ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਰਤੇ ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਹੈਨਿ ਨਿਰਧਨੁ ਹੋਰੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨੬॥
नानक नाम रते से धनवंत हैनि निरधनु होरु संसारु ॥२६॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि परमात्मा के नाम में लीन रहने वाले ही धनवान् हैं और बाकी संसार के लोग निर्धन हैं।॥२६॥
ਜਨ ਕੀ ਟੇਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਠਵਰ ਨ ਠਾਉ ॥
जन की टेक हरि नामु हरि बिनु नावै ठवर न ठाउ ॥
ईश्वर का नाम ही सेवक का आसरा है, ईश्वर के बिना उसका कोई ठिकाना नहीं।
ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਉ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਉ ॥
गुरमती नाउ मनि वसै सहजे सहजि समाउ ॥
गुरु के उपदेश से मन में हरिनाम बसता है और वह सहज स्वाभाविक ही सत्य में विलीन हो जाता है।
ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਾਗਾ ਭਾਉ ॥
वडभागी नामु धिआइआ अहिनिसि लागा भाउ ॥
बड़े भाग्य से परमात्मा का मनन किया है, दिन-रात उसी से प्रेम लगा हुआ है।
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਧੂੜਿ ਤਿਨ ਹਉ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੈ ਜਾਉ ॥੨੭॥
जन नानकु मंगै धूड़ि तिन हउ सद कुरबाणै जाउ ॥२७॥
नानक का कथन है कि मैं तो प्रभु-भक्तों की चरण-धूल ही चाहता हूँ और उन पर सदैव कुर्बान जाता हूँ॥२७॥
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਮੇਦਨੀ ਤਿਸਨਾ ਜਲਤੀ ਕਰੇ ਪੁਕਾਰ ॥
लख चउरासीह मेदनी तिसना जलती करे पुकार ॥
चौरासी लाख योनियों वाली पृथ्वी तृष्णाग्नि मैं जलती हुई पुकार करती है कि
ਇਹੁ ਮੋਹੁ ਮਾਇਆ ਸਭੁ ਪਸਰਿਆ ਨਾਲਿ ਚਲੈ ਨ ਅੰਤੀ ਵਾਰ ॥
इहु मोहु माइआ सभु पसरिआ नालि चलै न अंती वार ॥
यह माया-मोह सब ओर फैला हुआ है और अंत में कोई साथ नहीं देता।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਵਈ ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥
बिनु हरि सांति न आवई किसु आगै करी पुकार ॥
भगवान के बिना शान्ति प्राप्त नहीं होती, फिर किसके आगे पुकार की जाए।
ਵਡਭਾਗੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਬੂਝਿਆ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬਿਚਾਰੁ ॥
वडभागी सतिगुरु पाइआ बूझिआ ब्रहमु बिचारु ॥
जिस भाग्यशाली ने सतिगुरु को प्राप्त किया है, उसने ब्रह्मज्ञान जान लिया है।
ਤਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਸਭ ਬੁਝਿ ਗਈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥੨੮॥
तिसना अगनि सभ बुझि गई जन नानक हरि उरि धारि ॥२८॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- जिन भक्तजनों ने ईश्वर को दिल में बसाया है, उनकी तृष्णाग्नि बुझ गई है॥२८ ॥
ਅਸੀ ਖਤੇ ਬਹੁਤੁ ਕਮਾਵਦੇ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥
असी खते बहुतु कमावदे अंतु न पारावारु ॥
हम बहुत गलतियाँ एवं कसूर करते हैं, जिनका कोई अन्त नहीं पाया जा सकता।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕੈ ਬਖਸਿ ਲੈਹੁ ਹਉ ਪਾਪੀ ਵਡ ਗੁਨਹਗਾਰੁ ॥
हरि किरपा करि कै बखसि लैहु हउ पापी वड गुनहगारु ॥
हे परमेश्वर ! कृपा करके हमें क्षमा कर दो, हम पापी एवं बड़े गुनहगार हैं।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਲੇਖੈ ਵਾਰ ਨ ਆਵਈ ਤੂੰ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਣਹਾਰੁ ॥
हरि जीउ लेखै वार न आवई तूं बखसि मिलावणहारु ॥
यदि हमारे पापों का हिसाब करने लग गए तो अन्त नहीं हो पाएगा, तू कृपा करके चरणों में मिलाने वाला है।
ਗੁਰ ਤੁਠੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲਿਆ ਸਭ ਕਿਲਵਿਖ ਕਟਿ ਵਿਕਾਰ ॥
गुर तुठै हरि प्रभु मेलिआ सभ किलविख कटि विकार ॥
दरअसल गुरु प्रसन्न होकर प्रभु से मिलाने वाला है और वह सब पाप-विकार काट देता है।
ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਨੑ ਜੈਕਾਰੁ ॥੨੯॥
जिना हरि हरि नामु धिआइआ जन नानक तिन्ह जैकारु ॥२९॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- जिन्होंने परमात्मा का भजन किया है, उनकी ही जग में कीर्ति हुई है॥२६॥
ਵਿਛੁੜਿ ਵਿਛੁੜਿ ਜੋ ਮਿਲੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਭੈ ਭਾਇ ॥
विछुड़ि विछुड़ि जो मिले सतिगुर के भै भाइ ॥
अनेक जन्मों से बिछुड़े हुए जो सतिगुरु के प्रेम में मिले रहते हैं।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਨਿਹਚਲੁ ਭਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
जनम मरण निहचलु भए गुरमुखि नामु धिआइ ॥
जो गुरु की शरण में परमात्मा का ध्यान करते हैं, उनका जन्म-मरण निवृत हो जाता है।
ਗੁਰ ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲੈ ਹੀਰੇ ਰਤਨ ਲਭੰਨੑਿ ॥
गुर साधू संगति मिलै हीरे रतन लभंन्हि ॥
जो लोग गुरु साधु की संगत में आते हैं, उनको नाम रूपी अमूल्य हीरे एवं रत्न ही प्राप्त होते हैं।
ਨਾਨਕ ਲਾਲੁ ਅਮੋਲਕਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿ ਲਹੰਨੑਿ ॥੩੦॥
नानक लालु अमोलका गुरमुखि खोजि लहंन्हि ॥३०॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- हरिनाम रूपी अमूल्य मोती गुरमुख जिज्ञासु ही खोजते हैं।॥३०॥
ਮਨਮੁਖ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਧਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਧਿਗੁ ਵਾਸੁ ॥
मनमुख नामु न चेतिओ धिगु जीवणु धिगु वासु ॥
मन की मर्जी करने वाले प्रभु नाम का चिंतन नहीं करते, उनका जीना एवं रहना धिक्कार योग्य है।
ਜਿਸ ਦਾ ਦਿਤਾ ਖਾਣਾ ਪੈਨਣਾ ਸੋ ਮਨਿ ਨ ਵਸਿਓ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥
जिस दा दिता खाणा पैनणा सो मनि न वसिओ गुणतासु ॥
जिस दाता का दिया खाने-पहनने को मिलता है, उस गुणनिधान को ये दिल में नहीं बसाते।
ਇਹੁ ਮਨੁ ਸਬਦਿ ਨ ਭੇਦਿਓ ਕਿਉ ਹੋਵੈ ਘਰ ਵਾਸੁ ॥
इहु मनु सबदि न भेदिओ किउ होवै घर वासु ॥
जब तक यह मन शब्द में विंध नहीं पाता, सच्चे घर में कैसे रहा जा सकता है।
ਮਨਮੁਖੀਆ ਦੋਹਾਗਣੀ ਆਵਣ ਜਾਣਿ ਮੁਈਆਸੁ ॥
मनमुखीआ दोहागणी आवण जाणि मुईआसु ॥
स्वेच्छाचारी जीव-स्त्रियाँ दुहागिन हैं, आवागमन में पड़ी रहती हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸੁਹਾਗੁ ਹੈ ਮਸਤਕਿ ਮਣੀ ਲਿਖਿਆਸੁ ॥
गुरमुखि नामु सुहागु है मसतकि मणी लिखिआसु ॥
गुरुमुख का हरिनाम सुहाग है और मस्तक पर यही चिन्ह लिखा है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਰਿ ਧਾਰਿਆ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਕਮਲ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥
हरि हरि नामु उरि धारिआ हरि हिरदै कमल प्रगासु ॥
जो परमात्मा को दिल में बसाता है, उसका हृदय-कमल खिल जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਆਪਣਾ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਾਸੁ ॥
सतिगुरु सेवनि आपणा हउ सद बलिहारी तासु ॥
जो अपने सतिगुरु की सेवा में लीन रहते हैं, मैं उन पर सदैव बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਜਿਨ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥੩੧॥
नानक तिन मुख उजले जिन अंतरि नामु प्रगासु ॥३१॥
हे नानक ! उन्हीं के मुख उज्ज्वल होते हैं, जिनके मन में नाम का आलोक होता है।॥३१॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਸੋਈ ਜਨੁ ਸਿਝੈ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥
सबदि मरै सोई जनु सिझै बिनु सबदै मुकति न होई ॥
जो शब्द द्वारा (मायावी वृति की तरफ से) मरता है, वही व्यक्ति बन्धनों से मुक्त माना जाता है और शब्द के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं होती।
ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਬਹੁ ਕਰਮ ਵਿਗੁਤੇ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ਪਰਜ ਵਿਗੋਈ ॥
भेख करहि बहु करम विगुते भाइ दूजै परज विगोई ॥
मनुष्य वेषाडम्बर करते हैं, बहुत सारे कर्मकाण्डों में पड़े रहते हैं और द्वैतभाव ने पूरी दुनिया को दुखों में डाल रखा है।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਉ ਨ ਪਾਈਐ ਜੇ ਸਉ ਲੋਚੈ ਕੋਈ ॥੩੨॥
नानक बिनु सतिगुर नाउ न पाईऐ जे सउ लोचै कोई ॥३२॥
हे नानक ! यदि कोई कितनी भी अभिलाषा करे, परन्तु गुरु के बिना नाम प्राप्त नहीं होता।॥३२॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ਅਤਿ ਵਡ ਊਚਾ ਊਚੀ ਹੂ ਊਚਾ ਹੋਈ ॥
हरि का नाउ अति वड ऊचा ऊची हू ऊचा होई ॥
परमात्मा का नाम सबसे बड़ा, सर्वोत्कृष्ट, ऊँचे से ऊँचा, कीर्तिमान है।
ਅਪੜਿ ਕੋਇ ਨ ਸਕਈ ਜੇ ਸਉ ਲੋਚੈ ਕੋਈ ॥
अपड़ि कोइ न सकई जे सउ लोचै कोई ॥
उस तक कोई पहुँच नहीं सकता, बेशक कोई कितनी भी आकांक्षा करे।
ਮੁਖਿ ਸੰਜਮ ਹਛਾ ਨ ਹੋਵਈ ਕਰਿ ਭੇਖ ਭਵੈ ਸਭ ਕੋਈ ॥
मुखि संजम हछा न होवई करि भेख भवै सभ कोई ॥
मुँह से बोलने से संयम नहीं होता, हर कोई वेषों में घूम रहा है।
ਗੁਰ ਕੀ ਪਉੜੀ ਜਾਇ ਚੜੈ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਈ ॥
गुर की पउड़ी जाइ चड़ै करमि परापति होई ॥
गुरु की सीढ़ी पर भाग्यशाली ही चढ़ता है, जो कर्म-फल से प्राप्त होती है।
ਅੰਤਰਿ ਆਇ ਵਸੈ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੈ ਕੋਇ ॥
अंतरि आइ वसै गुर सबदु वीचारै कोइ ॥
जो कोई शब्द-गुरु का चिंतन करता है, उसके दिल में प्रभु बस जाता है।