ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਨਾ ਓਹੁ ਮਰਤਾ ਨਾ ਹਮ ਡਰਿਆ ॥
ना ओहु मरता ना हम डरिआ ॥
जीवात्मा कहती है कि परमात्मा न तो मरता है और न ही हम मृत्यु से भयभीत होते हैं।
ਨਾ ਓਹੁ ਬਿਨਸੈ ਨਾ ਹਮ ਕੜਿਆ ॥
ना ओहु बिनसै ना हम कड़िआ ॥
वह परमात्मा न ही कभी नाश होता है, न ही हम मृत्यु के डर से दु:खी होते हैं।
ਨਾ ਓਹੁ ਨਿਰਧਨੁ ਨਾ ਹਮ ਭੂਖੇ ॥
ना ओहु निरधनु ना हम भूखे ॥
भगवान न तो निर्धन है और न ही हम भूखे हैं।
ਨਾ ਓਸੁ ਦੂਖੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਦੂਖੇ ॥੧॥
ना ओसु दूखु न हम कउ दूखे ॥१॥
न उसे कोई दुख है और न ही हम दुखी होते हैं। ॥१॥
ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਊ ਮਾਰਨਵਾਰਾ ॥
अवरु न कोऊ मारनवारा ॥
भगवान के अलावा अन्य कोई मारने वाला नहीं।
ਜੀਅਉ ਹਮਾਰਾ ਜੀਉ ਦੇਨਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीअउ हमारा जीउ देनहारा ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा जीवनदाता भगवान है, वह मुझे जीवन प्रदान करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾ ਉਸੁ ਬੰਧਨ ਨਾ ਹਮ ਬਾਧੇ ॥
ना उसु बंधन ना हम बाधे ॥
उसे कोई बंधन नहीं और न ही हम बंधन में फंसे हुए हैं।
ਨਾ ਉਸੁ ਧੰਧਾ ਨਾ ਹਮ ਧਾਧੇ ॥
ना उसु धंधा ना हम धाधे ॥
न ही उसे कोई कर्म का धंधा है, न ही हम किसी धन्धे में ग्रस्त हैं।
ਨਾ ਉਸੁ ਮੈਲੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਮੈਲਾ ॥
ना उसु मैलु न हम कउ मैला ॥
न ही उसे कोई मैल है और न ही हम मेले हैं।
ਓਸੁ ਅਨੰਦੁ ਤ ਹਮ ਸਦ ਕੇਲਾ ॥੨॥
ओसु अनंदु त हम सद केला ॥२॥
वह सदैव आनन्द में है तो हम भी सदैव प्रसन्न हैं।॥ २॥
ਨਾ ਉਸੁ ਸੋਚੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਸੋਚਾ ॥
ना उसु सोचु न हम कउ सोचा ॥
न उसे कोई फिक्र है और न ही हमें कोई फिक्र है।
ਨਾ ਉਸੁ ਲੇਪੁ ਨ ਹਮ ਕਉ ਪੋਚਾ ॥
ना उसु लेपु न हम कउ पोचा ॥
उसमें कोई माया का लेप नहीं और न ही हम में कोई अवगुण है।
ਨਾ ਉਸੁ ਭੂਖ ਨ ਹਮ ਕਉ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ॥
ना उसु भूख न हम कउ त्रिसना ॥
न ही कोई उसे भूख है और न ही हम में कोई तृष्णा है।
ਜਾ ਉਹੁ ਨਿਰਮਲੁ ਤਾਂ ਹਮ ਜਚਨਾ ॥੩॥
जा उहु निरमलु तां हम जचना ॥३॥
जब वह निर्मल है तों हम भी उस जैसे निर्मल लगते हैं। ॥३॥
ਹਮ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਏਕੈ ਓਹੀ ॥
हम किछु नाही एकै ओही ॥
हम कुछ भी नहीं केवल वही सब कुछ है।
ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥
आगै पाछै एको सोई ॥
वह परमात्मा ही वर्तमान काल से पूर्व भूतकाल में भी था और भविष्यकाल में भी एक वही होगा।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਖੋਏ ਭ੍ਰਮ ਭੰਗਾ ॥
नानक गुरि खोए भ्रम भंगा ॥
हे नानक ! गुरु ने मेरे सारे भ्रम एवं भेदभाव दूर कर दिए हैं।
ਹਮ ਓਇ ਮਿਲਿ ਹੋਏ ਇਕ ਰੰਗਾ ॥੪॥੩੨॥੮੩॥
हम ओइ मिलि होए इक रंगा ॥४॥३२॥८३॥
वह और हम मिलकर एक ही रंग के हो चुके हैं।॥ ४॥ ३२॥ ८३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਕਰੀਐ ॥
अनिक भांति करि सेवा करीऐ ॥
अनेक प्रकार से भगवान की सेवा-भक्ति करनी चाहिए।
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨੁ ਆਗੈ ਧਰੀਐ ॥
जीउ प्रान धनु आगै धरीऐ ॥
अपने प्राण, आत्मा एवं धन को उसके समक्ष अर्पण कर देना चाहिए।
ਪਾਨੀ ਪਖਾ ਕਰਉ ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
पानी पखा करउ तजि अभिमानु ॥
अपना अभिमान त्याग कर जल एवं पंखे की सेवा करनी चाहिए।
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥੧॥
अनिक बार जाईऐ कुरबानु ॥१॥
अनेक बार उस पर कुर्बान होना चाहिए॥ १॥
ਸਾਈ ਸੁਹਾਗਣਿ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ॥
साई सुहागणि जो प्रभ भाई ॥
हे मेरी माता ! केवल वही सुहागिन है जो अपने प्राणनाथ प्रभु को अच्छी लगती है।
ਤਿਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਮਿਲਉ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिस कै संगि मिलउ मेरी माई ॥१॥ रहाउ ॥
मैं उसकी संगति में उठती-बैठती हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੀ ਕੀ ਪਨਿਹਾਰਿ ॥
दासनि दासी की पनिहारि ॥
मैं उसकी दासों की दासी की पानी भरने वाली हूँ।
ਉਨੑ ਕੀ ਰੇਣੁ ਬਸੈ ਜੀਅ ਨਾਲਿ ॥
उन्ह की रेणु बसै जीअ नालि ॥
मैं अपने मन में उनकी चरण-धूलि प्रेमपूर्वक रखती हूँ।
ਮਾਥੈ ਭਾਗੁ ਤ ਪਾਵਉ ਸੰਗੁ ॥
माथै भागु त पावउ संगु ॥
यदि मेरे माथे पर भाग्योदय हो जाएँ तो मैं उनकी संगति को प्राप्त होती हूँ।
ਮਿਲੈ ਸੁਆਮੀ ਅਪੁਨੈ ਰੰਗਿ ॥੨॥
मिलै सुआमी अपुनै रंगि ॥२॥
अपनी प्रसन्नता द्वारा स्वामी मुझे मिल गया है॥ २ ॥
ਜਾਪ ਤਾਪ ਦੇਵਉ ਸਭ ਨੇਮਾ ॥
जाप ताप देवउ सभ नेमा ॥
मैं सभी जप, तप एवं धार्मिक संस्कार उसे अर्पण करती हूँ।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਅਰਪਉ ਸਭ ਹੋਮਾ ॥
करम धरम अरपउ सभ होमा ॥
तमाम धर्म कर्म, यज्ञ एवं होम मैं उसको अर्पित करती हूँ।
ਗਰਬੁ ਮੋਹੁ ਤਜਿ ਹੋਵਉ ਰੇਨ ॥
गरबु मोहु तजि होवउ रेन ॥
अभिमान एवं मोह को त्याग कर मैं उसकी चरण-धूलि हो गई हूँ।
ਉਨੑ ਕੈ ਸੰਗਿ ਦੇਖਉ ਪ੍ਰਭੁ ਨੈਨ ॥੩॥
उन्ह कै संगि देखउ प्रभु नैन ॥३॥
मैं उनकी संगति में प्रभु को अपने नेत्रों से देखती हूँ॥३॥
ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਏਹੀ ਆਰਾਧਉ ॥
निमख निमख एही आराधउ ॥
क्षण क्षण में इस तरह भगवान की आराधना करती हूँ।
ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਏਹ ਸੇਵਾ ਸਾਧਉ ॥
दिनसु रैणि एह सेवा साधउ ॥
दिन-रात मैं इस तरह भगवान की सेवा करती हूँ।
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੁਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ॥ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਬਖਸਿੰਦ ॥੪॥੩੩॥੮੪॥
भए क्रिपाल गुपाल गोबिंद ॥ साधसंगि नानक बखसिंद ॥४॥३३॥८४॥
अब गोपाल गोबिंद मुझ पर कृपाल हो गया है।हे नानक ! साधसंगत में वह जीव को क्षमा कर देता है ॥४॥ ३३॥ ८४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
प्रभ की प्रीति सदा सुखु होइ ॥
प्रभु की प्रीति से सदैव सुख मिलता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਦੁਖੁ ਲਗੈ ਨ ਕੋਇ ॥
प्रभ की प्रीति दुखु लगै न कोइ ॥
इससे कोई दु:ख स्पर्श नहीं कर सकता।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਖੋਇ ॥
प्रभ की प्रीति हउमै मलु खोइ ॥
प्रभु की प्रीति से अहंत्व की मैल दूर हो जाती है और
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦ ਨਿਰਮਲ ਹੋਇ ॥੧॥
प्रभ की प्रीति सद निरमल होइ ॥१॥
मनुष्य सदैव निर्मल हो जाता है॥ १॥
ਸੁਨਹੁ ਮੀਤ ਐਸਾ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰੁ ॥
सुनहु मीत ऐसा प्रेम पिआरु ॥
हे मित्र ! सुन, भगवान का प्रेम प्यार ऐसा है कि
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਘਟ ਘਟ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीअ प्रान घट घट आधारु ॥१॥ रहाउ ॥
यह हरेक जीव के शरीर, जीवन एवं प्राणों का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਭਏ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥
प्रभ की प्रीति भए सगल निधान ॥
प्रभु की प्रीति से समस्त भण्डार मिल जाते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਿਦੈ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮ ॥
प्रभ की प्रीति रिदै निरमल नाम ॥
इससे निर्मल नाम मन में बस जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥
प्रभ की प्रीति सद सोभावंत ॥
प्रभु की प्रीति से मैं हमेशा के लिए शोभा वाला बन गया हूँ ।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਭ ਮਿਟੀ ਹੈ ਚਿੰਤ ॥੨॥
प्रभ की प्रीति सभ मिटी है चिंत ॥२॥
प्रभु की प्रीति से सारी चिन्ता मिट गई है॥ २॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਇਹੁ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥
प्रभ की प्रीति इहु भवजलु तरै ॥
प्रभु की प्रीति से मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜਮ ਤੇ ਨਹੀ ਡਰੈ ॥
प्रभ की प्रीति जम ते नही डरै ॥
प्रभु की प्रीति से जीव मृत्यु से नहीं डरता।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਗਲ ਉਧਾਰੈ ॥
प्रभ की प्रीति सगल उधारै ॥
प्रभु की प्रीति सबका उद्धार कर देती है और
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਲੈ ਸੰਗਾਰੈ ॥੩॥
प्रभ की प्रीति चलै संगारै ॥३॥
परलोक में उनके साथ जाती है। ॥३॥
ਆਪਹੁ ਕੋਈ ਮਿਲੈ ਨ ਭੂਲੈ ॥
आपहु कोई मिलै न भूलै ॥
अपने आप न कोई मनुष्य (प्रभु-चरणों में) मिला रह सकता है और न कोई कुमार्गगामी होता है।
ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤਿਸੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਘੂਲੈ ॥
जिसु क्रिपालु तिसु साधसंगि घूलै ॥
जिस पर प्रभु कृपालु होता है, वह साधुओं की संगति में मिलता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤੇਰੈ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥
कहु नानक तेरै कुरबाणु ॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! मैं तुझ पर कुर्बान जाता हूँ,”
ਸੰਤ ਓਟ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ॥੪॥੩੪॥੮੫॥
संत ओट प्रभ तेरा ताणु ॥४॥३४॥८५॥
तू ही संतों का सहारा एवं उनका बल है॥ ४॥ ३४॥ ८५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਭੂਪਤਿ ਹੋਇ ਕੈ ਰਾਜੁ ਕਮਾਇਆ ॥
भूपति होइ कै राजु कमाइआ ॥
किसी (इन्सान) ने राजा बनकर लोगों पर राज किया है और
ਕਰਿ ਕਰਿ ਅਨਰਥ ਵਿਹਾਝੀ ਮਾਇਆ ॥
करि करि अनरथ विहाझी माइआ ॥
बहुत सारे अनर्थ-जुल्म करके धन संचय किया है।