Hindi Page 749

ਭਾਗਠੜੇ ਹਰਿ ਸੰਤ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਜਿਨੑ ਘਰਿ ਧਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ॥
भागठड़े हरि संत तुम्हारे जिन्ह घरि धनु हरि नामा ॥
हे हरि ! तेरे संत खुशनसीब हैं, जिनके हृदय-घर में नाम रूपी धन है।

ਪਰਵਾਣੁ ਗਣੀ ਸੇਈ ਇਹ ਆਏ ਸਫਲ ਤਿਨਾ ਕੇ ਕਾਮਾ ॥੧॥
परवाणु गणी सेई इह आए सफल तिना के कामा ॥१॥
उनका जन्म लेकर जगत् में आना ही स्वीकार गिना जाता है और उनके सब कार्य सफल हो जाते हैं।॥ १॥

ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਹਰਿ ਜਨ ਕੈ ਹਉ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
मेरे राम हरि जन कै हउ बलि जाई ॥
हे मेरे राम ! मैं संतजनों पर बलिहारी जाता हूँ और

ਕੇਸਾ ਕਾ ਕਰਿ ਚਵਰੁ ਢੁਲਾਵਾ ਚਰਣ ਧੂੜਿ ਮੁਖਿ ਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
केसा का करि चवरु ढुलावा चरण धूड़ि मुखि लाई ॥१॥ रहाउ ॥
अपने केशों का चंवर बनाकर उनके सिर पर झुलाता हूँ, और उनके चरणों की धूल मुख पर लगाता हूँ। ॥ १॥ रहाउ॥

ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਹਹੂ ਮਹਿ ਨਾਹੀ ਜਨ ਪਰਉਪਕਾਰੀ ਆਏ ॥
जनम मरण दुहहू महि नाही जन परउपकारी आए ॥
वे जीवों पर परोपकार करने के लिए जगत् में आए हैं और वे जन्म-मरण दोनों से ही रहित हैं।

ਜੀਅ ਦਾਨੁ ਦੇ ਭਗਤੀ ਲਾਇਨਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਲੈਨਿ ਮਿਲਾਏ ॥੨॥
जीअ दानु दे भगती लाइनि हरि सिउ लैनि मिलाए ॥२॥
वे जीवों को नाम-दान देकर उन्हें भक्ति में लगाते हैं और उनका भगवान से मिलाप करवा देते हैं।॥ २॥

ਸਚਾ ਅਮਰੁ ਸਚੀ ਪਾਤਿਸਾਹੀ ਸਚੇ ਸੇਤੀ ਰਾਤੇ ॥
सचा अमरु सची पातिसाही सचे सेती राते ॥
जिस परमात्मा का हुक्म शाश्वत है और जिसकी बादशाहत भी शाश्वत है, वे उस सत्य में ही रंगे रहते हैं।

ਸਚਾ ਸੁਖੁ ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ਜਿਸ ਕੇ ਸੇ ਤਿਨਿ ਜਾਤੇ ॥੩॥
सचा सुखु सची वडिआई जिस के से तिनि जाते ॥३॥
उन्हें सच्चा सुख एवं सच्ची बड़ाई मिलती है। जिस परमात्मा के वे सेवक होते हैं, वे उसे ही जानते हैं॥ ३॥

ਪਖਾ ਫੇਰੀ ਪਾਣੀ ਢੋਵਾ ਹਰਿ ਜਨ ਕੈ ਪੀਸਣੁ ਪੀਸਿ ਕਮਾਵਾ ॥
पखा फेरी पाणी ढोवा हरि जन कै पीसणु पीसि कमावा ॥
हे हरि ! मैं तेरे संतजनों के घर चक्की पीस कर उनकी सेवा करूँ, उन्हें पंखा झुलाऊँ और उनके लिए पानी ढोऊँ।

ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਪਾਸਿ ਬੇਨੰਤੀ ਤੇਰੇ ਜਨ ਦੇਖਣੁ ਪਾਵਾ ॥੪॥੭॥੫੪॥
नानक की प्रभ पासि बेनंती तेरे जन देखणु पावा ॥४॥७॥५४॥
नानक की प्रभु के समक्ष यही विनती है कि मैं तेरे संतजनों का दर्शन करता रहूँ॥ ४॥ ७ ॥ ५४॥

ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸਰ ਸਤਿਗੁਰ ਆਪੇ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ॥
पारब्रहम परमेसर सतिगुर आपे करणैहारा ॥
हे परब्रह्म-परमेश्वर, हे सतगुरु, तू स्वयं ही सब कुछ कर सकने वाला है,

ਚਰਣ ਧੂੜਿ ਤੇਰੀ ਸੇਵਕੁ ਮਾਗੈ ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥੧॥
चरण धूड़ि तेरी सेवकु मागै तेरे दरसन कउ बलिहारा ॥१॥
तेरा सेवक तेरी चरण-धूलि मांगता है और तेरे दर्शन पर बलिहारी जाता है॥ १॥

ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਰਾਇ ਜਿਉ ਰਾਖਹਿ ਤਿਉ ਰਹੀਐ ॥
मेरे राम राइ जिउ राखहि तिउ रहीऐ ॥
हे मेरे राम ! जैसे तू मुझे रखता है, वैसे ही मैं रहता हूँ।

ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਵਹਿ ਸੁਖੁ ਤੇਰਾ ਦਿਤਾ ਲਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुधु भावै ता नामु जपावहि सुखु तेरा दिता लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
जब तुझे उपयुक्त लगता है तो तू अपना नाम जपवाता है। मैं तेरा दिया हुआ ही सुख लेता हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਮੁਕਤਿ ਭੁਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਤੇਰੀ ਸੇਵਾ ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਆਪਿ ਕਰਾਇਹਿ ॥
मुकति भुगति जुगति तेरी सेवा जिसु तूं आपि कराइहि ॥
माया के बन्धनों से मुक्ति, भुक्ति एवं जीवन-युक्ति तेरी सेवा करने से ही मिलती है, जिसे तू स्वयं ही अपने सेवकों से करवाता है।

ਤਹਾ ਬੈਕੁੰਠੁ ਜਹ ਕੀਰਤਨੁ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਆਪੇ ਸਰਧਾ ਲਾਇਹਿ ॥੨॥
तहा बैकुंठु जह कीरतनु तेरा तूं आपे सरधा लाइहि ॥२॥
जहाँ तेरा कीर्तन किया जाता है, वहाँ ही बैकुण्ठ बन जाता है। तू स्वयं ही अपने सेवकों के मन में श्रद्धा उत्पन्न करता है॥ २॥

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਮੁ ਜੀਵਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲਾ ॥
सिमरि सिमरि सिमरि नामु जीवा तनु मनु होइ निहाला ॥
हरदम तेरा नाम-सिमरन करने से ही मुझे जीवन मिलता रहता है और मेरा मन-तन निहाल हो जाता है।

ਚਰਣ ਕਮਲ ਤੇਰੇ ਧੋਇ ਧੋਇ ਪੀਵਾ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥੩॥
चरण कमल तेरे धोइ धोइ पीवा मेरे सतिगुर दीन दइआला ॥३॥
हे मेरे दीनदयालु सतगुरु ! मैं तेरे सुन्दर चरण कमल धो-धोकर पीता रहूँ॥ ३॥

ਕੁਰਬਾਣੁ ਜਾਈ ਉਸੁ ਵੇਲਾ ਸੁਹਾਵੀ ਜਿਤੁ ਤੁਮਰੈ ਦੁਆਰੈ ਆਇਆ ॥
कुरबाणु जाई उसु वेला सुहावी जितु तुमरै दुआरै आइआ ॥
मैं उस सुन्दर वक्त पर कुर्बान जाता हूँ, जब मैं तुम्हारे द्वार पर आया था।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੪॥੮॥੫੫॥
नानक कउ प्रभ भए क्रिपाला सतिगुरु पूरा पाइआ ॥४॥८॥५५॥
हे भाई ! जब प्रभु नानक पर कृपालु हुआ तो उसने पूर्ण सतगुरु को पा लिया ॥ ४॥ ८ ॥ ५५ ॥

ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥

ਤੁਧੁ ਚਿਤਿ ਆਏ ਮਹਾ ਅਨੰਦਾ ਜਿਸੁ ਵਿਸਰਹਿ ਸੋ ਮਰਿ ਜਾਏ ॥
तुधु चिति आए महा अनंदा जिसु विसरहि सो मरि जाए ॥
हे प्रभु ! जब तू याद आता है तो मन में बड़ा आनंद पैदा होता है। लेकिन जिसे तू भूल जाता है, उसकी तो मृत्यु ही हो जाती है,

ਦਇਆਲੁ ਹੋਵਹਿ ਜਿਸੁ ਊਪਰਿ ਕਰਤੇ ਸੋ ਤੁਧੁ ਸਦਾ ਧਿਆਏ ॥੧॥
दइआलु होवहि जिसु ऊपरि करते सो तुधु सदा धिआए ॥१॥
हे कर्ता ! जिस पर तू दयालु हो जाता है, वह सदैव तेरा ध्यान करता रहता है। १॥

ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬ ਤੂੰ ਮੈ ਮਾਣੁ ਨਿਮਾਣੀ ॥
मेरे साहिब तूं मै माणु निमाणी ॥
हे मेरे मालिक ! तू मुझ जैसे मानहीन का सम्मान है।

ਅਰਦਾਸਿ ਕਰੀ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੇ ਆਗੈ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अरदासि करी प्रभ अपने आगै सुणि सुणि जीवा तेरी बाणी ॥१॥ रहाउ ॥
मैं अपने प्रभु के समक्ष प्रार्थना करता हूँ कि तेरी वाणी सुन-सुनकर ही जीता रहूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਚਰਣ ਧੂੜਿ ਤੇਰੇ ਜਨ ਕੀ ਹੋਵਾ ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
चरण धूड़ि तेरे जन की होवा तेरे दरसन कउ बलि जाई ॥
मैं तेरे सेवक की चरण-धूलि बन जाऊँ और तेरे दर्शन पर बलिहारी जाता रहूँ।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਰਿਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰੀ ਤਉ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੰਗੁ ਪਾਈ ॥੨॥
अम्रित बचन रिदै उरि धारी तउ किरपा ते संगु पाई ॥२॥
मैं तेरे अमृत वचन हृदय में धारण करता हूँ और तेरी कृपा से ही संतों की संगति मिली है॥ २॥

ਅੰਤਰ ਕੀ ਗਤਿ ਤੁਧੁ ਪਹਿ ਸਾਰੀ ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
अंतर की गति तुधु पहि सारी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
मैंने अपने मन की हालत तेरे समक्ष रख दी है और तेरे जैसा महान् अन्य कोई नहीं है।

ਜਿਸ ਨੋ ਲਾਇ ਲੈਹਿ ਸੋ ਲਾਗੈ ਭਗਤੁ ਤੁਹਾਰਾ ਸੋਈ ॥੩॥
जिस नो लाइ लैहि सो लागै भगतु तुहारा सोई ॥३॥
जिसे तू अपनी भक्ति में लगाता है, वही भक्ति में लगता है और वही तुम्हारा भक्त है॥ ३॥

ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਮਾਗਉ ਇਕੁ ਦਾਨਾ ਸਾਹਿਬਿ ਤੁਠੈ ਪਾਵਾ ॥
दुइ कर जोड़ि मागउ इकु दाना साहिबि तुठै पावा ॥
मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर तुझसे एक दान माँगता हूँ। हे मालिक ! यदि तू प्रसन्न हो जाए तो मैं यह दान हासिल कर लूं।

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨਾਨਕੁ ਆਰਾਧੇ ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ॥੪॥੯॥੫੬॥
सासि सासि नानकु आराधे आठ पहर गुण गावा ॥४॥९॥५६॥
नानक सांस-सांस से तेरी आराधना करता रहे और आठ प्रहर तेरा गुणगान करता रहे॥ ४॥ ६॥ ५६॥

ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥

ਜਿਸ ਕੇ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਤੂੰ ਸੁਆਮੀ ਸੋ ਦੁਖੁ ਕੈਸਾ ਪਾਵੈ ॥
जिस के सिर ऊपरि तूं सुआमी सो दुखु कैसा पावै ॥
हे स्वामी ! जिसके सिर पर तूने अपना हाथ रखा है, वह दुख कैसे पा सकता है ?

ਬੋਲਿ ਨ ਜਾਣੈ ਮਾਇਆ ਮਦਿ ਮਾਤਾ ਮਰਣਾ ਚੀਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥੧॥
बोलि न जाणै माइआ मदि माता मरणा चीति न आवै ॥१॥
माया के नशे में मस्त हुआ व्यक्ति प्रभु का नाम बोलना ही नहीं जानता और उसे मरना भी याद नहीं आता॥ १॥

ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਰਾਇ ਤੂੰ ਸੰਤਾ ਕਾ ਸੰਤ ਤੇਰੇ ॥
मेरे राम राइ तूं संता का संत तेरे ॥
हे मेरे राम ! तू संतों का स्वामी है और संत तेरे सेवक हैं।

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