Hindi Page 978

ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਹੋ ਮੇਲਿ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो हो मेलि निहाल ॥१॥ रहाउ ॥
हे हरि ! यदि उससे मेरा मिलाप हो जाए तो मैं आनंदित हो जाऊँगा।॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਗੁਰ ਸੰਤਿ ਬਤਾਇਓ ਗੁਰਿ ਚਾਲ ਦਿਖਾਈ ਹਰਿ ਚਾਲ ॥
हरि का मारगु गुर संति बताइओ गुरि चाल दिखाई हरि चाल ॥
गुरु-संत ने मुझे मिलन का मार्ग बता दिया है और उसने मुझे मार्गदर्शन कर दिया है।

ਅੰਤਰਿ ਕਪਟੁ ਚੁਕਾਵਹੁ ਮੇਰੇ ਗੁਰਸਿਖਹੁ ਨਿਹਕਪਟ ਕਮਾਵਹੁ ਹਰਿ ਕੀ ਹਰਿ ਘਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥
अंतरि कपटु चुकावहु मेरे गुरसिखहु निहकपट कमावहु हरि की हरि घाल निहाल निहाल निहाल ॥१॥
हे मेरे गुरु के शिष्यो ! अपने मन का कपट दूर कर दो, निष्कपट होकर हरि की भक्ति करो और निहाल हो जाओ॥ १॥

ਤੇ ਗੁਰ ਕੇ ਸਿਖ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਭਾਏ ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨਿਓ ਮੇਰਾ ਨਾਲਿ ॥
ते गुर के सिख मेरे हरि प्रभि भाए जिना हरि प्रभु जानिओ मेरा नालि ॥
वही गुरु के शिष्य मेरे प्रभु को प्रिय लगे हैं, जिन्होंने उसे अपने साथ जान लिया है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਮਤਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਦੀਨੀ ਹਰਿ ਦੇਖਿ ਨਿਕਟਿ ਹਦੂਰਿ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥੩॥੯॥
जन नानक कउ मति हरि प्रभि दीनी हरि देखि निकटि हदूरि निहाल निहाल निहाल निहाल ॥२॥३॥९॥
प्रभु ने नानक को सुमति दी है और वह हरि को आसपास देख कर नित्य निहाल रहता है।२॥ ३॥ ६॥

ਰਾਗੁ ਨਟ ਨਾਰਾਇਨ ਮਹਲਾ ੫
रागु नट नाराइन महला ५
रागु नट नाराइन महला ५

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਰਾਮ ਹਉ ਕਿਆ ਜਾਨਾ ਕਿਆ ਭਾਵੈ ॥
राम हउ किआ जाना किआ भावै ॥
हे राम ! मुझे क्या मालूम कि तुझे क्या रुचता है।

ਮਨਿ ਪਿਆਸ ਬਹੁਤੁ ਦਰਸਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनि पिआस बहुतु दरसावै ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे मन में तो तेरे दर्शन की तीव्र लालसा है॥ १॥ रहाउ॥

ਸੋਈ ਗਿਆਨੀ ਸੋਈ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ਜਿਸੁ ਊਪਰਿ ਰੁਚ ਆਵੈ ॥
सोई गिआनी सोई जनु तेरा जिसु ऊपरि रुच आवै ॥
वही ज्ञानी है, वही तेरा परम भक्त है, जिस पर तेरी अनुकंपा होती है।

ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਜਿਸੁ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਸੋ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੁਧੁ ਧਿਆਵੈ ॥੧॥
क्रिपा करहु जिसु पुरख बिधाते सो सदा सदा तुधु धिआवै ॥१॥
हे विधाता ! जिस व्यक्ति पर तू कृपा करता है, वह सदा तेरा चिंतन करता रहता है।॥ १॥

ਕਵਨ ਜੋਗ ਕਵਨ ਗਿਆਨ ਧਿਆਨਾ ਕਵਨ ਗੁਨੀ ਰੀਝਾਵੈ ॥
कवन जोग कवन गिआन धिआना कवन गुनी रीझावै ॥
वह कौन-सा योग, ज्ञान-ध्यान एवं कौन से गुण हैं, जिससे तू प्रसन्न होता है।

ਸੋਈ ਜਨੁ ਸੋਈ ਨਿਜ ਭਗਤਾ ਜਿਸੁ ਊਪਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਵੈ ॥੨॥
सोई जनु सोई निज भगता जिसु ऊपरि रंगु लावै ॥२॥
वही व्यक्ति तेरा दास और तेरा अपना भक्त है, जिसे तू अपना प्रेम लगा देता है॥ २॥

ਸਾਈ ਮਤਿ ਸਾਈ ਬੁਧਿ ਸਿਆਨਪ ਜਿਤੁ ਨਿਮਖ ਨ ਪ੍ਰਭੁ ਬਿਸਰਾਵੈ ॥
साई मति साई बुधि सिआनप जितु निमख न प्रभु बिसरावै ॥
वही मति, वही बुद्धि-चतुराई ठीक है, जिससे एक पल भर भी प्रभु विस्मृत नहीं होता।

ਸੰਤਸੰਗਿ ਲਗਿ ਏਹੁ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਗੁਨ ਸਦ ਹੀ ਗਾਵੈ ॥੩॥
संतसंगि लगि एहु सुखु पाइओ हरि गुन सद ही गावै ॥३॥
जिसने संतों के संग मिलकर यह सुख प्राप्त कर लिया है, वह सदा ही प्रभु के गुण गाता रहता है॥ ३॥

ਦੇਖਿਓ ਅਚਰਜੁ ਮਹਾ ਮੰਗਲ ਰੂਪ ਕਿਛੁ ਆਨ ਨਹੀ ਦਿਸਟਾਵੈ ॥
देखिओ अचरजु महा मंगल रूप किछु आन नही दिसटावै ॥
जिसने महामंगल रूप अद्भुत परमेश्वर के दर्शन कर लिए हैं, उसे अन्य कोई भी नजर नहीं आता।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੋਰਚਾ ਗੁਰਿ ਲਾਹਿਓ ਤਹ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਕਹ ਆਵੈ ॥੪॥੧॥
कहु नानक मोरचा गुरि लाहिओ तह गरभ जोनि कह आवै ॥४॥१॥
हे नानक ! गुरु ने जिस के मन से अभिमान रूपी मैल निकाल दिया है, वह गर्भ-योनि के चक्र में नहीं आता॥ ४॥ १॥

ਨਟ ਨਾਰਾਇਨ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ
नट नाराइन महला ५ दुपदे
नट नाराइन महला ५ दुपदे

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਉਲਾਹਨੋ ਮੈ ਕਾਹੂ ਨ ਦੀਓ ॥
उलाहनो मै काहू न दीओ ॥
हे परमेश्वर ! मैंने किसी को शिकायत तक नहीं की,

ਮਨ ਮੀਠ ਤੁਹਾਰੋ ਕੀਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन मीठ तुहारो कीओ ॥१॥ रहाउ ॥
अपितु तेरा किया ही मेरे मन को मीठा लगता है॥ १॥ रहाउ॥

ਆਗਿਆ ਮਾਨਿ ਜਾਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸੁਨਿ ਸੁਨਿ ਨਾਮੁ ਤੁਹਾਰੋ ਜੀਓ ॥
आगिआ मानि जानि सुखु पाइआ सुनि सुनि नामु तुहारो जीओ ॥
तेरी आज्ञा का पालन करके मुझे परम सुख उपलब्ध हुआ है और तेरा नाम सुन-सुनकर ही जीवन पा रहा हूँ।

ਈਹਾਂ ਊਹਾ ਹਰਿ ਤੁਮ ਹੀ ਤੁਮ ਹੀ ਇਹੁ ਗੁਰ ਤੇ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜੀਓ ॥੧॥
ईहां ऊहा हरि तुम ही तुम ही इहु गुर ते मंत्रु द्रिड़ीओ ॥१॥
हे हरि ! मैंने गुरु से मंत्र लेकर मन में दृढ़ कर लिया है कि लोक-परलोक सर्वत्र तू ही तू है॥ १॥

ਜਬ ਤੇ ਜਾਨਿ ਪਾਈ ਏਹ ਬਾਤਾ ਤਬ ਕੁਸਲ ਖੇਮ ਸਭ ਥੀਓ ॥
जब ते जानि पाई एह बाता तब कुसल खेम सभ थीओ ॥
जब से मैंने यह बात जान ली है, तब से सब कुशल क्षेम है।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਪਰਗਾਸਿਓ ਆਨ ਨਾਹੀ ਰੇ ਬੀਓ ॥੨॥੧॥੨॥
साधसंगि नानक परगासिओ आन नाही रे बीओ ॥२॥१॥२॥
हे नानक ! साधुओं की संगति में यह प्रकाश हो गया है कि सत्य के अतिरिक्त कोई नहीं है॥२॥१॥२॥

ਨਟ ਮਹਲਾ ੫ ॥
नट महला ५ ॥
नट महला ५॥

ਜਾ ਕਉ ਭਈ ਤੁਮਾਰੀ ਧੀਰ ॥
जा कउ भई तुमारी धीर ॥
हे परमात्मा ! जिसे तूने सहनशक्ति प्रदान की है,

ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਮਿਟੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਨਿਕਸੀ ਹਉਮੈ ਪੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जम की त्रास मिटी सुखु पाइआ निकसी हउमै पीर ॥१॥ रहाउ ॥
उसका यम का डर मिट गया है, उसकी अभिमान की पीड़ा निकल कर सुख उपलब्ध हो गया है॥ १॥ रहाउ॥

ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਨੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ਤ੍ਰਿਪਤੇ ਜਿਉ ਬਾਰਿਕ ਖੀਰ ॥
तपति बुझानी अम्रित बानी त्रिपते जिउ बारिक खीर ॥
अमृतमय-वाणी ने सारी जलन बुझा दी है और मन ऐसे तृप्त हो गया है जैसे बालक दुग्धपान से तृप्त होता है।

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸਾਜਨ ਸੰਤ ਮੇਰੇ ਸੰਤ ਸਹਾਈ ਬੀਰ ॥੧॥
मात पिता साजन संत मेरे संत सहाई बीर ॥१॥
संतजन ही मेरे माता-पिता, सज्जन एवं सहायता करने वाले भाई हैं।॥१॥

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