Hindi Page 286

ਤਾ ਕਉ ਰਾਖਤ ਦੇ ਕਰਿ ਹਾਥ ॥
ता कउ राखत दे करि हाथ ॥
उसको वह अपना हाथ देकर बचा लेता है।

ਮਾਨਸ ਜਤਨ ਕਰਤ ਬਹੁ ਭਾਤਿ ॥
मानस जतन करत बहु भाति ॥
मनुष्य अनेक विधियों से यत्न करता है,

ਤਿਸ ਕੇ ਕਰਤਬ ਬਿਰਥੇ ਜਾਤਿ ॥
तिस के करतब बिरथे जाति ॥
परन्तु उसके काम असफल हो जाते हैं।

ਮਾਰੈ ਨ ਰਾਖੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ ਸਰਬ ਜੀਆ ਕਾ ਰਾਖਾ ਸੋਇ ॥
मारै न राखै अवरु न कोइ ॥ सरब जीआ का राखा सोइ ॥
ईश्वर के अलावा दूसरा कोई मार अथवा बचा नहीं सकता। समस्त जीव-जन्तुओं का परमात्मा ही रखवाला है।

ਕਾਹੇ ਸੋਚ ਕਰਹਿ ਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
काहे सोच करहि रे प्राणी ॥
हे नश्वर प्राणी ! तुम क्यों चिन्ता करते हो ?

ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਅਲਖ ਵਿਡਾਣੀ ॥੫॥
जपि नानक प्रभ अलख विडाणी ॥५॥
हे नानक ! अलक्ष्य एवं आश्चर्यजनक परमात्मा को स्मरण कर॥ ५ ॥

ਬਾਰੰ ਬਾਰ ਬਾਰ ਪ੍ਰਭੁ ਜਪੀਐ ॥
बारं बार बार प्रभु जपीऐ ॥
बार-बार ईश्वर के नाम का जाप करना चाहिए।

ਪੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਇਹੁ ਮਨੁ ਤਨੁ ਧ੍ਰਪੀਐ ॥
पी अम्रितु इहु मनु तनु ध्रपीऐ ॥
नाम-अमृत पीकर यह मन एवं शरीर तृप्त हो जाते हैं।

ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ॥
नाम रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ ॥
जिस गुरमुख को नाम-रत्न प्राप्त हुआ है,

ਤਿਸੁ ਕਿਛੁ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਦ੍ਰਿਸਟਾਇਆ ॥
तिसु किछु अवरु नाही द्रिसटाइआ ॥
वह ईश्वर के अलावा किसी दूसरे को नहीं देखता।

ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਨਾਮੋ ਰੂਪੁ ਰੰਗੁ ॥
नामु धनु नामो रूपु रंगु ॥
नाम उसका धन है और नाम ही उसका रूप, रंग है।

ਨਾਮੋ ਸੁਖੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕਾ ਸੰਗੁ ॥
नामो सुखु हरि नाम का संगु ॥
नाम उसका सुख है और हरि का नाम ही उसका साथी होता है।

ਨਾਮ ਰਸਿ ਜੋ ਜਨ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੇ ॥
नाम रसि जो जन त्रिपताने ॥
जो मनुष्य नाम-अमृत से तृप्त हो जाते हैं,

ਮਨ ਤਨ ਨਾਮਹਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਨੇ ॥
मन तन नामहि नामि समाने ॥
उनकी आत्मा एवं शरीर केवल नाम में ही लीन हो जाते हैं।

ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤ ਨਾਮ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਕੈ ਸਦ ਕਾਮ ॥੬॥
ऊठत बैठत सोवत नाम ॥ कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥
हे नानक ! उठते-बैठते, सोते हुए सदैव ईश्वर का नाम-स्मरण ही सेवकों का काम होता हैII ६ ॥

ਬੋਲਹੁ ਜਸੁ ਜਿਹਬਾ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
बोलहु जसु जिहबा दिनु राति ॥
अपनी जिव्हा से दिन-रात परमेश्वर की गुणस्तुति करो।

ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੈ ਜਨ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥
प्रभि अपनै जन कीनी दाति ॥
यह देन परमेश्वर ने अपने सेवक को प्रदान की है।

ਕਰਹਿ ਭਗਤਿ ਆਤਮ ਕੈ ਚਾਇ ॥
करहि भगति आतम कै चाइ ॥
वह मन के उत्साह से भक्ति करता है

ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੇ ਸਿਉ ਰਹਹਿ ਸਮਾਇ ॥
प्रभ अपने सिउ रहहि समाइ ॥
और अपने प्रभु में ही लीन रहता है।

ਜੋ ਹੋਆ ਹੋਵਤ ਸੋ ਜਾਨੈ ॥ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੇ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਨੈ ॥
जो होआ होवत सो जानै ॥ प्रभ अपने का हुकमु पछानै ॥
वह जो कुछ हो रहा है, भगवान की इच्छा से सहर्ष जानता है और अपने प्रभु के हुक्म को पहचानता है।

ਤਿਸ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਉਨ ਬਖਾਨਉ ॥
तिस की महिमा कउन बखानउ ॥
उसकी महिमा कौन वर्णन कर सकता है ?

ਤਿਸ ਕਾ ਗੁਨੁ ਕਹਿ ਏਕ ਨ ਜਾਨਉ ॥
तिस का गुनु कहि एक न जानउ ॥
उसकी एक प्रशंसा को भी मैं वर्णन करना नहीं जानता।

ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਬਸਹਿ ਹਜੂਰੇ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੇਈ ਜਨ ਪੂਰੇ ॥੭॥
आठ पहर प्रभ बसहि हजूरे ॥ कहु नानक सेई जन पूरे ॥७॥
जो सारा दिन प्रभु की उपस्थिति में बसते हैं, हे नानक ! वह पूर्ण पुरुष हैं।॥ ७ ॥

ਮਨ ਮੇਰੇ ਤਿਨ ਕੀ ਓਟ ਲੇਹਿ ॥
मन मेरे तिन की ओट लेहि ॥
हे मेरे मन ! तू उनकी शरण ले।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਪਨਾ ਤਿਨ ਜਨ ਦੇਹਿ ॥
मनु तनु अपना तिन जन देहि ॥
अपना मन एवं तन उन पुरुषों को समर्पित कर दे।

ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਅਪਨਾ ਪ੍ਰਭੂ ਪਛਾਤਾ ॥ ਸੋ ਜਨੁ ਸਰਬ ਥੋਕ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥
जिनि जनि अपना प्रभू पछाता ॥ सो जनु सरब थोक का दाता ॥
जिस पुरुष ने अपने प्रभु को पहचान लिया है, वह मनुष्य समस्त वस्तुएँ देने वाला है।

ਤਿਸ ਕੀ ਸਰਨਿ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ॥
तिस की सरनि सरब सुख पावहि ॥
उसकी शरण में तुम्हें सर्व सुख मिल जाएँगे।

ਤਿਸ ਕੈ ਦਰਸਿ ਸਭ ਪਾਪ ਮਿਟਾਵਹਿ ॥
तिस कै दरसि सभ पाप मिटावहि ॥
उसके दर्शन द्वारा समस्त पाप नाश हो जाएँगे।

ਅਵਰ ਸਿਆਨਪ ਸਗਲੀ ਛਾਡੁ ॥
अवर सिआनप सगली छाडु ॥
दूसरी चतुराई त्याग कर

ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਤੂ ਸੇਵਾ ਲਾਗੁ ॥
तिसु जन की तू सेवा लागु ॥
प्रभु के उस सेवक की सेवा में स्वयं को लगा ले।

ਆਵਨੁ ਜਾਨੁ ਨ ਹੋਵੀ ਤੇਰਾ ॥ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੇ ਪੂਜਹੁ ਸਦ ਪੈਰਾ ॥੮॥੧੭॥
आवनु जानु न होवी तेरा ॥ नानक तिसु जन के पूजहु सद पैरा ॥८॥१७॥
तेरा आवागमन मिट जाएगा। हे नानक ! सदैव ही उस सेवक के चरणों की पूजा करो ॥ ८ ॥ १७ ॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਸਤਿ ਪੁਰਖੁ ਜਿਨਿ ਜਾਨਿਆ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਿਸ ਕਾ ਨਾਉ ॥
सति पुरखु जिनि जानिआ सतिगुरु तिस का नाउ ॥
जिसने सत्य स्वरूप परमात्मा को जान लिया है, उसका नाम सतिगुरु है।

ਤਿਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸਿਖੁ ਉਧਰੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਉ ॥੧॥
तिस कै संगि सिखु उधरै नानक हरि गुन गाउ ॥१॥
हे नानक ! उसकी संगति में ईश्वर की गुणस्तुति करने से उसका शिष्य भी पार हो जाता है॥ १॥

ਅਸਟਪਦੀ ॥
असटपदी ॥
अष्टपदी।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਿਖ ਕੀ ਕਰੈ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
सतिगुरु सिख की करै प्रतिपाल ॥
सतिगुरु अपने शिष्य का पालन-पोषण करता है।

ਸੇਵਕ ਕਉ ਗੁਰੁ ਸਦਾ ਦਇਆਲ ॥
सेवक कउ गुरु सदा दइआल ॥
अपने सेवक पर गुरु जी हमेशा दयालु रहते हैं।

ਸਿਖ ਕੀ ਗੁਰੁ ਦੁਰਮਤਿ ਮਲੁ ਹਿਰੈ ॥
सिख की गुरु दुरमति मलु हिरै ॥
गुरु अपने शिष्य की मंदबुद्धि रूपी मैल को साफ कर देते हैं।

ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਚਰੈ ॥
गुर बचनी हरि नामु उचरै ॥
गुरु के उपदेश द्वारा वह हरि के नाम का जाप करता है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਿਖ ਕੇ ਬੰਧਨ ਕਾਟੈ ॥
सतिगुरु सिख के बंधन काटै ॥
सतिगुरु अपने शिष्य के बन्धन काट देते हैं।

ਗੁਰ ਕਾ ਸਿਖੁ ਬਿਕਾਰ ਤੇ ਹਾਟੈ ॥
गुर का सिखु बिकार ते हाटै ॥
गुरु का शिष्य विकारों से हट जाता है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਿਖ ਕਉ ਨਾਮ ਧਨੁ ਦੇਇ ॥
सतिगुरु सिख कउ नाम धनु देइ ॥
सतिगुरु अपने शिष्य को ईश्वर-नाम रूपी धन प्रदान करते हैं।

ਗੁਰ ਕਾ ਸਿਖੁ ਵਡਭਾਗੀ ਹੇ ॥
गुर का सिखु वडभागी हे ॥
गुरु का शिष्य बड़ा भाग्यशाली है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਿਖ ਕਾ ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਵਾਰੈ ॥
सतिगुरु सिख का हलतु पलतु सवारै ॥
सतिगुरु अपने शिष्य का इहलोक एवं परलोक संवार देते हैं।

ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਿਖ ਕਉ ਜੀਅ ਨਾਲਿ ਸਮਾਰੈ ॥੧॥
नानक सतिगुरु सिख कउ जीअ नालि समारै ॥१॥
हे नानक ! सतिगुरु अपने शिष्य को अपने हृदय से लगाकर रखता है ॥ १ ॥

ਗੁਰ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸੇਵਕੁ ਜੋ ਰਹੈ ॥
गुर कै ग्रिहि सेवकु जो रहै ॥
जो सेवक गुरु के घर में रहता है,

ਗੁਰ ਕੀ ਆਗਿਆ ਮਨ ਮਹਿ ਸਹੈ ॥
गुर की आगिआ मन महि सहै ॥
वह गुरु की आज्ञा सहर्ष मन में स्वीकार करता है।

ਆਪਸ ਕਉ ਕਰਿ ਕਛੁ ਨ ਜਨਾਵੈ ॥
आपस कउ करि कछु न जनावै ॥
वह अपने आपको बड़ा नहीं जतलाता।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਸਦ ਧਿਆਵੈ ॥
हरि हरि नामु रिदै सद धिआवै ॥
वह अपने हृदय में हमेशा ही हरि-परमेश्वर के नाम का ध्यान करता रहता है।

ਮਨੁ ਬੇਚੈ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਪਾਸਿ ॥
मनु बेचै सतिगुर कै पासि ॥
जो अपना मन सतिगुरु के समक्ष बेच देता है,

ਤਿਸੁ ਸੇਵਕ ਕੇ ਕਾਰਜ ਰਾਸਿ ॥
तिसु सेवक के कारज रासि ॥
उस सेवक के तमाम कार्य संवर जाते हैं।

ਸੇਵਾ ਕਰਤ ਹੋਇ ਨਿਹਕਾਮੀ ॥
सेवा करत होइ निहकामी ॥
जो सेवक निष्काम भावना से गुरु की सेवा करता है,

ਤਿਸ ਕਉ ਹੋਤ ਪਰਾਪਤਿ ਸੁਆਮੀ ॥
तिस कउ होत परापति सुआमी ॥
वह प्रभु को पा लेता है।

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