Hindi Page 1150

ਸਰਬ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਕਰਣੇ ॥
सरब मनोरथ पूरन करणे ॥
वह सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।

ਆਠ ਪਹਰ ਗਾਵਤ ਭਗਵੰਤੁ ॥
आठ पहर गावत भगवंतु ॥
आठ प्रहर भगवान के गुण गाओ

ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਪੂਰਾ ਮੰਤੁ ॥੧॥
सतिगुरि दीनो पूरा मंतु ॥१॥
सतगुरु ने यही पूर्ण मंत्र दिया है॥१॥

ਸੋ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਸੁ ਨਾਮਿ ਪਿਆਰੁ ॥
सो वडभागी जिसु नामि पिआरु ॥
जिसका प्रभु-नाम से अटूट प्रेम है, वही भाग्यशाली है,

ਤਿਸ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिस कै संगि तरै संसारु ॥१॥ रहाउ ॥
उसकी संगत करके संसार का भी उद्धार हो जाता है।॥१॥ रहाउ॥

ਸੋਈ ਗਿਆਨੀ ਜਿ ਸਿਮਰੈ ਏਕ ॥
सोई गिआनी जि सिमरै एक ॥
वही ज्ञानवान है, जो ईश्वर का स्मरण करता है।

ਸੋ ਧਨਵੰਤਾ ਜਿਸੁ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕ ॥
सो धनवंता जिसु बुधि बिबेक ॥
जिसके पास विवेक बुद्धि है, वही धनवान है।

ਸੋ ਕੁਲਵੰਤਾ ਜਿ ਸਿਮਰੈ ਸੁਆਮੀ ॥
सो कुलवंता जि सिमरै सुआमी ॥
जो प्रभु की उपासना करता है, वही कुलीन है।

ਸੋ ਪਤਿਵੰਤਾ ਜਿ ਆਪੁ ਪਛਾਨੀ ॥੨॥
सो पतिवंता जि आपु पछानी ॥२॥
जिसे आत्म-ज्ञान की पहचान होती है, वही इज्जतदार है॥२॥

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ ॥
गुरु की कृपा से जिसने परमपद पा लिया है,

ਗੁਣ ਗੋੁਪਾਲ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥
गुण गोपाल दिनु रैनि धिआइआ ॥
वह प्रभु के गुण गाता है, दिन-रात उसी के ध्यान में लीन रहता है।

ਤੂਟੇ ਬੰਧਨ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ॥
तूटे बंधन पूरन आसा ॥
उसकी आशाएँ पूर्ण हो जाती हैं और सब बन्धन टूट जाते हैं।

ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਨਿਵਾਸਾ ॥੩॥
हरि के चरण रिद माहि निवासा ॥३॥
उसके हृदय में प्रभु के चरण बने रहते हैं।॥३॥

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰਨ ਕਰਮਾ ॥
कहु नानक जा के पूरन करमा ॥
नानक फुरमाते हैं कि जिसका पूर्ण भाग्य होता है,

ਸੋ ਜਨੁ ਆਇਆ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥
सो जनु आइआ प्रभ की सरना ॥
वही व्यक्ति प्रभु की शरण में आता है।

ਆਪਿ ਪਵਿਤੁ ਪਾਵਨ ਸਭਿ ਕੀਨੇ ॥
आपि पवितु पावन सभि कीने ॥
वह आप तो पवित्र होता ही है, सबको पावन कर देता है और

ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਰਸਨਾ ਚੀਨੑੇ ॥੪॥੩੫॥੪੮॥
राम रसाइणु रसना चीन्हे ॥४॥३५॥४८॥
जिव्हा से राम नाम रूपी रसायन को पहचान लेता है॥४॥ ३५॥ ४८॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਕਿਛੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
नामु लैत किछु बिघनु न लागै ॥
प्रभु का नाम लेने से कोई रुकावट पेश नहीं आती,

ਨਾਮੁ ਸੁਣਤ ਜਮੁ ਦੂਰਹੁ ਭਾਗੈ ॥
नामु सुणत जमु दूरहु भागै ॥
नाम सुनने से तो यम भी दूर से भागने लगता है।

ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਸਭ ਦੂਖਹ ਨਾਸੁ ॥
नामु लैत सभ दूखह नासु ॥
प्रभु-नाम की वंदना से सब दुःख नाश हो जाते हैं,

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਹਰਿ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧॥
नामु जपत हरि चरण निवासु ॥१॥
नाम जपने से प्रभु-चरणों में निवास हो जाता है।॥१॥

ਨਿਰਬਿਘਨ ਭਗਤਿ ਭਜੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
निरबिघन भगति भजु हरि हरि नाउ ॥
प्रभु की भक्ति हर विघ्न दूर करती है,

ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रसकि रसकि हरि के गुण गाउ ॥१॥ रहाउ ॥
परमात्मा का भजन करो, आनंदपूर्वक प्रभु का ही गुणगान करो।॥१॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਕਿਛੁ ਚਾਖੁ ਨ ਜੋਹੈ ॥
हरि सिमरत किछु चाखु न जोहै ॥
ईश्वर का स्मरण करने से कोई बुरी नजर नहीं लगती,

ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਦੈਤ ਦੇਉ ਨ ਪੋਹੈ ॥
हरि सिमरत दैत देउ न पोहै ॥
ईश्वर का स्मरण करने से भूत-प्रेत दुखी नहीं करते।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਮੋਹੁ ਮਾਨੁ ਨ ਬਧੈ ॥
हरि सिमरत मोहु मानु न बधै ॥
परमात्मा के स्मरण से मान-मोह नहीं बांध पाता और

ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਨ ਰੁਧੈ ॥੨॥
हरि सिमरत गरभ जोनि न रुधै ॥२॥
परमात्मा का सिमरन करने से गर्भ योनि से छुटकारा हो जाता है।॥२॥

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਕੀ ਸਗਲੀ ਬੇਲਾ ॥
हरि सिमरन की सगली बेला ॥
दिन-रात अथवा सुबह-शाम ईश्वर स्मरण का ही शुभ समय है,

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਬਹੁ ਮਾਹਿ ਇਕੇਲਾ ॥
हरि सिमरनु बहु माहि इकेला ॥
ईश्वर का स्मरण अनेक लोगों में कोई अकेला ही करता है।

ਜਾਤਿ ਅਜਾਤਿ ਜਪੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥
जाति अजाति जपै जनु कोइ ॥
छोटी-बड़ी जाति का कोई भी व्यक्ति परमात्मा का जाप कर सकता है,

ਜੋ ਜਾਪੈ ਤਿਸ ਕੀ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥੩॥
जो जापै तिस की गति होइ ॥३॥
जो जाप करता है, उसकी मुक्ति हो जाती है॥३॥

ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਸਾਧਸੰਗਿ ॥
हरि का नामु जपीऐ साधसंगि ॥
साधुजनों के संग प्रभु का नाम जपना चाहिए,

ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕਾ ਪੂਰਨ ਰੰਗੁ ॥
हरि के नाम का पूरन रंगु ॥
इससे प्रभु-नाम का पूर्ण रंग चढ़ जाता है।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
नानक कउ प्रभ किरपा धारि ॥
हे नानक ! प्रभु ने कृपा करके ऐसा वर दिया है कि

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਹਰਿ ਦੇਹੁ ਚਿਤਾਰਿ ॥੪॥੩੬॥੪੯॥
सासि सासि हरि देहु चितारि ॥४॥३६॥४९॥
वह श्वास-श्वास प्रभु का स्मरण करता है॥४॥ ३६॥ ४६॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਆਪੇ ਸਾਸਤੁ ਆਪੇ ਬੇਦੁ ॥
आपे सासतु आपे बेदु ॥
वेद एवं शास्त्र वह स्वयं ही है और

ਆਪੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਜਾਣੈ ਭੇਦੁ ॥
आपे घटि घटि जाणै भेदु ॥
वह स्वयं ही घट-घट का रहस्य जानता है।

ਜੋਤਿ ਸਰੂਪ ਜਾ ਕੀ ਸਭ ਵਥੁ ॥
जोति सरूप जा की सभ वथु ॥
वह ज्योति स्वरूप है, रचना रूपी सब वस्तुएँ उसी की हैं।

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਪੂਰਨ ਸਮਰਥੁ ॥੧॥
करण कारण पूरन समरथु ॥१॥
वह सब कुछ करने में पूर्ण समर्थ है॥१॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਓਟ ਗਹਹੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ॥
प्रभ की ओट गहहु मन मेरे ॥
हे मेरे मन ! प्रभु की ओट लो,

ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਰਾਧਹੁ ਦੁਸਮਨ ਦੂਖੁ ਨ ਆਵੈ ਨੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चरन कमल गुरमुखि आराधहु दुसमन दूखु न आवै नेरे ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के द्वारा उसके चरण-कमल की आराधना करो, इससे दुश्मन एवं कोई दुःख पास नहीं आता॥१॥ रहाउ॥

ਆਪੇ ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਰੁ ॥ ਜਾ ਕੈ ਸੂਤਿ ਪਰੋਇਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥
आपे वणु त्रिणु त्रिभवण सारु ॥ जा कै सूति परोइआ संसारु ॥
वन, वनस्पति, तीनों लोकों का सार वह स्वयं ही है और पूरा संसार उसी के सूत्र में पिरोया हुआ है।

ਆਪੇ ਸਿਵ ਸਕਤੀ ਸੰਜੋਗੀ ॥
आपे सिव सकती संजोगी ॥
वह स्वयं ही शिव और शक्ति का संयोग करवाने वाला है।

ਆਪਿ ਨਿਰਬਾਣੀ ਆਪੇ ਭੋਗੀ ॥੨॥
आपि निरबाणी आपे भोगी ॥२॥
वह स्वयं ही भोगने वाला है और स्वयं ही निर्लिप्त है॥२॥

ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਤਤ ਤਤ ਸੋਇ ॥
जत कत पेखउ तत तत सोइ ॥
जिधर भी दृष्टि जाती है, उधर वही है,

ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
तिसु बिनु दूजा नाही कोइ ॥
उसके सिवा अन्य कोई नहीं।

ਸਾਗਰੁ ਤਰੀਐ ਨਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥
सागरु तरीऐ नाम कै रंगि ॥
प्रभु-नाम के रंग में लीन रहकर संसार-सागर को पार किया जा सकता है,

ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਾਨਕੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ॥੩॥
गुण गावै नानकु साधसंगि ॥३॥
अतः साधु पुरुषों के संग नानक उसके ही गुण गाता है॥३॥

ਮੁਕਤਿ ਭੁਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਵਸਿ ਜਾ ਕੈ ॥
मुकति भुगति जुगति वसि जा कै ॥
मुक्ति, भुक्ति एवं युक्ति उसी के वश में है और

ਊਣਾ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਜਨ ਤਾ ਕੈ ॥
ऊणा नाही किछु जन ता कै ॥
उसके भक्त के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਹੋਇ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ॥
करि किरपा जिसु होइ सुप्रसंन ॥
हे नानक ! वह कृपा कर जिस पर प्रसन्न हो जाता है,

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸੇਈ ਜਨ ਧੰਨ ॥੪॥੩੭॥੫੦॥
नानक दास सेई जन धंन ॥४॥३७॥५०॥
वही व्यक्ति धन्य है॥४॥ ३७॥ ५०॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਗੋਬਿੰਦ ॥
भगता मनि आनंदु गोबिंद ॥
भक्तों के मन में ईश्वर के बसने से आनंद ही आनंद बना रहता है।

ਅਸਥਿਤਿ ਭਏ ਬਿਨਸੀ ਸਭ ਚਿੰਦ ॥
असथिति भए बिनसी सभ चिंद ॥
उनकी सब चिन्ताएँ नष्ट हो जाती हैं और वे स्थिरचित हो जाते हैं।

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