ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਨਹ ਮੇਟੈ ਕੋਇ ॥
किरतु पइआ नह मेटै कोइ ॥
पूर्व जन्म के कर्मों के कारण जो मेरी किस्मत में लिखा हुआ है, उसे कोई भी मिटा नहीं सकता।
ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਕਿਆ ਆਗੈ ਹੋਇ ॥
किआ जाणा किआ आगै होइ ॥
मैं नहीं जानता कि मेरे साथ आगे क्या बीतेगा?
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਣਾ ਸੋਈ ਹੂਆ ॥
जो तिसु भाणा सोई हूआ ॥
जो कुछ ईश्वर की इच्छा है, वहीं कुछ हुआ है।
ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਣੈ ਵਾਲਾ ਦੂਆ ॥੧॥
अवरु न करणै वाला दूआ ॥१॥
प्रभु के अलावा दूसरा कोई करने वाला नहीं ॥ १॥
ਨਾ ਜਾਣਾ ਕਰਮ ਕੇਵਡ ਤੇਰੀ ਦਾਤਿ ॥
ना जाणा करम केवड तेरी दाति ॥
हे ईश्वर ! मैं नहीं जानता कि तेरी कृपा की देन कितनी बड़ी है।
ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਕੀ ਜਾਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करमु धरमु तेरे नाम की जाति ॥१॥ रहाउ ॥
सभी शुभ कर्म, धर्म, श्रेष्ठ जाति तेरे नाम अधीन हैं॥१॥ रहाउ ॥
ਤੂ ਏਵਡੁ ਦਾਤਾ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥
तू एवडु दाता देवणहारु ॥
हे ईश्वर ! तू देन देने वाला इतना बड़ा दाता है
ਤੋਟਿ ਨਾਹੀ ਤੁਧੁ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ॥
तोटि नाही तुधु भगति भंडार ॥
कि तेरी भक्ति के भण्डार कभी कम नहीं होते।
ਕੀਆ ਗਰਬੁ ਨ ਆਵੈ ਰਾਸਿ ॥
कीआ गरबु न आवै रासि ॥
अहंकार करने से कोई भी कार्य सम्पूर्ण नहीं होता।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੇਰੈ ਪਾਸਿ ॥੨॥
जीउ पिंडु सभु तेरै पासि ॥२॥
हे प्रभु ! मेरी आत्मा एवं शरीर सभी तेरे पास अर्पण हैं।॥ २॥
ਤੂ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲਹਿ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ॥
तू मारि जीवालहि बखसि मिलाइ ॥
हे भगवान ! तू जीव को मार कर फिर जीवित कर देता है और तू ही क्षमा करके जीव को अपने साथ मिल लेता है।
ਜਿਉ ਭਾਵੀ ਤਿਉ ਨਾਮੁ ਜਪਾਇ ॥
जिउ भावी तिउ नामु जपाइ ॥
जैसे तुझे उपयुक्त लगता है वैसे ही तू जीव से अपना नाम सिमरन करवाता है।
ਤੂੰ ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਸਾਚਾ ਸਿਰਿ ਮੇਰੈ ॥
तूं दाना बीना साचा सिरि मेरै ॥
हे मेरे परमेश्वर ! तुम बड़े बुद्धिमान हो और मेरे मन की दशा जानते हो, तुम मेरे रक्षक हो और सत्य स्वरूप हो।
ਗੁਰਮਤਿ ਦੇਇ ਭਰੋਸੈ ਤੇਰੈ ॥੩॥
गुरमति देइ भरोसै तेरै ॥३॥
हे प्रभु! मुझे गुरु की मति दीजिए, चूंकि मैं तेरे भरोसे पर ही बैठा हूँ॥ ३॥
ਤਨ ਮਹਿ ਮੈਲੁ ਨਾਹੀ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
तन महि मैलु नाही मनु राता ॥
जिसका हृदय प्रभु के प्रेम में मग्न है, उसके तन में पापों की कोई मलिनता नहीं।
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸਚੁ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥
गुर बचनी सचु सबदि पछाता ॥
मैंने तेरे सत्य-नाम को गुरु की वाणी द्वारा पहचान लिया है।
ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ਨਾਮ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
तेरा ताणु नाम की वडिआई ॥
मेरे शरीर में तेरा ही दिया हुआ बल है और तूने ही मुझे अपने नाम की ख्याति प्रदान की है।
ਨਾਨਕ ਰਹਣਾ ਭਗਤਿ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥੧੦॥
नानक रहणा भगति सरणाई ॥४॥१०॥
हे नानक! मुझे तो तेरी भक्ति की शरण में ही रहना है॥ ४॥ १०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਜਿਨਿ ਅਕਥੁ ਕਹਾਇਆ ਅਪਿਓ ਪੀਆਇਆ ॥
जिनि अकथु कहाइआ अपिओ पीआइआ ॥
जिस प्राणी ने अकथनीय परमात्मा को स्मरण किया है और दूसरों को आराधना हेतु प्रेरित किया है, उस प्राणी ने स्वयं अमृत पान किया है।
ਅਨ ਭੈ ਵਿਸਰੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥
अन भै विसरे नामि समाइआ ॥१॥
वह प्राणी दूसरे समस्त भय विस्मृत कर देता है, क्योंकि वह ईश्वर के नाम में समा जाता है॥ १॥
ਕਿਆ ਡਰੀਐ ਡਰੁ ਡਰਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥
किआ डरीऐ डरु डरहि समाना ॥
हम क्यों भयभीत हों, जब तमाम भय परमात्मा के भय में नष्ट हो जाते हैं।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरे गुर कै सबदि पछाना ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु के शब्द द्वारा मैंने ईश्वर को पहचान लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਸੁ ਨਰ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ॥
जिसु नर रामु रिदै हरि रासि ॥
जिस व्यक्ति के हृदय में राम का निवास हो जाता है,
ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ਮਿਲੇ ਸਾਬਾਸਿ ॥੨॥
सहजि सुभाइ मिले साबासि ॥२॥
उसे हरि-नाम की पूंजी मिल जाती है और उसे सहज ही प्रभु के दरबार में प्रशंसा भी मिलती है॥ २॥
ਜਾਹਿ ਸਵਾਰੈ ਸਾਝ ਬਿਆਲ ॥
जाहि सवारै साझ बिआल ॥
परमात्मा जिन स्वेच्छाचारी जीवों को संध्याकाल एवं प्रातःकाल मोह-माया-रुपी निद्रा में मग्न रखता है,
ਇਤ ਉਤ ਮਨਮੁਖ ਬਾਧੇ ਕਾਲ ॥੩॥
इत उत मनमुख बाधे काल ॥३॥
ऐसे मनमुख इहलोक तथा परलोक में काल द्वारा बंधे रहते हैं।॥ ३॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਸੇ ਪੂਰੇ ॥
अहिनिसि रामु रिदै से पूरे ॥
जिन व्यक्तियों के हृदय में दिन-रात राम का निवास होता है, वहीं पूर्ण संत हैं।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਮਿਲੇ ਭ੍ਰਮ ਦੂਰੇ ॥੪॥੧੧॥
नानक राम मिले भ्रम दूरे ॥४॥११॥
हे नानक ! जिसे राम मिल जाता है, उसका भ्रम दूर हो जाता है॥ ४॥ ११॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਜਨਮਿ ਮਰੈ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਹਿਤਕਾਰੁ ॥
जनमि मरै त्रै गुण हितकारु ॥
जिस व्यक्ति का त्रिगुणात्मक दुनिया से प्रेम है, वह जन्मता-मरता ही रहता है।
ਚਾਰੇ ਬੇਦ ਕਥਹਿ ਆਕਾਰੁ ॥
चारे बेद कथहि आकारु ॥
चारों ही वेद सृष्टि का कथन करते हैं।
ਤੀਨਿ ਅਵਸਥਾ ਕਹਹਿ ਵਖਿਆਨੁ ॥
तीनि अवसथा कहहि वखिआनु ॥
वह मन् की तीन अवस्थाओं का बखान करते हैं।
ਤੁਰੀਆਵਸਥਾ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਹਰਿ ਜਾਨੁ ॥੧॥
तुरीआवसथा सतिगुर ते हरि जानु ॥१॥
मन की तुरीयावस्था भगवान रूप सतिगुरु से ही जानी जाती है॥ १॥
ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤਰਣਾ ॥
राम भगति गुर सेवा तरणा ॥
राम की भक्ति एवं गुरु की सेवा करने से प्राणी भवसागर से पार हो जाता है।
ਬਾਹੁੜਿ ਜਨਮੁ ਨ ਹੋਇ ਹੈ ਮਰਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बाहुड़ि जनमु न होइ है मरणा ॥१॥ रहाउ ॥
जो भवसागर से पार हो जाता है, उसका पुनः दुनिया में जन्म-मरण नहीं होता ॥ १॥ रहाउ॥
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਕਹੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
चारि पदारथ कहै सभु कोई ॥
प्रत्येक प्राणी घर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार उत्तम पदार्थों का वर्णन करता है।
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਪੰਡਿਤ ਮੁਖਿ ਸੋਈ ॥
सिम्रिति सासत पंडित मुखि सोई ॥
सत्ताइस स्मृतिर्यो, छ: शास्त्रों और पण्डितों के मुख से यही सुना जाता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਅਰਥੁ ਬੀਚਾਰੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
बिनु गुर अरथु बीचारु न पाइआ ॥
गुरु के बिना अर्थ का ज्ञान किसी ने भी नहीं पाया।
ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ॥੨॥
मुकति पदारथु भगति हरि पाइआ ॥२॥
मुक्ति पदार्थ अर्थात् मोक्ष ईश्वर की भक्ति द्वारा ही प्राप्त होता है॥ २॥
ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥
जा कै हिरदै वसिआ हरि सोई ॥
जिस व्यक्ति के हृदय में परमात्मा का निवास हो जाता है,”
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਈ ॥
गुरमुखि भगति परापति होई ॥
उसे गुरु के माध्यम से परमात्मा की भक्ति प्राप्त हो जाती है।
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਮੁਕਤਿ ਆਨੰਦੁ ॥
हरि की भगति मुकति आनंदु ॥
परमात्मा की भक्ति करने से मोक्ष एवं आनंद प्राप्त हो जाता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਏ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥੩॥
गुरमति पाए परमानंदु ॥३॥
गुरु की मति द्वारा उसे परमानन्द प्राप्त होता है॥ ३॥
ਜਿਨਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰਿ ਦੇਖਿ ਦਿਖਾਇਆ ॥
जिनि पाइआ गुरि देखि दिखाइआ ॥
जिसने गुरु को पा लिया है, गुरु स्वयं ही उसे भगवान के दर्शन करवा देता है।
ਆਸਾ ਮਾਹਿ ਨਿਰਾਸੁ ਬੁਝਾਇਆ ॥
आसा माहि निरासु बुझाइआ ॥
मुझे आशावादी को गुरु ने निर्लिप्त रहना सिखा दिया है।
ਦੀਨਾ ਨਾਥੁ ਸਰਬ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
दीना नाथु सरब सुखदाता ॥
दीनानाथ प्रभु जीवों को सर्व सुख प्रदान करने वाला है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥੪॥੧੨॥
नानक हरि चरणी मनु राता ॥४॥१२॥
हे नानक ! मेरा मन भगवान के सुन्दर चरणों में मग्न हो गया है॥ ४॥ १२॥
ਗਉੜੀ ਚੇਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी चेती महला १ ॥
गउड़ी चेती महला १ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਾਇਆ ਰਹੈ ਸੁਖਾਲੀ ਬਾਜੀ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੋ ॥
अम्रित काइआ रहै सुखाली बाजी इहु संसारो ॥
यह सुन्दर काया स्वयं को अमर समझकर जीवन के सुख भोगने में लगी रहती है किन्तु उसे यह ज्ञान नहीं कि यह दुनिया तो (भगवान की) एक खेल है।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਮੁਚੁ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ਬਹੁਤੁ ਉਠਾਵਹਿ ਭਾਰੋ ॥
लबु लोभु मुचु कूड़ु कमावहि बहुतु उठावहि भारो ॥
हे मेरी काया ! तू लालच, लोभ एवं बहुत झूठ कमा रही है और तू अपने सिर पर पापों का अत्यधिक भार उठा रही है।
ਤੂੰ ਕਾਇਆ ਮੈ ਰੁਲਦੀ ਦੇਖੀ ਜਿਉ ਧਰ ਉਪਰਿ ਛਾਰੋ ॥੧॥
तूं काइआ मै रुलदी देखी जिउ धर उपरि छारो ॥१॥
हे मेरी काया ! मैंने तुझे पृथ्वी पर राख की भाँति बर्बाद होते देखा है॥ १॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਸਿਖ ਹਮਾਰੀ ॥
सुणि सुणि सिख हमारी ॥
हे मेरी काया ! मेरी सीख ध्यानपूर्वक सुन।
ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕੀਤਾ ਰਹਸੀ ਮੇਰੇ ਜੀਅੜੇ ਬਹੁੜਿ ਨ ਆਵੈ ਵਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुक्रितु कीता रहसी मेरे जीअड़े बहुड़ि न आवै वारी ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे किए हुए शुभ कर्म ही अन्तिम समय तेरे साथ रहेंगे। हे मेरे मन ! इस तरह का सुनहरी अवसर दोबारा तेरे हाथ नहीं लगेगा ॥ १॥ रहाउ॥