ਮਨਮੁਖ ਦੂਜੀ ਤਰਫ ਹੈ ਵੇਖਹੁ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥
मनमुख दूजी तरफ है वेखहु नदरि निहालि ॥
ध्यानपूर्वक देख लो, स्वेच्छाचारी उलटा ही चलता है।
ਫਾਹੀ ਫਾਥੇ ਮਿਰਗ ਜਿਉ ਸਿਰਿ ਦੀਸੈ ਜਮਕਾਲੁ ॥
फाही फाथे मिरग जिउ सिरि दीसै जमकालु ॥
फंदे में फसे हिरण की तरह सिर पर मौत ही नजर आती है।
ਖੁਧਿਆ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਿੰਦਾ ਬੁਰੀ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਵਿਕਰਾਲੁ ॥
खुधिआ त्रिसना निंदा बुरी कामु क्रोधु विकरालु ॥
भूख, तृष्णा एवं निंदा बहुत बुरी है और काम, क्रोध विकराल चाण्डाल समान है।
ਏਨੀ ਅਖੀ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵਈ ਜਿਚਰੁ ਸਬਦਿ ਨ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥
एनी अखी नदरि न आवई जिचरु सबदि न करे बीचारु ॥
जब तक वह शब्द का चिंतन नहीं करता, उसे आँखों से कुछ नजर नहीं आता।
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸੰਤੋਖੀਆਂ ਚੂਕੈ ਆਲ ਜੰਜਾਲੁ ॥
तुधु भावै संतोखीआं चूकै आल जंजालु ॥
हे स्रष्टा ! जब तुझे उपयुक्त लगता है तो मन को संतोष मिलता है और व्यर्थ के जंजाल दूर हो जाते हैं।
ਮੂਲੁ ਰਹੈ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਗੁਰ ਪਉੜੀ ਬੋਹਿਥੁ ॥
मूलु रहै गुरु सेविऐ गुर पउड़ी बोहिथु ॥
गुरु की सेवा से ही मनुष्य की जड़ मजबूत होती है, गुरु ही ऐसी सीढ़ी है जो मंजिल तक पहुँचाती है, गुरु ही ऐसा जहाज है, जो संसार-सागर से पार उतारता है।
ਨਾਨਕ ਲਗੀ ਤਤੁ ਲੈ ਤੂੰ ਸਚਾ ਮਨਿ ਸਚੁ ॥੧॥
नानक लगी ततु लै तूं सचा मनि सचु ॥१॥
हे नानक ! जब लगन लगती है तो मन सत्यशील होकर सत्य में लीन रहता है॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १॥
ਹੇਕੋ ਪਾਧਰੁ ਹੇਕੁ ਦਰੁ ਗੁਰ ਪਉੜੀ ਨਿਜ ਥਾਨੁ ॥
हेको पाधरु हेकु दरु गुर पउड़ी निज थानु ॥
मंजिल एक ही है, द्वार भी एक (प्रभु) ही है। गुरु ही उस स्थान तक पहुँचने के लिए सीढ़ी है।
ਰੂੜਉ ਠਾਕੁਰੁ ਨਾਨਕਾ ਸਭਿ ਸੁਖ ਸਾਚਉ ਨਾਮੁ ॥੨॥
रूड़उ ठाकुरु नानका सभि सुख साचउ नामु ॥२॥
हे नानक ! ईश्वर अत्यंत सुन्दर है और सभी सुख सच्चे नाम के सिमरन में हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਆਪੀਨੑੈ ਆਪੁ ਸਾਜਿ ਆਪੁ ਪਛਾਣਿਆ ॥
आपीन्है आपु साजि आपु पछाणिआ ॥
परमात्मा स्वतः प्रकाशमान हुआ, संसार बनाकर स्वयं ही पहचान दी।
ਅੰਬਰੁ ਧਰਤਿ ਵਿਛੋੜਿ ਚੰਦੋਆ ਤਾਣਿਆ ॥
अ्मबरु धरति विछोड़ि चंदोआ ताणिआ ॥
आसमान को धरती से अलग कर विशाल चंदोआ स्थापित कर दिया।
ਵਿਣੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਾ ਗਗਨੁ ਰਹਾਇ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣਿਆ ॥
विणु थम्हा गगनु रहाइ सबदु नीसाणिआ ॥
अपने हुक्म से गगन को बिना स्तंभ के सहारा दिया हुआ है।
ਸੂਰਜੁ ਚੰਦੁ ਉਪਾਇ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣਿਆ ॥
सूरजु चंदु उपाइ जोति समाणिआ ॥
सूर्य एवं चांद को उत्पन्न कर दुनिया को रोशनी प्रदान की।
ਕੀਏ ਰਾਤਿ ਦਿਨੰਤੁ ਚੋਜ ਵਿਡਾਣਿਆ ॥
कीए राति दिनंतु चोज विडाणिआ ॥
उसने दिन-रात बनाकर अद्भुत लीला की है।
ਤੀਰਥ ਧਰਮ ਵੀਚਾਰ ਨਾਵਣ ਪੁਰਬਾਣਿਆ ॥
तीरथ धरम वीचार नावण पुरबाणिआ ॥
धर्म का विचार करते हुए तीर्थों पर स्नान के लिए पर्वो की रचना कर दी।
ਤੁਧੁ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਕਿ ਆਖਿ ਵਖਾਣਿਆ ॥
तुधु सरि अवरु न कोइ कि आखि वखाणिआ ॥
हे स्रष्टा ! क्या कहकर व्याख्या करूँ, तुझ सरीखा अन्य कोई नहीं।
ਸਚੈ ਤਖਤਿ ਨਿਵਾਸੁ ਹੋਰ ਆਵਣ ਜਾਣਿਆ ॥੧॥
सचै तखति निवासु होर आवण जाणिआ ॥१॥
तू ही सच्चे सिंहासन पर अटल रूप में विराजमान है, अन्य दुनिया आवागमन में पड़ी हुई है॥१॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਨਾਨਕ ਸਾਵਣਿ ਜੇ ਵਸੈ ਚਹੁ ਓਮਾਹਾ ਹੋਇ ॥
नानक सावणि जे वसै चहु ओमाहा होइ ॥
गुरु नानक का कथन है कि जब सावन के मौसम में बरसात आती है तो इन चारों को बहुत खुशी मिलती है
ਨਾਗਾਂ ਮਿਰਗਾਂ ਮਛੀਆਂ ਰਸੀਆਂ ਘਰਿ ਧਨੁ ਹੋਇ ॥੧॥
नागां मिरगां मछीआं रसीआं घरि धनु होइ ॥१॥
नागों को छोटे-छोटे जीवों के रूप में खाने को मिलता है, पशुओं को गर्मी से निजात मिलती है, मछलियों को भरपूर पानी मिलता है, धनवानों को धन-दौलत के साधनों से खुशी प्राप्त होती है।॥१॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਨਾਨਕ ਸਾਵਣਿ ਜੇ ਵਸੈ ਚਹੁ ਵੇਛੋੜਾ ਹੋਇ ॥
नानक सावणि जे वसै चहु वेछोड़ा होइ ॥
गुरु नानक का कथन है कि सावन के मौसम में भरपूर वर्षा होने से चारों को तकलीफ भी झेलनी पड़ती है।
ਗਾਈ ਪੁਤਾ ਨਿਰਧਨਾ ਪੰਥੀ ਚਾਕਰੁ ਹੋਇ ॥੨॥
गाई पुता निरधना पंथी चाकरु होइ ॥२॥
गाय बछड़ों से अलग होकर चरने लग जाती है और बैल जोतने लग जाते हैं, निर्धनों को काम-धंधा नहीं मिलता, जलथल की वजह से राहगीरों को बहुत मुश्किल होती है, नौकर-चाकरों को वर्षा में भी अधिक मशक्कत करनी पड़ती है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਤੂ ਸਚਾ ਸਚਿਆਰੁ ਜਿਨਿ ਸਚੁ ਵਰਤਾਇਆ ॥
तू सचा सचिआरु जिनि सचु वरताइआ ॥
हे परमेश्वर ! तू शाश्वत है, सत्यशील है, सच्चा इन्साफ करके सत्य में कार्यशील है।
ਬੈਠਾ ਤਾੜੀ ਲਾਇ ਕਵਲੁ ਛਪਾਇਆ ॥
बैठा ताड़ी लाइ कवलु छपाइआ ॥
हृदय कमल में गुप्त रूप में समाधि लगाई हुई है।
ਬ੍ਰਹਮੈ ਵਡਾ ਕਹਾਇ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
ब्रहमै वडा कहाइ अंतु न पाइआ ॥
ब्रह्मा स्वयं को बड़ा कहलाता है, पर वह भी रहस्य नहीं पा सका।
ਨਾ ਤਿਸੁ ਬਾਪੁ ਨ ਮਾਇ ਕਿਨਿ ਤੂ ਜਾਇਆ ॥
ना तिसु बापु न माइ किनि तू जाइआ ॥
न उसका पिता है, न कोई माता है, किस प्रकार जन्म हुआ, इसका भी कोई रहस्य नहीं पा सकता।
ਨਾ ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖ ਵਰਨ ਸਬਾਇਆ ॥
ना तिसु रूपु न रेख वरन सबाइआ ॥
वह रूप, चिन्ह एवं वर्ण से भी रहित है।
ਨਾ ਤਿਸੁ ਭੁਖ ਪਿਆਸ ਰਜਾ ਧਾਇਆ ॥
ना तिसु भुख पिआस रजा धाइआ ॥
उसे कोई भूख-प्यास प्रभावित नहीं करती, वह पूर्णरूपेण तृप्त है।
ਗੁਰ ਮਹਿ ਆਪੁ ਸਮੋਇ ਸਬਦੁ ਵਰਤਾਇਆ ॥
गुर महि आपु समोइ सबदु वरताइआ ॥
गुरु में स्वयं को समाकर उपदेश बांटता है।
ਸਚੇ ਹੀ ਪਤੀਆਇ ਸਚਿ ਸਮਾਇਆ ॥੨॥
सचे ही पतीआइ सचि समाइआ ॥२॥
वह सत्य से ही प्रसन्न होता है और सत्य में ही लीन है॥२॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਵੈਦੁ ਬੁਲਾਇਆ ਵੈਦਗੀ ਪਕੜਿ ਢੰਢੋਲੇ ਬਾਂਹ ॥
वैदु बुलाइआ वैदगी पकड़ि ढंढोले बांह ॥
रोगी समझ कर वैद्य को बुलाया गया तो वह बाँह पकड़ कर नब्ज ढूंढने लग गया।
ਭੋਲਾ ਵੈਦੁ ਨ ਜਾਣਈ ਕਰਕ ਕਲੇਜੇ ਮਾਹਿ ॥੧॥
भोला वैदु न जाणई करक कलेजे माहि ॥१॥
पर भोला वैद्य नहीं जानता कि दिल में क्या दर्द है॥१॥
ਮਃ ੨ ॥
मः २ ॥
महला २॥
ਵੈਦਾ ਵੈਦੁ ਸੁਵੈਦੁ ਤੂ ਪਹਿਲਾਂ ਰੋਗੁ ਪਛਾਣੁ ॥
वैदा वैदु सुवैदु तू पहिलां रोगु पछाणु ॥
वैद्य जी ! माना कि आप कुशल वैद्य हैं, पहले रोग को तो पहचान लो।
ਐਸਾ ਦਾਰੂ ਲੋੜਿ ਲਹੁ ਜਿਤੁ ਵੰਞੈ ਰੋਗਾ ਘਾਣਿ ॥
ऐसा दारू लोड़ि लहु जितु वंञै रोगा घाणि ॥
ऐसी दवा ढूंढ लो जिससे रोग बिल्कुल नष्ट हो जाए।
ਜਿਤੁ ਦਾਰੂ ਰੋਗ ਉਠਿਅਹਿ ਤਨਿ ਸੁਖੁ ਵਸੈ ਆਇ ॥
जितु दारू रोग उठिअहि तनि सुखु वसै आइ ॥
जिस दवा से रोग दूर हो और शरीर में सुख उत्पन्न हो।
ਰੋਗੁ ਗਵਾਇਹਿ ਆਪਣਾ ਤ ਨਾਨਕ ਵੈਦੁ ਸਦਾਇ ॥੨॥
रोगु गवाइहि आपणा त नानक वैदु सदाइ ॥२॥
नानक कथन करते हैं, वैद्य तभी माना जाए यदि रोग नष्ट हो जाए॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਦੇਵ ਉਪਾਇਆ ॥
ब्रहमा बिसनु महेसु देव उपाइआ ॥
सृष्टिकर्ता ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश इत्यादि देवताओं को उत्पन्न किया।
ਬ੍ਰਹਮੇ ਦਿਤੇ ਬੇਦ ਪੂਜਾ ਲਾਇਆ ॥
ब्रहमे दिते बेद पूजा लाइआ ॥
ब्रह्मा को वेद देकर पूजा-पाठ में लगाया।
ਦਸ ਅਵਤਾਰੀ ਰਾਮੁ ਰਾਜਾ ਆਇਆ ॥
दस अवतारी रामु राजा आइआ ॥
विष्णु के दस अवतारों में दशरथ-पुत्र राजा राम का भी जन्म हुआ,
ਦੈਤਾ ਮਾਰੇ ਧਾਇ ਹੁਕਮਿ ਸਬਾਇਆ ॥
दैता मारे धाइ हुकमि सबाइआ ॥
जिसने परमात्मा के हुक्म से राक्षसों का संहार किया।
ਈਸ ਮਹੇਸੁਰੁ ਸੇਵ ਤਿਨੑੀ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
ईस महेसुरु सेव तिन्ही अंतु न पाइआ ॥
ईश, महेश्वर इत्यादि रुद्र भी उपासना करके परमेश्वर का अंत नहीं पा सके।
ਸਚੀ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ਤਖਤੁ ਰਚਾਇਆ ॥
सची कीमति पाइ तखतु रचाइआ ॥
परमेश्वर ने सच्चा सिंहासन बनाकर अपनी महत्ता प्रदान की है।
ਦੁਨੀਆ ਧੰਧੈ ਲਾਇ ਆਪੁ ਛਪਾਇਆ ॥
दुनीआ धंधै लाइ आपु छपाइआ ॥
दुनिया को भिन्न-भिन्न कार्यों में लगाकर स्वयं को गुप्त रखा हुआ है।