Hindi Page 660

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ
धनासरी महला १ घरु १ चउपदे
धनासरी महला १ घरु १ चउपदे

ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
औंकार वही एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टि एवं जीवो की रचना करने वाला है, वह सर्वशक्तिमान है, उसे किसी प्रकार का कोई भय नहीं है, वह निर्वेर, अकालमूर्ति कोई योनि धारण नहीं करता, वह स्वयंभू है, जिसे गुरु की कृपा से ही पाया जाता है।

ਜੀਉ ਡਰਤੁ ਹੈ ਆਪਣਾ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥
जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥
मेरी आत्मा डर रही है, मैं किसके पास पुकार करूं ?

ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣੁ ਸੇਵਿਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥੧॥
दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥
इसलिए मैंने तो सब दुःख भुलाने वाले परमात्मा की ही उपासना की है, जो सदैव ही जीवो को देने वाला है ॥ १ ॥

ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ਨੀਤ ਨਵਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मालिक नित्य ही नविन है और वह हमेशा है सबको देने वाला है ॥ १ ॥ रहाउ॥

ਅਨਦਿਨੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸੇਵੀਐ ਅੰਤਿ ਛਡਾਏ ਸੋਇ ॥
अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ ॥
निशदिन उस मालिक की सेवा करते रहना चाहिए, क्योंकि अंत में वही यम से मुक्त करवाता है।

ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮੇਰੀ ਕਾਮਣੀ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੋਇ ॥੨॥
सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥
हे मेरी प्राण रूपी कामिनी ! प्रभु का नाम सुनकर तेरा भवसागर से कल्याण हो जाएगा ॥२ ॥

ਦਇਆਲ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਤਰਾ ॥
दइआल तेरै नामि तरा ॥
हे दयालु परमात्मा ! तेरे नाम द्वारा मैं संसार-सागर से पार हो जाऊँगा।

ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੈ ਜਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सद कुरबाणै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं तुझ पर सदैव ही कुर्बान जाता हूँ।॥१॥ रहाउ ॥

ਸਰਬੰ ਸਾਚਾ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
सरबं साचा एकु है दूजा नाही कोइ ॥
सबका मालिक एक सत्यस्वरूप ईश्वर ही सर्वव्यापी है, अन्य दूसरा कोई सत्य नहीं है।

ਤਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੩॥
ता की सेवा सो करे जा कउ नदरि करे ॥३॥
उसकी सेवा वही करता है, जिस पर वह अपनी करुणा-दृष्टि करता है॥३।

ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਪਿਆਰੇ ਕੇਵ ਰਹਾ ॥
तुधु बाझु पिआरे केव रहा ॥
हे मेरे प्यारे ! तेरे बिना मैं कैसे रह सकता हूँ?

ਸਾ ਵਡਿਆਈ ਦੇਹਿ ਜਿਤੁ ਨਾਮਿ ਤੇਰੇ ਲਾਗਿ ਰਹਾਂ ॥
सा वडिआई देहि जितु नामि तेरे लागि रहां ॥
मुझे वही बड़ाई प्रदान करो, जिससे मैं तेरे नाम-सिमरन में लगा रहूँ।

ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ਜਿਸੁ ਆਗੈ ਪਿਆਰੇ ਜਾਇ ਕਹਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दूजा नाही कोइ जिसु आगै पिआरे जाइ कहा ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे प्यारे! कोई अन्य दूसरा है ही नहीं, जिसके समक्ष मैं अनुरोध करूं।॥१॥ रहाउ ॥

ਸੇਵੀ ਸਾਹਿਬੁ ਆਪਣਾ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਚੰਉ ਕੋਇ ॥
सेवी साहिबु आपणा अवरु न जाचंउ कोइ ॥
मैं तो अपने उस मालिक की ही सेवा करता रहता हूँ एवं किसी दूसरे से मैं कुछ नहीं माँगता।

ਨਾਨਕੁ ਤਾ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ ਚੁਖ ਚੁਖ ਹੋਇ ॥੪॥
नानकु ता का दासु है बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥४॥
नानक तो उस मालिक का दास है और हर क्षण उस पर टुकड़े-टुकड़े होकर कुर्बान जाता है ॥४॥

ਸਾਹਿਬ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ ਚੁਖ ਚੁਖ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥੪॥੧॥
साहिब तेरे नाम विटहु बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥
हे मेरे मालिक ! हर क्षण मैं तेरे नाम पर टुकड़े-टुकड़े होकर कुर्बान जाता हूँ।॥ १ ॥ रहाउ।४ ॥१॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
धनासरी महला १ ॥
धनासरी महला १ ॥

ਹਮ ਆਦਮੀ ਹਾਂ ਇਕ ਦਮੀ ਮੁਹਲਤਿ ਮੁਹਤੁ ਨ ਜਾਣਾ ॥
हम आदमी हां इक दमी मुहलति मुहतु न जाणा ॥
हम एक सॉस भर जीने वाले आदमी हैं, हमें इस बात का कोई ज्ञान नहीं कि हमारी जीवन-अवधि कितनी है और कब मृत्यु का समय आ जाना है।

ਨਾਨਕੁ ਬਿਨਵੈ ਤਿਸੈ ਸਰੇਵਹੁ ਜਾ ਕੇ ਜੀਅ ਪਰਾਣਾ ॥੧॥
नानकु बिनवै तिसै सरेवहु जा के जीअ पराणा ॥१॥
नानक विनती करते हैं कि जिसने यह आत्मा एवं प्राण दिए हैं, उस ईश्वर की ही उपासना करो।१ ।

ਅੰਧੇ ਜੀਵਨਾ ਵੀਚਾਰਿ ਦੇਖਿ ਕੇਤੇ ਕੇ ਦਿਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंधे जीवना वीचारि देखि केते के दिना ॥१॥ रहाउ ॥
हे अन्धे मानव ! अच्छी तरह विचार कर के देख ले की तेरा जीवन कितने दिनों का है?। ॥ १ ॥ रहाउ॥

ਸਾਸੁ ਮਾਸੁ ਸਭੁ ਜੀਉ ਤੁਮਾਰਾ ਤੂ ਮੈ ਖਰਾ ਪਿਆਰਾ ॥
सासु मासु सभु जीउ तुमारा तू मै खरा पिआरा ॥
ये श्वास, शरीर एवं प्राण इत्यादि सब तेरी ही देन है और तू ही मुझे अत्यंत प्यारा है

ਨਾਨਕੁ ਸਾਇਰੁ ਏਵ ਕਹਤੁ ਹੈ ਸਚੇ ਪਰਵਦਗਾਰਾ ॥੨॥
नानकु साइरु एव कहतु है सचे परवदगारा ॥२॥
है सच्चे परवदगार शायर नानक यही कहता है॥२॥

ਜੇ ਤੂ ਕਿਸੈ ਨ ਦੇਹੀ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਕਿਆ ਕੋ ਕਢੈ ਗਹਣਾ ॥
जे तू किसै न देही मेरे साहिबा किआ को कढै गहणा ॥
हे मेरे मालिक ! यदि तू किसी को कोई वस्तु न दे तो वह कौन-सा आभूषण गिरवी रखकर तुझसे कुछ ले सकता है?

ਨਾਨਕੁ ਬਿਨਵੈ ਸੋ ਕਿਛੁ ਪਾਈਐ ਪੁਰਬਿ ਲਿਖੇ ਕਾ ਲਹਣਾ ॥੩॥
नानकु बिनवै सो किछु पाईऐ पुरबि लिखे का लहणा ॥३॥
नानक विनती करते हैं कि आदमी वही कुछ प्राप्त करता है, जो उसकी किस्मत में पूर्व जन्म का लेना लिखा होता है।३ ।

ਨਾਮੁ ਖਸਮ ਕਾ ਚਿਤਿ ਨ ਕੀਆ ਕਪਟੀ ਕਪਟੁ ਕਮਾਣਾ ॥
नामु खसम का चिति न कीआ कपटी कपटु कमाणा ॥
उस आदमी ने परमात्मा को कभी याद ही नहीं किया और वह कपटी तो कपट ही करता रहता है।

ਜਮ ਦੁਆਰਿ ਜਾ ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਆ ਤਾ ਚਲਦਾ ਪਛੁਤਾਣਾ ॥੪॥
जम दुआरि जा पकड़ि चलाइआ ता चलदा पछुताणा ॥४॥
जब उसे पकड़ कर यम के द्वार पर ले जाया गया तो वह पछताता हुआ चल दिया ॥४॥

error: Content is protected !!