Hindi Page 709

ਹੋਇ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸਰੀਰੁ ਚਰਨਾ ਧੂਰੀਐ ॥
होइ पवित्र सरीरु चरना धूरीऐ ॥
तेरी चरण-धूलि मिलने से मेरा यह शरीर पवित्र-पावन हो सकता है।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰਦੇਵ ਸਦਾ ਹਜੂਰੀਐ ॥੧੩॥
पारब्रहम गुरदेव सदा हजूरीऐ ॥१३॥
हे परब्रह्म, हे गुरुदेव ! करुणा करो ताकि मैं सर्वदा ही तेरी उपासना में उपस्थित रह सकूं ॥ १३॥

ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक॥

ਰਸਨਾ ਉਚਰੰਤਿ ਨਾਮੰ ਸ੍ਰਵਣੰ ਸੁਨੰਤਿ ਸਬਦ ਅੰਮ੍ਰਿਤਹ ॥
रसना उचरंति नामं स्रवणं सुनंति सबद अम्रितह ॥
जो अपनी रसना से परमेश्वर का नाम उच्चारित करते हैं, अपने कानों से अमृत शब्द सुनते रहते हैं।

ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੰ ਜਿਨਾ ਧਿਆਨੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਣਹ ॥੧॥
नानक तिन सद बलिहारं जिना धिआनु पारब्रहमणह ॥१॥
हे नानक ! मैं उन पर सर्वदा ही कुर्बान जाता हूँ, जिनका ध्यान परब्रह्म में लगा रहता है॥ १॥

ਹਭਿ ਕੂੜਾਵੇ ਕੰਮ ਇਕਸੁ ਸਾਈ ਬਾਹਰੇ ॥
हभि कूड़ावे कम इकसु साई बाहरे ॥
एक परमात्मा की भक्ति के बिना सभी कर्म झूठे हैं।

ਨਾਨਕ ਸੇਈ ਧੰਨੁ ਜਿਨਾ ਪਿਰਹੜੀ ਸਚ ਸਿਉ ॥੨॥
नानक सेई धंनु जिना पिरहड़ी सच सिउ ॥२॥
हे नानक ! वही इन्सान भाग्यवान् हैं, जिनका परम-सत्य परमेश्वर के साथ अटूट स्नेह बना हुआ है॥ २ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨਾ ਜਿ ਸੁਨਤੇ ਹਰਿ ਕਥਾ ॥
सद बलिहारी तिना जि सुनते हरि कथा ॥
गुरु साहिब का फरमान है कि मैं उन महापुरुषों पर सदैव कुर्बान जाता हूँ, जो हरि-कथा सुनते रहते हैं।

ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਰਧਾਨ ਨਿਵਾਵਹਿ ਪ੍ਰਭ ਮਥਾ ॥
पूरे ते परधान निवावहि प्रभ मथा ॥
ऐसे महान् एवं पूर्ण गुणवान ही भगवान के समक्ष अपना शीश निवाते हैं।

ਹਰਿ ਜਸੁ ਲਿਖਹਿ ਬੇਅੰਤ ਸੋਹਹਿ ਸੇ ਹਥਾ ॥
हरि जसु लिखहि बेअंत सोहहि से हथा ॥
उनके वे हाथ अत्यंत सुन्दर हैं जो बेअंत हरि का यश लिखते हैं।

ਚਰਨ ਪੁਨੀਤ ਪਵਿਤ੍ਰ ਚਾਲਹਿ ਪ੍ਰਭ ਪਥਾ ॥
चरन पुनीत पवित्र चालहि प्रभ पथा ॥
जो चरण प्रभु के मार्ग पर चलते हैं, वे बड़े पवित्र एवं पावन हैं।

ਸੰਤਾਂ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰੁ ਸਗਲਾ ਦੁਖੁ ਲਥਾ ॥੧੪॥
संतां संगि उधारु सगला दुखु लथा ॥१४॥
संतों-महापुरुषों की संगति करने से ही मनुष्य का कल्याण होता है और सभी दुःख दूर हो जाते हैं।॥ १४॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥

ਭਾਵੀ ਉਦੋਤ ਕਰਣੰ ਹਰਿ ਰਮਣੰ ਸੰਜੋਗ ਪੂਰਨਹ ॥
भावी उदोत करणं हरि रमणं संजोग पूरनह ॥
पूर्ण संयोग से जिस मनुष्य का भाग्य उदय होता है, वही भगवान का सिमरन करता है।

ਗੋਪਾਲ ਦਰਸ ਭੇਟੰ ਸਫਲ ਨਾਨਕ ਸੋ ਮਹੂਰਤਹ ॥੧॥
गोपाल दरस भेटं सफल नानक सो महूरतह ॥१॥
हे नानक ! वह मुहूर्त फलदायक एवं शुभ है, जब जगतपालक परमेश्वर के दर्शन होते हैं।॥ १॥

ਕੀਮ ਨ ਸਕਾ ਪਾਇ ਸੁਖ ਮਿਤੀ ਹੂ ਬਾਹਰੇ ॥
कीम न सका पाइ सुख मिती हू बाहरे ॥
उसने मुझे आशा से भी अधिक अनन्त सुख प्रदान किए हैं, अतः मैं उसका मूल्यांकन नहीं कर सकता।

ਨਾਨਕ ਸਾ ਵੇਲੜੀ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਤੁ ਮਿਲੰਦੜੋ ਮਾ ਪਿਰੀ ॥੨॥
नानक सा वेलड़ी परवाणु जितु मिलंदड़ो मा पिरी ॥२॥
हे नानक ! वह शुभ समय परवान है, जब मुझे मेरा प्रिय-परमेश्वर मिल जाता है॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਸਾ ਵੇਲਾ ਕਹੁ ਕਉਣੁ ਹੈ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਪਾਈ ॥
सा वेला कहु कउणु है जितु प्रभ कउ पाई ॥
बताओ, वह कौन-सा समय है, जब प्रभु की प्राप्ति होती है।

ਸੋ ਮੂਰਤੁ ਭਲਾ ਸੰਜੋਗੁ ਹੈ ਜਿਤੁ ਮਿਲੈ ਗੁਸਾਈ ॥
सो मूरतु भला संजोगु है जितु मिलै गुसाई ॥
वही मुहूर्त व भला संयोग है, जब परमेश्वर प्राप्त होता है।

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਕੈ ਮਨ ਇਛ ਪੁਜਾਈ ॥
आठ पहर हरि धिआइ कै मन इछ पुजाई ॥
उस हरि का आठ प्रहर सिमरन करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी हो गई हैं।

ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਸਤਸੰਗੁ ਹੋਇ ਨਿਵਿ ਲਾਗਾ ਪਾਈ ॥
वडै भागि सतसंगु होइ निवि लागा पाई ॥
अहोभाग्य से ही संतों की संगति मिली है और मैं झुक कर उनके चरणों में लगता हूँ।

ਮਨਿ ਦਰਸਨ ਕੀ ਪਿਆਸ ਹੈ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥੧੫॥
मनि दरसन की पिआस है नानक बलि जाई ॥१५॥
हे नानक ! मेरे मन में ईश्वर के दर्शनों की तीव्र लालसा है और उस पर मैं तन-मन से कुर्बान जाता हूँ।॥१५॥

ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक ॥

ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਗੋਬਿੰਦਹ ਸਰਬ ਦੋਖ ਨਿਵਾਰਣਹ ॥
पतित पुनीत गोबिंदह सरब दोख निवारणह ॥
पतितों को पावन करने वाला गोविन्द ही सर्व दोषों का निवारण करने वाला है।

ਸਰਣਿ ਸੂਰ ਭਗਵਾਨਹ ਜਪੰਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥੧॥
सरणि सूर भगवानह जपंति नानक हरि हरि हरे ॥१॥
हे नानक ! जो ‘हरि-हरि’ नाम-मंत्र जपते रहते हैं, भगवान उन्हें शरण देने में समर्थ है॥१॥

ਛਡਿਓ ਹਭੁ ਆਪੁ ਲਗੜੋ ਚਰਣਾ ਪਾਸਿ ॥
छडिओ हभु आपु लगड़ो चरणा पासि ॥
हे नानक ! जो अपने अहम् को छोड़कर चरणों में लग गया है,

ਨਠੜੋ ਦੁਖ ਤਾਪੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਪੇਖੰਦਿਆ ॥੨॥
नठड़ो दुख तापु नानक प्रभु पेखंदिआ ॥२॥
प्रभु के दर्शन करने से उस मनुष्य के सभी दुःख एवं ताप दूर हो गए हैं।॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਮੇਲਿ ਲੈਹੁ ਦਇਆਲ ਢਹਿ ਪਏ ਦੁਆਰਿਆ ॥
मेलि लैहु दइआल ढहि पए दुआरिआ ॥
हे दयालु ईश्वर ! मुझे अपने साथ मिला लो, मैं तेरे द्वार पर आ गिरा हूँ।

ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਭ੍ਰਮਤ ਬਹੁ ਹਾਰਿਆ ॥
रखि लेवहु दीन दइआल भ्रमत बहु हारिआ ॥
हे दीनदयाल ! मुझे बचा लो, मैं योनि-चक्र में भटकता हुआ बहुत थक गया हूँ।

ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਤੇਰਾ ਬਿਰਦੁ ਹਰਿ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਿਆ ॥
भगति वछलु तेरा बिरदु हरि पतित उधारिआ ॥
हे हरि ! तेरा विरद् भक्तवत्सल एवं पतितों का कल्याण करना है।

ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ਬਿਨਉ ਮੋਹਿ ਸਾਰਿਆ ॥
तुझ बिनु नाही कोइ बिनउ मोहि सारिआ ॥
तेरे बिना अन्य कोई नहीं है, जो मेरी विनती को स्वीकार करे।

ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਦਇਆਲ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰਿਆ ॥੧੬॥
करु गहि लेहु दइआल सागर संसारिआ ॥१६॥
हे दयालु! मेरा हाथ पकड़कर इस संसार-सागर से मुझे पार करवा दो॥ १६॥

ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक॥

ਸੰਤ ਉਧਰਣ ਦਇਆਲੰ ਆਸਰੰ ਗੋਪਾਲ ਕੀਰਤਨਹ ॥
संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥
दयालु परमेश्वर ही संतों का कल्याण करने वाला है, अतः उस प्रभु का कीर्तन ही उनके जीवन का एकमात्र सहारा है।

ਨਿਰਮਲੰ ਸੰਤ ਸੰਗੇਣ ਓਟ ਨਾਨਕ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥੧॥
निरमलं संत संगेण ओट नानक परमेसुरह ॥१॥
हे नानक ! संतों-महापुरुषों की संगति करने एवं परमेश्वर की शरण लेने से मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है॥ १॥

ਚੰਦਨ ਚੰਦੁ ਨ ਸਰਦ ਰੁਤਿ ਮੂਲਿ ਨ ਮਿਟਈ ਘਾਂਮ ॥
चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥
चन्दन का लेप लगाने, चाँदनी रात एवं शरद् ऋतु से मन की जलन बिल्कुल दूर नहीं होती।

ਸੀਤਲੁ ਥੀਵੈ ਨਾਨਕਾ ਜਪੰਦੜੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੨॥
सीतलु थीवै नानका जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥
हे नानक ! हरि-नाम का जाप करने से मन शीतल एवं शांत हो जाता है ॥ २ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਕੀ ਓਟ ਉਧਰੇ ਸਗਲ ਜਨ ॥
चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥
भगवान के चरण-कमलों की शरण में आने से ही समस्त भक्तजनों का कल्याण हो गया है।

ਸੁਣਿ ਪਰਤਾਪੁ ਗੋਵਿੰਦ ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਮਨ ॥
सुणि परतापु गोविंद निरभउ भए मन ॥
गोविन्द का यश-प्रताप सुनने से उनका मन निर्भीक हो गया है।

ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਮੂਲਿ ਸੰਚਿਆ ਨਾਮੁ ਧਨ ॥
तोटि न आवै मूलि संचिआ नामु धन ॥
नाम रूपी धन संचित करने से जीवन में किसी भी प्रकार की पदार्थ की कमी नहीं रहती।

ਸੰਤ ਜਨਾ ਸਿਉ ਸੰਗੁ ਪਾਈਐ ਵਡੈ ਪੁਨ ॥
संत जना सिउ संगु पाईऐ वडै पुन ॥
संतजनों से संगत बड़े पुण्य कर्म से होती है।

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਹਰਿ ਜਸੁ ਨਿਤ ਸੁਨ ॥੧੭॥
आठ पहर हरि धिआइ हरि जसु नित सुन ॥१७॥
इसलिए आठ प्रहर भगवान का ही ध्यान करते रहना चाहिए और नित्य ही हरि-यश सुनना चाहिए॥ १७॥

ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक ॥

ਦਇਆ ਕਰਣੰ ਦੁਖ ਹਰਣੰ ਉਚਰਣੰ ਨਾਮ ਕੀਰਤਨਹ ॥
दइआ करणं दुख हरणं उचरणं नाम कीरतनह ॥
यदि परमात्मा का भजन-कीर्तन एवं उसका नाम-सिमरन किया जाए तो वह दया करके समस्त दुःख-क्लेशों को मिटा देता है।

ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਭਗਵਾਨਹ ਨਾਨਕ ਲਿਪਤ ਨ ਮਾਇਆ ॥੧॥
दइआल पुरख भगवानह नानक लिपत न माइआ ॥१॥
हे नानक ! परम पुरुष भगवान जिस पर कृपा कर देता है, वह मोह-माया से निर्लिप्त हो जाता है॥ १ ॥

error: Content is protected !!