ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਵੀਚਾਰੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧੮॥੧੯॥
नानक नामि रते वीचारी सचो सचु कमावणिआ ॥८॥१८॥१९॥
हे नानक ! जो व्यक्ति परमेश्वर के नाम में मग्न रहते हैं, वे परमेश्वर के बारे ही विचार करते रहते हैं और सत्य-परमेश्वर के सत्य-नाम की ही कमाई करते हैं ॥८॥१८॥१९॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
ਨਿਰਮਲ ਸਬਦੁ ਨਿਰਮਲ ਹੈ ਬਾਣੀ ॥
निरमल सबदु निरमल है बाणी ॥
शब्द निर्मल है और वाणी भी निर्मल है।
ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਸਭ ਮਾਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥
निरमल जोति सभ माहि समाणी ॥
भगवान की निर्मल ज्योति समस्त जीवों में समाई हुई है।
ਨਿਰਮਲ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਸਾਲਾਹੀ ਜਪਿ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲੁ ਮੈਲੁ ਗਵਾਵਣਿਆ ॥੧॥
निरमल बाणी हरि सालाही जपि हरि निरमलु मैलु गवावणिआ ॥१॥
मैं निर्मल वाणी द्वारा भगवान की महिमा-स्तुति करता रहता हूँ और निर्मल परमात्मा का भजन करके अपने मन की अहंत्व रूपी मैल को दूर करता हूँ॥ १ ॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਸੁਖਦਾਤਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी सुखदाता मंनि वसावणिआ ॥
मैं तन एवं मन से उन पर कुर्बान हूँ, जो सुखदाता परमात्मा को अपने हृदय में बसाते हैं।
ਹਰਿ ਨਿਰਮਲੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀ ਸਬਦੋ ਸੁਣਿ ਤਿਸਾ ਮਿਟਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि निरमलु गुर सबदि सलाही सबदो सुणि तिसा मिटावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं गुरु के शब्द द्वारा निर्मल भगवान की महिमा-स्तुति करता हूँ और नाम को सुनकर अपनी तृष्णा को मिटा देता हूँ॥१॥ रहाउ॥
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਏ ॥
निरमल नामु वसिआ मनि आए ॥
अब निर्मल नाम आकर मेरे मन में बस गया है,
ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਗਵਾਏ ॥
मनु तनु निरमलु माइआ मोहु गवाए ॥
जिससे मेरा मन एवं तन निर्मल हो गया है और मेरे अन्तर्मन में से मोह-माया का विनाश हो गया है।
ਨਿਰਮਲ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਸਾਚੇ ਕੇ ਨਿਰਮਲ ਨਾਦੁ ਵਜਾਵਣਿਆ ॥੨॥
निरमल गुण गावै नित साचे के निरमल नादु वजावणिआ ॥२॥
जो व्यक्ति नित्य ही सत्य-परमेश्वर का गुणानुवाद करता है, उसके मन में निर्मल नाद अर्थात, अनहद शब्द गूंजने लग जाता है।॥२॥
ਨਿਰਮਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥
निरमल अम्रितु गुर ते पाइआ ॥
जो व्यक्ति गुरु से नाम रूपी निर्मल अमृत प्राप्त कर लेता है,
ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਮੁਆ ਤਿਥੈ ਮੋਹੁ ਨ ਮਾਇਆ ॥
विचहु आपु मुआ तिथै मोहु न माइआ ॥
उसके मन में से अहंकार नष्ट हो जाता है और उसके अन्तर्मन में माया का मोह नहीं रहता।
ਨਿਰਮਲ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਅਤਿ ਨਿਰਮਲੁ ਨਿਰਮਲ ਬਾਣੀ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥੩॥
निरमल गिआनु धिआनु अति निरमलु निरमल बाणी मंनि वसावणिआ ॥३॥
उसके मन में निर्मल ज्ञान उत्पन्न हो जाता है और निर्मल प्रभु में उसका पूर्ण ध्यान लगता है। वह निर्मल वाणी को अपने हृदय में बसा लेता है॥३॥
ਜੋ ਨਿਰਮਲੁ ਸੇਵੇ ਸੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਵੈ ॥
जो निरमलु सेवे सु निरमलु होवै ॥
जो व्यक्ति निर्मल परमात्मा की सेवा करता है, वह भी निर्मल हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਧੋਵੈ ॥
हउमै मैलु गुर सबदे धोवै ॥
वह गुरु के शब्द द्वारा अपने अन्तर्मन में से अहंकार की मैल को स्वच्छ कर लेता है।
ਨਿਰਮਲ ਵਾਜੈ ਅਨਹਦ ਧੁਨਿ ਬਾਣੀ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਵਣਿਆ ॥੪॥
निरमल वाजै अनहद धुनि बाणी दरि सचै सोभा पावणिआ ॥४॥
उसके मन में अनहद वाणी की निर्मल ध्वनि गूंजने लग जाती है और वह सत्य परमेश्वर के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त करता है॥४॥
ਨਿਰਮਲ ਤੇ ਸਭ ਨਿਰਮਲ ਹੋਵੈ ॥
निरमल ते सभ निरमल होवै ॥
निर्मल प्रभु से सभी निर्मल हो जाते हैं।
ਨਿਰਮਲੁ ਮਨੂਆ ਹਰਿ ਸਬਦਿ ਪਰੋਵੈ ॥
निरमलु मनूआ हरि सबदि परोवै ॥
निर्मल भगवान का नाम मनुष्य के मन को स्वयं में पिरो लेता है।
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮਿ ਲਗੇ ਬਡਭਾਗੀ ਨਿਰਮਲੁ ਨਾਮਿ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥੫॥
निरमल नामि लगे बडभागी निरमलु नामि सुहावणिआ ॥५॥
सौभाग्यशाली व्यक्ति ही निर्मल नाम में लगते हैं और निर्मल नाम द्वारा शोभा के पात्र बन जाते हैं॥ ५॥
ਸੋ ਨਿਰਮਲੁ ਜੋ ਸਬਦੇ ਸੋਹੈ ॥
सो निरमलु जो सबदे सोहै ॥
वहाँ व्यक्ति निर्मल हैं, जो शब्द द्वारा सुन्दर हो जाते हैं।
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਮੋਹੈ ॥
निरमल नामि मनु तनु मोहै ॥
निर्मल नाम उनके तन एवं मन को मुग्ध कर देता है।
ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਮਲੁ ਕਦੇ ਨ ਲਾਗੈ ਮੁਖੁ ਊਜਲੁ ਸਚੁ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੬॥
सचि नामि मलु कदे न लागै मुखु ऊजलु सचु करावणिआ ॥६॥
सत्य-नाम में ध्यान लगाने से मन को कभी भी अहंकार की मैल नहीं लगती। सत्य-नाम उसके मुख को प्रभु के दरबार में उज्ज्वल करा देता है॥ ६ ॥
ਮਨੁ ਮੈਲਾ ਹੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
मनु मैला है दूजै भाइ ॥
मन माया के मोह में फँसकर मैला हो जाता है।
ਮੈਲਾ ਚਉਕਾ ਮੈਲੈ ਥਾਇ ॥
मैला चउका मैलै थाइ ॥
यदि मन मैला हो तो उसका चौका भी अपवित्र है और वह स्थान भी अपवित्र है।
ਮੈਲਾ ਖਾਇ ਫਿਰਿ ਮੈਲੁ ਵਧਾਏ ਮਨਮੁਖ ਮੈਲੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੭॥
मैला खाइ फिरि मैलु वधाए मनमुख मैलु दुखु पावणिआ ॥७॥
वह अपवित्र भोजन सेवन करके अपने पापों की मैल और भी अधिक बढ़ा लेता है। ऐसा मनमुख पापों की मैल के कारण बड़ा दुखी होता है।॥७॥
ਮੈਲੇ ਨਿਰਮਲ ਸਭਿ ਹੁਕਮਿ ਸਬਾਏ ॥
मैले निरमल सभि हुकमि सबाए ॥
सभी जीव भगवान के हुक्म में ही मैले अथवा निर्मल बने हैं।
ਸੇ ਨਿਰਮਲ ਜੋ ਹਰਿ ਸਾਚੇ ਭਾਏ ॥
से निरमल जो हरि साचे भाए ॥
लेकिन वही मनुष्य निर्मल है जो सत्य-परमेश्वर को प्रिय लगता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੈਲੁ ਚੁਕਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧੯॥੨੦॥
नानक नामु वसै मन अंतरि गुरमुखि मैलु चुकावणिआ ॥८॥१९॥२०॥
हे नानक ! जो गुरु के माध्यम से अपने अहंकार की मैल को दूर कर लेता है, नाम उसके मन में ही आकर निवास करता है ॥८॥२०॥२१॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
ਗੋਵਿੰਦੁ ਊਜਲੁ ਊਜਲ ਹੰਸਾ ॥
गोविंदु ऊजलु ऊजल हंसा ॥
गोविन्द उज्ज्वल (सरोवर) है और गोविन्द का अंश जीवात्मा भी उज्ज्वल है।
ਮਨੁ ਬਾਣੀ ਨਿਰਮਲ ਮੇਰੀ ਮਨਸਾ ॥
मनु बाणी निरमल मेरी मनसा ॥
नाम-सिमरन से मेरा मन, वाणी एवं बुद्धि सब निर्मल हो गए हैं।
ਮਨਿ ਊਜਲ ਸਦਾ ਮੁਖ ਸੋਹਹਿ ਅਤਿ ਊਜਲ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਣਿਆ ॥੧॥
मनि ऊजल सदा मुख सोहहि अति ऊजल नामु धिआवणिआ ॥१॥
मन उज्ज्वल होने से मेरा मुख हमेशा ही सुन्दर लगता है। मैं अत्यन्त उज्ज्वल नाम का सिमरन करता रहता हूँ॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਗੋਬਿੰਦ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी गोबिंद गुण गावणिआ ॥
मैं उस पर तन एवं मन से कुर्बान हूँ जो गोबिन्द का यशोगान करता है।
ਗੋਬਿਦੁ ਗੋਬਿਦੁ ਕਹੈ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ਗੋਬਿਦ ਗੁਣ ਸਬਦਿ ਸੁਣਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गोबिदु गोबिदु कहै दिन राती गोबिद गुण सबदि सुणावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
वह दिन-रात गोविन्द-गोविन्द बोलता रहता है और वाणी द्वारा दूसरों को भी गोविन्द की महिमा सुनाता रहता है।॥१॥ रहाउ॥
ਗੋਬਿਦੁ ਗਾਵਹਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
गोबिदु गावहि सहजि सुभाए ॥
जो व्यक्ति सहज-स्वभाव ही गोविन्द का गुणानुवाद करता है,
ਗੁਰ ਕੈ ਭੈ ਊਜਲ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਜਾਏ ॥
गुर कै भै ऊजल हउमै मलु जाए ॥
गुरु के भय से उसकी अहंकार रूपी मैल दूर हो जाती है और वह उज्ज्वल हो जाता है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹਹਿ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸੁਣਿ ਗੋਬਿਦ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥੨॥
सदा अनंदि रहहि भगति करहि दिनु राती सुणि गोबिद गुण गावणिआ ॥२॥
जो व्यक्ति दिन-रात भगवान की भक्ति करता है वह सदैव आनंदपूर्वक रहता है। वह दूसरों से भगवान की महिमा सुनता है और स्वयं भी उसकी महिमा-स्तुति करता है॥ २॥
ਮਨੂਆ ਨਾਚੈ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
मनूआ नाचै भगति द्रिड़ाए ॥
भक्ति करने से मनुष्य का मन प्रसन्न होकर नृत्य करने लग जाता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਨੈ ਮਨੁ ਮਿਲਾਏ ॥
गुर कै सबदि मनै मनु मिलाए ॥
वह गुरु की वाणी द्वारा अपने अशुद्ध मन को शुद्ध मन में ही मिलाकर रखता है।
ਸਚਾ ਤਾਲੁ ਪੂਰੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਏ ਸਬਦੇ ਨਿਰਤਿ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੩॥
सचा तालु पूरे माइआ मोहु चुकाए सबदे निरति करावणिआ ॥३॥
माया के मोह को दूर करना ही गुरमुख का ताल बजाना है। उसका नाम-सिमरन ही नृत्य करना है ॥ ३ ॥
ਊਚਾ ਕੂਕੇ ਤਨਹਿ ਪਛਾੜੇ ॥
ऊचा कूके तनहि पछाड़े ॥
जो जोर-जोर से चिल्लाता है और अपने तन को गिराता है,
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਜੋਹਿਆ ਜਮਕਾਲੇ ॥
माइआ मोहि जोहिआ जमकाले ॥
माया ने उसे मुग्ध किया हुआ है। यम उसकी तरफ देख रहा है।