ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਅਤੁਲੁ ਕਿਉ ਤੋਲੀਐ ਵਿਣੁ ਤੋਲੇ ਪਾਇਆ ਨ ਜਾਇ ॥
अतुलु किउ तोलीऐ विणु तोले पाइआ न जाइ ॥
ईश्वर अतुलनीय है, फिर भला कैसे तोला जा सकता है, उसके गुणों को तोले बिना पाया भी नहीं जा सकता।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀਐ ਗੁਣ ਮਹਿ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
गुर कै सबदि वीचारीऐ गुण महि रहै समाइ ॥
गुरु के उपदेश द्वारा चिंतन करके उसके गुणों में लीन रहना चाहिए।
ਅਪਣਾ ਆਪੁ ਆਪਿ ਤੋਲਸੀ ਆਪੇ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇ ॥
अपणा आपु आपि तोलसी आपे मिलै मिलाइ ॥
वह स्वयं ही अपनी महिमा को तौलने वाला है और अपने आप ही मिला लेता है।
ਤਿਸ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥
तिस की कीमति ना पवै कहणा किछू न जाइ ॥
वह महान् है, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, उसकी कीर्ति बताई नहीं जा सकती।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਜਿਨਿ ਸਚੀ ਬੂਝ ਦਿਤੀ ਬੁਝਾਇ ॥
हउ बलिहारी गुर आपणे जिनि सची बूझ दिती बुझाइ ॥
मैं अपने गुरु पर कुर्बान जाता हूँ, जिसने सच्ची बात बताई है।
ਜਗਤੁ ਮੁਸੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਲੁਟੀਐ ਮਨਮੁਖ ਬੂਝ ਨ ਪਾਇ ॥
जगतु मुसै अम्रितु लुटीऐ मनमुख बूझ न पाइ ॥
संसार धोखा खा रहा है, नामामृत लूटना चाहिए, परन्तु स्वेच्छाचारी इस तथ्य को नहीं समझ पा रहा।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਨਾਲਿ ਨ ਚਲਸੀ ਜਾਸੀ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇ ॥
विणु नावै नालि न चलसी जासी जनमु गवाइ ॥
परमात्मा के नाम बिना कुछ साथ नहीं जाता और मनुष्य अपना जीवन गंवा देता है।
ਗੁਰਮਤੀ ਜਾਗੇ ਤਿਨੑੀ ਘਰੁ ਰਖਿਆ ਦੂਤਾ ਕਾ ਕਿਛੁ ਨ ਵਸਾਇ ॥੮॥
गुरमती जागे तिन्ही घरु रखिआ दूता का किछु न वसाइ ॥८॥
गुरु के उपदेशानुसार चलने वाले सावधान रहते हैं, अपने घर को बचा लेते हैं, नहीं तो यमदूतों का भरोसा नहीं॥८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਨਾ ਬਿਲਲਾਇ ਨਾ ਤਰਸਾਇ ਏਹੁ ਮਨੁ ਖਸਮ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨਿ ॥
बाबीहा ना बिललाइ ना तरसाइ एहु मनु खसम का हुकमु मंनि ॥
हे पपीहे रूपी मन ! यह रोना और दुखी होना छोड़ दो, तुम्हें अपने मालिक का हुक्म मानना चाहिए।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮਿ ਮੰਨਿਐ ਤਿਖ ਉਤਰੈ ਚੜੈ ਚਵਗਲਿ ਵੰਨੁ ॥੧॥
नानक हुकमि मंनिऐ तिख उतरै चड़ै चवगलि वंनु ॥१॥
नानक का कथन है कि उसका हुक्म मानने से सारी प्यास मिट जाती है और खुशी का चौगुना रंग चढ़ने लगता है॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਬਾਬੀਹਾ ਜਲ ਮਹਿ ਤੇਰਾ ਵਾਸੁ ਹੈ ਜਲ ਹੀ ਮਾਹਿ ਫਿਰਾਹਿ ॥
बाबीहा जल महि तेरा वासु है जल ही माहि फिराहि ॥
अरे पपीहे ! जल में तेरा निवास है और जल में ही तू विचरण करता है।
ਜਲ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਹੀ ਤਾਂ ਤੂੰ ਕੂਕਣ ਪਾਹਿ ॥
जल की सार न जाणही तां तूं कूकण पाहि ॥
तू जल की कद्र नहीं जानता, जिसकी वजह से रोता-चिल्लाता है।
ਜਲ ਥਲ ਚਹੁ ਦਿਸਿ ਵਰਸਦਾ ਖਾਲੀ ਕੋ ਥਾਉ ਨਾਹਿ ॥
जल थल चहु दिसि वरसदा खाली को थाउ नाहि ॥
परमात्मा रूपी जल सर्वव्याप्त है, कोई भी स्थान उससे खाली नहीं है।
ਏਤੈ ਜਲਿ ਵਰਸਦੈ ਤਿਖ ਮਰਹਿ ਭਾਗ ਤਿਨਾ ਕੇ ਨਾਹਿ ॥
एतै जलि वरसदै तिख मरहि भाग तिना के नाहि ॥
इतने जल के साथ प्यास से मरने वाले लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਿਨ ਸੋਝੀ ਪਈ ਜਿਨ ਵਸਿਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੨॥
नानक गुरमुखि तिन सोझी पई जिन वसिआ मन माहि ॥२॥
नानक फुरमाते हैं कि गुरु से जिनको सूझ प्राप्त होती है, उनके मन में प्रभु अवस्थित हो जाता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਨਾਥ ਜਤੀ ਸਿਧ ਪੀਰ ਕਿਨੈ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
नाथ जती सिध पीर किनै अंतु न पाइआ ॥
बड़े-बड़े नाथ, सन्यासी, सिद्ध एवं पीरों में से कोई भी ईश्वर का रहस्य नहीं पा सका।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੁਝੈ ਸਮਾਇਆ ॥
गुरमुखि नामु धिआइ तुझै समाइआ ॥
गुरु के द्वारा नाम का ध्यान करने वाले तुझ में ही समाहित हो गए।
ਜੁਗ ਛਤੀਹ ਗੁਬਾਰੁ ਤਿਸ ਹੀ ਭਾਇਆ ॥
जुग छतीह गुबारु तिस ही भाइआ ॥
छत्तीस युगों तक घोर अंधेरा परमात्मा की मर्जी थी,
ਜਲਾ ਬਿੰਬੁ ਅਸਰਾਲੁ ਤਿਨੈ ਵਰਤਾਇਆ ॥
जला बि्मबु असरालु तिनै वरताइआ ॥
जगत-रचना से पूर्व भयानक जल ही जल फैला हुआ था।
ਨੀਲੁ ਅਨੀਲੁ ਅਗੰਮੁ ਸਰਜੀਤੁ ਸਬਾਇਆ ॥
नीलु अनीलु अगमु सरजीतु सबाइआ ॥
वह सृष्टिकर्ता शाश्वत स्वरूप, अनादि, असीम एवं अगम्य है।
ਅਗਨਿ ਉਪਾਈ ਵਾਦੁ ਭੁਖ ਤਿਹਾਇਆ ॥
अगनि उपाई वादु भुख तिहाइआ ॥
उसी ने अग्नि, लालच, भूख एवं प्यास को उत्पन्न किया है और
ਦੁਨੀਆ ਕੈ ਸਿਰਿ ਕਾਲੁ ਦੂਜਾ ਭਾਇਆ ॥
दुनीआ कै सिरि कालु दूजा भाइआ ॥
द्वैतभाव में दुनिया के सिर पर मौत खड़ी कर दी है।
ਰਖੈ ਰਖਣਹਾਰੁ ਜਿਨਿ ਸਬਦੁ ਬੁਝਾਇਆ ॥੯॥
रखै रखणहारु जिनि सबदु बुझाइआ ॥९॥
परन्तु जिसने शब्द-गुरु द्वारा समझ लिया है, दुनिया के रखयाले ने उसी की रक्षा की है॥६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਇਹੁ ਜਲੁ ਸਭ ਤੈ ਵਰਸਦਾ ਵਰਸੈ ਭਾਇ ਸੁਭਾਇ ॥
इहु जलु सभ तै वरसदा वरसै भाइ सुभाइ ॥
ईश्वर रूपी जल सर्वत्र बरसता है और प्रेम स्वभाव बरसता रहता है।
ਸੇ ਬਿਰਖਾ ਹਰੀਆਵਲੇ ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥
से बिरखा हरीआवले जो गुरमुखि रहे समाइ ॥
लेकिन जीव रूपी वही वृक्ष हरे भरे होते हैं, जो गुरु के उपदेशानुसार लीन रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ਏਨਾ ਜੰਤਾ ਕਾ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧॥
नानक नदरी सुखु होइ एना जंता का दुखु जाइ ॥१॥
हे नानक ! उसकी कृपा-दृष्टि होने पर ही सुख उत्पन्न होता है और जीवों का दुख दूर हो जाता है।॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਭਿੰਨੀ ਰੈਣਿ ਚਮਕਿਆ ਵੁਠਾ ਛਹਬਰ ਲਾਇ ॥
भिंनी रैणि चमकिआ वुठा छहबर लाइ ॥
सुहावनी रात बिजली चमकती है तो मूसलाधार बरसात होने लगती है।
ਜਿਤੁ ਵੁਠੈ ਅਨੁ ਧਨੁ ਬਹੁਤੁ ਊਪਜੈ ਜਾਂ ਸਹੁ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥
जितु वुठै अनु धनु बहुतु ऊपजै जां सहु करे रजाइ ॥
जब मालिक की मजीं होती है तो इस बरसात से अधिक मात्रा में अन्न धन पैदा होता है।
ਜਿਤੁ ਖਾਧੈ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤੀਐ ਜੀਆਂ ਜੁਗਤਿ ਸਮਾਇ ॥
जितु खाधै मनु त्रिपतीऐ जीआं जुगति समाइ ॥
जिस नाम का सेवन करने से मन तृप्त हो जाता है और जीवों की जीवन-युक्ति उसी में लीन है।
ਇਹੁ ਧਨੁ ਕਰਤੇ ਕਾ ਖੇਲੁ ਹੈ ਕਦੇ ਆਵੈ ਕਦੇ ਜਾਇ ॥
इहु धनु करते का खेलु है कदे आवै कदे जाइ ॥
यह धन ईश्वर की लीला है, कभी आता है तो कभी जाता है।
ਗਿਆਨੀਆ ਕਾ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਸਦ ਹੀ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
गिआनीआ का धनु नामु है सद ही रहै समाइ ॥
प्रभु का नाम ज्ञानी पुरुषों का सच्चा धन है और वे सदैव नाम-स्मरण में लीन रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾਂ ਇਹੁ ਧਨੁ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੨॥
नानक जिन कउ नदरि करे तां इहु धनु पलै पाइ ॥२॥
हे नानक ! जिस पर अपनी कृपा करता है, वही व्यक्ति नाम-धन प्राप्त करता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਹਉ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥
आपि कराए करे आपि हउ कै सिउ करी पुकार ॥
जब करने करवाने वाला स्वयं ईश्वर ही है तो उसके सिवा किसके पास फरियाद की जाए।
ਆਪੇ ਲੇਖਾ ਮੰਗਸੀ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਾਰ ॥
आपे लेखा मंगसी आपि कराए कार ॥
उसकी लीला अद्भुत है, वह स्वयं ही कर्म करवाता है और स्वयं ही कर्मो का हिसाब मांगता है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ਹੁਕਮੁ ਕਰੇ ਗਾਵਾਰੁ ॥
जो तिसु भावै सो थीऐ हुकमु करे गावारु ॥
मूर्ख मनुष्य व्यर्थ ही हुक्म करता रहता है, दरअसल जो ईश्वर को उपयुक्त लगता है, वही होता है।
ਆਪਿ ਛਡਾਏ ਛੁਟੀਐ ਆਪੇ ਬਖਸਣਹਾਰੁ ॥
आपि छडाए छुटीऐ आपे बखसणहारु ॥
वह क्षमावान् है, मुक्ति तभी होती है, जब वह मुक्त करवाता है।
ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਸੁਣੇ ਆਪਿ ਸਭਸੈ ਦੇ ਆਧਾਰੁ ॥
आपे वेखै सुणे आपि सभसै दे आधारु ॥
वही देखता एवं सुनता है और सबको आसरा देता है।
ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਵਰਤਦਾ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥
सभ महि एकु वरतदा सिरि सिरि करे बीचारु ॥
सब जीवों में एक परमेश्वर ही विद्यमान है और वही विचार करता है।