Hindi Page 1153

ਰਾਗੁ ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ਪੜਤਾਲ ਘਰੁ ੩
रागु भैरउ महला ५ पड़ताल घरु ३
रागु भैरउ महला ५ पड़ताल घरु ३

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਪਰਤਿਪਾਲ ਪ੍ਰਭ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਕਵਨ ਗੁਨ ਗਨੀ ॥
परतिपाल प्रभ क्रिपाल कवन गुन गनी ॥
हे प्रभु ! तू कृपालु एवं हमारा पालनहार है, मैं तुम्हारे कौन से गुण की बात करूँ।

ਅਨਿਕ ਰੰਗ ਬਹੁ ਤਰੰਗ ਸਰਬ ਕੋ ਧਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनिक रंग बहु तरंग सरब को धनी ॥१॥ रहाउ ॥
तू सबका मालिक है, तेरे अनेक रंग हैं, बहुत-सी मन की उमंगें हैं॥१॥ रहाउ॥

ਅਨਿਕ ਗਿਆਨ ਅਨਿਕ ਧਿਆਨ ਅਨਿਕ ਜਾਪ ਜਾਪ ਤਾਪ ॥
अनिक गिआन अनिक धिआन अनिक जाप जाप ताप ॥
संसार में अनेकों ही ज्ञानवान, ध्यानशील, जाप जपने वाले जापक एवं तपस्वी हैं,

ਅਨਿਕ ਗੁਨਿਤ ਧੁਨਿਤ ਲਲਿਤ ਅਨਿਕ ਧਾਰ ਮੁਨੀ ॥੧॥
अनिक गुनित धुनित ललित अनिक धार मुनी ॥१॥
अनेकों ही मधुर स्वर सहित तेरे गुण गाने वाले हैं और अनेकों मुनि तेरे ध्यान में लीन रहने वाले हैं।॥१॥

ਅਨਿਕ ਨਾਦ ਅਨਿਕ ਬਾਜ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਅਨਿਕ ਸ੍ਵਾਦ ਅਨਿਕ ਦੋਖ ਅਨਿਕ ਰੋਗ ਮਿਟਹਿ ਜਸ ਸੁਨੀ ॥
अनिक नाद अनिक बाज निमख निमख अनिक स्वाद अनिक दोख अनिक रोग मिटहि जस सुनी ॥
अनेकों ही तेरी खातिर गाते हैं, पल-पल वाद्य बजाते हैं, अनेकों ही खूब मजा लेकर तेरा नाम लेते हैं, तेरा यश सुनने से अनेकानेक रोग दोष मिट जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਸੇਵ ਅਪਾਰ ਦੇਵ ਤਟਹ ਖਟਹ ਬਰਤ ਪੂਜਾ ਗਵਨ ਭਵਨ ਜਾਤ੍ਰ ਕਰਨ ਸਗਲ ਫਲ ਪੁਨੀ ॥੨॥੧॥੫੭॥੮॥੨੧॥੭॥੫੭॥੯੩॥
नानक सेव अपार देव तटह खटह बरत पूजा गवन भवन जात्र करन सगल फल पुनी ॥२॥१॥५७॥८॥२१॥७॥५७॥९३॥
हे नानक ! ईश्वर की उपासना में ही तीर्थ, षट कर्म, व्रत-उपवास, पूजा-अर्चना, यात्रा इत्यादि सब पुण्य-फल की प्राप्ति होती है॥२॥१॥ ५७॥ ८॥ २१॥ ७॥ ५७॥ ६३॥

ਭੈਰਉ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੨
भैरउ असटपदीआ महला १ घरु २
भैरउ असटपदीआ महला १ घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਆਤਮ ਮਹਿ ਰਾਮੁ ਰਾਮ ਮਹਿ ਆਤਮੁ ਚੀਨਸਿ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਾ ॥
आतम महि रामु राम महि आतमु चीनसि गुर बीचारा ॥
गुरु के सद्विचार द्वारा यह रहस्य मालूम होता है कि आत्मा में परमात्मा और परमात्मा में ही आत्मा है।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੀ ਦੁਖ ਕਾਟੈ ਹਉ ਮਾਰਾ ॥੧॥
अम्रित बाणी सबदि पछाणी दुख काटै हउ मारा ॥१॥
उसकी अमृत वाणी से शब्द की पहचान होती है, जो दुःखों को काट देती है और अहम् को मार देती है॥१॥

ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਰੋਗ ਬੁਰੇ ॥
नानक हउमै रोग बुरे ॥
हे नानक ! अहम् का रोग बहुत बुरा है।

ਜਹ ਦੇਖਾਂ ਤਹ ਏਕਾ ਬੇਦਨ ਆਪੇ ਬਖਸੈ ਸਬਦਿ ਧੁਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जह देखां तह एका बेदन आपे बखसै सबदि धुरे ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ भी देखा जाए वहाँ एक दर्द सता रहा है। यदि परमेश्वर क्षमा करे तो निदान हो सकता है॥ १॥ रहाउ॥

ਆਪੇ ਪਰਖੇ ਪਰਖਣਹਾਰੈ ਬਹੁਰਿ ਸੂਲਾਕੁ ਨ ਹੋਈ ॥
आपे परखे परखणहारै बहुरि सूलाकु न होई ॥
जब परखने वाला स्वयं भले-बुरे की परख कर लेता है तो उसे पुनः परीक्षण के लिए सूए पर नहीं चढ़ाया जाता।

ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਭਈ ਗੁਰਿ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣਾ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥੨॥
जिन कउ नदरि भई गुरि मेले प्रभ भाणा सचु सोई ॥२॥
जिन पर उसकी करुणा-दृष्टि हो गई, उसका गुरु से साक्षात्कार हो गया और प्रभु की रज़ा सत्य सिद्ध हुई॥२॥

ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਰੋਗੀ ਰੋਗੀ ਧਰਤਿ ਸਭੋਗੀ ॥
पउणु पाणी बैसंतरु रोगी रोगी धरति सभोगी ॥
पवन, पानी एवं अग्नि रोगग्रस्त है और भोग पदार्थों सहित पूरी धरती रोगी है।

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਮਾਇਆ ਦੇਹ ਸਿ ਰੋਗੀ ਰੋਗੀ ਕੁਟੰਬ ਸੰਜੋਗੀ ॥੩॥
मात पिता माइआ देह सि रोगी रोगी कुट्मब संजोगी ॥३॥
माता-पिता, माया, शरीर रोगी हैं एवं परिवार से जुड़े सदस्य एवं नातेदार भी रोगग्रस्त हैं॥३॥

ਰੋਗੀ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਸਰੁਦ੍ਰਾ ਰੋਗੀ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰਾ ॥
रोगी ब्रहमा बिसनु सरुद्रा रोगी सगल संसारा ॥
ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश सहित पूर् संसार ही अहम् भावना के कारण रोगी है।

ਹਰਿ ਪਦੁ ਚੀਨਿ ਭਏ ਸੇ ਮੁਕਤੇ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥੪॥
हरि पदु चीनि भए से मुकते गुर का सबदु वीचारा ॥४॥
जिन्होंने शब्द-गुरु का चिंतन कर परमपद को समझ लिया है, वे संसार से मुक्त हो गए हैं।॥४॥

ਰੋਗੀ ਸਾਤ ਸਮੁੰਦ ਸਨਦੀਆ ਖੰਡ ਪਤਾਲ ਸਿ ਰੋਗਿ ਭਰੇ ॥
रोगी सात समुंद सनदीआ खंड पताल सि रोगि भरे ॥
सात समुद्र, नदियाँ एवं अनेक खण्ड एवं पाताल रोगों से भरे हुए हैं।

ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਕ ਸਿ ਸਾਚਿ ਸੁਹੇਲੇ ਸਰਬੀ ਥਾਈ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੫॥
हरि के लोक सि साचि सुहेले सरबी थाई नदरि करे ॥५॥
मगर प्रभु के भक्त ही वास्तव में सुखी हैं चूंकि हर जगह पर प्रभु कृपा करता है॥५॥

ਰੋਗੀ ਖਟ ਦਰਸਨ ਭੇਖਧਾਰੀ ਨਾਨਾ ਹਠੀ ਅਨੇਕਾ ॥
रोगी खट दरसन भेखधारी नाना हठी अनेका ॥
छः दर्शनों को मानने वाले वेषधारी, अनेक हठी भी रोगों के शिकार हैं।

ਬੇਦ ਕਤੇਬ ਕਰਹਿ ਕਹ ਬਪੁਰੇ ਨਹ ਬੂਝਹਿ ਇਕ ਏਕਾ ॥੬॥
बेद कतेब करहि कह बपुरे नह बूझहि इक एका ॥६॥
वेद-कतेब बेचारे भी क्या करें जब जीव एक ईश्वर के रहस्य को नहीं बूझते॥६॥

ਮਿਠ ਰਸੁ ਖਾਇ ਸੁ ਰੋਗਿ ਭਰੀਜੈ ਕੰਦ ਮੂਲਿ ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ॥
मिठ रसु खाइ सु रोगि भरीजै कंद मूलि सुखु नाही ॥
मीठे रस खाने से भी रोग ही भर जाते हैं और कन्दमूल सेवन करने से भी सुख प्राप्त नहीं होता।

ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਚਲਹਿ ਅਨ ਮਾਰਗਿ ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਪਛੁਤਾਹੀ ॥੭॥
नामु विसारि चलहि अन मारगि अंत कालि पछुताही ॥७॥
प्रभु-नाम को भुलाकर जो अन्य रास्ते पर चलते हैं, अन्तिम समय पछताते ही हैं।॥७॥

ਤੀਰਥਿ ਭਰਮੈ ਰੋਗੁ ਨ ਛੂਟਸਿ ਪੜਿਆ ਬਾਦੁ ਬਿਬਾਦੁ ਭਇਆ ॥
तीरथि भरमै रोगु न छूटसि पड़िआ बादु बिबादु भइआ ॥
तीथों पर भ्रमण करने से रोग नहीं छूटते और पढ़ने से वाद-विवाद का रोग लग जाता है।

ਦੁਬਿਧਾ ਰੋਗੁ ਸੁ ਅਧਿਕ ਵਡੇਰਾ ਮਾਇਆ ਕਾ ਮੁਹਤਾਜੁ ਭਇਆ ॥੮॥
दुबिधा रोगु सु अधिक वडेरा माइआ का मुहताजु भइआ ॥८॥
दुविधा का रोग सबसे बड़ा है और मनुष्य केवल धन का मोहताज बना रहता है।॥ ८॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਾ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੈ ਮਨਿ ਸਾਚਾ ਤਿਸੁ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ॥
गुरमुखि साचा सबदि सलाहै मनि साचा तिसु रोगु गइआ ॥
जो गुरु के सान्निध्य में निष्ठापूर्वक परमात्मा की प्रशंसा करता है, उसका रोग दूर हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਨ ਅਨਦਿਨੁ ਨਿਰਮਲ ਜਿਨ ਕਉ ਕਰਮਿ ਨੀਸਾਣੁ ਪਇਆ ॥੯॥੧॥
नानक हरि जन अनदिनु निरमल जिन कउ करमि नीसाणु पइआ ॥९॥१॥
गुरु नानक का फुरमान है कि जिन पर परमात्मा की कृपा होती है, वे भक्तजन नित्य निर्मल रहते हैं।॥ ९॥१॥

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