Hindi Page 496

ਹਰਿ ਧਨ ਮੇਰੀ ਚਿੰਤ ਵਿਸਾਰੀ ਹਰਿ ਧਨਿ ਲਾਹਿਆ ਧੋਖਾ ॥
हरि धन मेरी चिंत विसारी हरि धनि लाहिआ धोखा ॥
हरि के नाम-धन द्वारा मेरी चिन्ता मिट गई है तथा हरि के नाम-धन द्वारा मेरा धोखा दूर हो गया है।

ਹਰਿ ਧਨ ਤੇ ਮੈ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ਹਾਥਿ ਚਰਿਓ ਹਰਿ ਥੋਕਾ ॥੩॥
हरि धन ते मै नव निधि पाई हाथि चरिओ हरि थोका ॥३॥
हरि के नाम-धन से मुझे नवनिधियों प्राप्त हुई हैं और हरि-नाम-धन सार वस्तु मेरे हाथ लग गया है॥ ३॥

ਖਾਵਹੁ ਖਰਚਹੁ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਹਲਤ ਪਲਤ ਕੈ ਸੰਗੇ ॥
खावहु खरचहु तोटि न आवै हलत पलत कै संगे ॥
इस नाम रूपी धन को खाने एवं खर्च करने से भी यह कम नहीं होता तथा आगे लोक-परलोक में भी सदा साथ रहता है।

ਲਾਦਿ ਖਜਾਨਾ ਗੁਰਿ ਨਾਨਕ ਕਉ ਦੀਆ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰੰਗੇ ॥੪॥੨॥੩॥
लादि खजाना गुरि नानक कउ दीआ इहु मनु हरि रंगि रंगे ॥४॥२॥३॥
इस खजाने को लाद कर गुरुदेव ने नानक को दिया है और उसका मन हरि के रंग में रंग गया है॥ ४ ॥ २ ॥ ३ ॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥

ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਸਭਿ ਕਿਲਵਿਖ ਨਾਸਹਿ ਪਿਤਰੀ ਹੋਇ ਉਧਾਰੋ ॥
जिसु सिमरत सभि किलविख नासहि पितरी होइ उधारो ॥
जिसका सिमरन करने से सभी पाप-विकार नाश हो जाते हैं और पूर्वजों-पितरों का भी उद्धार हो जाता है,

ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਦ ਹੀ ਜਾਪਹੁ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰੋ ॥੧॥
सो हरि हरि तुम्ह सद ही जापहु जा का अंतु न पारो ॥१॥
उस हरि-परमेश्वर का तू सदैव ही जाप कर, जिसका कोई अन्त (ओर-छोर) एवं पारावार नहीं ॥ १॥

ਪੂਤਾ ਮਾਤਾ ਕੀ ਆਸੀਸ ॥
पूता माता की आसीस ॥
हे पुत्र ! माता की तुझे यही आशीष है कि

ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਸਰਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਦਾ ਭਜਹੁ ਜਗਦੀਸ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निमख न बिसरउ तुम्ह कउ हरि हरि सदा भजहु जगदीस ॥१॥ रहाउ ॥
एक क्षण भर के लिए भी तुझे भगवान विस्मृत न हो तथा तुम सदैव ही जगदीश का भजन करते रहो।॥ १॥ रहाउ॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਹੋਇ ਦਇਆਲਾ ਸੰਤਸੰਗਿ ਤੇਰੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
सतिगुरु तुम्ह कउ होइ दइआला संतसंगि तेरी प्रीति ॥
सतिगुरु जी तुझ पर दयालु रहें तथा संतों की संगति में तेरी प्रीति बनी रहे।

ਕਾਪੜੁ ਪਤਿ ਪਰਮੇਸਰੁ ਰਾਖੀ ਭੋਜਨੁ ਕੀਰਤਨੁ ਨੀਤਿ ॥੨॥
कापड़ु पति परमेसरु राखी भोजनु कीरतनु नीति ॥२॥
परमेश्वर का तेरी मान-प्रतिष्ठा को बचाना तेरा वस्त्र होवे तथा उसका भजन-कीर्तन करना तेरा प्रतिदिन का भोजन हो। ॥२ ॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵਹੁ ਸਦਾ ਚਿਰੁ ਜੀਵਹੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਅਨਦ ਅਨੰਤਾ ॥
अम्रितु पीवहु सदा चिरु जीवहु हरि सिमरत अनद अनंता ॥
सदैव ही प्रभु के नाम का अमृतपान करता रहे। ईश्वर करे तुम चिरंजीव रहो तथा हरि का सिमरन तुझे अनंत आनन्द प्रदान करे।

ਰੰਗ ਤਮਾਸਾ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ਕਬਹਿ ਨ ਬਿਆਪੈ ਚਿੰਤਾ ॥੩॥
रंग तमासा पूरन आसा कबहि न बिआपै चिंता ॥३॥
जीवन में सदा हर्षोल्लास बना रहे, सभी आशाएँ पूर्ण हों एवं कोई चिन्ता कभी तंग न करे ॥ ३ ॥

ਭਵਰੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹੋਵਉ ਹਰਿ ਚਰਣਾ ਹੋਹੁ ਕਉਲਾ ॥
भवरु तुम्हारा इहु मनु होवउ हरि चरणा होहु कउला ॥
तुम्हारा यह मन भंवरा होवे तथा हरि के सुन्दर चरण कमल के फूल हों।

ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਉਨ ਸੰਗਿ ਲਪਟਾਇਓ ਜਿਉ ਬੂੰਦਹਿ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਮਉਲਾ ॥੪॥੩॥੪॥
नानक दासु उन संगि लपटाइओ जिउ बूंदहि चात्रिकु मउला ॥४॥३॥४॥
हे नानक ! तू हरि-चरणों से यूं लिपटा रह, जैसे चातक स्वाति-बूँद का पान करके खिल जाता है ॥४॥३॥४॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥

ਮਤਾ ਕਰੈ ਪਛਮ ਕੈ ਤਾਈ ਪੂਰਬ ਹੀ ਲੈ ਜਾਤ ॥
मता करै पछम कै ताई पूरब ही लै जात ॥
इन्सान पश्चिम की तरफ जाने की सलाह बनाता है परन्तु भगवान उसे पूर्व की तरफ ले जाता है।

ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰਾ ਆਪਨ ਹਾਥਿ ਮਤਾਤ ॥੧॥
खिन महि थापि उथापनहारा आपन हाथि मतात ॥१॥
एक क्षण भर में ही-भगवान रचना करने एवं विनाश करने में समर्थ है। सब फैसले परमात्मा के वश में हैं।

ਸਿਆਨਪ ਕਾਹੂ ਕਾਮਿ ਨ ਆਤ ॥
सिआनप काहू कामि न आत ॥
इन्सान की बुद्धिमत्ता किसी काम में नहीं आती।

ਜੋ ਅਨਰੂਪਿਓ ਠਾਕੁਰਿ ਮੇਰੈ ਹੋਇ ਰਹੀ ਉਹ ਬਾਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो अनरूपिओ ठाकुरि मेरै होइ रही उह बात ॥१॥ रहाउ ॥
जो कुछ मेरा ठाकुर अनुरूप समझता है केवल वही बात हो रही है॥ १॥ रहाउ॥

ਦੇਸੁ ਕਮਾਵਨ ਧਨ ਜੋਰਨ ਕੀ ਮਨਸਾ ਬੀਚੇ ਨਿਕਸੇ ਸਾਸ ॥
देसु कमावन धन जोरन की मनसा बीचे निकसे सास ॥
देश पर विजय प्राप्त करने तथा धन जोड़ने की इस इच्छा में ही मनुष्य के प्राण पखेरू हो जाते हैं।

ਲਸਕਰ ਨੇਬ ਖਵਾਸ ਸਭ ਤਿਆਗੇ ਜਮ ਪੁਰਿ ਊਠਿ ਸਿਧਾਸ ॥੨॥
लसकर नेब खवास सभ तिआगे जम पुरि ऊठि सिधास ॥२॥
वह सेनाएँ, नायब, नौकर इत्यादि सभी को छोड़ देता है और उठकर यमपुरी को चला जाता है।॥ २॥

ਹੋਇ ਅਨੰਨਿ ਮਨਹਠ ਕੀ ਦ੍ਰਿੜਤਾ ਆਪਸ ਕਉ ਜਾਨਾਤ ॥
होइ अनंनि मनहठ की द्रिड़ता आपस कउ जानात ॥
इन्सान अनन्य भाव होने पर मन की जिद के कारण अपने आत्माभिमान को जाहिर करता है

ਜੋ ਅਨਿੰਦੁ ਨਿੰਦੁ ਕਰਿ ਛੋਡਿਓ ਸੋਈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਖਾਤ ॥੩॥
जो अनिंदु निंदु करि छोडिओ सोई फिरि फिरि खात ॥३॥
जो अनिन्द्य वस्तु है, उसी की निन्दा करके त्याग देता है और विवश होकर बार-बार उसी को खाता है॥ ३॥

ਸਹਜ ਸੁਭਾਇ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲਾ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਕਾਟੀ ਫਾਸ ॥
सहज सुभाइ भए किरपाला तिसु जन की काटी फास ॥
जिस पर प्रभु सहज स्वभाव ही कृपालु हो जाता है, उस इन्सान के समस्त पाश कट जाते हैं।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਆ ਪਰਵਾਣੁ ਗਿਰਸਤ ਉਦਾਸ ॥੪॥੪॥੫॥
कहु नानक गुरु पूरा भेटिआ परवाणु गिरसत उदास ॥४॥४॥५॥
हे नानक ! चाहे गृहस्थी हो अथवा वैरागी जो इन्सान पूर्ण गुरु से मिलता है, वह परमेश्वर के दरबार में स्वीकृत हो जाता ॥४॥४॥५॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥

ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਜਪਿਓ ਤਿਨ ਕੇ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ॥
नामु निधानु जिनि जनि जपिओ तिन के बंधन काटे ॥
परमात्मा का नाम सुखों का भण्डार है। जिन्होंने भी नाम का जाप किया है, प्रभु ने उनके मोह-माया के बन्धन काट दिए हैं।

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮਾਇਆ ਬਿਖੁ ਮਮਤਾ ਇਹ ਬਿਆਧਿ ਤੇ ਹਾਟੇ ॥੧॥
काम क्रोध माइआ बिखु ममता इह बिआधि ते हाटे ॥१॥
काम, क्रोध, विषैली माया तथा ममता इत्यादि रोगों से वे मुक्ति प्राप्त कर गए हैं।॥ १॥

ਹਰਿ ਜਸੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਗਾਇਓ ॥
हरि जसु साधसंगि मिलि गाइओ ॥
जिसने भी सुसंगति में निलकर हरि का यश किया है,

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਭਇਓ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਸੁਖ ਪਾਇਅਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादि भइओ मनु निरमलु सरब सुखा सुख पाइअउ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा से उसका मन निर्मल हो गया है और उसने सर्व सुख पा लिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥

ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਓ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨੈ ਐਸੀ ਭਗਤਿ ਕਮਾਨੀ ॥
जो किछु कीओ सोई भल मानै ऐसी भगति कमानी ॥
प्रभु जो कुछ भी करता है, वह उसे भला लगता है। ऐसी भक्ति उसने की है।

ਮਿਤ੍ਰ ਸਤ੍ਰੁ ਸਭ ਏਕ ਸਮਾਨੇ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਨੀਸਾਨੀ ॥੨॥
मित्र सत्रु सभ एक समाने जोग जुगति नीसानी ॥२॥
मित्र एवं शत्रु सभी उसके लिए एक समान हैं और यही प्रभु के मिलन हेतु योग युक्ति की निशानी है॥२॥

ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸ੍ਰਬ ਥਾਈ ਆਨ ਨ ਕਤਹੂੰ ਜਾਤਾ ॥
पूरन पूरि रहिओ स्रब थाई आन न कतहूं जाता ॥
वह जानता है कि प्रभु सर्वत्र मौजूद है, इसलिए वह कहीं और नहीं जाता।

ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਰੰਗਿ ਰਵਿਓ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥੩॥
घट घट अंतरि सरब निरंतरि रंगि रविओ रंगि राता ॥३॥
प्रभु प्रत्येक हृदय में समस्त स्थानों में समा रहा है। वह उसकी प्रीति में रमा हुआ उसके प्रेम से ही रंग गया है॥ ३॥

ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਗੁਪਾਲਾ ਤਾ ਨਿਰਭੈ ਕੈ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥
भए क्रिपाल दइआल गुपाला ता निरभै कै घरि आइआ ॥
जब परमात्मा कृपालु एवं दयालु हो गया, तो वह निर्भय प्रभु के मन्दिर में आ गया।

error: Content is protected !!