ਰਾਮੁ ਰਾਜਾ ਨਉ ਨਿਧਿ ਮੇਰੈ ॥
रामु राजा नउ निधि मेरै ॥
प्रभु ही मेरे लिए नवनिधि है,
ਸੰਪੈ ਹੇਤੁ ਕਲਤੁ ਧਨੁ ਤੇਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
स्मपै हेतु कलतु धनु तेरै ॥१॥ रहाउ ॥
यह सम्पति, मोह-प्रेम, स्त्री, धन इत्यादि तेरे ही दिए हुए हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਆਵਤ ਸੰਗ ਨ ਜਾਤ ਸੰਗਾਤੀ ॥
आवत संग न जात संगाती ॥
न ही साथ आता है और न ही साथ जाता है,
ਕਹਾ ਭਇਓ ਦਰਿ ਬਾਂਧੇ ਹਾਥੀ ॥੨॥
कहा भइओ दरि बांधे हाथी ॥२॥
फिर द्वार पर हाथी इत्यादि बांधने का क्या लाभ है॥२॥
ਲੰਕਾ ਗਢੁ ਸੋਨੇ ਕਾ ਭਇਆ ॥
लंका गढु सोने का भइआ ॥
लंका सोने का दुर्ग थी,
ਮੂਰਖੁ ਰਾਵਨੁ ਕਿਆ ਲੇ ਗਇਆ ॥੩॥
मूरखु रावनु किआ ले गइआ ॥३॥
पर मूर्ख रावण भला क्या लेकर यहाँ से गया॥३॥
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਕਿਛੁ ਗੁਨੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
कहि कबीर किछु गुनु बीचारि ॥
कबीर जी कहते हैं कि प्रभु-गुणों का चिंतन करो अन्यथा
ਚਲੇ ਜੁਆਰੀ ਦੁਇ ਹਥ ਝਾਰਿ ॥੪॥੨॥
चले जुआरी दुइ हथ झारि ॥४॥२॥
जुआरी की मानिंद दोनों हाथ झाड़कर चले जाओगे॥४॥२॥
ਮੈਲਾ ਬ੍ਰਹਮਾ ਮੈਲਾ ਇੰਦੁ ॥
मैला ब्रहमा मैला इंदु ॥
(अपनी ही पुत्री को कामवासना की दृष्टि से देखने के कारण) ब्रह्मा मलिन है, (गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या से छलपूर्वक भोग के कारण) इन्द्र भी मैला है।
ਰਵਿ ਮੈਲਾ ਮੈਲਾ ਹੈ ਚੰਦੁ ॥੧॥
रवि मैला मैला है चंदु ॥१॥
सूर्य एवं चाँद दोनों ही मैले हैं।॥१॥
ਮੈਲਾ ਮਲਤਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥
मैला मलता इहु संसारु ॥
यह पूरा संसार मलिनता मलता रहता है,
ਇਕੁ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲੁ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इकु हरि निरमलु जा का अंतु न पारु ॥१॥ रहाउ ॥
एकमात्र ईश्वर ही निर्मल एवं पावनस्वरूप है, जिसका कोई अन्त अथवा आर-पार नहीं॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈਲੇ ਬ੍ਰਹਮੰਡਾਇ ਕੈ ਈਸ ॥
मैले ब्रहमंडाइ कै ईस ॥
ब्रह्माण्डों के सम्राट भी कर्मो के कारण मलिन हैं,
ਮੈਲੇ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਦਿਨ ਤੀਸ ॥੨॥
मैले निसि बासुर दिन तीस ॥२॥
दिन-रात एवं तीस दिन भी मैले हैं।॥२॥
ਮੈਲਾ ਮੋਤੀ ਮੈਲਾ ਹੀਰੁ ॥
मैला मोती मैला हीरु ॥
हीरा एवं मोती मैले हैं।
ਮੈਲਾ ਪਉਨੁ ਪਾਵਕੁ ਅਰੁ ਨੀਰੁ ॥੩॥
मैला पउनु पावकु अरु नीरु ॥३॥
वायु, अग्नि और पानी भी मैले हैं।॥३॥
ਮੈਲੇ ਸਿਵ ਸੰਕਰਾ ਮਹੇਸ ॥
मैले सिव संकरा महेस ॥
शिवशंकर महेश मलिन हैं,
ਮੈਲੇ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਅਰੁ ਭੇਖ ॥੪॥
मैले सिध साधिक अरु भेख ॥४॥
सिद्ध-साधक एवं वेषधारी भी मैले ही मैले हैं॥४॥
ਮੈਲੇ ਜੋਗੀ ਜੰਗਮ ਜਟਾ ਸਹੇਤਿ ॥
मैले जोगी जंगम जटा सहेति ॥
योगी, जंगम जटाधारी मलिन हैं,
ਮੈਲੀ ਕਾਇਆ ਹੰਸ ਸਮੇਤਿ ॥੫॥
मैली काइआ हंस समेति ॥५॥
शरीर सहित आत्मा भी मैली है॥५॥
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਤੇ ਜਨ ਪਰਵਾਨ ॥ ਨਿਰਮਲ ਤੇ ਜੋ ਰਾਮਹਿ ਜਾਨ ॥੬॥੩॥
कहि कबीर ते जन परवान ॥ निरमल ते जो रामहि जान ॥६॥३॥
कबीर जी कहते हैं कि वही व्यक्ति परवान होते हैं, जो भगवान को जानकर निर्मल रहते हैं॥ ६॥३॥
ਮਨੁ ਕਰਿ ਮਕਾ ਕਿਬਲਾ ਕਰਿ ਦੇਹੀ ॥
मनु करि मका किबला करि देही ॥
मन को मक्का और शरीर को किबला बना लो,
ਬੋਲਨਹਾਰੁ ਪਰਮ ਗੁਰੁ ਏਹੀ ॥੧॥
बोलनहारु परम गुरु एही ॥१॥
अन्तर्मन में बोलने वाला ही तेरा परम गुरु है॥१॥
ਕਹੁ ਰੇ ਮੁਲਾਂ ਬਾਂਗ ਨਿਵਾਜ ॥ ਏਕ ਮਸੀਤਿ ਦਸੈ ਦਰਵਾਜ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कहु रे मुलां बांग निवाज ॥ एक मसीति दसै दरवाज ॥१॥ रहाउ ॥
हे मुल्ला ! बाँग देकर नमाज़ पढ़, उस दस द्वार वाली शरीर रूपी मस्जिद में॥१॥ रहाउ॥
ਮਿਸਿਮਿਲਿ ਤਾਮਸੁ ਭਰਮੁ ਕਦੂਰੀ ॥
मिसिमिलि तामसु भरमु कदूरी ॥
क्रोध एवं भ्रम को बिस्मिल्लाह कहकर खत्म कर और
ਭਾਖਿ ਲੇ ਪੰਚੈ ਹੋਇ ਸਬੂਰੀ ॥੨॥
भाखि ले पंचै होइ सबूरी ॥२॥
पाँच विकारों को निगल कर संतोषवान बन जा॥२॥
ਹਿੰਦੂ ਤੁਰਕ ਕਾ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕ ॥
हिंदू तुरक का साहिबु एक ॥
वास्तव में हिन्दू एवं मुसलमान का मालिक एक ईश्वर ही है,
ਕਹ ਕਰੈ ਮੁਲਾਂ ਕਹ ਕਰੈ ਸੇਖ ॥੩॥
कह करै मुलां कह करै सेख ॥३॥
चाहे मुल्ला एवं शेख कुछ भी कहते एवं करते रहें।॥३॥
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਹਉ ਭਇਆ ਦਿਵਾਨਾ ॥
कहि कबीर हउ भइआ दिवाना ॥
कबीर जी कहते हैं कि मैं तो परमात्मा का दीवाना हो गया हूँ और
ਮੁਸਿ ਮੁਸਿ ਮਨੂਆ ਸਹਜਿ ਸਮਾਨਾ ॥੪॥੪॥
मुसि मुसि मनूआ सहजि समाना ॥४॥४॥
आहिस्ता-आहिस्ता मन को मारकर सहज ही विलीन हो गया हूँ॥४॥ ४॥
ਗੰਗਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸਲਿਤਾ ਬਿਗਰੀ ॥ ਸੋ ਸਲਿਤਾ ਗੰਗਾ ਹੋਇ ਨਿਬਰੀ ॥੧॥
गंगा कै संगि सलिता बिगरी ॥ सो सलिता गंगा होइ निबरी ॥१॥
छोटी-सी नदिया गंगा के साथ विलीन हो गई, सो वह नदिया भी गंगा ही बन गई॥१॥
ਬਿਗਰਿਓ ਕਬੀਰਾ ਰਾਮ ਦੁਹਾਈ ॥
बिगरिओ कबीरा राम दुहाई ॥
राम की दुहाई देकर कबीर भी राम में विलीन हो गया और
ਸਾਚੁ ਭਇਓ ਅਨ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साचु भइओ अन कतहि न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
वह सत्यस्वरूप बन गया, अन्य कहीं नहीं जाता॥१॥ रहाउ॥
ਚੰਦਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰਵਰੁ ਬਿਗਰਿਓ ॥
चंदन कै संगि तरवरु बिगरिओ ॥
पेड़ चन्दन की खुशबू के साथ लीन हुआ तो
ਸੋ ਤਰਵਰੁ ਚੰਦਨੁ ਹੋਇ ਨਿਬਰਿਓ ॥੨॥
सो तरवरु चंदनु होइ निबरिओ ॥२॥
वह पेड़ भी चन्दन ही बन गया॥२॥
ਪਾਰਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਾਂਬਾ ਬਿਗਰਿਓ ॥
पारस कै संगि तांबा बिगरिओ ॥
पारस के संग मिलकर ताँबा भी बदला है,
ਸੋ ਤਾਂਬਾ ਕੰਚਨੁ ਹੋਇ ਨਿਬਰਿਓ ॥੩॥
सो तांबा कंचनु होइ निबरिओ ॥३॥
वह ताँबा (लोहा) सोना ही बन गया॥ ३॥
ਸੰਤਨ ਸੰਗਿ ਕਬੀਰਾ ਬਿਗਰਿਓ ॥
संतन संगि कबीरा बिगरिओ ॥
संतों की संगत में कबीर भी बदल गया,
ਸੋ ਕਬੀਰੁ ਰਾਮੈ ਹੋਇ ਨਿਬਰਿਓ ॥੪॥੫॥
सो कबीरु रामै होइ निबरिओ ॥४॥५॥
अब कबीर भी राम का रूप हो गया॥४॥५॥
ਮਾਥੇ ਤਿਲਕੁ ਹਥਿ ਮਾਲਾ ਬਾਨਾਂ ॥
माथे तिलकु हथि माला बानां ॥
माथे पर तिलक लगाया एवं हाथ में माला पकड़ ली,
ਲੋਗਨ ਰਾਮੁ ਖਿਲਉਨਾ ਜਾਨਾਂ ॥੧॥
लोगन रामु खिलउना जानां ॥१॥
ऐसा भेष बनाकर लोगों ने राम को खिलौना ही मान लिया है॥१॥
ਜਉ ਹਉ ਬਉਰਾ ਤਉ ਰਾਮ ਤੋਰਾ ॥
जउ हउ बउरा तउ राम तोरा ॥
हे राम ! अगर मैं बावला हूँ, तो भी तेरा ही हूँ।
ਲੋਗੁ ਮਰਮੁ ਕਹ ਜਾਨੈ ਮੋਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लोगु मरमु कह जानै मोरा ॥१॥ रहाउ ॥
अब लोग भला मेरा भेद कैसे जानें॥१॥रहाउ॥
ਤੋਰਉ ਨ ਪਾਤੀ ਪੂਜਉ ਨ ਦੇਵਾ ॥
तोरउ न पाती पूजउ न देवा ॥
फूल-पते तोड़कर किसी देवी-देवता की पूजा नहीं करता,
ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਬਿਨੁ ਨਿਹਫਲ ਸੇਵਾ ॥੨॥
राम भगति बिनु निहफल सेवा ॥२॥
वास्तव में राम की भक्ति के बिना अन्य सेवा निष्फल है॥२॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਜਉ ਸਦਾ ਸਦਾ ਮਨਾਵਉ ॥
सतिगुरु पूजउ सदा सदा मनावउ ॥
सतगुरु की पूजा कर उसे सदा मनाता हूँ,
ਐਸੀ ਸੇਵ ਦਰਗਹ ਸੁਖੁ ਪਾਵਉ ॥੩॥
ऐसी सेव दरगह सुखु पावउ ॥३॥
क्योंकि ऐसी सेवा से ही दरबार में सुख मिलता है।॥३॥
ਲੋਗੁ ਕਹੈ ਕਬੀਰੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥
लोगु कहै कबीरु बउराना ॥
नि:संकोच लोग कबीर को बावला कहते हैं,
ਕਬੀਰ ਕਾ ਮਰਮੁ ਰਾਮ ਪਹਿਚਾਨਾਂ ॥੪॥੬॥
कबीर का मरमु राम पहिचानां ॥४॥६॥
मगर कबीर का रहस्य राम ही पहचान पाया है॥ ४॥६॥
ਉਲਟਿ ਜਾਤਿ ਕੁਲ ਦੋਊ ਬਿਸਾਰੀ ॥
उलटि जाति कुल दोऊ बिसारी ॥
मोह-माया की तरफ से निर्लिप्त होकर जाति एवं कुल दोनों को भुला दिया है और
ਸੁੰਨ ਸਹਜ ਮਹਿ ਬੁਨਤ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥
सुंन सहज महि बुनत हमारी ॥१॥
शून्य समाधि में सहज आनंद पा रहे हैं।॥१॥
ਹਮਰਾ ਝਗਰਾ ਰਹਾ ਨ ਕੋਊ ॥
हमरा झगरा रहा न कोऊ ॥
अब हमारा कोई सांसारिक झगड़ा नहीं रहा,