ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ਛੰਤ ॥
आसा महला ४ छंत ॥
आसा महला ४ छंत ॥
ਵਡਾ ਮੇਰਾ ਗੋਵਿੰਦੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਆਦਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਜੀਉ ॥
वडा मेरा गोविंदु अगम अगोचरु आदि निरंजनु निरंकारु जीउ ॥
मेरा गोविन्द ही सबसे बड़ा है, वह अगम्य, अगोचर, जगत का आदि निरंजन निरंकार है।
ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ਅਮਿਤਿ ਵਡਿਆਈ ਮੇਰਾ ਗੋਵਿੰਦੁ ਅਲਖ ਅਪਾਰ ਜੀਉ ॥
ता की गति कही न जाई अमिति वडिआई मेरा गोविंदु अलख अपार जीउ ॥
उसकी गति कही नहीं जा सकती, उसका प्रताप अपरिमित है, मेरा गोविन्द अलक्ष्य एवं अपार है।
ਗੋਵਿੰਦੁ ਅਲਖ ਅਪਾਰੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਆਪੁ ਆਪਣਾ ਜਾਣੈ ॥
गोविंदु अलख अपारु अपर्मपरु आपु आपणा जाणै ॥
अलक्ष्य, अपार, अपरंपार गोविंद स्वयं ही अपने आपको जानता है।
ਕਿਆ ਇਹ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੇ ਕਹੀਅਹਿ ਜੋ ਤੁਧੁ ਆਖਿ ਵਖਾਣੈ ॥
किआ इह जंत विचारे कहीअहि जो तुधु आखि वखाणै ॥
हे भगवान ! ये बेचारे जीव भी क्या विचार उच्चारण करें, जो तेरी व्याख्या एवं वर्णन कर सकें।
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਤੂੰ ਅਪਣੀ ਸੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰੁ ਜੀਉ ॥
जिस नो नदरि करहि तूं अपणी सो गुरमुखि करे वीचारु जीउ ॥
जिस पर तू अपनी करुणा-दृष्टि करता है, वही गुरु द्वारा तेरे बारे में कुछ विचार करता है।
ਵਡਾ ਮੇਰਾ ਗੋਵਿੰਦੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਆਦਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਜੀਉ ॥੧॥
वडा मेरा गोविंदु अगम अगोचरु आदि निरंजनु निरंकारु जीउ ॥१॥
मेरा गोविन्द ही सबसे बड़ा है, वह अगम्य, अगोचर, जगत का आदि, निरंजन निरंकार है॥ १॥
ਤੂੰ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਕਰਤਾ ਤੇਰਾ ਪਾਰੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता तेरा पारु न पाइआ जाइ जीउ ॥
हे मालिक ! तू आदिपुरुष, अपरंपार एवं जगत का रचयिता है और तेरा पार पाया नहीं जा सकता।
ਤੂੰ ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ਜੀਉ ॥
तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि सभ महि रहिआ समाइ जीउ ॥
हे प्रभु ! तू कण-कण एवं प्रत्येक शरीर में निरंतर मौजूद है, तू सब में समाया रहता है।
ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
घट अंतरि पारब्रहमु परमेसरु ता का अंतु न पाइआ ॥
वह परब्रह्म-परमेश्वर प्रत्येक हृदय में विद्यमान है, जिसका अंत नहीं पाया जा सकता।
ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖ ਅਦਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥
तिसु रूपु न रेख अदिसटु अगोचरु गुरमुखि अलखु लखाइआ ॥
उसका कोई रूप एवं रेखा नहीं, वह अदृष्ट एवं अगोचर है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਹਜੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ਜੀਉ ॥
सदा अनंदि रहै दिनु राती सहजे नामि समाइ जीउ ॥
गुरु ने जिस व्यक्ति को अलक्ष्य परमात्मा दिखा दिया है, वह दिन-रात सदा आनंदमय रहता है और सहज ही उसके नाम में समाया रहता है।
ਤੂੰ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਕਰਤਾ ਤੇਰਾ ਪਾਰੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥੨॥
तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता तेरा पारु न पाइआ जाइ जीउ ॥२॥
हे मालिक ! तू आदिपुरुष, अपरंपार एवं जगत का रचयिता है और तेरा पार नहीं पाया जा सकता ॥ २॥
ਤੂੰ ਸਤਿ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸਦਾ ਅਬਿਨਾਸੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ਜੀਉ ॥
तूं सति परमेसरु सदा अबिनासी हरि हरि गुणी निधानु जीउ ॥
हे श्रीहरि ! तू सदैव सत्य परमेश्वर है एवं सदा अबिनाशी है, तू ही गुणों का भण्डार है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਤੂੰ ਆਪੇ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਨੁ ਜੀਉ ॥
हरि हरि प्रभु एको अवरु न कोई तूं आपे पुरखु सुजानु जीउ ॥
हे हरि-प्रभु ! सारे विश्व में एक तू ही है और तेरे समान अन्य कोई नहीं है, तू आप ही एक चतुर पुरुष है।
ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਨੁ ਤੂੰ ਪਰਧਾਨੁ ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
पुरखु सुजानु तूं परधानु तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
हे चतुर पुरुष ! विश्व में तू ही प्रधान है और तेरे जैसा अन्य कोई बड़ा नहीं।
ਤੇਰਾ ਸਬਦੁ ਸਭੁ ਤੂੰਹੈ ਵਰਤਹਿ ਤੂੰ ਆਪੇ ਕਰਹਿ ਸੁ ਹੋਈ ॥
तेरा सबदु सभु तूंहै वरतहि तूं आपे करहि सु होई ॥
हे प्रभु ! तेरा ही शब्द (हुक्म) सक्रिय है, तू सर्वव्यापक है, जो कुछ तू स्वयं करता है वही होता है।
ਹਰਿ ਸਭ ਮਹਿ ਰਵਿਆ ਏਕੋ ਸੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਖਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜੀਉ ॥
हरि सभ महि रविआ एको सोई गुरमुखि लखिआ हरि नामु जीउ ॥
वह एक परमात्मा ही सबमें समाया हुआ है, गुरुमुख बनकर ही हरि का नाम जाना जाता है।
ਤੂੰ ਸਤਿ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸਦਾ ਅਬਿਨਾਸੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ਜੀਉ ॥੩॥
तूं सति परमेसरु सदा अबिनासी हरि हरि गुणी निधानु जीउ ॥३॥
हे भगवान ! तू सदैव सत्य परमेश्वर है जो सदा अबिनाशी है, एक तू ही गुणों का भण्डार है॥ ३॥
ਸਭੁ ਤੂੰਹੈ ਕਰਤਾ ਸਭ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਇ ਜੀਉ ॥
सभु तूंहै करता सभ तेरी वडिआई जिउ भावै तिवै चलाइ जीउ ॥
हे दुनिया बनाने वाले ! हर जगह तू ही है, संसार में चारों ओर तेरा ही प्रताप है, जैसे तुझे भाता है, वैसे ही दुनिया को चलाते हो।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਵਹਿ ਸਭ ਤੇਰੈ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇ ਜੀਉ ॥
तुधु आपे भावै तिवै चलावहि सभ तेरै सबदि समाइ जीउ ॥
जैसे तुम्हें स्वयं पसंद है, वैसे ही तुम सृष्टि को चलाते हो, सभी जीव तेरे शब्द में ही समाए हुए हैं।
ਸਭ ਸਬਦਿ ਸਮਾਵੈ ਜਾਂ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤੇਰੈ ਸਬਦਿ ਵਡਿਆਈ ॥
सभ सबदि समावै जां तुधु भावै तेरै सबदि वडिआई ॥
यदि तुझे अच्छा लग जाए तो सभी तेरे शब्द में समा जाते हैं, मनुष्य तेरे शब्द द्वारा ही बड़ाई पा लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਧਿ ਪਾਈਐ ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ਸਬਦੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥
गुरमुखि बुधि पाईऐ आपु गवाईऐ सबदे रहिआ समाई ॥
गुरुमुख बनकर ही मनुष्य बुद्धि प्राप्त करता है और अपना अहंकार मिटा कर प्रभु में समाया रहता है।
ਤੇਰਾ ਸਬਦੁ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ਜੀਉ ॥
तेरा सबदु अगोचरु गुरमुखि पाईऐ नानक नामि समाइ जीउ ॥
हे प्रभु ! गुरुमुख बनकर ही तेरा अगोचर शब्द प्राप्त होता है, हे नानक ! मनुष्य नाम में समाया रहता है।
ਸਭੁ ਤੂੰਹੈ ਕਰਤਾ ਸਭ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥੭॥੧੪॥
सभु तूंहै करता सभ तेरी वडिआई जिउ भावै तिवै चलाइ जीउ ॥४॥७॥१४॥
हे विश्व को पैदा करने वाले ! सृष्टि में चारों ओर तेरा ही प्रताप है, जैसे तुझे मंजूर है, वैसे ही तू सृष्टि को चलाता है॥ ४॥ ७॥ १४॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ਛੰਤ ਘਰੁ ੪ ॥
आसा महला ४ छंत घरु ४ ॥
आसा महला ४ छंत घरु ४ ॥
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਿੰਨੇ ਲੋਇਣਾ ਮਨੁ ਪ੍ਰੇਮਿ ਰਤੰਨਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥
हरि अम्रित भिंने लोइणा मनु प्रेमि रतंना राम राजे ॥
हरि के नामामृत से मेरे नेत्र भीग गए हैं और मेरा मन उसके प्रेम रंग में रंगा हुआ है।
ਮਨੁ ਰਾਮਿ ਕਸਵਟੀ ਲਾਇਆ ਕੰਚਨੁ ਸੋਵਿੰਨਾ ॥
मनु रामि कसवटी लाइआ कंचनु सोविंना ॥
मेरे राम ने मेरे मन को कसौटी पर परखा है और यह शुद्ध कंचन बन गया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲਿਆ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੋ ਭਿੰਨਾ ॥
गुरमुखि रंगि चलूलिआ मेरा मनु तनो भिंना ॥
गुरुमुख बनकर मेरा मन-तन प्रभु के प्रेम में भीग कर गहरा लाल हो गया है।