Hindi Page 487

ਤਾ ਮਹਿ ਮਗਨ ਹੋਤ ਨ ਤੇਰੋ ਜਨੁ ॥੨॥
ता महि मगन होत न तेरो जनु ॥२॥
तेरा सेवक इनके भीतर मग्न नहीं होता॥ २॥

ਪ੍ਰੇਮ ਕੀ ਜੇਵਰੀ ਬਾਧਿਓ ਤੇਰੋ ਜਨ ॥
प्रेम की जेवरी बाधिओ तेरो जन ॥
रविदास कहते हैं कि हे प्रभु ! तेरा सेवक तेरी प्रेम की रस्सी से बंधा हुआ है,

ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਛੂਟਿਬੋ ਕਵਨ ਗੁਨ ॥੩॥੪॥
कहि रविदास छूटिबो कवन गुन ॥३॥४॥
फिर इससे छूटने का क्या अभिप्राय है॥ ३॥ ४॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥
हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे ॥
“‘हरि हरि’ ‘हरि-हरि’, नाम मंत्र का ही जाप करो।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਜਨ ਗਏ ਨਿਸਤਰਿ ਤਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे ॥१॥ रहाउ ॥
हरि का सिमरन करने से भक्तजन भवसागर से मुक्ति प्राप्त कर गए हैं। १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕਬੀਰ ਉਜਾਗਰ ॥
हरि के नाम कबीर उजागर ॥
हरि के नाम-स्मरण से ही कबीर दुनिया में विख्यात हुआ और

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਾਟੇ ਕਾਗਰ ॥੧॥
जनम जनम के काटे कागर ॥१॥
उसका जन्म-जन्मांतर का कर्मालेख मिट गया ॥ १॥

ਨਿਮਤ ਨਾਮਦੇਉ ਦੂਧੁ ਪੀਆਇਆ ॥
निमत नामदेउ दूधु पीआइआ ॥
नामदेव ने भक्ति के निमित्त प्रभु को दूध पिलाया,

ਤਉ ਜਗ ਜਨਮ ਸੰਕਟ ਨਹੀ ਆਇਆ ॥੨॥
तउ जग जनम संकट नही आइआ ॥२॥
जिसके फलस्वरूप वह जगत के जन्म संकट में नहीं आया ॥ २॥

ਜਨ ਰਵਿਦਾਸ ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
जन रविदास राम रंगि राता ॥
सेवक रविदास राम के प्रेम-रंग में अनुरक्त हुआ।

ਇਉ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਨਰਕ ਨਹੀ ਜਾਤਾ ॥੩॥੫॥
इउ गुर परसादि नरक नही जाता ॥३॥५॥
इस तरह वह गुरु की कृपा से नरक में नहीं जाएगा ॥ ३ ॥ ५ ॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਮਾਟੀ ਕੋ ਪੁਤਰਾ ਕੈਸੇ ਨਚਤੁ ਹੈ ॥
माटी को पुतरा कैसे नचतु है ॥
आदमी मिट्टी का पुतला है लेकिन फिर भी (सांसारिक मोह में फंसकर) कैसे व्यंग्यपूर्ण नाचता है।

ਦੇਖੈ ਦੇਖੈ ਸੁਨੈ ਬੋਲੈ ਦਉਰਿਓ ਫਿਰਤੁ ਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरतु है ॥१॥ रहाउ ॥
बह बार-बार देखता, सुनता, बोलता और दौड़ता ही रहता है॥ १॥ रहाउ॥

ਜਬ ਕਛੁ ਪਾਵੈ ਤਬ ਗਰਬੁ ਕਰਤੁ ਹੈ ॥
जब कछु पावै तब गरबु करतु है ॥
जब वह कुछ उपलब्धि करता है तो उस उपलब्धि का बड़ा अहंकार करता है।

ਮਾਇਆ ਗਈ ਤਬ ਰੋਵਨੁ ਲਗਤੁ ਹੈ ॥੧॥
माइआ गई तब रोवनु लगतु है ॥१॥
लेकिन जब धन-दौलत इत्यादि उसकी चली जाती है तो फूट-फूट कर रोने लगता है॥ १॥

ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਰਸ ਕਸਹਿ ਲੁਭਾਨਾ ॥
मन बच क्रम रस कसहि लुभाना ॥
मन, वचन एवं कर्मों के कारण वह मीठे एवं लुभावने सांसारिक पदार्थों में मग्न रहता है।

ਬਿਨਸਿ ਗਇਆ ਜਾਇ ਕਹੂੰ ਸਮਾਨਾ ॥੨॥
बिनसि गइआ जाइ कहूं समाना ॥२॥
लेकिन जब उसके जीवन का अंत हो जाता है तो पता नहीं चलता कि वह किस स्थान में जाकर समा जाता है॥ २ ॥

ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਬਾਜੀ ਜਗੁ ਭਾਈ ॥
कहि रविदास बाजी जगु भाई ॥
रविदास जी कहते हैं कि हे भाई ! यह जीवन एक बाजी है तथा

ਬਾਜੀਗਰ ਸਉ ਮੋੁਹਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਨਿ ਆਈ ॥੩॥੬॥
बाजीगर सउ मोहि प्रीति बनि आई ॥३॥६॥
बाजीगर प्रभु से मेरी प्रीति बन गई है॥ ३॥ ६॥

ਆਸਾ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਧੰਨੇ ਜੀ ਕੀ
आसा बाणी भगत धंने जी की
आसा बाणी भगत धंने जी की

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਭ੍ਰਮਤ ਫਿਰਤ ਬਹੁ ਜਨਮ ਬਿਲਾਨੇ ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਨਹੀ ਧੀਰੇ ॥
भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने तनु मनु धनु नही धीरे ॥
अनेक जन्म आवागमन के चक्र में भटकते हुए व्यतीत हो गए लेकिन तन, मन, धन तीनों ही स्थिर नहीं रहते।

ਲਾਲਚ ਬਿਖੁ ਕਾਮ ਲੁਬਧ ਰਾਤਾ ਮਨਿ ਬਿਸਰੇ ਪ੍ਰਭ ਹੀਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लालच बिखु काम लुबध राता मनि बिसरे प्रभ हीरे ॥१॥ रहाउ ॥
लालच एवं कामवासना के विष में लुब्ध होकर इस मन ने प्रभु रूपी हीरे को विस्मृत कर दिया है॥ १॥ रहाउ ॥

ਬਿਖੁ ਫਲ ਮੀਠ ਲਗੇ ਮਨ ਬਉਰੇ ਚਾਰ ਬਿਚਾਰ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥
बिखु फल मीठ लगे मन बउरे चार बिचार न जानिआ ॥
बावले मन को विषय-विकारों का फल मीठा लगता है तथा सुन्दर विचारों को जाना नहीं है।

ਗੁਨ ਤੇ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਢੀ ਅਨ ਭਾਂਤੀ ਜਨਮ ਮਰਨ ਫਿਰਿ ਤਾਨਿਆ ॥੧॥
गुन ते प्रीति बढी अन भांती जनम मरन फिरि तानिआ ॥१॥
शुभ गुणों के विपरीत पापों की अनेक भ्रांतियों से उसका प्रेम अधिकतर बढ़ गया है और वह दोबारा जन्म-मरण का ताना-बाना बना रहता है।॥ १॥

ਜੁਗਤਿ ਜਾਨਿ ਨਹੀ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੀ ਜਲਤ ਜਾਲ ਜਮ ਫੰਧ ਪਰੇ ॥
जुगति जानि नही रिदै निवासी जलत जाल जम फंध परे ॥
उस प्रभु मिलन की युक्ति को नहीं जानता जो ह्रदय में निवास करता है। मोह के जाल में जलता हुआ वह मृत्यु के फंदे में फंस गया है।

ਬਿਖੁ ਫਲ ਸੰਚਿ ਭਰੇ ਮਨ ਐਸੇ ਪਰਮ ਪੁਰਖ ਪ੍ਰਭ ਮਨ ਬਿਸਰੇ ॥੨॥
बिखु फल संचि भरे मन ऐसे परम पुरख प्रभ मन बिसरे ॥२॥
हे मेरे मन ! इस तरह तूने विष रूपी फल संचित करके अपने हृदय-घर में भर लिए हैं और परमपुरुष प्रभु भूल गया है॥ २॥

ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਵੇਸੁ ਗੁਰਹਿ ਧਨੁ ਦੀਆ ਧਿਆਨੁ ਮਾਨੁ ਮਨ ਏਕ ਮਏ ॥
गिआन प्रवेसु गुरहि धनु दीआ धिआनु मानु मन एक मए ॥
जब गुरु ने मुझे नाम-धन दिया तो मन में ज्ञान का प्रवेश हो गया। ध्यान लगाने से मेरा मन प्रभु से एकाकार हो गया।

ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਮਾਨੀ ਸੁਖੁ ਜਾਨਿਆ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਨੇ ਮੁਕਤਿ ਭਏ ॥੩॥
प्रेम भगति मानी सुखु जानिआ त्रिपति अघाने मुकति भए ॥३॥
प्रभु की प्रेम-भक्ति को धारण करने से मन को आत्मिक सुख की अनुभूति हो गई है और इस तरह मन तृप्त एवं संतुष्ट होने से मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो गई॥ ३॥

ਜੋਤਿ ਸਮਾਇ ਸਮਾਨੀ ਜਾ ਕੈ ਅਛਲੀ ਪ੍ਰਭੁ ਪਹਿਚਾਨਿਆ ॥
जोति समाइ समानी जा कै अछली प्रभु पहिचानिआ ॥
जिस मनुष्य के भीतर सर्वव्यापक परमात्मा की ज्योति समाई है, उसने निश्चल भगवान को पहचान लिया है।

ਧੰਨੈ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਧਰਣੀਧਰੁ ਮਿਲਿ ਜਨ ਸੰਤ ਸਮਾਨਿਆ ॥੪॥੧॥
धंनै धनु पाइआ धरणीधरु मिलि जन संत समानिआ ॥४॥१॥
धन्ना जी का कथन है कि उसने धरणीधर प्रभु को अमूल्य धन के रूप में प्राप्त कर लिया है तथा संतों की संगति में मिलकर वह उसमें समा गया है॥ ४॥ १॥

ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५ ॥
महला ५ ॥

ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦ ਸੰਗਿ ਨਾਮਦੇਉ ਮਨੁ ਲੀਣਾ ॥
गोबिंद गोबिंद गोबिंद संगि नामदेउ मनु लीणा ॥
गोविंद का नाम जपने से नामदेव का मन गोविंद में ही लीन हुआ था,

ਆਢ ਦਾਮ ਕੋ ਛੀਪਰੋ ਹੋਇਓ ਲਾਖੀਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आढ दाम को छीपरो होइओ लाखीणा ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके फलस्वरूप वह दो कौड़ी का छीपी लखपति बन गया ॥ १॥ रहाउ॥

ਬੁਨਨਾ ਤਨਨਾ ਤਿਆਗਿ ਕੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਰਨ ਕਬੀਰਾ ॥
बुनना तनना तिआगि कै प्रीति चरन कबीरा ॥
कबीर जी ने बुनने तथा तानने के कार्य को छोड़कर ईश्वर के चरणों में प्रीति लगाई थी,

ਨੀਚ ਕੁਲਾ ਜੋਲਾਹਰਾ ਭਇਓ ਗੁਨੀਯ ਗਹੀਰਾ ॥੧॥
नीच कुला जोलाहरा भइओ गुनीय गहीरा ॥१॥
जिसके फलस्वरूप वह नीच कुल का जुलाहा गुणों का सागर बन गया ॥ १॥

ਰਵਿਦਾਸੁ ਢੁਵੰਤਾ ਢੋਰ ਨੀਤਿ ਤਿਨਿ ਤਿਆਗੀ ਮਾਇਆ ॥
रविदासु ढुवंता ढोर नीति तिनि तिआगी माइआ ॥
रविदास जी जो प्रतिदिन मृत पशु ढोते थे, उन्होंने भी सांसारिक माया को त्याग दिया तो

ਪਰਗਟੁ ਹੋਆ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
परगटु होआ साधसंगि हरि दरसनु पाइआ ॥२॥
वह साधुओं की संगति में रहकर सुविख्यात हो गए और उन्हें हरि के दर्शन प्राप्त हुए॥ २॥

ਸੈਨੁ ਨਾਈ ਬੁਤਕਾਰੀਆ ਓਹੁ ਘਰਿ ਘਰਿ ਸੁਨਿਆ ॥
सैनु नाई बुतकारीआ ओहु घरि घरि सुनिआ ॥
सैन नाई छोटे-मोटे सामान्य कार्य लोगों के यहाँ करने वाला सुना जाता था लेकिन

ਹਿਰਦੇ ਵਸਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਭਗਤਾ ਮਹਿ ਗਨਿਆ ॥੩॥
हिरदे वसिआ पारब्रहमु भगता महि गनिआ ॥३॥
जब उसके चित्त में भगवान निवसित हो गया तो वह भी भक्तजनों में गिना जाने लगा।॥ ३॥

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