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ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩
आसावरी महला ५ घरु ३
आसावरी महला ५ घरु ३

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
मेरे मन हरि सिउ लागी प्रीति ॥
मेरे मन का प्रेम हरि के साथ लग गया है।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਤ ਨਿਰਮਲ ਸਾਚੀ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि हरि हरि जपत निरमल साची रीति ॥१॥ रहाउ ॥
सत्संगति में हरि-प्रभु का नाम जपने से मेरी जीवन-मर्यादा सच्ची एवं निर्मल बन गई है। I१I रहाउ ।

ਦਰਸਨ ਕੀ ਪਿਆਸ ਘਣੀ ਚਿਤਵਤ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ॥
दरसन की पिआस घणी चितवत अनिक प्रकार ॥
हे भगवान ! मुझे तेरे दर्शनों की तीव्र लालसा लगी हुई है और मैं अनेक प्रकार से तुझे याद करता रहता हूँ।

ਕਰਹੁ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੧॥
करहु अनुग्रहु पारब्रहम हरि किरपा धारि मुरारि ॥१॥
हे परब्रह्म ! हे मुरारि ! मुझ पर अनुग्रह करो। हे हरि ! मुझ पर कृपा करो। १।

ਮਨੁ ਪਰਦੇਸੀ ਆਇਆ ਮਿਲਿਓ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
मनु परदेसी आइआ मिलिओ साध कै संगि ॥
यह परदेसी मन अनेक योनियों में भटकता हुआ इस दुनिया में आया है और आकर सत्संगति के साथ मिल गया है।

ਜਿਸੁ ਵਖਰ ਕਉ ਚਾਹਤਾ ਸੋ ਪਾਇਓ ਨਾਮਹਿ ਰੰਗਿ ॥੨॥
जिसु वखर कउ चाहता सो पाइओ नामहि रंगि ॥२॥
जिस पदार्थ की मुझमें आकांक्षा थी, वह प्रभु-नाम के रंग में रंग कर प्राप्त हो गया है। २॥

ਜੇਤੇ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਰਸ ਬਿਨਸਿ ਜਾਹਿ ਖਿਨ ਮਾਹਿ ॥
जेते माइआ रंग रस बिनसि जाहि खिन माहि ॥
जितने भी माया के रंग एवं रस हैं, वे एक क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं।

ਭਗਤ ਰਤੇ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਸਿਉ ਸੁਖੁ ਭੁੰਚਹਿ ਸਭ ਠਾਇ ॥੩॥
भगत रते तेरे नाम सिउ सुखु भुंचहि सभ ठाइ ॥३॥
हे प्रभु! तेरे भक्त तेरे नाम से अनुरक्त हैं और समस्त स्थानों पर वे सुख भोगते हैं। ३ ।

ਸਭੁ ਜਗੁ ਚਲਤਉ ਪੇਖੀਐ ਨਿਹਚਲੁ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਉ ॥
सभु जगु चलतउ पेखीऐ निहचलु हरि को नाउ ॥
समूचा जगत नश्वर दिखाई देता है लेकिन हरि का नाम ही निश्चल है।

ਕਰਿ ਮਿਤ੍ਰਾਈ ਸਾਧ ਸਿਉ ਨਿਹਚਲੁ ਪਾਵਹਿ ਠਾਉ ॥੪॥
करि मित्राई साध सिउ निहचलु पावहि ठाउ ॥४॥
हे भाई! तू साधुओं के साथ मित्रता (मैत्री) कर चूंकि तुझे निश्चल स्थान प्राप्त हो जाए। ४ ।

ਮੀਤ ਸਾਜਨ ਸੁਤ ਬੰਧਪਾ ਕੋਊ ਹੋਤ ਨ ਸਾਥ ॥
मीत साजन सुत बंधपा कोऊ होत न साथ ॥
मित्र, साजन, पुत्र एवं रिश्तेदार कोई भी तेरा साथी नहीं बना रहेगा।

ਏਕੁ ਨਿਵਾਹੂ ਰਾਮ ਨਾਮ ਦੀਨਾ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਥ ॥੫॥
एकु निवाहू राम नाम दीना का प्रभु नाथ ॥५॥
सदैव साथ निभाने वाला राम का नाम ही है। वह प्रभु दीनों का नाथ है॥ ५॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਬੋਹਿਥ ਭਏ ਲਗਿ ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਓ ਤੇਹ ॥
चरन कमल बोहिथ भए लगि सागरु तरिओ तेह ॥
प्रभु के चरण-कमल जहाज हैं। उनके साथ जुड़कर ही मैं संसार-सागर से पार हो गया हूँ।

ਭੇਟਿਓ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਾਚਾ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਨੇਹ ॥੬॥
भेटिओ पूरा सतिगुरू साचा प्रभ सिउ नेह ॥६॥
मुझे पूर्ण सतिगुरु मिल गया है और अब मेरा प्रभु से सच्चा प्रेम हो गया है। ६ ।

ਸਾਧ ਤੇਰੇ ਕੀ ਜਾਚਨਾ ਵਿਸਰੁ ਨ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ॥
साध तेरे की जाचना विसरु न सासि गिरासि ॥
हे भगवान ! तेरे साधु की विनती है कि एक श्वास एवं ग्रास के समय भी तेरा नाम विस्मृत न हो।

ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਭਲਾ ਤੇਰੈ ਭਾਣੈ ਕਾਰਜ ਰਾਸਿ ॥੭॥
जो तुधु भावै सो भला तेरै भाणै कारज रासि ॥७॥
जो कुछ तुझे भला लगता है, वही अच्छा है। तेरी रज़ा से ही सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं। ७ ॥

ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਿਲੇ ਉਪਜੇ ਮਹਾ ਅਨੰਦ ॥
सुख सागर प्रीतम मिले उपजे महा अनंद ॥
सुखों का सागर प्रियतम प्रभु जब मिल जाता है तो बड़ा आनंद उत्पन्न होता है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਭ ਦੁਖ ਮਿਟੇ ਪ੍ਰਭ ਭੇਟੇ ਪਰਮਾਨੰਦ ॥੮॥੧॥੨॥
कहु नानक सभ दुख मिटे प्रभ भेटे परमानंद ॥८॥१॥२॥
हे नानक ! परमानंद प्रभु को मिलने से सभी दु:ख-क्लेश मिट गए ॥८॥१॥२॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਬਿਰਹੜੇ ਘਰੁ ੪ ਛੰਤਾ ਕੀ ਜਤਿ
आसा महला ५ बिरहड़े घरु ४ छंता की जति
आसा महला ५ बिरहड़े घरु ४ छंता की जति

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰੀਐ ਪਿਆਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੧॥
पारब्रहमु प्रभु सिमरीऐ पिआरे दरसन कउ बलि जाउ ॥१॥
हे प्यारे ! हमेशा परब्रह्म प्रभु को ही याद करना चाहिए। मैं उस भगवान् के दर्शनों पर बलिहारी जाता हूँ। १॥

ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖ ਬੀਸਰਹਿ ਪਿਆਰੇ ਸੋ ਕਿਉ ਤਜਣਾ ਜਾਇ ॥੨॥
जिसु सिमरत दुख बीसरहि पिआरे सो किउ तजणा जाइ ॥२॥
जिस भगवान् का सिमरन करने से दु:ख-क्लेश भूल जाते हैं, उसे कैसे त्यागा जा सकता है। २॥

ਇਹੁ ਤਨੁ ਵੇਚੀ ਸੰਤ ਪਹਿ ਪਿਆਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਦੇਇ ਮਿਲਾਇ ॥੩॥
इहु तनु वेची संत पहि पिआरे प्रीतमु देइ मिलाइ ॥३॥
अपना यह तन मैं उस संत के पास बेचने को तत्पर हूँ यदि वह मुझे मेरे प्रियतम प्रभु से मिला दे। ३॥

ਸੁਖ ਸੀਗਾਰ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਫੀਕੇ ਤਜਿ ਛੋਡੇ ਮੇਰੀ ਮਾਇ ॥੪॥
सुख सीगार बिखिआ के फीके तजि छोडे मेरी माइ ॥४॥
हे मेरी माता! विकारों से युक्त मोह-माया के सभी सुख-सौन्दर्य फीके मानते हुए मैंने त्याग दिए हैं॥ ४॥

ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਤਜਿ ਗਏ ਪਿਆਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਨੀ ਪਾਇ ॥੫॥
कामु क्रोधु लोभु तजि गए पिआरे सतिगुर चरनी पाइ ॥५॥
सच्चे गुरु के चरणों में लगने से काम, क्रोध एवं लोभ मुझे छोड़कर चले गए हैं। ५॥

ਜੋ ਜਨ ਰਾਤੇ ਰਾਮ ਸਿਉ ਪਿਆਰੇ ਅਨਤ ਨ ਕਾਹੂ ਜਾਇ ॥੬॥
जो जन राते राम सिउ पिआरे अनत न काहू जाइ ॥६॥
जो लोग राम के साथ अनुरक्त हुए हैं, वे अन्य कहीं नहीं जाते। ६।

ਹਰਿ ਰਸੁ ਜਿਨੑੀ ਚਾਖਿਆ ਪਿਆਰੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਇ ॥੭॥
हरि रसु जिन्ही चाखिआ पिआरे त्रिपति रहे आघाइ ॥७॥
जिन्होंने हरि रस को चखा है, वे तृप्त एवं संतुष्ट रहते हैं। ७ ॥

ਅੰਚਲੁ ਗਹਿਆ ਸਾਧ ਕਾ ਨਾਨਕ ਭੈ ਸਾਗਰੁ ਪਾਰਿ ਪਰਾਇ ॥੮॥੧॥੩॥
अंचलु गहिआ साध का नानक भै सागरु पारि पराइ ॥८॥१॥३॥
हे नानक ! जो साधु का आंचल पकड़ते हैं, वे भवसागर से पार हो जाते हैं। ॥८॥१॥३॥

ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਕਟੀਐ ਪਿਆਰੇ ਜਬ ਭੇਟੈ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥੧॥
जनम मरण दुखु कटीऐ पिआरे जब भेटै हरि राइ ॥१॥
हे प्यारे ! जब जगत का बादशाह हरि मिल जाता है तो जन्म-मरण का दु:ख दूर हो जाता है। १॥

ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਘਰੁ ਸੁਜਾਣੁ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਜੀਵਨੁ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਇ ॥੨॥
सुंदरु सुघरु सुजाणु प्रभु मेरा जीवनु दरसु दिखाइ ॥२॥
मेरा प्रभु सुन्दर, चतुर, सुजान एवं मेरे जीवन का आधार है, जब उसके दर्शन होते हैं तो मानो प्राण दाखिल हो गए हैं। २ ।

ਜੋ ਜੀਅ ਤੁਝ ਤੇ ਬੀਛੁਰੇ ਪਿਆਰੇ ਜਨਮਿ ਮਰਹਿ ਬਿਖੁ ਖਾਇ ॥੩॥
जो जीअ तुझ ते बीछुरे पिआरे जनमि मरहि बिखु खाइ ॥३॥
हे प्यारे स्वामी ! जो जीव तुझ से बिछुड़े हैं, वे माया रूपी विष खाकर जन्मते-मरते रहते हैं। ३ ॥

ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਮੇਲਹਿ ਸੋ ਮਿਲੈ ਪਿਆਰੇ ਤਿਸ ਕੈ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ॥੪॥
जिसु तूं मेलहि सो मिलै पिआरे तिस कै लागउ पाइ ॥४॥
हे प्यारे ! जिसे तू अपने साथ मिलाता है केवल वही तुझसे मिलता है। मैं उस भाग्यवान के चरण स्पर्श करता हूँ। ४ ।

ਜੋ ਸੁਖੁ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤੇ ਪਿਆਰੇ ਮੁਖ ਤੇ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥੫॥
जो सुखु दरसनु पेखते पिआरे मुख ते कहणु न जाइ ॥५॥
हे प्यारे ! तेरे दर्शन करने से जो सुख मिलता है, वह मुँह से मुझसे कहा नहीं जा सकता। ५ ।

ਸਾਚੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਤੁਟਈ ਪਿਆਰੇ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਰਹੀ ਸਮਾਇ ॥੬॥
साची प्रीति न तुटई पिआरे जुगु जुगु रही समाइ ॥६॥
हे प्यारे ! मेरी सच्ची प्रीति तुझसे कभी नहीं टूटती और मेरी यह प्रीति युगों-युगांतरों में मेरे हृदय में समाई रहती है। ६॥

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