Hindi Page 1097

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਦੁਖੀਆ ਦਰਦ ਘਣੇ ਵੇਦਨ ਜਾਣੇ ਤੂ ਧਣੀ ॥
दुखीआ दरद घणे वेदन जाणे तू धणी ॥
हे मालिक ! तू मेरी वेदना को जानता ही है केि मुझ जैसे दुखियारे को कितने ही दर्द लगे हुए हैं।

ਜਾਣਾ ਲਖ ਭਵੇ ਪਿਰੀ ਡਿਖੰਦੋ ਤਾ ਜੀਵਸਾ ॥੨॥
जाणा लख भवे पिरी डिखंदो ता जीवसा ॥२॥
हे प्यारे ! बेशक मैं लाखों ही उपचार जानता होऊँ तो भी तेरा दर्शन पाकर ही जीवित रह सकता हूँ॥ २॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਢਹਦੀ ਜਾਇ ਕਰਾਰਿ ਵਹਣਿ ਵਹੰਦੇ ਮੈ ਡਿਠਿਆ ॥
ढहदी जाइ करारि वहणि वहंदे मै डिठिआ ॥
जीवन रूपी नदिया का किनारा ध्वस्त होता जा रहा है और मैंने इस नदिया के बहाव में बहते लोगों को देखा है,

ਸੇਈ ਰਹੇ ਅਮਾਣ ਜਿਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ॥੩॥
सेई रहे अमाण जिना सतिगुरु भेटिआ ॥३॥
मगर जिन्हें सतिगुरु मिल गया है, वही इससे सुरक्षित रहे हैं।॥३॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਜਿਸੁ ਜਨ ਤੇਰੀ ਭੁਖ ਹੈ ਤਿਸੁ ਦੁਖੁ ਨ ਵਿਆਪੈ ॥
जिसु जन तेरी भुख है तिसु दुखु न विआपै ॥
जिसे तुझे पाने की लालसा लगी हुई है, उसे कोई दुख-क्लेश नहीं लगता।

ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਝਿਆ ਸੁ ਚਹੁ ਕੁੰਡੀ ਜਾਪੈ ॥
जिनि जनि गुरमुखि बुझिआ सु चहु कुंडी जापै ॥
जिस ने गुरु के सान्निध्य में ईश्वर को बूझ लिया है, वह उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम इन चारों दिशाओं में विख्यात हो गया है।

ਜੋ ਨਰੁ ਉਸ ਕੀ ਸਰਣੀ ਪਰੈ ਤਿਸੁ ਕੰਬਹਿ ਪਾਪੈ ॥
जो नरु उस की सरणी परै तिसु क्मबहि पापै ॥
जो आदमी उसकी शरण में आता है, उसे देखकर पाप भी थर-थर कांपने लगते हैं।

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਗੁਰ ਧੂੜੀ ਨਾਪੈ ॥
जनम जनम की मलु उतरै गुर धूड़ी नापै ॥
जो गुरु की चरण-धूलि में स्नान करता है, उसकी जन्म-जन्मांतर की मैल निवृत्त हो जाती है।

ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿਆ ਤਿਸੁ ਸੋਗੁ ਨ ਸੰਤਾਪੈ ॥
जिनि हरि भाणा मंनिआ तिसु सोगु न संतापै ॥
जिसने ईश्वरेच्छा को सहर्ष स्वीकार केिया है, उसे कोई शोक-संताप नहीं लगता।

ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੂ ਸਭਨਾ ਕਾ ਮਿਤੁ ਹੈ ਸਭਿ ਜਾਣਹਿ ਆਪੈ ॥
हरि जीउ तू सभना का मितु है सभि जाणहि आपै ॥
हे परमात्मा ! तू सब जीवों का मित्र है और तू स्वयं ही सबको जानता है।

ਐਸੀ ਸੋਭਾ ਜਨੈ ਕੀ ਜੇਵਡੁ ਹਰਿ ਪਰਤਾਪੈ ॥
ऐसी सोभा जनै की जेवडु हरि परतापै ॥
विश्व में जितना परमात्मा का प्रताप है, वैसी ही उसके भक्तजनों की शोभा है।

ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਜਨ ਵਰਤਾਇਆ ਹਰਿ ਜਨ ਤੇ ਜਾਪੈ ॥੮॥
सभ अंतरि जन वरताइआ हरि जन ते जापै ॥८॥
समूचे जगत् में उसने भक्तों का यश फैला दिया है और उनकी कीतिं से ही परमात्मा जाना जाता है॥ ८॥

ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥

ਜਿਨਾ ਪਿਛੈ ਹਉ ਗਈ ਸੇ ਮੈ ਪਿਛੈ ਭੀ ਰਵਿਆਸੁ ॥
जिना पिछै हउ गई से मै पिछै भी रविआसु ॥
जिनके पीछे में गई थी, अब ये मेरे ही पीछे फिरते हैं।

ਜਿਨਾ ਕੀ ਮੈ ਆਸੜੀ ਤਿਨਾ ਮਹਿਜੀ ਆਸ ॥੧॥
जिना की मै आसड़ी तिना महिजी आस ॥१॥
जिनकी मैंने आशा की थी, उन्होंने मेरी आशा की हुई है॥ १॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਗਿਲੀ ਗਿਲੀ ਰੋਡੜੀ ਭਉਦੀ ਭਵਿ ਭਵਿ ਆਇ ॥
गिली गिली रोडड़ी भउदी भवि भवि आइ ॥
जैसे उड़ती हुई मक्खी घूम-घूम कर गीली-गीली गुड़ की डली के पास आती है और उससे चिपक कर ही मर जाती है,

ਜੋ ਬੈਠੇ ਸੇ ਫਾਥਿਆ ਉਬਰੇ ਭਾਗ ਮਥਾਇ ॥੨॥
जो बैठे से फाथिआ उबरे भाग मथाइ ॥२॥
वैसे ही जो मनुष्य माया के निकट होकर बैठे हैं, वे माया-जाल में फंस गए हैं, परन्तु भाग्यशाली इससे उबर गए हैं। २॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਡਿਠਾ ਹਭ ਮਝਾਹਿ ਖਾਲੀ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੀਐ ॥
डिठा हभ मझाहि खाली कोइ न जाणीऐ ॥
हमने तो सब में ईश्वर को ही देखा है और कोई भी उससे खाली नहीं जाना जाता है।

ਤੈ ਸਖੀ ਭਾਗ ਮਥਾਹਿ ਜਿਨੀ ਮੇਰਾ ਸਜਣੁ ਰਾਵਿਆ ॥੩॥
तै सखी भाग मथाहि जिनी मेरा सजणु राविआ ॥३॥
वह सखी भाग्यशाली है, जिसने मेरे सज्जन प्रभु के संग रमण किया है। ३॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਹਉ ਢਾਢੀ ਦਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਦਾ ਜੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥
हउ ढाढी दरि गुण गावदा जे हरि प्रभ भावै ॥
अगर प्रभु चाहता है तो यह ढाढी उसके ही गुण गाता है।

ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਥਿਰ ਥਾਵਰੀ ਹੋਰ ਆਵੈ ਜਾਵੈ ॥
प्रभु मेरा थिर थावरी होर आवै जावै ॥
मेरा प्रभु सदा रहने वाला शाश्वत है, परन्तु अन्य सभी जन्म-मरण में पड़े हुए हैं।

ਸੋ ਮੰਗਾ ਦਾਨੁ ਗੋੁਸਾਈਆ ਜਿਤੁ ਭੁਖ ਲਹਿ ਜਾਵੈ ॥
सो मंगा दानु गोसाईआ जितु भुख लहि जावै ॥
हे मालिक ! मैं वही दान माँगता हूँ, जिससे मेरी सारी लालसा दूर हो जाए।

ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਦੇਵਹੁ ਦਰਸਨੁ ਆਪਣਾ ਜਿਤੁ ਢਾਢੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ॥
प्रभ जीउ देवहु दरसनु आपणा जितु ढाढी त्रिपतावै ॥
हे प्रभु जी ! अपना दर्शन दो, जिससे यह ढाढी तृप्त हो जाए।

ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਣੀ ਦਾਤਾਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਢਾਢੀ ਕਉ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਵੈ ॥
अरदासि सुणी दातारि प्रभि ढाढी कउ महलि बुलावै ॥
जब दातार प्रभु ने प्रार्थना सुनी तो उसने ढाढी को अपने महल में बुला लिया।

ਪ੍ਰਭ ਦੇਖਦਿਆ ਦੁਖ ਭੁਖ ਗਈ ਢਾਢੀ ਕਉ ਮੰਗਣੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥
प्रभ देखदिआ दुख भुख गई ढाढी कउ मंगणु चिति न आवै ॥
प्रभु के दर्शन करते ही दुख एवं भूख मिट गई, अब ढाढी को कुछ माँगना याद ही नहीं आता।

ਸਭੇ ਇਛਾ ਪੂਰੀਆ ਲਗਿ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਪਾਵੈ ॥
सभे इछा पूरीआ लगि प्रभ कै पावै ॥
प्रभु-चरणों में लगकर सभी कामनाएँ पूरी हो गई हैं।

ਹਉ ਨਿਰਗੁਣੁ ਢਾਢੀ ਬਖਸਿਓਨੁ ਪ੍ਰਭਿ ਪੁਰਖਿ ਵੇਦਾਵੈ ॥੯॥
हउ निरगुणु ढाढी बखसिओनु प्रभि पुरखि वेदावै ॥९॥
उस परमपुरुष प्रभु ने मुझ गुणविहीन को क्षमा कर दिया है॥ ६॥

ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥

ਜਾ ਛੁਟੇ ਤਾ ਖਾਕੁ ਤੂ ਸੁੰਞੀ ਕੰਤੁ ਨ ਜਾਣਹੀ ॥
जा छुटे ता खाकु तू सुंञी कंतु न जाणही ॥
हे मानव देह ! प्राण पखेरू होते ही जब आत्मा से नाता टूट जाता है तो तू मिट्टी हो जाती है। फिर तुम आत्मा से सूनी होकर पति-प्रभु को जान नहीं सकती।

ਦੁਰਜਨ ਸੇਤੀ ਨੇਹੁ ਤੂ ਕੈ ਗੁਣਿ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣਹੀ ॥੧॥
दुरजन सेती नेहु तू कै गुणि हरि रंगु माणही ॥१॥
कामादिक दुष्ट विकारों से ही तुम्हारा प्रेम बना हुआ है, फिर भला किस गुण के कारण प्रभु-प्रेम का आनंद ले सकती हो॥ १॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਬਿਨੁ ਘੜੀ ਨ ਜੀਵਣਾ ਵਿਸਰੇ ਸਰੈ ਨ ਬਿੰਦ ॥
नानक जिसु बिनु घड़ी न जीवणा विसरे सरै न बिंद ॥
हे नानक ! जिसके बिना घड़ी भर भी जीवित रहा नहीं जाता, जिसे भूलने से थोड़ा-सा भी निर्वाह नहीं होता,

ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਕਿਉ ਮਨ ਰੂਸੀਐ ਜਿਸਹਿ ਹਮਾਰੀ ਚਿੰਦ ॥੨॥
तिसु सिउ किउ मन रूसीऐ जिसहि हमारी चिंद ॥२॥
उससे मन में क्यों रूठा जाए, जिसे हर वक्त हमारी चिंता लगी रहती है॥ २॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਰਤੇ ਰੰਗਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੈ ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਤਿ ਗੁਲਾਲੁ ॥
रते रंगि पारब्रहम कै मनु तनु अति गुलालु ॥
जो परब्रह्म के रंग में लीन हो जाते हैं, उनका मन-तन गुलाल जैसा अति लाल हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਆਲੂਦਿਆ ਜਿਤੀ ਹੋਰੁ ਖਿਆਲੁ ॥੩॥
नानक विणु नावै आलूदिआ जिती होरु खिआलु ॥३॥
हे नानक ! प्रभु-नाम के बिना अन्य जितने भी ख्याल हैं, वे मन को मैला करने वाले हैं॥ ३॥

ਪਵੜੀ ॥
पवड़ी ॥
पउड़ी॥

ਹਰਿ ਜੀਉ ਜਾ ਤੂ ਮੇਰਾ ਮਿਤ੍ਰੁ ਹੈ ਤਾ ਕਿਆ ਮੈ ਕਾੜਾ ॥
हरि जीउ जा तू मेरा मित्रु है ता किआ मै काड़ा ॥
हे परमात्मा ! जब तू मेरा मित्र है तो फिर मुझे किसी प्रकार की क्या चिन्ता है।

ਜਿਨੀ ਠਗੀ ਜਗੁ ਠਗਿਆ ਸੇ ਤੁਧੁ ਮਾਰਿ ਨਿਵਾੜਾ ॥
जिनी ठगी जगु ठगिआ से तुधु मारि निवाड़ा ॥
जिन काम, क्रोध रूपी ठगों ने संसार को ठग लिया है, तूने उन्हें मार कर भगा दिया है।

ਗੁਰਿ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਲੰਘਾਇਆ ਜਿਤਾ ਪਾਵਾੜਾ ॥
गुरि भउजलु पारि लंघाइआ जिता पावाड़ा ॥
गुरु ने मुझे भयानक संसार-सागर से पार लंघा दिया है और मैंने सारा दुनियावी झगड़ा ही जीत लिया है।

ਗੁਰਮਤੀ ਸਭਿ ਰਸ ਭੋਗਦਾ ਵਡਾ ਆਖਾੜਾ ॥
गुरमती सभि रस भोगदा वडा आखाड़ा ॥
गुरु के उपदेशानुसार जगत् रूपी बड़े अखाड़े में सभी रसों का भोग कर रहा हूँ।

ਸਭਿ ਇੰਦ੍ਰੀਆ ਵਸਿ ਕਰਿ ਦਿਤੀਓ ਸਤਵੰਤਾ ਸਾੜਾ ॥
सभि इंद्रीआ वसि करि दितीओ सतवंता साड़ा ॥
जब ईश्वर हमारा बन गया तो उसने सब इन्द्रियों को वश में कर दिया।

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