॥੬॥
एकु विसारे ता पिड़ हारे अंधुलै नामु विसारा हे ॥६॥
जब कोई ईश्वर को भुला देता है तो वह अपनी जीवन बाजी हार जाता है। अन्धे जीव ने नाम को भुला दिया है॥ ६॥

ਬਾਲਕੁ ਮਰੈ ਬਾਲਕ ਕੀ ਲੀਲਾ ॥
बालकु मरै बालक की लीला ॥
अकस्मात् जब बालक की जीवन-लीला समाप्त हो जाती है तो परिवार वाले उसकी नटखट लीला को याद करते हैं।

ਕਹਿ ਕਹਿ ਰੋਵਹਿ ਬਾਲੁ ਰੰਗੀਲਾ ॥
कहि कहि रोवहि बालु रंगीला ॥
वे यह कह-कहकर विलाप करते हैं कि बालक बड़ा रंगीला था।

ਜਿਸ ਕਾ ਸਾ ਸੋ ਤਿਨ ਹੀ ਲੀਆ ਭੂਲਾ ਰੋਵਣਹਾਰਾ ਹੇ ॥੭॥
जिस का सा सो तिन ही लीआ भूला रोवणहारा हे ॥७॥
मगर रोने वाला इस सत्य को समझने की भूल करता है कि जिस (ईश्वर) का था, उसने ही उसे ले लिया है। ७॥

ਭਰਿ ਜੋਬਨਿ ਮਰਿ ਜਾਹਿ ਕਿ ਕੀਜੈ ॥
भरि जोबनि मरि जाहि कि कीजै ॥
अगर कोई भरी जवानी में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसके परिवार वाले क्या करते हैं।

ਮੇਰਾ ਮੇਰਾ ਕਰਿ ਰੋਵੀਜੈ ॥
मेरा मेरा करि रोवीजै ॥
वे उसे ‘मेरा-मेरा’ कहकर रोते रहते हैं।

ਮਾਇਆ ਕਾਰਣਿ ਰੋਇ ਵਿਗੂਚਹਿ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਸੰਸਾਰਾ ਹੇ ॥੮॥
माइआ कारणि रोइ विगूचहि ध्रिगु जीवणु संसारा हे ॥८॥
इस प्रकार माया के कारण सब रोते हैं और ख्वार होते हैं। संसार का ऐसा जीवन धिक्कार योग्य है॥ ८॥

ਕਾਲੀ ਹੂ ਫੁਨਿ ਧਉਲੇ ਆਏ ॥
काली हू फुनि धउले आए ॥
काले केशों से फिर सफेद बाल आ गए अर्थात् बुढ़ापा आ गया है।

ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਗਥੁ ਗਇਆ ਗਵਾਏ ॥
विणु नावै गथु गइआ गवाए ॥
नाम के बिना वह अपनी जीवन-पूँजी व्यर्थ गवां कर चला जाता है।

ਦੁਰਮਤਿ ਅੰਧੁਲਾ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸੈ ਮੂਠੇ ਰੋਇ ਪੂਕਾਰਾ ਹੇ ॥੯॥
दुरमति अंधुला बिनसि बिनासै मूठे रोइ पूकारा हे ॥९॥
खोटी बुद्धि वाला ज्ञानहीन जीव बहुत बुरी तरह है और ठगे जाने पर रोता-चिल्लाता है॥९॥

ਆਪੁ ਵੀਚਾਰਿ ਨ ਰੋਵੈ ਕੋਈ ॥
आपु वीचारि न रोवै कोई ॥
जो अपने आप का विचार करता है, ऐसा नहीं रोता।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
सतिगुरु मिलै त सोझी होई ॥
यदि सतगुरु मेिल जाए तो ही सूझ प्राप्त होती है।

ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਬਜਰ ਕਪਾਟ ਨ ਖੂਲਹਿ ਸਬਦਿ ਮਿਲੈ ਨਿਸਤਾਰਾ ਹੇ ॥੧੦॥
बिनु गुर बजर कपाट न खूलहि सबदि मिलै निसतारा हे ॥१०॥
गुरु के बिना वज्र कपाट नहीं खुलते और मुक्ति तो शब्द द्वारा ही मिलती है॥ १०॥

ਬਿਰਧਿ ਭਇਆ ਤਨੁ ਛੀਜੈ ਦੇਹੀ ॥
बिरधि भइआ तनु छीजै देही ॥
जब आदमी वृद्ध हो गया, शरीर भी कमजोर हो गया तब

ਰਾਮੁ ਨ ਜਪਈ ਅੰਤਿ ਸਨੇਹੀ ॥
रामु न जपई अंति सनेही ॥
व्यक्ति हरि-नाम को भुलाकर तिरस्कृत होकर चला जाता है,

ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਚਲੈ ਮੁਹਿ ਕਾਲੈ ਦਰਗਹ ਝੂਠੁ ਖੁਆਰਾ ਹੇ ॥੧੧॥
नामु विसारि चलै मुहि कालै दरगह झूठु खुआरा हे ॥११॥
प्रभु-दरबार में उसका झूठ उसे ख्यार करता है॥ ११॥

ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਚਲੈ ਕੂੜਿਆਰੋ ॥
नामु विसारि चलै कूड़िआरो ॥
मिथ्यावादी जीव नाम को भुलाकर जग से खाली हाथ चला जाता है,

ਆਵਤ ਜਾਤ ਪੜੈ ਸਿਰਿ ਛਾਰੋ ॥
आवत जात पड़ै सिरि छारो ॥
जिसके फलस्वरूप उसके सिर पर धूल ही पड़ती है अर्थात् अपमानित होता है और जन्म-मरण के चक्र में पड़ जाता है।

ਸਾਹੁਰੜੈ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਨ ਪਾਏ ਪੇਈਅੜੈ ਸਿਰਿ ਮਾਰਾ ਹੇ ॥੧੨॥
साहुरड़ै घरि वासु न पाए पेईअड़ै सिरि मारा हे ॥१२॥
जो जीव-स्त्री अपने पोहर अर्थात् इहलोक में सिर पर यम की चोटें खाती रहती है, उसे अपने ससुराल अर्थात् परलोक में निवास प्राप्त नहीं होता॥ १२॥

ਖਾਜੈ ਪੈਝੈ ਰਲੀ ਕਰੀਜੈ ॥
खाजै पैझै रली करीजै ॥
मनुष्य बढ़िया खाता-पीता, पहनता और आनंद करता है किन्तु

ਬਿਨੁ ਅਭ ਭਗਤੀ ਬਾਦਿ ਮਰੀਜੈ ॥
बिनु अभ भगती बादि मरीजै ॥
मन से भक्ति के बिना जीवन व्यर्थ गवा कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

ਸਰ ਅਪਸਰ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ਜਮੁ ਮਾਰੇ ਕਿਆ ਚਾਰਾ ਹੇ ॥੧੩॥
सर अपसर की सार न जाणै जमु मारे किआ चारा हे ॥१३॥
यह अच्छे बुरे का महत्व नहीं जानता, लेकिन जब यम उसे मारता है तो उसका कोई चारा नहीं चलता॥ १३॥

ਪਰਵਿਰਤੀ ਨਰਵਿਰਤਿ ਪਛਾਣੈ ॥
परविरती नरविरति पछाणै ॥
जो व्यक्ति प्रवृति एवं निवृति को पहचान लेता है,

ਗੁਰ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸਬਦਿ ਘਰੁ ਜਾਣੈ ॥
गुर कै संगि सबदि घरु जाणै ॥
गुरु के संग रहकर शब्द को जान लेता है,

ਕਿਸ ਹੀ ਮੰਦਾ ਆਖਿ ਨ ਚਲੈ ਸਚਿ ਖਰਾ ਸਚਿਆਰਾ ਹੇ ॥੧੪॥
किस ही मंदा आखि न चलै सचि खरा सचिआरा हे ॥१४॥
वह धर्म-मार्ग पर चलता हुआ किसी को बुरा नहीं कहता और सत्य के भेद को समझकर सत्यवादी ही माना जाता है।॥१४॥

ਸਾਚ ਬਿਨਾ ਦਰਿ ਸਿਝੈ ਨ ਕੋਈ ॥
साच बिना दरि सिझै न कोई ॥
सत्य के बिना कोई भी अपने मनोरथ में सफल नहीं होता और

ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਪੈਝੈ ਪਤਿ ਹੋਈ ॥
साच सबदि पैझै पति होई ॥
शब्द के ज्ञान द्वारा ही शोभा हासिल होती है।

ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਲਏ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰਾ ਹੇ ॥੧੫॥
आपे बखसि लए तिसु भावै हउमै गरबु निवारा हे ॥१५॥
यदि परमात्मा को मंजूर हो तो वह स्वयं ही क्षमा कर देता है और अभिमान घमण्ड का निवारण कर देता है॥ १५॥

ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥
गुर किरपा ते हुकमु पछाणै ॥
गुरु की कृपा से जीव ईश्वरेच्छा को पहचान लेता है और

ਜੁਗਹ ਜੁਗੰਤਰ ਕੀ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
जुगह जुगंतर की बिधि जाणै ॥
युग-युगान्तर से चली आ रही प्रभु-मिलन की विधि को जान लेता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਤਰੁ ਤਾਰੀ ਸਚੁ ਤਾਰੇ ਤਾਰਣਹਾਰਾ ਹੇ ॥੧੬॥੧॥੭॥
नानक नामु जपहु तरु तारी सचु तारे तारणहारा हे ॥१६॥१॥७॥
हे नानक ! परमात्मा का नाम जपते रहो; तो ही संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है और वह परम-सत्य परमेश्वर ही मोक्षदाता है॥ १६॥ १॥ ७॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਹਰਿ ਸਾ ਮੀਤੁ ਨਾਹੀ ਮੈ ਕੋਈ ॥
हरि सा मीतु नाही मै कोई ॥
ईश्वर जैसा मित्र मेरा कोई नहीं है,

ਜਿਨਿ ਤਨੁ ਮਨੁ ਦੀਆ ਸੁਰਤਿ ਸਮੋਈ ॥
जिनि तनु मनु दीआ सुरति समोई ॥
जिसने मुझे तन-मन दिया और मेरे भीतर सुरति डाल दी।

ਸਰਬ ਜੀਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿ ਸਮਾਲੇ ਸੋ ਅੰਤਰਿ ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਹੇ ॥੧॥
सरब जीआ प्रतिपालि समाले सो अंतरि दाना बीना हे ॥१॥
सब जीवों का पोषक, देखमाल करने वाला वह चतुर प्रभु अन्तर्मन में ही बसा हुआ है। १॥

ਗੁਰੁ ਸਰਵਰੁ ਹਮ ਹੰਸ ਪਿਆਰੇ ॥
गुरु सरवरु हम हंस पिआरे ॥
गुरु नामामृत का सरोवर है और हम उसके प्यारे हंस हैं।

ਸਾਗਰ ਮਹਿ ਰਤਨ ਲਾਲ ਬਹੁ ਸਾਰੇ ॥
सागर महि रतन लाल बहु सारे ॥
गुरु रूपी गुणों के सागर में बहुत सारे रत्न एवं लाल मौजूद हैं।

ਮੋਤੀ ਮਾਣਕ ਹੀਰਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵਤ ਮਨੁ ਤਨੁ ਭੀਨਾ ਹੇ ॥੨॥
मोती माणक हीरा हरि जसु गावत मनु तनु भीना हे ॥२॥
प्रभु का यशगान ही मोती, माणिक्य एवं हीरा है, जिससे मन-तन भीग गया है॥ २॥

ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਹੁ ਅਗਾਧਿ ਨਿਰਾਲਾ ॥
हरि अगम अगाहु अगाधि निराला ॥
ईश्वर अगम्य, अथाह, असीम एवं बड़ा निराला है, उसका अंत नहीं पाया जा सकता।

ਹਰਿ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥
हरि अंतु न पाईऐ गुर गोपाला ॥
मुक्तिदाता सतिगुरु के उपदेश द्वारा उद्धार कर देता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਮਤਿ ਤਾਰੇ ਤਾਰਣਹਾਰਾ ਮੇਲਿ ਲਏ ਰੰਗਿ ਲੀਨਾ ਹੇ ॥੩॥
सतिगुर मति तारे तारणहारा मेलि लए रंगि लीना हे ॥३॥
वह जिसे साथ मिला लेता है, वह उसके प्रेम में लीन हो जाता है॥ ३॥

ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਮੁਕਤਿ ਕਿਨੇਹੀ ॥
सतिगुर बाझहु मुकति किनेही ॥
सतिगुरु के बिना किसी को भी मुक्ति नहीं मिलती,

ਓਹੁ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਰਾਮ ਸਨੇਹੀ ॥
ओहु आदि जुगादी राम सनेही ॥
वह आदि-युगादि से ईश्वर का प्रिय मित्र है।

ਦਰਗਹ ਮੁਕਤਿ ਕਰੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਬਖਸੇ ਅਵਗੁਣ ਕੀਨਾ ਹੇ ॥੪॥
दरगह मुकति करे करि किरपा बखसे अवगुण कीना हे ॥४॥
वह कृपा करके अवगुणों से क्षमा करके ईश्वर के दरबार में मुक्ति प्रदान करवा देता है ॥४॥

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