Hindi Page 982

ਲਗਿ ਲਗਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਹੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਈ ਲਗਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਸਵਾਰੇ ॥
लगि लगि प्रीति बहु प्रीति लगाई लगि साधू संगि सवारे ॥
उन जीवों ने साधु के संग लगकर अपना जीवन संवार लिया है, जिन्होंने पुनः पुनः उसके चरणों में लगकर सत्य से बहुत प्रीति लगाई है।

ਗੁਰ ਕੇ ਬਚਨ ਸਤਿ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮਾਨੇ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਬਹੁਤੁ ਪਿਆਰੇ ॥੬॥
गुर के बचन सति सति करि माने मेरे ठाकुर बहुतु पिआरे ॥६॥
जिन्होंने गुरु के वचन पर आस्था रखकर उसे सत्य माना है, मेरे ठाकुर जी को ऐसे जीव बहुत प्रिय हैं।॥ ६॥

ਪੂਰਬਿ ਜਨਮਿ ਪਰਚੂਨ ਕਮਾਏ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਪਿਆਰੇ ॥
पूरबि जनमि परचून कमाए हरि हरि हरि नामि पिआरे ॥
जिन्होंने पूर्व जन्म थोड़े शुभ कर्म किए हैं, वे अब भी हरि-नाम से ही प्रेम करते हैं।

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਰਸੁ ਗਾਵੈ ਰਸੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥੭॥
गुर प्रसादि अम्रित रसु पाइआ रसु गावै रसु वीचारे ॥७॥
गुरु की कृपा से जिन्होंने नामामृत रूपी रस प्राप्त कर लिया है, वे नाम-रस का ही गुणगान करते हैं और उसका ही चिंतन करते हैं।॥ ७॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਰੂਪ ਰੰਗ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਮੇਰੇ ਲਾਲਨ ਲਾਲ ਗੁਲਾਰੇ ॥
हरि हरि रूप रंग सभि तेरे मेरे लालन लाल गुलारे ॥
हे मेरे सुन्दर एवं प्रिय हरि ! जगत् में ये सभी रूप-रंग तेरे ही हैं। जैसे रंग तू किसी को देता है, वह वैसा ही हो जाता है।

ਜੈਸਾ ਰੰਗੁ ਦੇਹਿ ਸੋ ਹੋਵੈ ਕਿਆ ਨਾਨਕ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੇ ॥੮॥੩॥
जैसा रंगु देहि सो होवै किआ नानक जंत विचारे ॥८॥३॥
नानक का कथन है कि जीव बेचारे तो कुछ भी करने में असमर्थ हैं।॥ ८॥ ३॥

ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥

ਰਾਮ ਗੁਰ ਸਰਨਿ ਪ੍ਰਭੂ ਰਖਵਾਰੇ ॥
राम गुर सरनि प्रभू रखवारे ॥
गुरु-प्रभु की शरण ही हमारी रक्षा करती है,

ਜਿਉ ਕੁੰਚਰੁ ਤਦੂਐ ਪਕਰਿ ਚਲਾਇਓ ਕਰਿ ਊਪਰੁ ਕਢਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ कुंचरु तदूऐ पकरि चलाइओ करि ऊपरु कढि निसतारे ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे हाथी को घड़ियाल ने पकड़ कर पानी में खींच लिया था तो तूने ही बाहर निकाल कर उसे बचाया था॥ १॥ रहाउ॥

ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਬਹੁਤੁ ਅਤਿ ਨੀਕੇ ਮਨਿ ਸਰਧਾ ਕਰਿ ਹਰਿ ਧਾਰੇ ॥
प्रभ के सेवक बहुतु अति नीके मनि सरधा करि हरि धारे ॥
प्रभु के सेवक बहुत भले हैं, जिन्होंने श्रद्धा रखकर हरि को मन में धारण किया है।

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭਿ ਸਰਧਾ ਭਗਤਿ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਜਨ ਕੀ ਪੈਜ ਸਵਾਰੇ ॥੧॥
मेरे प्रभि सरधा भगति मनि भावै जन की पैज सवारे ॥१॥
मेरे प्रभु के मन को श्रद्धा एवं भक्ति ही अच्छी लगती है और वह अपने भक्तजनों की लाज रखता है॥ १॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੇਵਕੁ ਸੇਵਾ ਲਾਗੈ ਸਭੁ ਦੇਖੈ ਬ੍ਰਹਮ ਪਸਾਰੇ ॥
हरि हरि सेवकु सेवा लागै सभु देखै ब्रहम पसारे ॥
हरि का भक्त सेवा भक्ति में ही लीन रहता है और सर्वत्र ब्रहा का ही प्रसार देखता है।

ਏਕੁ ਪੁਰਖੁ ਇਕੁ ਨਦਰੀ ਆਵੈ ਸਭ ਏਕਾ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰੇ ॥੨॥
एकु पुरखु इकु नदरी आवै सभ एका नदरि निहारे ॥२॥
उसे हर जगह परमात्मा ही नजर आता है और एक वही सब जीवों को कृपा-दृष्टि से देखता है॥ २॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਰਵਿਆ ਸਭ ਠਾਈ ਸਭੁ ਚੇਰੀ ਜਗਤੁ ਸਮਾਰੇ ॥
हरि प्रभु ठाकुरु रविआ सभ ठाई सभु चेरी जगतु समारे ॥
मेरा मालिक हरि-प्रभु सर्वव्यापी है और वह जगत् के सब जीवों को सेवक समझकर उनका पालन-पोषण करता है।

ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਦਇਆ ਦਾਨੁ ਦੇਵੈ ਵਿਚਿ ਪਾਥਰ ਕੀਰੇ ਕਾਰੇ ॥੩॥
आपि दइआलु दइआ दानु देवै विचि पाथर कीरे कारे ॥३॥
वह इतना दयालु है केि कीड़ों को पत्थर में पैदा करके उन्हें दान देता है॥ ३॥

ਅੰਤਰਿ ਵਾਸੁ ਬਹੁਤੁ ਮੁਸਕਾਈ ਭ੍ਰਮਿ ਭੂਲਾ ਮਿਰਗੁ ਸਿੰਙ੍ਹਾਰੇ ॥
अंतरि वासु बहुतु मुसकाई भ्रमि भूला मिरगु सिंङ्हारे ॥
मृग की नाभि में ही कस्तूरी मौजूद है, जो सुगन्धित करती है किन्तु वह भ्रम में भूला हुआ सुगन्धि की तलाश में झाड़ियों में सींग मारता रहता है।

ਬਨੁ ਬਨੁ ਢੂਢਿ ਢੂਢਿ ਫਿਰਿ ਥਾਕੀ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਘਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੪॥
बनु बनु ढूढि ढूढि फिरि थाकी गुरि पूरै घरि निसतारे ॥४॥
मैं वन-वन में ढूंढती ढूंढती थक गई थी लेकिन पूर्ण गुरु ने हृदय-घर में सत्य को दिखाकर मेरा उद्धार कर दिया है॥ ४॥

ਬਾਣੀ ਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਹੈ ਬਾਣੀ ਵਿਚਿ ਬਾਣੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਾਰੇ ॥
बाणी गुरू गुरू है बाणी विचि बाणी अम्रितु सारे ॥
वाणी गुरु है और गुरु ही वाणी है अर्थात् गुरु एवं वाणी में कोई अन्तर नहीं है, गुरु की वाणी ही गुरु है। गुरुवाणी में सारे अमृत भरपूर हैं।

ਗੁਰੁ ਬਾਣੀ ਕਹੈ ਸੇਵਕੁ ਜਨੁ ਮਾਨੈ ਪਰਤਖਿ ਗੁਰੂ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੫॥
गुरु बाणी कहै सेवकु जनु मानै परतखि गुरू निसतारे ॥५॥
गुरु वाणी सुनाता है और सेवक उस पर आस्था रखता है। इस तरह प्रत्यक्ष गुरु अपने सेवक का निस्तार करता है॥ ५॥

ਸਭੁ ਹੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਪਸਰਿਆ ਮਨਿ ਬੀਜਿਆ ਖਾਵਾਰੇ ॥
सभु है ब्रहमु ब्रहमु है पसरिआ मनि बीजिआ खावारे ॥
सब कुछ ब्रहा है अर्थात् ब्रह्म का रूप है और समूचे जगत् में ब्रह्म का प्रसार है। जीव अपने किए कर्मों का ही फल भोगता है।

ਜਿਉ ਜਨ ਚੰਦ੍ਰਹਾਂਸੁ ਦੁਖਿਆ ਧ੍ਰਿਸਟਬੁਧੀ ਅਪੁਨਾ ਘਰੁ ਲੂਕੀ ਜਾਰੇ ॥੬॥
जिउ जन चंद्रहांसु दुखिआ ध्रिसटबुधी अपुना घरु लूकी जारे ॥६॥
जैसे धृष्टबुद्धि भक्त चन्द्रहांस को बहुत दुखी करता था किन्तु उसने भूल से अपने ही पुत्र को मारकर स्वयं ही आग लगाकर अपना घर जला लिया था॥ ६॥

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਜਨੁ ਅੰਤਰਿ ਰਿਦ ਲੋਚੈ ਪ੍ਰਭ ਜਨ ਕੇ ਸਾਸ ਨਿਹਾਰੇ ॥
प्रभ कउ जनु अंतरि रिद लोचै प्रभ जन के सास निहारे ॥
भक्त अपने हृदय में प्रभु की ही लालसा करता है और प्रभु अपने भक्त की श्वास-श्वास से रक्षा करता है।

ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਜਨ ਪੀਛੈ ਜਗੁ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੭॥
क्रिपा क्रिपा करि भगति द्रिड़ाए जन पीछै जगु निसतारे ॥७॥
वह कृपा करके भक्त के मन में अपनी भक्ति दृढ़ कर देता है और ऐसे भक्त का अनुसरण करने वाले जगत् के लोगों का भी उद्धार होता है॥ ७॥

ਆਪਨ ਆਪਿ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਵਾਰੇ ॥
आपन आपि आपि प्रभु ठाकुरु प्रभु आपे स्रिसटि सवारे ॥
मालिक प्रभु स्वयं ही सर्वकर्ता है और वह स्वयं ही अपनी सृष्टि-रचना को संवारता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਭੁ ਵਰਤੈ ਕਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਆਪਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੮॥੪॥
जन नानक आपे आपि सभु वरतै करि क्रिपा आपि निसतारे ॥८॥४॥
हे नानक ! परमात्मा स्वयं ही सब जीवों में रमण कर रहा है और कृपा करकं खुद ही जीवों का कल्याण करता है॥ ८॥ ४॥

ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥

ਰਾਮ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੇ ॥
राम करि किरपा लेहु उबारे ॥
हे राम ! कृपा करके हमें बचा लो,

ਜਿਉ ਪਕਰਿ ਦ੍ਰੋਪਤੀ ਦੁਸਟਾਂ ਆਨੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਾਜ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ पकरि द्रोपती दुसटां आनी हरि हरि लाज निवारे ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे दुष्ट कौरवों ने द्रौपदी को पकड़कर भरी सभा में निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था तो तूने ही उसकी लाज रखी थी।॥ १॥ रहाउ॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਾਚਿਕ ਜਨ ਤੇਰੇ ਇਕੁ ਮਾਗਉ ਦਾਨੁ ਪਿਆਰੇ ॥
करि किरपा जाचिक जन तेरे इकु मागउ दानु पिआरे ॥
हे प्रियवर ! अपने याचक पर कृपा करो; मैं तुझसे एक दान मांगता हूँ।

ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਨਿਤ ਸਰਧਾ ਲਾਗੀ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਸਵਾਰੇ ॥੧॥
सतिगुर की नित सरधा लागी मो कउ हरि गुरु मेलि सवारे ॥१॥
मेरे मन में नित्य गुरु मिलन की श्रद्धा लगी रहती है, मुझे गुरु से मिला दो, ताकि मेरा जीवन-संवर जाए॥ १॥

ਸਾਕਤ ਕਰਮ ਪਾਣੀ ਜਿਉ ਮਥੀਐ ਨਿਤ ਪਾਣੀ ਝੋਲ ਝੁਲਾਰੇ ॥
साकत करम पाणी जिउ मथीऐ नित पाणी झोल झुलारे ॥
शाक्त का कर्म यों ही व्यर्थ है, जैसे जल में मंथन किया जाता है और वह नित्य ही जल-मंथन की तरह कर्म करता है, जिससे कोई फल नहीं मिलता।

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਕਢਿ ਮਾਖਨ ਕੇ ਗਟਕਾਰੇ ॥੨॥
मिलि सतसंगति परम पदु पाइआ कढि माखन के गटकारे ॥२॥
जिसने सत्संगति में मिलकर परमपद पा लिया है, वह दुग्ध में से माखन निकालकर उसका स्वाद लेता रहता है॥ २॥

ਨਿਤ ਨਿਤ ਕਾਇਆ ਮਜਨੁ ਕੀਆ ਨਿਤ ਮਲਿ ਮਲਿ ਦੇਹ ਸਵਾਰੇ ॥
नित नित काइआ मजनु कीआ नित मलि मलि देह सवारे ॥
जो व्यक्ति नित्य शारीरिक स्नान करके उसे संवारता है,

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