ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਆਪੇ ਹੀ ਕਰਣਾ ਕੀਓ ਕਲ ਆਪੇ ਹੀ ਤੈ ਧਾਰੀਐ ॥
आपे ही करणा कीओ कल आपे ही तै धारीऐ ॥
हे परमात्मा ! तू स्वयं ही सृष्टि रचयिता है और स्वयं ही सत्ता को धारण किया हुआ है।
ਦੇਖਹਿ ਕੀਤਾ ਆਪਣਾ ਧਰਿ ਕਚੀ ਪਕੀ ਸਾਰੀਐ ॥
देखहि कीता आपणा धरि कची पकी सारीऐ ॥
तू अपनी रचना एवं कच्ची-पक्की गोटियों (अच्छे-बुरे जीवों) को धरती पर देखता है।
ਜੋ ਆਇਆ ਸੋ ਚਲਸੀ ਸਭੁ ਕੋਈ ਆਈ ਵਾਰੀਐ ॥
जो आइआ सो चलसी सभु कोई आई वारीऐ ॥
जो भी जीव इस दुनिया में आया है, वह चला जाएगा। अपनी बारी आने पर सभी ने जाना ही होता है।
ਜਿਸ ਕੇ ਜੀਅ ਪਰਾਣ ਹਹਿ ਕਿਉ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥
जिस के जीअ पराण हहि किउ साहिबु मनहु विसारीऐ ॥
अपने मन में से हम उस प्रभु को क्यों विस्मृत करें, जिसने हमें जीवन एवं प्राण दिए हुए हैं?
ਆਪਣ ਹਥੀ ਆਪਣਾ ਆਪੇ ਹੀ ਕਾਜੁ ਸਵਾਰੀਐ ॥੨੦॥
आपण हथी आपणा आपे ही काजु सवारीऐ ॥२०॥
आओ, अपने हाथों से हम स्वयं ही अपने कार्य सम्पूर्ण करें अर्थात् शुभ कर्मों द्वारा भगवान को प्रसन्न करके अपना जीवन कार्य संवार ले ॥ २० ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोकु महला २ ॥
श्लोक महला २ ॥
ਏਹ ਕਿਨੇਹੀ ਆਸਕੀ ਦੂਜੈ ਲਗੈ ਜਾਇ ॥
एह किनेही आसकी दूजै लगै जाइ ॥
यह कैसी आशिकी है, जो भगवान को छोड़कर द्वैतवाद से लगती है।
ਨਾਨਕ ਆਸਕੁ ਕਾਂਢੀਐ ਸਦ ਹੀ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
नानक आसकु कांढीऐ सद ही रहै समाइ ॥
हे नानक ! सच्चा आशिक वही कहलाता है, जो सदा प्रभु के प्रेम में ही समाया रहता है।
ਚੰਗੈ ਚੰਗਾ ਕਰਿ ਮੰਨੇ ਮੰਦੈ ਮੰਦਾ ਹੋਇ ॥
चंगै चंगा करि मंने मंदै मंदा होइ ॥
जो व्यक्ति अपने किए शुभ कर्म के दिए फल सुख को अच्छा मानता है और अपने किए बुरे कर्म के दिए फल दुख को बुरा मानता है,
ਆਸਕੁ ਏਹੁ ਨ ਆਖੀਐ ਜਿ ਲੇਖੈ ਵਰਤੈ ਸੋਇ ॥੧॥
आसकु एहु न आखीऐ जि लेखै वरतै सोइ ॥१॥
उसे भगवान का आशिक नहीं कहा जा सकता। वह तो अच्छे एवं बुरे के लेखे में पड़कर प्रेम का हिसाब-किताब करता है। प्रभु जो कुछ करता है, ऐसा जीव उसमें सहमत नहीं रहता ॥ १ ॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २ ॥
ਸਲਾਮੁ ਜਬਾਬੁ ਦੋਵੈ ਕਰੇ ਮੁੰਢਹੁ ਘੁਥਾ ਜਾਇ ॥
सलामु जबाबु दोवै करे मुंढहु घुथा जाइ ॥
जो मनुष्य अपने प्रभु के हुक्म को कभी प्रणाम करता है और कभी उसके किए पर संशय (ऐतराज) करता है, वह आदि से ही कुमार्गगामी हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਦੋਵੈ ਕੂੜੀਆ ਥਾਇ ਨ ਕਾਈ ਪਾਇ ॥੨॥
नानक दोवै कूड़ीआ थाइ न काई पाइ ॥२॥
हे नानक ! उसके दोनों ही कार्य झूठे हैं और प्रभु के दरबार में उसको कोई स्थान नहीं मिलता॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਸੋ ਸਾਹਿਬੁ ਸਦਾ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੀਐ ॥
जितु सेविऐ सुखु पाईऐ सो साहिबु सदा सम्हालीऐ ॥
जिसकी सेवा करने से सुख मिलता है, सदैव उस प्रभु को याद करते रहना चाहिए।
ਜਿਤੁ ਕੀਤਾ ਪਾਈਐ ਆਪਣਾ ਸਾ ਘਾਲ ਬੁਰੀ ਕਿਉ ਘਾਲੀਐ ॥
जितु कीता पाईऐ आपणा सा घाल बुरी किउ घालीऐ ॥
जब अपने किए कर्मों का आप ही भोगना है तो फिर हम बुरे कर्म क्यों करें ?
ਮੰਦਾ ਮੂਲਿ ਨ ਕੀਚਈ ਦੇ ਲੰਮੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੀਐ ॥
मंदा मूलि न कीचई दे लमी नदरि निहालीऐ ॥
बुरा कर्म कदापि नहीं करना चाहिए, दूर-दृष्टि से नतीजे का ध्यान रखना चाहिए।
ਜਿਉ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲਿ ਨ ਹਾਰੀਐ ਤੇਵੇਹਾ ਪਾਸਾ ਢਾਲੀਐ ॥
जिउ साहिब नालि न हारीऐ तेवेहा पासा ढालीऐ ॥
हमें कर्मो का ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए, जिसके फलस्वरूप प्रभु के समक्ष हमें लज्जित होना पड़े, अर्थात् शुभ कर्म ही करने चाहिए।
ਕਿਛੁ ਲਾਹੇ ਉਪਰਿ ਘਾਲੀਐ ॥੨੧॥
किछु लाहे उपरि घालीऐ ॥२१॥
मनुष्य जन्म में ऐसी सेवा-भक्ति करो, जिससे लाभ प्राप्त हो।॥ २१॥
ਸਲੋਕੁ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोकु महला २ ॥
श्लोक महला २ ॥
ਚਾਕਰੁ ਲਗੈ ਚਾਕਰੀ ਨਾਲੇ ਗਾਰਬੁ ਵਾਦੁ ॥
चाकरु लगै चाकरी नाले गारबु वादु ॥
यदि कोई सेवक अपने मालिक की सेवा करता है और साथ ही अभिमानी, विवादास्पद झगड़ालू है।
ਗਲਾ ਕਰੇ ਘਣੇਰੀਆ ਖਸਮ ਨ ਪਾਏ ਸਾਦੁ ॥
गला करे घणेरीआ खसम न पाए सादु ॥
यदि वह अधिकतर बातें बनाता है तो वह अपने मालिक की प्रसन्नता का पात्र नहीं होता।
ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਤਾ ਕਿਛੁ ਪਾਏ ਮਾਨੁ ॥
आपु गवाइ सेवा करे ता किछु पाए मानु ॥
लेकिन यदि वह अपना अहंकार मिटाकर सेवा करे तो कुछ मान-सम्मान प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸ ਨੋ ਲਗਾ ਤਿਸੁ ਮਿਲੈ ਲਗਾ ਸੋ ਪਰਵਾਨੁ ॥੧॥
नानक जिस नो लगा तिसु मिलै लगा सो परवानु ॥१॥
हे नानक ! वह मनुष्य अपने उस मालिक से मिल जाता है, जिसकी सेवा में जुटा हुआ है, उसकी लगन स्वीकृत हो जाती है॥ १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २ ॥
ਜੋ ਜੀਇ ਹੋਇ ਸੁ ਉਗਵੈ ਮੁਹ ਕਾ ਕਹਿਆ ਵਾਉ ॥
जो जीइ होइ सु उगवै मुह का कहिआ वाउ ॥
जो (संकल्प) दिल में होता है, वह (कर्मों के रूप में) प्रगट हो जाता है। मुंह से कही बात तो हवा की तरह महत्वहीन होती है।
ਬੀਜੇ ਬਿਖੁ ਮੰਗੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵੇਖਹੁ ਏਹੁ ਨਿਆਉ ॥੨॥
बीजे बिखु मंगै अम्रितु वेखहु एहु निआउ ॥२॥
मनुष्य विष बोता है परन्तु अमृत,माँगता है। देखो ! यह कैसा न्याय है ॥ २ ॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਨਾਲਿ ਇਆਣੇ ਦੋਸਤੀ ਕਦੇ ਨ ਆਵੈ ਰਾਸਿ ॥
नालि इआणे दोसती कदे न आवै रासि ॥
मूर्ख के साथ मित्रता कदापि ठीक नहीं होती।
ਜੇਹਾ ਜਾਣੈ ਤੇਹੋ ਵਰਤੈ ਵੇਖਹੁ ਕੋ ਨਿਰਜਾਸਿ ॥
जेहा जाणै तेहो वरतै वेखहु को निरजासि ॥
जैसा वह जानता है, वैसा ही वह करता है। चाहे कोई इसका निर्णय करके देख ले।
ਵਸਤੂ ਅੰਦਰਿ ਵਸਤੁ ਸਮਾਵੈ ਦੂਜੀ ਹੋਵੈ ਪਾਸਿ ॥
वसतू अंदरि वसतु समावै दूजी होवै पासि ॥
किसी वस्तु में दूसरी वस्तु तभी समा सकती है, यद्यपि पहले पड़ी हुई वस्तु को निकाल दिया जाए।
ਸਾਹਿਬ ਸੇਤੀ ਹੁਕਮੁ ਨ ਚਲੈ ਕਹੀ ਬਣੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥
साहिब सेती हुकमु न चलै कही बणै अरदासि ॥
प्रभु के समक्ष हुक्म करना सफल नहीं होता, अपितु उसके समक्ष तो विनम्र प्रार्थना ही करनी चाहिए।
ਕੂੜਿ ਕਮਾਣੈ ਕੂੜੋ ਹੋਵੈ ਨਾਨਕ ਸਿਫਤਿ ਵਿਗਾਸਿ ॥੩॥
कूड़ि कमाणै कूड़ो होवै नानक सिफति विगासि ॥३॥
हे नानक ! छल-कपट की कमाई करने से छल-कपट ही हासिल होता है। लेकिन प्रभु का यशोगान करने से प्राणी प्रसन्न हो जाता है।॥ ३ ॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਨਾਲਿ ਇਆਣੇ ਦੋਸਤੀ ਵਡਾਰੂ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ॥
नालि इआणे दोसती वडारू सिउ नेहु ॥
अज्ञानी व्यक्ति के साथ मित्रता एवं बड़े आदमी के साथ प्रेम
ਪਾਣੀ ਅੰਦਰਿ ਲੀਕ ਜਿਉ ਤਿਸ ਦਾ ਥਾਉ ਨ ਥੇਹੁ ॥੪॥
पाणी अंदरि लीक जिउ तिस दा थाउ न थेहु ॥४॥
जल में लकीर की भाँति है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहता॥ ४॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਹੋਇ ਇਆਣਾ ਕਰੇ ਕੰਮੁ ਆਣਿ ਨ ਸਕੈ ਰਾਸਿ ॥
होइ इआणा करे कमु आणि न सकै रासि ॥
यदि एक नासमझ व्यक्ति कोई कार्य करे तो वह इसे सम्पूर्ण नहीं कर सकता।
ਜੇ ਇਕ ਅਧ ਚੰਗੀ ਕਰੇ ਦੂਜੀ ਭੀ ਵੇਰਾਸਿ ॥੫॥
जे इक अध चंगी करे दूजी भी वेरासि ॥५॥
यदि एकाध भला काम कर भी ले तो वह दूसरा बिगाड़ देता है॥ ५॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਚਾਕਰੁ ਲਗੈ ਚਾਕਰੀ ਜੇ ਚਲੈ ਖਸਮੈ ਭਾਇ ॥
चाकरु लगै चाकरी जे चलै खसमै भाइ ॥
जो सेवक अपने स्वामी की इच्छानुसार चले तो ही मानो कि वह अपने स्वामी की नौकरी कर रहा है,
ਹੁਰਮਤਿ ਤਿਸ ਨੋ ਅਗਲੀ ਓਹੁ ਵਜਹੁ ਭਿ ਦੂਣਾ ਖਾਇ ॥
हुरमति तिस नो अगली ओहु वजहु भि दूणा खाइ ॥
इससे एक तो उसे बड़ा मान-सम्मान मिलेगा, दूसरा वेतन भी स्वामी से दुगुना प्राप्त करेगा।
ਖਸਮੈ ਕਰੇ ਬਰਾਬਰੀ ਫਿਰਿ ਗੈਰਤਿ ਅੰਦਰਿ ਪਾਇ ॥
खसमै करे बराबरी फिरि गैरति अंदरि पाइ ॥
यदि वह अपने स्वामी की बराबरी करता है तो वह मन में लज्जित ही होता है।
ਵਜਹੁ ਗਵਾਏ ਅਗਲਾ ਮੁਹੇ ਮੁਹਿ ਪਾਣਾ ਖਾਇ ॥
वजहु गवाए अगला मुहे मुहि पाणा खाइ ॥
परिणामस्वरूप अपनी पहली कमाई भी गंवा लेता है और सदा जूते खाता है।
ਜਿਸ ਦਾ ਦਿਤਾ ਖਾਵਣਾ ਤਿਸੁ ਕਹੀਐ ਸਾਬਾਸਿ ॥
जिस दा दिता खावणा तिसु कहीऐ साबासि ॥
जिसका दिया हम खाते हैं, उसका हमें कोटि-कोटि आभार व्यक्त करना चाहिए।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਨ ਚਲਈ ਨਾਲਿ ਖਸਮ ਚਲੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥੨੨॥
नानक हुकमु न चलई नालि खसम चलै अरदासि ॥२२॥
हे नानक ! प्रभु के समक्ष हुक्म नहीं सफल होता अपितु उसके समक्ष विनम्र प्रार्थना ही कारगर होती है।॥ २२॥
ਸਲੋਕੁ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोकु महला २ ॥
श्लोक महला २॥
ਏਹ ਕਿਨੇਹੀ ਦਾਤਿ ਆਪਸ ਤੇ ਜੋ ਪਾਈਐ ॥
एह किनेही दाति आपस ते जो पाईऐ ॥
यह कैसी देन है, जो हम स्वयं मांग कर प्राप्त करते हैं ?