ਸਚੇ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਸਚੀ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥
सचे मेरे साहिबा सची तेरी वडिआई ॥
हे मेरे सच्चे साहिब ! तेरी महिमा सत्य है।
ਤੂੰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਬੇਅੰਤੁ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
तूं पारब्रहमु बेअंतु सुआमी तेरी कुदरति कहणु न जाई ॥
तू परब्रह्म बेअंत एवं जगत का स्वामी है, तेरी कुदरत व्यक्त नहीं की जा सकती।
ਸਚੀ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਕਉ ਤੁਧੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ਸਦਾ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹੇ ॥
सची तेरी वडिआई जा कउ तुधु मंनि वसाई सदा तेरे गुण गावहे ॥
तेरी महिमा सत्य है जिसके मन में तुम इसे बसा देते हो, वे सदा तेरे गुण गाता रहता है।
ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਸਚੇ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਵਹੇ ॥
तेरे गुण गावहि जा तुधु भावहि सचे सिउ चितु लावहे ॥
जब तुझे प्राणी भले लगते हैं तो वे तेरा ही गुणगान करते हैं और सत्य के साथ ही अपना चित्त लगाते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਤੂੰ ਆਪੇ ਮੇਲਹਿ ਸੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਹੈ ਸਮਾਈ ॥
जिस नो तूं आपे मेलहि सु गुरमुखि रहै समाई ॥
हे प्रभु! जिसे तू अपने साथ मिला लेता है, वह गुरुमुख बनकर तुझ में ही समाया रहता है।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਚੇ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਸਚੀ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧੦॥੨॥੭॥੫॥੨॥੭॥
इउ कहै नानकु सचे मेरे साहिबा सची तेरी वडिआई ॥१०॥२॥७॥५॥२॥७॥
नानक इस तरह कहता है कि हे मेरे सच्चे साहिब ! तेरी महिमा सत्य है॥ १० ॥ २ ॥ ७ ॥ ५॥ २ ॥ ७ ॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧
रागु आसा छंत महला ४ घरु १
रागु आसा छंत महला ४ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜੀਵਨੋ ਮੈ ਜੀਵਨੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਾਏ ਰਾਮ ॥
जीवनो मै जीवनु पाइआ गुरमुखि भाए राम ॥
हे भाई ! गुरु की रजा में मुझे जीवन में सही आत्मिक जीवन मिल गया है।
ਹਰਿ ਨਾਮੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਵੈ ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਾਨਿ ਵਸਾਏ ਰਾਮ ॥
हरि नामो हरि नामु देवै मेरै प्रानि वसाए राम ॥
गुरु के माध्यम से मुझे प्रभु प्रिय लगने लगा है, हर वक्त गुरु मुझे हरि का नाम देते हैं और मेरे प्राणों में उसने हरि नाम बसा दिया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਾਨਿ ਵਸਾਏ ਸਭੁ ਸੰਸਾ ਦੂਖੁ ਗਵਾਇਆ ॥
हरि हरि नामु मेरै प्रानि वसाए सभु संसा दूखु गवाइआ ॥
गुरु ने जब से हरि का नाम मेरे प्राणों में बसा दिया है, तब से मेरे तमाम संशय एवं दुःख नाश हो गए हैं।
ਅਦਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਧਿਆਇਆ ਪਵਿਤ੍ਰ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥
अदिसटु अगोचरु गुर बचनि धिआइआ पवित्र परम पदु पाइआ ॥
गुरु के शुभ वचन द्वारा मैंने अदृष्ट एवं अगोचर प्रभु का ध्यान करके पवित्र परम पद प्राप्त कर लिया है।
ਅਨਹਦ ਧੁਨਿ ਵਾਜਹਿ ਨਿਤ ਵਾਜੇ ਗਾਈ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਣੀ ॥
अनहद धुनि वाजहि नित वाजे गाई सतिगुर बाणी ॥
सच्चे गुरु की वाणी का गायन करने से नित्य ही अनहद ध्वनि गूंजती रहती है।
ਨਾਨਕ ਦਾਤਿ ਕਰੀ ਪ੍ਰਭਿ ਦਾਤੈ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥੧॥
नानक दाति करी प्रभि दातै जोती जोति समाणी ॥१॥
हे नानक ! दाता प्रभु ने अब मुझ पर यह अनुकंपा की है कि मेरी ज्योति परम ज्योति में लीन रहती है॥ १॥
ਮਨਮੁਖਾ ਮਨਮੁਖਿ ਮੁਏ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਮਾਇਆ ਰਾਮ ॥
मनमुखा मनमुखि मुए मेरी करि माइआ राम ॥
स्वेच्छाचारी मनुष्य ‘मेरा धन मेरा धन’ पुकारते हुए मनमुखता में ही मर जाते हैं।
ਖਿਨੁ ਆਵੈ ਖਿਨੁ ਜਾਵੈ ਦੁਰਗੰਧ ਮੜੈ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥
खिनु आवै खिनु जावै दुरगंध मड़ै चितु लाइआ राम ॥
ये अपने चित्त को दुर्गन्धयुक्त शरीर में लगाए रखते हैं, जो एक क्षण भर हेतु आता है और क्षण भर में ही चला जाता है।
ਲਾਇਆ ਦੁਰਗੰਧ ਮੜੈ ਚਿਤੁ ਲਾਗਾ ਜਿਉ ਰੰਗੁ ਕਸੁੰਭ ਦਿਖਾਇਆ ॥
लाइआ दुरगंध मड़ै चितु लागा जिउ रंगु कसु्मभ दिखाइआ ॥
स्वेच्छाचारी मनुष्य अपने चित्त को दुर्गन्धयुक्त देह से लगाते हैं, जैसे कुसुंभ के फूल का रंग दिखाई देता है, जो शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
ਖਿਨੁ ਪੂਰਬਿ ਖਿਨੁ ਪਛਮਿ ਛਾਏ ਜਿਉ ਚਕੁ ਕੁਮ੍ਹ੍ਹਿਆਰਿ ਭਵਾਇਆ ॥
खिनु पूरबि खिनु पछमि छाए जिउ चकु कुम्हिआरि भवाइआ ॥
जैसे छाया कभी पूर्व दिशा की ओर होती है और कभी पश्चिम दिशा की ओर हो जाती है, वे कुम्हार के चाक की भाँति घूमते रहते हैं।
ਦੁਖੁ ਖਾਵਹਿ ਦੁਖੁ ਸੰਚਹਿ ਭੋਗਹਿ ਦੁਖ ਕੀ ਬਿਰਧਿ ਵਧਾਈ ॥
दुखु खावहि दुखु संचहि भोगहि दुख की बिरधि वधाई ॥
मनमुख व्यक्ति दुख सहन करते हैं, दु:ख संचित करते हैं और दुःख ही भोगते रहते हैं, वे अपने जीवन में दु:खों की ही वृद्धि करते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਬਿਖਮੁ ਸੁਹੇਲਾ ਤਰੀਐ ਜਾ ਆਵੈ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥
नानक बिखमु सुहेला तरीऐ जा आवै गुर सरणाई ॥२॥
हे नानक ! जब मनुष्य गुरु की शरण में आ जाता है तो वह विषम संसार सागर से सुखपूर्वक ही पार हो जाता है॥ २॥
ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੋ ਠਾਕੁਰੁ ਨੀਕਾ ਅਗਮ ਅਥਾਹਾ ਰਾਮ ॥
मेरा ठाकुरो ठाकुरु नीका अगम अथाहा राम ॥
मेरा ठाकुर प्रभु सुन्दर है लेकिन वह अगम्य एवं अथाह सागर की भाँति है।
ਹਰਿ ਪੂਜੀ ਹਰਿ ਪੂਜੀ ਚਾਹੀ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਾਹਾ ਰਾਮ ॥
हरि पूजी हरि पूजी चाही मेरे सतिगुर साहा राम ॥
हे मेरे साहूकार सतिगुरु ! मैं तुझसे हरि नाम की पूंजी माँगता हूँ। मैं हरि-नाम की पूँजी को खरीदता हूँ और हरि-नाम का व्यापार करता हूँ।
ਹਰਿ ਪੂਜੀ ਚਾਹੀ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਹੀ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਗੁਣ ਭਾਵੈ ॥
हरि पूजी चाही नामु बिसाही गुण गावै गुण भावै ॥
मैं हरि के गुण ही गाता रहता हूँ और हरि के गुण ही मुझे भाते हैं।
ਨੀਦ ਭੂਖ ਸਭ ਪਰਹਰਿ ਤਿਆਗੀ ਸੁੰਨੇ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਵੈ ॥
नीद भूख सभ परहरि तिआगी सुंने सुंनि समावै ॥
मैंने निद्रा एवं भूख सब कुछ त्याग दिया है परन्तु एकाग्रता के साथ निर्गुण प्रभु में समाया रहता हूँ।
ਵਣਜਾਰੇ ਇਕ ਭਾਤੀ ਆਵਹਿ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੈ ਜਾਹੇ ॥
वणजारे इक भाती आवहि लाहा हरि नामु लै जाहे ॥
जब हरि-नाम के व्यापारी सत्संगति में बैठते हैं तो वे हरि-नाम का लाभ कमा कर ले जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪਿ ਗੁਰ ਆਗੈ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਪਤਿ ਸੋ ਪਾਏ ॥੩॥
नानक मनु तनु अरपि गुर आगै जिसु प्रापति सो पाए ॥३॥
हे नानक ! अपना मन-तन गुरु के समक्ष अर्पित कर दे, जिसकी किस्मत में इसकी प्राप्ति लिखी हुई है, वही प्रभु-नाम को प्राप्त करता है॥ ३॥
ਰਤਨਾ ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਬਹੁ ਸਾਗਰੁ ਭਰਿਆ ਰਾਮ ॥
रतना रतन पदारथ बहु सागरु भरिआ राम ॥
यह मानव-शरीर एक सागर है जो अनेक रत्नों (गुणों) से भरा हुआ है।
ਬਾਣੀ ਗੁਰਬਾਣੀ ਲਾਗੇ ਤਿਨੑ ਹਥਿ ਚੜਿਆ ਰਾਮ ॥
बाणी गुरबाणी लागे तिन्ह हथि चड़िआ राम ॥
जो मनुष्य गुरुवाणी से लगाव रखते हैं, उन्हें प्रभु-नाम की प्राप्ति हो जाती है।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਲਾਗੇ ਤਿਨੑ ਹਥਿ ਚੜਿਆ ਨਿਰਮੋਲਕੁ ਰਤਨੁ ਅਪਾਰਾ ॥
गुरबाणी लागे तिन्ह हथि चड़िआ निरमोलकु रतनु अपारा ॥
जो लोग गुरुवाणी में लीन रहते हैं, उन्हें अपार प्रभु का अमूल्य नाम-रत्न प्राप्त हो जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਤੋਲਕੁ ਪਾਇਆ ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
हरि हरि नामु अतोलकु पाइआ तेरी भगति भरे भंडारा ॥
हे हरि ! तेरी भक्ति के भण्डार भरे हुए हैं और वे मनुष्य अमूल्य हरि-नाम प्राप्त कर लेते हैं।
ਸਮੁੰਦੁ ਵਿਰੋਲਿ ਸਰੀਰੁ ਹਮ ਦੇਖਿਆ ਇਕ ਵਸਤੁ ਅਨੂਪ ਦਿਖਾਈ ॥
समुंदु विरोलि सरीरु हम देखिआ इक वसतु अनूप दिखाई ॥
हे भाई ! गुरु की अनुकंपा से जब मैंने इस शरीर रूपी समुद्र का मंथन किया तो मुझे अनूप वस्तु दिखाई दी।
ਗੁਰ ਗੋਵਿੰਦੁ ਗੋੁਵਿੰਦੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਨਾਨਕ ਭੇਦੁ ਨ ਭਾਈ ॥੪॥੧॥੮॥
गुर गोविंदु गोविंदु गुरू है नानक भेदु न भाई ॥४॥१॥८॥
हे नानक ! गुरु गोविन्द है और गोविन्द ही गुरु है, हे भाई ! इन दोनों में कोई भेद (अन्तर) नही है॥ ४॥ १॥ ८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
आसा महला ४ ॥
आसा महला ४ ॥
ਝਿਮਿ ਝਿਮੇ ਝਿਮਿ ਝਿਮਿ ਵਰਸੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰਾ ਰਾਮ ॥
झिमि झिमे झिमि झिमि वरसै अम्रित धारा राम ॥
हे राम ! रिमझिम रिमझिम करके तेरी अमृत की धारा बरस रही है।