ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ ॥
आसा महला ५ दुपदे ॥
आसा महला ५ दुपदे ॥
ਭਈ ਪਰਾਪਤਿ ਮਾਨੁਖ ਦੇਹੁਰੀਆ ॥
भई परापति मानुख देहुरीआ ॥
हे मानव ! तुझे जो यह मानव जन्म प्राप्त हुआ है।
ਗੋਬਿੰਦ ਮਿਲਣ ਕੀ ਇਹ ਤੇਰੀ ਬਰੀਆ ॥
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
यही तुम्हारा प्रभु को मिलने का शुभावसर है; अर्थात् प्रभु का नाम सिमरन करने हेतु ही यह मानव जन्म तुझे प्राप्त हुआ है।
ਅਵਰਿ ਕਾਜ ਤੇਰੈ ਕਿਤੈ ਨ ਕਾਮ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥
इसके अतिरिक्त किए जाने वाले सांसारिक कार्य तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं।
ਮਿਲੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਭਜੁ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ॥੧॥
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥
सिर्फ तुम साधुओं-संतों का संग करके उस अकाल-पुरुष का चिन्तन ही करो।॥ १॥
ਸਰੰਜਾਮਿ ਲਾਗੁ ਭਵਜਲ ਤਰਨ ਕੈ ॥
सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥
इसलिए इस संसार-सागर से पार उतरने के उद्यम में लग।
ਜਨਮੁ ਬ੍ਰਿਥਾ ਜਾਤ ਰੰਗਿ ਮਾਇਆ ਕੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥ रहाउ ॥
अन्यथा माया के प्रेम में रत तुम्हारा यह जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਧਰਮੁ ਨ ਕਮਾਇਆ ॥
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥
हे मानव ! तुमने जप, तप व संयम नहीं किया और न ही कोई पुनीत कार्य करके धर्म कमाया है।
ਸੇਵਾ ਸਾਧ ਨ ਜਾਨਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥
साधु-संतों की सेवा नहीं की है तथा न ही परमेश्वर को स्मरण किया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਮ ਨੀਚ ਕਰੰਮਾ ॥
कहु नानक हम नीच करमा ॥
हे नानक ! हम मंदकर्मी जीव हैं।
ਸਰਣਿ ਪਰੇ ਕੀ ਰਾਖਹੁ ਸਰਮਾ ॥੨॥੨੯॥
सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥२९॥
मुझ शरणागत की लाज रखो॥ २॥ २६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਮੈ ਦੂਜਾ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
तुझ बिनु अवरु नाही मै दूजा तूं मेरे मन माही ॥
हे जगत के मालिक ! तेरे बिना मेरा दूसरा कोई भी नहीं और तू ही मेरे मन में रहता है।
ਤੂੰ ਸਾਜਨੁ ਸੰਗੀ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਕਾਹੇ ਜੀਅ ਡਰਾਹੀ ॥੧॥
तूं साजनु संगी प्रभु मेरा काहे जीअ डराही ॥१॥
हे प्रभु! जब तू मेरा साजन एवं साथी है तो फिर मेरे प्राण क्यों भयभीत हों ?॥ १॥
ਤੁਮਰੀ ਓਟ ਤੁਮਾਰੀ ਆਸਾ ॥
तुमरी ओट तुमारी आसा ॥
हे नाथ ! तुम ही मेरी ओट एवं तुम ही मेरी आशा हो।
ਬੈਠਤ ਊਠਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਤੂੰ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बैठत ऊठत सोवत जागत विसरु नाही तूं सास गिरासा ॥१॥ रहाउ ॥
बैठते-उठते, सोते-जागते, श्वास लेते अथवा खाते समय तुम मुझे कभी भी विस्मृत न हो।॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੀ ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਵਿਕਰਾਲਾ ॥
राखु राखु सरणि प्रभ अपनी अगनि सागर विकराला ॥
हे प्रभु ! मुझे अपनी शरण में रखो, चूंकि यह दुनिया अग्नि का भयानक सागर है।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਖਦਾਤੇ ਸਤਿਗੁਰ ਹਮ ਤੁਮਰੇ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲਾ ॥੨॥੩੦॥
नानक के सुखदाते सतिगुर हम तुमरे बाल गुपाला ॥२॥३०॥
हे नानक के सुखदाता सतिगुरु ! हम तेरी ही संतान हैं।॥ २॥ ३०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਲੀਨੇ ਪ੍ਰਭੂ ਛਡਾਇ ॥
हरि जन लीने प्रभू छडाइ ॥
परमेश्वर ने अपने भक्तों को मोह-माया के जाल से बचा लिया है।
ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮੇਰੋ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਤਾਪੁ ਮੁਆ ਬਿਖੁ ਖਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रीतम सिउ मेरो मनु मानिआ तापु मुआ बिखु खाइ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन प्रियतम-प्रभु के साथ मिल गया है और मेरा ताप विष सेवन करके मर गया है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਪਾਲਾ ਤਾਊ ਕਛੂ ਨ ਬਿਆਪੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥
पाला ताऊ कछू न बिआपै राम नाम गुन गाइ ॥
राम नाम का गुणगान करने से मुझे सर्दी एवं गर्मी प्रभावित नहीं करते।
ਡਾਕੀ ਕੋ ਚਿਤਿ ਕਛੂ ਨ ਲਾਗੈ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਨਾਇ ॥੧॥
डाकी को चिति कछू न लागै चरन कमल सरनाइ ॥१॥
प्रभु के चरण कमल का आश्रय प्राप्त करने से माया डायन का मेरे मन पर भी प्रभाव नहीं पड़ता ॥ १॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲਾ ਹੋਏ ਆਪਿ ਸਹਾਇ ॥
संत प्रसादि भए किरपाला होए आपि सहाइ ॥
संतों की कृपा से ईश्वर मुझ पर कृपालु हो गया है और स्वयं मेरा सहायक बन गया है।
ਗੁਨ ਨਿਧਾਨ ਨਿਤਿ ਗਾਵੈ ਨਾਨਕੁ ਸਹਸਾ ਦੁਖੁ ਮਿਟਾਇ ॥੨॥੩੧॥
गुन निधान निति गावै नानकु सहसा दुखु मिटाइ ॥२॥३१॥
नानक दुविधा एवं दुख को दूर करके गुणनिधान प्रभु के नित्य ही गुण गाता रहता है॥ २॥ ३१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਅਉਖਧੁ ਖਾਇਓ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਉ ॥
अउखधु खाइओ हरि को नाउ ॥
हे भाई ! मैंने हरि-नाम रूपी औषधि खा ली है,”
ਸੁਖ ਪਾਏ ਦੁਖ ਬਿਨਸਿਆ ਥਾਉ ॥੧॥
सुख पाए दुख बिनसिआ थाउ ॥१॥
जिससे मेरे दु:ख का नाश हो गया है और आत्मिक सुख प्राप्त कर लिया है॥ १ ॥
ਤਾਪੁ ਗਇਆ ਬਚਨਿ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ॥
तापु गइआ बचनि गुर पूरे ॥
पूर्ण गुरु के वचन द्वारा मेरे मन का संताप नष्ट हो गया है।
ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਸਭਿ ਮਿਟੇ ਵਿਸੂਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनदु भइआ सभि मिटे विसूरे ॥१॥ रहाउ ॥
मेरी समस्त चिन्ताएँ मिट गई हैं और आनंद प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥੨॥੩੨॥
जीअ जंत सगल सुखु पाइआ ॥ पारब्रहमु नानक मनि धिआइआ ॥२॥३२॥
हे नानक ! जिन्होंने अपने मन में परमात्मा को याद किया है,”उन सभी जीव-जंतुओं ने सुख ही पाया है॥ २॥ ३२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਬਾਂਛਤ ਨਾਹੀ ਸੁ ਬੇਲਾ ਆਈ ॥
बांछत नाही सु बेला आई ॥
(हे बन्धु !) मृत्यु का वह समय आ गया है जिसे कोई भी प्राणी पसन्द नहीं करता।
ਬਿਨੁ ਹੁਕਮੈ ਕਿਉ ਬੁਝੈ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥
बिनु हुकमै किउ बुझै बुझाई ॥१॥
प्रभु के हुक्म बिना मनुष्य कैसे समझ सकता है चाहे उसे कितना भी समझाया जाए॥ १॥
ਠੰਢੀ ਤਾਤੀ ਮਿਟੀ ਖਾਈ ॥
ठंढी ताती मिटी खाई ॥
हे भाई ! पार्थिव शरीर को जलप्रवाह किया जाता है, अग्नि में जलाया जाता है अथवा मिट्टी में दफनाया जाता है
ਓਹੁ ਨ ਬਾਲਾ ਬੂਢਾ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ओहु न बाला बूढा भाई ॥१॥ रहाउ ॥
परन्तु यह आत्मा न तो जवान होती है, न ही वृद्ध होती है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਾਧ ਸਰਣਾਈ ॥
नानक दास साध सरणाई ॥
दास नानक ने साधु-संतों की शरण ली है,”
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭਉ ਪਾਰਿ ਪਰਾਈ ॥੨॥੩੩॥
गुर प्रसादि भउ पारि पराई ॥२॥३३॥
गुरु की कृपा से उसने मृत्यु के भय को पार कर लिया है॥ २॥ ३३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਆਤਮ ਪਰਗਾਸੁ ॥
सदा सदा आतम परगासु ॥
उस व्यक्ति के मन में हमेशा के लिए (प्रभु ज्योति का) प्रकाश हो जाता है
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧॥
साधसंगति हरि चरण निवासु ॥१॥
जो व्यक्ति साधु की संगति में मिलकर श्रीहरि के चरणों में निवास करता है ॥ १॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਿਤਿ ਜਪਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ॥
राम नाम निति जपि मन मेरे ॥
हे मेरे मन ! तू प्रतिदिन राम के नाम का जाप कर।
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸਦਾ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ਕਿਲਵਿਖ ਜਾਹਿ ਸਭੇ ਮਨ ਤੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सीतल सांति सदा सुख पावहि किलविख जाहि सभे मन तेरे ॥१॥ रहाउ ॥
इस तरह तुझे हमेशा के लिए शीतल, शांति एवं सुख प्राप्त होगे और तेरे दुःख-क्लेश सब विनष्ट हो जाएँगे॥ १॥ रहाउ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰਨ ਕਰਮ ॥
कहु नानक जा के पूरन करम ॥
हे नानक ! जिस जीवात्मा के पूर्ण भाग्य उदय होते हैं,”
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਪੂਰਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥੨॥੩੪॥
सतिगुर भेटे पूरन पारब्रहम ॥२॥३४॥
उसे सच्चा गुरु मिल जाता है और (गुरु द्वारा) पूर्ण परब्रह्म भी मिल जाता है। २॥ ३४॥
ਦੂਜੇ ਘਰ ਕੇ ਚਉਤੀਸ ॥
दूजे घर के चउतीस ॥
दूसरे घर के चौंतीस ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਜਾ ਕਾ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਬੇਲੀ ॥
जा का हरि सुआमी प्रभु बेली ॥
जिस जीवात्मा का बेली जगत का स्वामी हरि-प्रभु है,”