ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥
ਤਨੁ ਬਿਨਸੈ ਧਨੁ ਕਾ ਕੋ ਕਹੀਐ ॥
तनु बिनसै धनु का को कहीऐ ॥
जब इन्सान का तन नाश हो जाता है तो उसके द्वारा संचित धन किसका कहा जा सकता है ?
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਕਤ ਲਹੀਐ ॥
बिनु गुर राम नामु कत लहीऐ ॥
गुरु के बिना राम का नाम कैसे प्राप्त हो सकता है ?
ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਸੰਗਿ ਸਖਾਈ ॥
राम नाम धनु संगि सखाई ॥
राम नाम का धन ही सच्चा साथी एवं सहायक है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿਰਮਲੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥
अहिनिसि निरमलु हरि लिव लाई ॥१॥
जो मनुष्य दिन-रात अपनी वृत्ति हरि के साथ लगाकर रखता है, वह निर्मल है॥ १॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਵਨੁ ਹਮਾਰਾ ॥
राम नाम बिनु कवनु हमारा ॥
राम के नाम बिना हमारा कौन है ?
ਸੁਖ ਦੁਖ ਸਮ ਕਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਛੋਡਉ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਣਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुख दुख सम करि नामु न छोडउ आपे बखसि मिलावणहारा ॥१॥ रहाउ ॥
सुख-दुख को एक समान समझकर मैं नाम को नहीं छोड़ता। प्रभु क्षमा करके स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਨਿਕ ਕਾਮਨੀ ਹੇਤੁ ਗਵਾਰਾ ॥
कनिक कामनी हेतु गवारा ॥
मूर्ख मनुष्य सोने एवं सुन्दर नारी से प्रेम करता है।
ਦੁਬਿਧਾ ਲਾਗੇ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਾ ॥
दुबिधा लागे नामु विसारा ॥
दुविधा से जुड़कर उसने नाम को भुला दिया है।
ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਬਖਸਹਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਇ ॥
जिसु तूं बखसहि नामु जपाइ ॥
जिसे प्रभु क्षमा कर देता है, उससे वह अपने नाम का जाप करवाता है।
ਦੂਤੁ ਨ ਲਾਗਿ ਸਕੈ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੨॥
दूतु न लागि सकै गुन गाइ ॥२॥
जो प्रभु के गुण गाता है, यमदूत उसे स्पर्श नहीं कर सकता॥ २॥
ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਰਾਮ ਗੁਪਾਲਾ ॥
हरि गुरु दाता राम गुपाला ॥
हे हरि ! हे गोपाल ! तू ही मेरा गुरु, दाता एवं राम है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਦਇਆਲਾ ॥
जिउ भावै तिउ राखु दइआला ॥
हे दयालु प्रभु ! जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही तुम मेरी रक्षा करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
गुरमुखि रामु मेरै मनि भाइआ ॥
गुरु के उपदेश से राम मेरे मन को भला लगा है।
ਰੋਗ ਮਿਟੇ ਦੁਖੁ ਠਾਕਿ ਰਹਾਇਆ ॥੩॥
रोग मिटे दुखु ठाकि रहाइआ ॥३॥
राम द्वारा मेरे रोग मिट गए हैं और दुःख भी दूर हो गए हैं।॥ ३॥
ਅਵਰੁ ਨ ਅਉਖਧੁ ਤੰਤ ਨ ਮੰਤਾ ॥
अवरु न अउखधु तंत न मंता ॥
रोगों से बचने के लिए नाम के सिवाय अन्य कोई औषधि, तंत्र एवं मंत्र नहीं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਣੁ ਕਿਲਵਿਖ ਹੰਤਾ ॥
हरि हरि सिमरणु किलविख हंता ॥
हरि-प्रभु का सिमरन पापों का नाश कर देता है।
ਤੂੰ ਆਪਿ ਭੁਲਾਵਹਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ॥
तूं आपि भुलावहि नामु विसारि ॥
हे प्रभु ! तू स्वयं जीवों को कुमार्गगामी करता है और वह तेरे नाम को भुला देते हैं।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਰਾਖਹਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੪॥
तूं आपे राखहि किरपा धारि ॥४॥
तू स्वयं ही अपनी कृपा करके अनेक जीवों की रक्षा करता है॥ ४॥
ਰੋਗੁ ਭਰਮੁ ਭੇਦੁ ਮਨਿ ਦੂਜਾ ॥
रोगु भरमु भेदु मनि दूजा ॥
मन को दुविधा, भेदभाव एवं द्वैतवाद का रोग लगा हुआ है।
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਭਰਮਿ ਜਪਹਿ ਜਪੁ ਦੂਜਾ ॥
गुर बिनु भरमि जपहि जपु दूजा ॥
गुरु के बिना जीव भ्रम में भटकता है और दूसरों का जाप जपता है।
ਆਦਿ ਪੁਰਖ ਗੁਰ ਦਰਸ ਨ ਦੇਖਹਿ ॥
आदि पुरख गुर दरस न देखहि ॥
उन्हें आदिपुरुष गुरु के दर्शन नहीं होते।
ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਸਬਦੈ ਜਨਮੁ ਕਿ ਲੇਖਹਿ ॥੫॥
विणु गुर सबदै जनमु कि लेखहि ॥५॥
गुरु शब्द के बिना मनुष्य-जन्म कौन से लेखे जोखे में है। ५॥
ਦੇਖਿ ਅਚਰਜੁ ਰਹੇ ਬਿਸਮਾਦਿ ॥
देखि अचरजु रहे बिसमादि ॥
आश्चर्यजनक प्रभु को देखकर मैं बहुत चकित हुआ हूँ।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਸੁਰ ਨਰ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ॥
घटि घटि सुर नर सहज समाधि ॥
सहज समाधि में वह सबके हृदय में देवताओं एवं मनुष्यों के भीतर समाया हुआ है।
ਭਰਿਪੁਰਿ ਧਾਰਿ ਰਹੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
भरिपुरि धारि रहे मन माही ॥
पूर्ण व्यापक प्रभु को मैंने अपने मन में बसाया है।
ਤੁਮ ਸਮਸਰਿ ਅਵਰੁ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥੬॥
तुम समसरि अवरु को नाही ॥६॥
हे प्रभु ! तेरे बराबर का दूसरा कोई नहीं ॥ ६ ॥
ਜਾ ਕੀ ਭਗਤਿ ਹੇਤੁ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ॥ ਸੰਤ ਭਗਤ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਰਾਮੁ ॥
जा की भगति हेतु मुखि नामु ॥ संत भगत की संगति रामु ॥
जो भक्ति से प्रेम करता है, उसके मुख में प्रभु का नाम है। संतों एवं भक्तों की संगति में राम का निवास है।
ਬੰਧਨ ਤੋਰੇ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੁ ॥
बंधन तोरे सहजि धिआनु ॥
अपने बंधन तोड़कर मनुष्य को प्रभु में सहज ही ध्यान लगाना चाहिए
ਛੂਟੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ॥੭॥
छूटै गुरमुखि हरि गुर गिआनु ॥७॥
गुरु-परमात्मा के ज्ञान द्वारा गुरुमुख मुक्त हो जाते हैं।॥ ७ ॥
ਨਾ ਜਮਦੂਤ ਦੂਖੁ ਤਿਸੁ ਲਾਗੈ ॥
ना जमदूत दूखु तिसु लागै ॥
उसे यमदूत एवं कोई भी दुख स्पर्श नहीं करता।
ਜੋ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਜਾਗੈ ॥
जो जनु राम नामि लिव जागै ॥
मनुष्य राम के नाम में ध्यान लगाकर जागता है,”
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਭਗਤਾ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ॥
भगति वछलु भगता हरि संगि ॥
भक्तवत्सल प्रभु अपने भक्तों के साथ रहता है।
ਨਾਨਕ ਮੁਕਤਿ ਭਏ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ॥੮॥੯॥
नानक मुकति भए हरि रंगि ॥८॥९॥
हे नानक ! हरि के प्रेम द्वारा भक्तजन जन्म-मरण के चक्र से छूट गए हैं।॥ ८ ॥ ९॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਇਕਤੁਕੀ ॥
आसा महला १ इकतुकी ॥
आसा महला १ इकतुकी ॥
ਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸੋ ਠਾਕੁਰ ਜਾਨੈ ॥
गुरु सेवे सो ठाकुर जानै ॥
जो व्यक्ति गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करता है, वह ठाकुर जी को जान लेता है।
ਦੂਖੁ ਮਿਟੈ ਸਚੁ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੈ ॥੧॥
दूखु मिटै सचु सबदि पछानै ॥१॥
वह शब्द द्वारा सत्य को पहचान लेता है और उसके तमाम दु:ख मिट जाते हैं।॥ १॥
ਰਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੀ ਸਖੀ ਸਖੈਨੀ ॥
रामु जपहु मेरी सखी सखैनी ॥
हे मेरी सखी-सहेली ! राम का नाम जपो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਦੇਖਹੁ ਪ੍ਰਭੁ ਨੈਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु सेवि देखहु प्रभु नैनी ॥१॥ रहाउ ॥
सतिगुरु की सेवा के फलस्वरूप तुझे अपने नयनों से प्रभु के दर्शन प्राप्त होंगे॥ १॥ रहाउ ॥
ਬੰਧਨ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੰਸਾਰਿ ॥ ਬੰਧਨ ਸੁਤ ਕੰਨਿਆ ਅਰੁ ਨਾਰਿ ॥੨॥
बंधन मात पिता संसारि ॥ बंधन सुत कंनिआ अरु नारि ॥२॥
(नाम-सुमिरन के बिना) जगत में माता-पिता मोह के बंधन हैं। पुत्र, कन्या एवं नारी ये सभी मोह के बन्धन हैं।॥ २॥
ਬੰਧਨ ਕਰਮ ਧਰਮ ਹਉ ਕੀਆ ॥
बंधन करम धरम हउ कीआ ॥
अहंकारवश किए गए कर्म-धर्म भी बन्धन हैं।
ਬੰਧਨ ਪੁਤੁ ਕਲਤੁ ਮਨਿ ਬੀਆ ॥੩॥
बंधन पुतु कलतु मनि बीआ ॥३॥
पुत्र, पत्नी एवं मन में किसी दूसरे का प्रेम भी बन्धन है॥ ३॥
ਬੰਧਨ ਕਿਰਖੀ ਕਰਹਿ ਕਿਰਸਾਨ ॥
बंधन किरखी करहि किरसान ॥
कृषकों द्वारा की गई कृषि भी बन्धन है।
ਹਉਮੈ ਡੰਨੁ ਸਹੈ ਰਾਜਾ ਮੰਗੈ ਦਾਨ ॥੪॥
हउमै डंनु सहै राजा मंगै दान ॥४॥
अपने अहंकार की खातिर मनुष्य दण्ड सहता है और राजा उससे कर माँगता है॥ ४॥
ਬੰਧਨ ਸਉਦਾ ਅਣਵੀਚਾਰੀ ॥
बंधन सउदा अणवीचारी ॥
भले-बुरे की विचार के बिना व्यापार एक बन्धन है।
ਤਿਪਤਿ ਨਾਹੀ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਸਾਰੀ ॥੫॥
तिपति नाही माइआ मोह पसारी ॥५॥
माया-मोह के प्रसार से प्राणी तृप्त नहीं होता ॥ ५ ॥
ਬੰਧਨ ਸਾਹ ਸੰਚਹਿ ਧਨੁ ਜਾਇ ॥
बंधन साह संचहि धनु जाइ ॥
साहूकार धन संचित करते हैं लेकिन यह धन भी अंतत: चला जाता है जो बन्धन ही है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨ ਪਵਈ ਥਾਇ ॥੬॥
बिनु हरि भगति न पवई थाइ ॥६॥
हरि की भक्ति के बिना प्राणी स्वीकृत नहीं होता।॥ ६॥
ਬੰਧਨ ਬੇਦੁ ਬਾਦੁ ਅਹੰਕਾਰ ॥
बंधन बेदु बादु अहंकार ॥
वेद, धार्मिक वाद-विवाद एवं अहंकार बन्धन हैं।
ਬੰਧਨਿ ਬਿਨਸੈ ਮੋਹ ਵਿਕਾਰ ॥੭॥
बंधनि बिनसै मोह विकार ॥७॥
मोह एवं विकारों के बन्धनों द्वारा मनुष्य का नाश हो रहा है॥ ७॥
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਣਾਈ ॥
नानक राम नाम सरणाई ॥
नानक ने राम की शरण ली है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਬੰਧੁ ਨ ਪਾਈ ॥੮॥੧੦॥
सतिगुरि राखे बंधु न पाई ॥८॥१०॥
सतिगुरु ने उसकी रक्षा की है, अब उसे कोई बन्धन नहीं है॥ ८ ॥ १० ॥