Hindi Page 1338

ਕਿਰਤ ਸੰਜੋਗੀ ਪਾਇਆ ਭਾਲਿ ॥
किरत संजोगी पाइआ भालि ॥
वह शुभ कर्मों के संयोग से ही प्राप्त होता है,

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਬਸੇ ਗੁਪਾਲ ॥
साधसंगति महि बसे गुपाल ॥
वह पालनहार साधु-पुरुषों की संगत में बसता है।

ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਆਏ ਤੁਮਰੈ ਦੁਆਰ ॥
गुर मिलि आए तुमरै दुआर ॥
गुरु से मिलकर तुम्हारे द्वार पर आए हैं,”

ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥੪॥੧॥
जन नानक दरसनु देहु मुरारि ॥४॥१॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! अपने दर्शन दो॥ ४॥ १॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
प्रभाती महला ५ ॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸੇਵਾ ਜਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ॥
प्रभ की सेवा जन की सोभा ॥
प्रभु की भक्ति से ही भक्तजनों की शोभा होती है।

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮਿਟੇ ਤਿਸੁ ਲੋਭਾ ॥
काम क्रोध मिटे तिसु लोभा ॥
उनके काम-क्रोध, लोभ सब विकार मिट जाते हैं।

ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਜਨ ਕੈ ਭੰਡਾਰਿ ॥
नामु तेरा जन कै भंडारि ॥
हे प्रभु ! तेरा नाम भक्तों का भण्डार है,

ਗੁਨ ਗਾਵਹਿ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸ ਪਿਆਰਿ ॥੧॥
गुन गावहि प्रभ दरस पिआरि ॥१॥
तेरे दर्शनों की चाह में वे तेरे गुण गाते हैं।॥ १॥

ਤੁਮਰੀ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਹਿ ਜਨਾਈ ॥
तुमरी भगति प्रभ तुमहि जनाई ॥
हे प्रभु ! अपनी भक्ति का रास्ता तूने ही समझाया है और

ਕਾਟਿ ਜੇਵਰੀ ਜਨ ਲੀਏ ਛਡਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
काटि जेवरी जन लीए छडाई ॥१॥ रहाउ ॥
भक्तों के बन्धनों को काटकर उनको मुक्त कर दिया है॥ १॥रहाउ॥

ਜੋ ਜਨੁ ਰਾਤਾ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥
जो जनु राता प्रभ कै रंगि ॥
जो श्रद्धालु प्रभु के रंग में लीन रहता है,

ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
तिनि सुखु पाइआ प्रभ कै संगि ॥
वह प्रभु के संग सुख प्राप्त करता है।

ਜਿਸੁ ਰਸੁ ਆਇਆ ਸੋਈ ਜਾਨੈ ॥
जिसु रसु आइआ सोई जानै ॥
जिसे आनंद प्राप्त हुआ है, वही जानता है और

ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਮਨ ਮਹਿ ਹੈਰਾਨੈ ॥੨॥
पेखि पेखि मन महि हैरानै ॥२॥
देख-देख कर मन में आश्चर्य होता है॥ २॥

ਸੋ ਸੁਖੀਆ ਸਭ ਤੇ ਊਤਮੁ ਸੋਇ ॥
सो सुखीआ सभ ते ऊतमु सोइ ॥
दरअसल वही सुखी एवं सबसे उत्तम होता है,

ਜਾ ਕੈ ਹ੍ਰਿਦੈ ਵਸਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
जा कै ह्रिदै वसिआ प्रभु सोइ ॥
जिसके हृदय में प्रभु बस जाता है।

ਸੋਈ ਨਿਹਚਲੁ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ॥
सोई निहचलु आवै न जाइ ॥
वही निश्चल होता है, उसका जन्म-मरण छूट जाता है,

ਅਨਦਿਨੁ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੩॥
अनदिनु प्रभ के हरि गुण गाइ ॥३॥
जो दिन-रात प्रभु के गुण गाता है॥ ३॥

ਤਾ ਕਉ ਕਰਹੁ ਸਗਲ ਨਮਸਕਾਰੁ ॥
ता कउ करहु सगल नमसकारु ॥
सभी उसको प्रणाम करो,

ਜਾ ਕੈ ਮਨਿ ਪੂਰਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
जा कै मनि पूरनु निरंकारु ॥
जिसके मन में पूर्णपरमेश्वर बसा हुआ है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਠਾਕੁਰ ਦੇਵਾ ॥
करि किरपा मोहि ठाकुर देवा ॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे ठाकुर ! मुझ पर कृपा करो,

ਨਾਨਕੁ ਉਧਰੈ ਜਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥੪॥੨॥
नानकु उधरै जन की सेवा ॥४॥२॥
क्योंकि तेरी भक्ति से ही दास का उद्धार संभव है॥ ४॥ २॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
प्रभाती महला ५ ॥

ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਮਨਿ ਹੋਇ ਅਨੰਦ ॥
गुन गावत मनि होइ अनंद ॥
यदि ईश्वर का गुणानुवाद किया जाए तो मन को बड़ा आनंद प्राप्त होता है,

ਆਠ ਪਹਰ ਸਿਮਰਉ ਭਗਵੰਤ ॥
आठ पहर सिमरउ भगवंत ॥
अतः आठ प्रहर भगवान का भजन करना चाहिए।

ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਕਲਮਲ ਜਾਹਿ ॥
जा कै सिमरनि कलमल जाहि ॥
जिसका सिमरन करने से पाप दूर हो जाते हैं,

ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕੀ ਹਮ ਚਰਨੀ ਪਾਹਿ ॥੧॥
तिसु गुर की हम चरनी पाहि ॥१॥
हम तो उस गुरु के चरणों में आ पड़े हैं॥ १॥

ਸੁਮਤਿ ਦੇਵਹੁ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ॥
सुमति देवहु संत पिआरे ॥
हे प्यारे संतजनो ! हमें सुमति प्रदान करो,

ਸਿਮਰਉ ਨਾਮੁ ਮੋਹਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सिमरउ नामु मोहि निसतारे ॥१॥ रहाउ ॥
ताकि प्रभु का नाम-स्मरण करके मुझे मुक्ति प्राप्त हो जाए॥ १॥रहाउ॥

ਜਿਨਿ ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਮਾਰਗੁ ਸੀਧਾ ॥
जिनि गुरि कहिआ मारगु सीधा ॥
जिस गुरु ने सही रास्ता बताया है,

ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਗੀਧਾ ॥
सगल तिआगि नामि हरि गीधा ॥
सब त्याग कर हरिनाम में लीन कर दिया है।

ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕੈ ਸਦਾ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ॥
तिसु गुर कै सदा बलि जाईऐ ॥
उस गुरु को सदैव कुर्बान जाना चाहिए,

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈਐ ॥੨॥
हरि सिमरनु जिसु गुर ते पाईऐ ॥२॥
जिससे हरि-स्मरण प्राप्त होता है॥ २॥

ਬੂਡਤ ਪ੍ਰਾਨੀ ਜਿਨਿ ਗੁਰਹਿ ਤਰਾਇਆ ॥
बूडत प्रानी जिनि गुरहि तराइआ ॥
जिस गुरु ने डूबते प्राणियों को पार कर दिया है,

ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੋਹੈ ਨਹੀ ਮਾਇਆ ॥
जिसु प्रसादि मोहै नही माइआ ॥
जिसकी दया से मोह-माया प्रभावित नहीं करती,

ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰਹਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥
हलतु पलतु जिनि गुरहि सवारिआ ॥
जिस गुरु ने लोक-परलोक संवार दिया है,

ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਊਪਰਿ ਸਦਾ ਹਉ ਵਾਰਿਆ ॥੩॥
तिसु गुर ऊपरि सदा हउ वारिआ ॥३॥
उस गुरु पर मैं सदैव कुर्बान जाता हूँ॥ ३॥

ਮਹਾ ਮੁਗਧ ਤੇ ਕੀਆ ਗਿਆਨੀ ॥
महा मुगध ते कीआ गिआनी ॥
जिसने महामूर्ख से हमें ज्ञानी बना दिया है,

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਅਕਥ ਕਹਾਨੀ ॥
गुर पूरे की अकथ कहानी ॥
उस पूर्ण गुरु की कथा अकथनीय है।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਨਾਨਕ ਗੁਰਦੇਵ ॥
पारब्रहम नानक गुरदेव ॥
गुरु नानक स्पष्ट वचन करते हैं कि असल में परब्रह्म ही गुरुदेव है,

ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਸੇਵ ॥੪॥੩॥
वडै भागि पाईऐ हरि सेव ॥४॥३॥
जो उत्तम भाग्य से हरि-सेवा द्वारा प्राप्त होता है॥ ४॥ ३॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
प्रभाती महला ५ ॥

ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਮਿਟੇ ਸੁਖ ਦੀਏ ਅਪਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਇਆ ॥
सगले दूख मिटे सुख दीए अपना नामु जपाइआ ॥
उस सच्चिदानंद जगदीश ने हमारे सब दुख मिटाकर सुख प्रदान कर दिया है और अपने नाम का जाप करवाया है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੀ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ਸਗਲਾ ਦੁਰਤੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥੧॥
करि किरपा अपनी सेवा लाए सगला दुरतु मिटाइआ ॥१॥
उसने कृपा करके अपनी सेवा में लगाकर हमारे सब दोष मिटा दिए हैं।॥ १॥

ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਸਰਨਿ ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ॥
हम बारिक सरनि प्रभ दइआल ॥
हम नादान बालक जब दयालु प्रभु की शरण में आए तो

ਅਵਗਣ ਕਾਟਿ ਕੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੇ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਮੇਰੈ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अवगण काटि कीए प्रभि अपुने राखि लीए मेरै गुर गोपालि ॥१॥ रहाउ ॥
उसने हमारे अवगुणों को दूर करके अपना बना लिया और मेरे गुरु परमेश्वर ने मुझे बचा लिया॥ १॥रहाउ॥

ਤਾਪ ਪਾਪ ਬਿਨਸੇ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੁਸਾਈ ॥
ताप पाप बिनसे खिन भीतरि भए क्रिपाल गुसाई ॥
मालिक की कृपा होते ही पल में सब पाप-ताप नष्ट हो गए।

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਅਰਾਧੀ ਅਪੁਨੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥੨॥
सासि सासि पारब्रहमु अराधी अपुने सतिगुर कै बलि जाई ॥२॥
मैं श्वास-श्वास से परब्रह्म की आराधना करता हूँ और अपने सतगुरु पर कुर्बान जाता हूँ॥ २॥

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਬਿਅੰਤੁ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ॥
अगम अगोचरु बिअंतु सुआमी ता का अंतु न पाईऐ ॥
हमारा स्वामी मन-वाणी, ज्ञानेन्द्रियों से परे है, बे-अन्त है, उसका रहस्य पाया नहीं जा सकता।

ਲਾਹਾ ਖਾਟਿ ਹੋਈਐ ਧਨਵੰਤਾ ਅਪੁਨਾ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਈਐ ॥੩॥
लाहा खाटि होईऐ धनवंता अपुना प्रभू धिआईऐ ॥३॥
अपने प्रभु का ध्यान करो, इससे लाभ कमाकर धनवान् हुआ जा सकता है॥ ३॥

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