Hindi Page 1227

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਾਈ ਰੀ ਮਾਤੀ ਚਰਣ ਸਮੂਹ ॥
माई री माती चरण समूह ॥
हे माँ! प्रभु के चरणों में लीन हूँ।

ਏਕਸੁ ਬਿਨੁ ਹਉ ਆਨ ਨ ਜਾਨਉ ਦੁਤੀਆ ਭਾਉ ਸਭ ਲੂਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एकसु बिनु हउ आन न जानउ दुतीआ भाउ सभ लूह ॥१॥ रहाउ ॥
एक प्रभु के बिना अन्य को नहीं जानती और सब द्वैतभाव मिट गया है॥१॥रहाउ॥।

ਤਿਆਗਿ ਗੋੁਪਾਲ ਅਵਰ ਜੋ ਕਰਣਾ ਤੇ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਖੂਹ ॥
तिआगि गोपाल अवर जो करणा ते बिखिआ के खूह ॥
ईश्वर वंदना को त्यागकर अन्य की अर्चना करना तो विषय-विकारों के कूप में गिरना है।

ਦਰਸ ਪਿਆਸ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਮੋਹਿਓ ਕਾਢੀ ਨਰਕ ਤੇ ਧੂਹ ॥੧॥
दरस पिआस मेरा मनु मोहिओ काढी नरक ते धूह ॥१॥
उसके दर्शनों की प्यास ने मेरा मन मोह लिया है और घोर नरक से निकाल लिया है।॥१॥

ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮਿਲਿਓ ਸੁਖਦਾਤਾ ਬਿਨਸੀ ਹਉਮੈ ਹੂਹ ॥
संत प्रसादि मिलिओ सुखदाता बिनसी हउमै हूह ॥
संतों की कृपा से सुख देने वाला प्रभु मिला है और अहम्-भावना नष्ट हो गई है।

ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਦਾਸ ਨਾਨਕ ਮਉਲਿਓ ਮਨੁ ਤਨੁ ਜੂਹ ॥੨॥੯੫॥੧੧੮॥
राम रंगि राते दास नानक मउलिओ मनु तनु जूह ॥२॥९५॥११८॥
प्रभु रंग में लीन दास नानक का मन तन खिल उठा है॥२॥ ६५ ॥ ११८ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਬਿਨਸੇ ਕਾਚ ਕੇ ਬਿਉਹਾਰ ॥
बिनसे काच के बिउहार ॥
हे भाई ! कच्चे रीति रिवाज, व्यवहार सब नाशवान हैं।

ਰਾਮ ਭਜੁ ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਇਹੈ ਜਗ ਮਹਿ ਸਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम भजु मिलि साधसंगति इहै जग महि सार ॥१॥ रहाउ ॥
साधू-महात्मा की संगत में परमात्मा का भजन करो; यही जगत में श्रेष्ठतम है॥१॥रहाउ॥।

ਈਤ ਊਤ ਨ ਡੋਲਿ ਕਤਹੂ ਨਾਮੁ ਹਿਰਦੈ ਧਾਰਿ ॥
ईत ऊत न डोलि कतहू नामु हिरदै धारि ॥
प्रभु-नाम हृदय में धारण कर लो, इधर उधर कदापि नहीं डोल सकोगे।

ਗੁਰ ਚਰਨ ਬੋਹਿਥ ਮਿਲਿਓ ਭਾਗੀ ਉਤਰਿਓ ਸੰਸਾਰ ॥੧॥
गुर चरन बोहिथ मिलिओ भागी उतरिओ संसार ॥१॥
जिस भाग्यशाली को गुरु-चरण रूपी जहाज मिल जाता है, वह संसार-सागर से पार उतर जाता है॥१॥

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਰਬ ਨਾਥ ਅਪਾਰ ॥
जलि थलि महीअलि पूरि रहिओ सरब नाथ अपार ॥
जल, धरती, आकाश में सबका मालिक ही विद्यमान है।

ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਉ ਨਾਨਕ ਆਨ ਰਸ ਸਭਿ ਖਾਰ ॥੨॥੯੬॥੧੧੯॥
हरि नामु अम्रितु पीउ नानक आन रस सभि खार ॥२॥९६॥११९॥
नानक अनुरोध करते हैं, हे भाई ! हरिनामामृत पान करो, क्योंकि अन्य सभी रस फीके हैं।॥२॥९६॥११९॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਤਾ ਤੇ ਕਰਣ ਪਲਾਹ ਕਰੇ ॥
ता ते करण पलाह करे ॥
मनुष्य तो ही रोता-चिल्लाता है, क्योंकि

ਮਹਾ ਬਿਕਾਰ ਮੋਹ ਮਦ ਮਾਤੌ ਸਿਮਰਤ ਨਾਹਿ ਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
महा बिकार मोह मद मातौ सिमरत नाहि हरे ॥१॥ रहाउ ॥
वह महा विकारों तथा मोह के नशे में मस्त रहता है और परमात्मा का भजन नहीं करता ॥१॥रहाउ॥।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਪਤੇ ਨਾਰਾਇਣ ਤਿਨ ਕੇ ਦੋਖ ਜਰੇ ॥
साधसंगि जपते नाराइण तिन के दोख जरे ॥
जो साधुजनों के साथ परमात्मा का जाप करते हैं, उनके पाप-दोष दूर हो जाते हैं।

ਸਫਲ ਦੇਹ ਧੰਨਿ ਓਇ ਜਨਮੇ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸੰਗਿ ਰਲੇ ॥੧॥
सफल देह धंनि ओइ जनमे प्रभ कै संगि रले ॥१॥
उनका शरीर और जन्म सफल एवं धन्य है, जो प्रभु के साथ मिले रहते हैं।॥१॥

ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਅਸਟ ਦਸਾ ਸਿਧਿ ਸਭ ਊਪਰਿ ਸਾਧ ਭਲੇ ॥
चारि पदारथ असट दसा सिधि सभ ऊपरि साध भले ॥
भले साधुजन तो काम, क्रोध, अर्थ, धर्म, मोक्ष एवं अठारह सिद्धियों से भी ऊपर हैं।

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਧੂਰਿ ਜਨ ਬਾਂਛੈ ਉਧਰਹਿ ਲਾਗਿ ਪਲੇ ॥੨॥੯੭॥੧੨੦॥
नानक दास धूरि जन बांछै उधरहि लागि पले ॥२॥९७॥१२०॥
दास नानक उनकी चरण-धूल की आकांक्षा करता है और उनके सान्निध्य में मुक्ति का अभिलाषी है॥ २ ॥ ६७ ॥ १२० ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੇ ਜਨ ਕਾਂਖੀ ॥
हरि के नाम के जन कांखी ॥
हरि-भक्त हरिनाम की अभिलाषा करते हैं।

ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਚਨਿ ਏਹੀ ਸੁਖੁ ਚਾਹਤ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸੁ ਦੇਖਹਿ ਕਬ ਆਖੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनि तनि बचनि एही सुखु चाहत प्रभ दरसु देखहि कब आखी ॥१॥ रहाउ ॥
वे मन, तन, वचन से केवल यही सुख चाहते हैं कि प्रभु के दर्शन कब होंगे ॥१॥रहाउ॥।

ਤੂ ਬੇਅੰਤੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸੁਆਮੀ ਗਤਿ ਤੇਰੀ ਜਾਇ ਨ ਲਾਖੀ ॥
तू बेअंतु पारब्रहम सुआमी गति तेरी जाइ न लाखी ॥
हे परब्रह्म स्वामी ! तू बे-अन्त है, तेरी कीर्ति बताई नहीं जा सकती।

ਚਰਨ ਕਮਲ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਕਰਿ ਸਰਬਸੁ ਅੰਤਰਿ ਰਾਖੀ ॥੧॥
चरन कमल प्रीति मनु बेधिआ करि सरबसु अंतरि राखी ॥१॥
मेरा मन तेरे चरण-कमल के प्रेम में बिंध गया है और इसे सर्वस्व मानकर अन्तर्मन में रखा हुआ है।॥१॥

ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਧੂ ਜਨ ਇਹ ਬਾਣੀ ਰਸਨਾ ਭਾਖੀ ॥
बेद पुरान सिम्रिति साधू जन इह बाणी रसना भाखी ॥
वेद, पुराण, स्मृतियों एवं साधुजनों ने अपनी जीभ से यही बात बताई है कि राम नाम का जाप कर मुक्ति पा लो।

ਜਪਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਨਿਸਤਰੀਐ ਹੋਰੁ ਦੁਤੀਆ ਬਿਰਥੀ ਸਾਖੀ ॥੨॥੯੮॥੧੨੧॥
जपि राम नामु नानक निसतरीऐ होरु दुतीआ बिरथी साखी ॥२॥९८॥१२१॥
नानक फुरमाते हैं कि इसके अतिरिक्त अन्य सब बातें बेकार हैं ।२ ।६८॥ १२१ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਾਖੀ ਰਾਮ ਕੀ ਤੂ ਮਾਖੀ ॥
माखी राम की तू माखी ॥
हे माया ! दरअसल तू परमात्मा की मक्खी है।

ਜਹ ਦੁਰਗੰਧ ਤਹਾ ਤੂ ਬੈਸਹਿ ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਮਦ ਚਾਖੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जह दुरगंध तहा तू बैसहि महा बिखिआ मद चाखी ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ दुर्गन्ध होती है, वहाँ तू बैठ जाती है और महा विकारों को चखती रहती है।॥१॥रहाउ॥।

ਕਿਤਹਿ ਅਸਥਾਨਿ ਤੂ ਟਿਕਨੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ਇਹ ਬਿਧਿ ਦੇਖੀ ਆਖੀ ॥
कितहि असथानि तू टिकनु न पावहि इह बिधि देखी आखी ॥
इन आँखों से मैंने यही देखा है कि तू किसी भी स्थान पर टिक नहीं पाती।

ਸੰਤਾ ਬਿਨੁ ਤੈ ਕੋਇ ਨ ਛਾਡਿਆ ਸੰਤ ਪਰੇ ਗੋਬਿਦ ਕੀ ਪਾਖੀ ॥੧॥
संता बिनु तै कोइ न छाडिआ संत परे गोबिद की पाखी ॥१॥
संतों के अलावा तूने किसी को नहीं छोड़ा, संत पुरुष तो गोविन्द की भक्ति में तल्लीन रहते हैं।॥१॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲੇ ਤੈ ਮੋਹੇ ਬਿਨੁ ਸੰਤਾ ਕਿਨੈ ਨ ਲਾਖੀ ॥
जीअ जंत सगले तै मोहे बिनु संता किनै न लाखी ॥
संसार के सब जीवों को तूने मोह लिया है और संतों के अतिरिक्त तेरा भेद कोई समझ नहीं पाया।

ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਰਾਤਾ ਸਬਦੁ ਸੁਰਤਿ ਸਚੁ ਸਾਖੀ ॥੨॥੯੯॥੧੨੨॥
नानक दासु हरि कीरतनि राता सबदु सुरति सचु साखी ॥२॥९९॥१२२॥
दास नानक ईश्वर के कीर्तन में लीन है और उसने सुरति में शब्द को टिकाकर परम सत्य को साक्षात् पाया है॥२॥ ६६ ॥ १२२ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਾਈ ਰੀ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸ ॥
माई री काटी जम की फास ॥
अरी माँ! मैंने मौत का फन्दा काट दिया है,

ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਤ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਏ ਬੀਚੇ ਗ੍ਰਸਤ ਉਦਾਸ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि जपत सरब सुख पाए बीचे ग्रसत उदास ॥१॥ रहाउ ॥
गृहस्थ जीवन में विरक्त रहकर ईश्वर का नाम जपकर सर्व सुख पा लिए हैं।॥१॥रहाउ॥।

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