Hindi Page 1154

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੨
भैरउ महला ३ घरु २
भैरउ महला ३ घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ ਇਕੁ ਚਲਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
तिनि करतै इकु चलतु उपाइआ ॥
ईश्वर ने एक लीला रचकर

ਅਨਹਦ ਬਾਣੀ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਇਆ ॥
अनहद बाणी सबदु सुणाइआ ॥
अनहद वाणी को शब्द रूप में सुनाया है।

ਮਨਮੁਖਿ ਭੂਲੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਝਾਇਆ ॥
मनमुखि भूले गुरमुखि बुझाइआ ॥
मनमुखी जीवों ने सुनकर भी ध्यान नहीं दिया, मगर गुरुमुखों ने तथ्य को बूझ लिया है कि

ਕਾਰਣੁ ਕਰਤਾ ਕਰਦਾ ਆਇਆ ॥੧॥
कारणु करता करदा आइआ ॥१॥
प्रभु स्वयं ही कर्ता है और बनाता आया है॥१॥

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਧਿਆਨੁ ॥
गुर का सबदु मेरै अंतरि धिआनु ॥
मेरे मन में गुरु-उपदेश का ही ध्यान बना हुआ है और

ਹਉ ਕਬਹੁ ਨ ਛੋਡਉ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ कबहु न छोडउ हरि का नामु ॥१॥ रहाउ ॥
हरि-नाम स्मरण को कदापि नहीं छोड़ सकता॥१॥ रहाउ॥

ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਹਲਾਦੁ ਪੜਣ ਪਠਾਇਆ ॥
पिता प्रहलादु पड़ण पठाइआ ॥
पिता हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा और

ਲੈ ਪਾਟੀ ਪਾਧੇ ਕੈ ਆਇਆ ॥
लै पाटी पाधे कै आइआ ॥
वह पट्टी लेकर अध्यापक के पास आ गया।

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਹ ਪੜਉ ਅਚਾਰ ॥
नाम बिना नह पड़उ अचार ॥
उसने आग्रह किया कि प्रभु-नाम के सिवा अन्य कुछ नहीं पढूंगा,

ਮੇਰੀ ਪਟੀਆ ਲਿਖਿ ਦੇਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਮੁਰਾਰਿ ॥੨॥
मेरी पटीआ लिखि देहु गोबिंद मुरारि ॥२॥
अतः मेरी पट्टी पर ईश्वर का नाम लिख दो॥२॥

ਪੁਤ੍ਰ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦ ਸਿਉ ਕਹਿਆ ਮਾਇ ॥
पुत्र प्रहिलाद सिउ कहिआ माइ ॥
माँ ने पुत्र प्रहलाद से कहा,

ਪਰਵਿਰਤਿ ਨ ਪੜਹੁ ਰਹੀ ਸਮਝਾਇ ॥
परविरति न पड़हु रही समझाइ ॥
तुम अन्य रीति-रिवाजों में मत पड़ो, अध्यापक का कहना मानो।”

ਨਿਰਭਉ ਦਾਤਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੇਰੈ ਨਾਲਿ ॥
निरभउ दाता हरि जीउ मेरै नालि ॥
प्रहलाद ने उत्तर दिया, “प्रेमस्वरूप, सबको देने वाला ईश्वर मेरे साथ है,

ਜੇ ਹਰਿ ਛੋਡਉ ਤਉ ਕੁਲਿ ਲਾਗੈ ਗਾਲਿ ॥੩॥
जे हरि छोडउ तउ कुलि लागै गालि ॥३॥
अगर उसे छोड़ता हूँ तो कुल को दाग लगेगा”॥३॥

ਪ੍ਰਹਲਾਦਿ ਸਭਿ ਚਾਟੜੇ ਵਿਗਾਰੇ ॥
प्रहलादि सभि चाटड़े विगारे ॥
अध्यापकों ने पिता से शिकायत की कि प्रहलाद ने सभी सहपाठियों को बिगाड़ दिया है और

ਹਮਾਰਾ ਕਹਿਆ ਨ ਸੁਣੈ ਆਪਣੇ ਕਾਰਜ ਸਵਾਰੇ ॥
हमारा कहिआ न सुणै आपणे कारज सवारे ॥
हमारा कहना नहीं मानता अपितु अपने ही कार्य (भक्ति) कर रहा है।

ਸਭ ਨਗਰੀ ਮਹਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਈ ॥
सभ नगरी महि भगति द्रिड़ाई ॥
समूचे नगर में भक्ति की बात कर रहा है और

ਦੁਸਟ ਸਭਾ ਕਾ ਕਿਛੁ ਨ ਵਸਾਈ ॥੪॥
दुसट सभा का किछु न वसाई ॥४॥
दुष्टों की सभा का उस पर कोई वश नहीं चला॥४॥

ਸੰਡੈ ਮਰਕੈ ਕੀਈ ਪੂਕਾਰ ॥
संडै मरकै कीई पूकार ॥
अध्यापकों षण्ड एवं अमरक ने राजा हिरण्यकशिपु से फरियाद की कि

ਸਭੇ ਦੈਤ ਰਹੇ ਝਖ ਮਾਰਿ ॥
सभे दैत रहे झख मारि ॥
सभी दैत्य निरर्थक समय बर्बाद कर रहे हैं।

ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਪਤਿ ਰਾਖੈ ਸੋਈ ॥
भगत जना की पति राखै सोई ॥
जब भक्तजनों की प्रतिष्ठा एवं प्राण स्वयं ईश्वर बचाने वाला है तो

ਕੀਤੇ ਕੈ ਕਹਿਐ ਕਿਆ ਹੋਈ ॥੫॥
कीते कै कहिऐ किआ होई ॥५॥
उसके उत्पन्न किए जीव का कोई बल नहीं चल सकता॥ ५॥

ਕਿਰਤ ਸੰਜੋਗੀ ਦੈਤਿ ਰਾਜੁ ਚਲਾਇਆ ॥
किरत संजोगी दैति राजु चलाइआ ॥
कर्मों के संयोग से दैत्य हिरण्यकशिपु राज करने लगा,

ਹਰਿ ਨ ਬੂਝੈ ਤਿਨਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
हरि न बूझै तिनि आपि भुलाइआ ॥
उसने ईश्वर के रहस्य को नहीं समझा और ईश्वर ने स्वयं ही उसे भुला दिया।

ਪੁਤ੍ਰ ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਸਿਉ ਵਾਦੁ ਰਚਾਇਆ ॥
पुत्र प्रहलाद सिउ वादु रचाइआ ॥
वह अपने पुत्र प्रहलाद से झगड़ा करने लग गया,

ਅੰਧਾ ਨ ਬੂਝੈ ਕਾਲੁ ਨੇੜੈ ਆਇਆ ॥੬॥
अंधा न बूझै कालु नेड़ै आइआ ॥६॥
मगर अन्धे दैत्य ने यह नहीं समझा कि मौत उसके निकट आ रही है॥६॥

ਪ੍ਰਹਲਾਦੁ ਕੋਠੇ ਵਿਚਿ ਰਾਖਿਆ ਬਾਰਿ ਦੀਆ ਤਾਲਾ ॥
प्रहलादु कोठे विचि राखिआ बारि दीआ ताला ॥
फिर प्रहलाद को कमरे में बंद करके दरवाजे को ताला लगा दिया गया।

ਨਿਰਭਉ ਬਾਲਕੁ ਮੂਲਿ ਨ ਡਰਈ ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥
निरभउ बालकु मूलि न डरई मेरै अंतरि गुर गोपाला ॥
निर्भीक बालक ने माना कि ईश्वर मेरे अन्तर्मन में ही है, इसलिए वह बिल्कुल नहीं डरा।

ਕੀਤਾ ਹੋਵੈ ਸਰੀਕੀ ਕਰੈ ਅਨਹੋਦਾ ਨਾਉ ਧਰਾਇਆ ॥
कीता होवै सरीकी करै अनहोदा नाउ धराइआ ॥
ईश्वर का बनाया हुआ जीव अगर ईश्वर की बराबरी करने लगे और अपना नाम ऊँचा मनवाए तो

ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋੁ ਆਇ ਪਹੁਤਾ ਜਨ ਸਿਉ ਵਾਦੁ ਰਚਾਇਆ ॥੭॥
जो धुरि लिखिआ सो आइ पहुता जन सिउ वादु रचाइआ ॥७॥
कर्म-फल अवश्य पाएगा, अतः भक्त प्रहलाद से हिरण्यकशिपु ने झगड़ा खड़ा कर लिया॥ ७॥

ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਸਿਉ ਗੁਰਜ ਉਠਾਈ ॥
पिता प्रहलाद सिउ गुरज उठाई ॥
पिता ने पुत्र का वध करने के लिए गदा उठा ली और

ਕਹਾਂ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਜਗਦੀਸ ਗੁਸਾਈ ॥
कहां तुम्हारा जगदीस गुसाई ॥
चिल्लाकर बोला, “तुम्हारा जगदीश कहाँ है ?”

ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ॥
जगजीवनु दाता अंति सखाई ॥
प्रहलाद ने प्रत्युत्तर दिया, “संसार का जीवन दाता अन्त तक मेरा सहायक है और

ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੮॥
जह देखा तह रहिआ समाई ॥८॥
मैं जिधर देखता हूँ, उधर ही व्याप्त है”॥ ८॥

ਥੰਮ੍ਹ੍ਹੁ ਉਪਾੜਿ ਹਰਿ ਆਪੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
थम्हु उपाड़ि हरि आपु दिखाइआ ॥
तत्क्षण खम्भे को फाड़कर ईश्वर ने नृसिंह रूप में स्वयं को साक्षात् किया और

ਅਹੰਕਾਰੀ ਦੈਤੁ ਮਾਰਿ ਪਚਾਇਆ ॥
अहंकारी दैतु मारि पचाइआ ॥
अहंकारी राक्षस को मौत के घाट उतार दिया।

ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਵਜੀ ਵਧਾਈ ॥
भगता मनि आनंदु वजी वधाई ॥
इस तरह भक्तों के मन में आनंद छा गया और

ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥੯॥
अपने सेवक कउ दे वडिआई ॥९॥
अपने सेवक को उसने बड़ाई प्रदान की॥९॥

ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਮੋਹੁ ਉਪਾਇਆ ॥
जमणु मरणा मोहु उपाइआ ॥
जन्म, मरण, मोह सब ईश्वर ने ही उत्पन्न किया है और

ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਕਰਤੈ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥
आवणु जाणा करतै लिखि पाइआ ॥
आवागमन का लेख लिख दिया है।

ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਕੈ ਕਾਰਜਿ ਹਰਿ ਆਪੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
प्रहलाद कै कारजि हरि आपु दिखाइआ ॥
भक्त प्रहलाद के कार्य हेतु भगवान ने स्वयं को प्रगट किया और

ਭਗਤਾ ਕਾ ਬੋਲੁ ਆਗੈ ਆਇਆ ॥੧੦॥
भगता का बोलु आगै आइआ ॥१०॥
भक्तों का वचन पूरा हुआ॥ १०॥

ਦੇਵ ਕੁਲੀ ਲਖਿਮੀ ਕਉ ਕਰਹਿ ਜੈਕਾਰੁ ॥
देव कुली लखिमी कउ करहि जैकारु ॥
फिर सभी देवताओं ने लक्ष्मी जी की वंदना करते हुए विनती की,

ਮਾਤਾ ਨਰਸਿੰਘ ਕਾ ਰੂਪੁ ਨਿਵਾਰੁ ॥
माता नरसिंघ का रूपु निवारु ॥
“हे माता ! भगवान को नृसिंह का रूप छोड़ने के लिए आग्रह करें।”

ਲਖਿਮੀ ਭਉ ਕਰੈ ਨ ਸਾਕੈ ਜਾਇ ॥
लखिमी भउ करै न साकै जाइ ॥
मगर लक्ष्मी भी डरते हुए उनके पास न जा सकी।

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