ਰਤਨੁ ਰਾਮੁ ਘਟ ਹੀ ਕੇ ਭੀਤਰਿ ਤਾ ਕੋ ਗਿਆਨੁ ਨ ਪਾਇਓ ॥
रतनु रामु घट ही के भीतरि ता को गिआनु न पाइओ ॥
राम-नाम रूपी रत्न हृदय में ही रहता है परन्तु इस बारे में कोई ज्ञान नहीं प्राप्त किया।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਭਗਵੰਤ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਓ ॥੨॥੧॥
जन नानक भगवंत भजन बिनु बिरथा जनमु गवाइओ ॥२॥१॥
हे नानक ! भगवान के भजन के बिना इसने अपना अमूल्य जन्म व्यर्थ ही बर्बाद कर दिया है॥ २॥ १॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
जैतसरी महला ९ ॥
जैतसरी महला ९ ॥
ਹਰਿ ਜੂ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਪਤਿ ਮੇਰੀ ॥
हरि जू राखि लेहु पति मेरी ॥
हे परमात्मा ! मेरी लाज बचा लो।
ਜਮ ਕੋ ਤ੍ਰਾਸ ਭਇਓ ਉਰ ਅੰਤਰਿ ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਤੇਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जम को त्रास भइओ उर अंतरि सरनि गही किरपा निधि तेरी ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे हृदय में मृत्यु का भय निवास कर चुका है। अतः हे कृपानिधि ! मैंने तेरी ही शरण ली है॥१॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਪਤਿਤ ਮੁਗਧ ਲੋਭੀ ਫੁਨਿ ਕਰਤ ਪਾਪ ਅਬ ਹਾਰਾ ॥
महा पतित मुगध लोभी फुनि करत पाप अब हारा ॥
में बड़ा पतित, मूर्ख एवं लालची हूँ और पाप कर्म करते-करते अब मैं थक चुका हूँ।
ਭੈ ਮਰਬੇ ਕੋ ਬਿਸਰਤ ਨਾਹਿਨ ਤਿਹ ਚਿੰਤਾ ਤਨੁ ਜਾਰਾ ॥੧॥
भै मरबे को बिसरत नाहिन तिह चिंता तनु जारा ॥१॥
मृत्यु का भय मुझे भूलता नहीं और इस चिन्ता ने मेरे शरीर को जलाकर रख दिया है॥१॥
ਕੀਏ ਉਪਾਵ ਮੁਕਤਿ ਕੇ ਕਾਰਨਿ ਦਹ ਦਿਸਿ ਕਉ ਉਠਿ ਧਾਇਆ ॥
कीए उपाव मुकति के कारनि दह दिसि कउ उठि धाइआ ॥
अपनी मुक्ति हेतु मैंने अनेक उपाय किए हैं और दसों दिशाओं में भी भागता रहता हूँ।
ਘਟ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਬਸੈ ਨਿਰੰਜਨੁ ਤਾ ਕੋ ਮਰਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੨॥
घट ही भीतरि बसै निरंजनु ता को मरमु न पाइआ ॥२॥
भगवान मेरे हृदय में ही निवास कर रहा है किन्तु उसके भेद को नहीं जाना॥२॥
ਨਾਹਿਨ ਗੁਨੁ ਨਾਹਿਨ ਕਛੁ ਜਪੁ ਤਪੁ ਕਉਨੁ ਕਰਮੁ ਅਬ ਕੀਜੈ ॥
नाहिन गुनु नाहिन कछु जपु तपु कउनु करमु अब कीजै ॥
हे प्रभु ! मुझ में कोई गुण नहीं और न ही कुछ सिमरन एवं तपस्या की है। फिर तुझे प्रसन्न करने हेतु अब कौन-सा कर्म करूँ ?
ਨਾਨਕ ਹਾਰਿ ਪਰਿਓ ਸਰਨਾਗਤਿ ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਦੀਜੈ ॥੩॥੨॥
नानक हारि परिओ सरनागति अभै दानु प्रभ दीजै ॥३॥२॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! अब मैं निराश होकर तेरी शरण में आया हूँ, अतः मुझे अभय दान (मोक्ष दान) प्रदान कीजिए॥३॥२॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥
जैतसरी महला ९ ॥
जैतसरी महला ९ ॥
ਮਨ ਰੇ ਸਾਚਾ ਗਹੋ ਬਿਚਾਰਾ ॥
मन रे साचा गहो बिचारा ॥
हे प्रिय मन ! यह सच्चा विचार धारण कर लो कि
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮਿਥਿਆ ਮਾਨੋ ਸਗਰੋ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम बिनु मिथिआ मानो सगरो इहु संसारा ॥१॥ रहाउ ॥
राम नाम के बिना यह समूचा संसार झूठा ही समझो॥१॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਕਉ ਜੋਗੀ ਖੋਜਤ ਹਾਰੇ ਪਾਇਓ ਨਾਹਿ ਤਿਹ ਪਾਰਾ ॥
जा कउ जोगी खोजत हारे पाइओ नाहि तिह पारा ॥
जिस की खोज करते हुए योगी भी निराश हो चुके हैं और उसका अन्त नहीं पा सके,
ਸੋ ਸੁਆਮੀ ਤੁਮ ਨਿਕਟਿ ਪਛਾਨੋ ਰੂਪ ਰੇਖ ਤੇ ਨਿਆਰਾ ॥੧॥
सो सुआमी तुम निकटि पछानो रूप रेख ते निआरा ॥१॥
उस परमात्मा को तुम निकट ही समझो, चूंकि उसका रूप एवं चिन्ह बड़ा न्यारा है ॥१॥
ਪਾਵਨ ਨਾਮੁ ਜਗਤ ਮੈ ਹਰਿ ਕੋ ਕਬਹੂ ਨਾਹਿ ਸੰਭਾਰਾ ॥
पावन नामु जगत मै हरि को कबहू नाहि स्मभारा ॥
भगवान का नाम इस दुनिया में पतितों को पावन बनाने वाला है परन्तु तूने उसे कदापि स्मरण नहीं किया।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਜਗ ਬੰਦਨ ਰਾਖਹੁ ਬਿਰਦੁ ਤੁਹਾਰਾ ॥੨॥੩॥
नानक सरनि परिओ जग बंदन राखहु बिरदु तुहारा ॥२॥३॥
नानक का कथन है कि उसने उसकी शरण ली है, जिसकी समूचा जगत वन्दना करता है। हे प्रभु ! भक्तों की रक्षा करना ही तुम्हारा विरद् है, अतः मेरी भी रक्षा करो।॥२॥३॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ਘਰੁ ੧
जैतसरी महला ५ छंत घरु १
जैतसरी महला ५ छंत घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक॥
ਦਰਸਨ ਪਿਆਸੀ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ਚਿਤਵਉ ਅਨਦਿਨੁ ਨੀਤ ॥
दरसन पिआसी दिनसु राति चितवउ अनदिनु नीत ॥
मैं तो दिन-रात प्रभु के दर्शनों की प्यासी हूँ, और नित्य उसको ही स्मरण करती रहती हूँ।
ਖੋਲ੍ਹ੍ਹਿ ਕਪਟ ਗੁਰਿ ਮੇਲੀਆ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਮੀਤ ॥੧॥
खोल्हि कपट गुरि मेलीआ नानक हरि संगि मीत ॥१॥
हे नानक ! गुरु ने मेरे मन के कपाट खोलकर मुझे मित्र प्रभु के संग मिला दिया है॥ १॥
ਛੰਤ ॥
छंत ॥
छंद॥
ਸੁਣਿ ਯਾਰ ਹਮਾਰੇ ਸਜਣ ਇਕ ਕਰਉ ਬੇਨੰਤੀਆ ॥
सुणि यार हमारे सजण इक करउ बेनंतीआ ॥
हे मेरे सज्जन, हे मित्र ! सुनो; मैं एक विनती करती हूँ,
ਤਿਸੁ ਮੋਹਨ ਲਾਲ ਪਿਆਰੇ ਹਉ ਫਿਰਉ ਖੋਜੰਤੀਆ ॥
तिसु मोहन लाल पिआरे हउ फिरउ खोजंतीआ ॥
मैं उस मोहन प्रियतम को खोजती रहती हूँ।
ਤਿਸੁ ਦਸਿ ਪਿਆਰੇ ਸਿਰੁ ਧਰੀ ਉਤਾਰੇ ਇਕ ਭੋਰੀ ਦਰਸਨੁ ਦੀਜੈ ॥
तिसु दसि पिआरे सिरु धरी उतारे इक भोरी दरसनु दीजै ॥
मुझे उस प्रियतम के बारे में बताओ, यदि वह एक क्षण भर के लिए मुझे दर्शन प्रदान कर दे तो मैं अपना सिर काट कर उसके समक्ष अर्पण कर दूँगी।
ਨੈਨ ਹਮਾਰੇ ਪ੍ਰਿਅ ਰੰਗ ਰੰਗਾਰੇ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਭੀ ਨਾ ਧੀਰੀਜੈ ॥
नैन हमारे प्रिअ रंग रंगारे इकु तिलु भी ना धीरीजै ॥
मेरे नेत्र मेरे प्रिय के रंग में मग्न हैं और उसके बिना एक क्षण भर के लिए भी धैर्य नहीं करते।
ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲੀਨਾ ਜਿਉ ਜਲ ਮੀਨਾ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਜਿਵੈ ਤਿਸੰਤੀਆ ॥
प्रभ सिउ मनु लीना जिउ जल मीना चात्रिक जिवै तिसंतीआ ॥
मेरा मन प्रभु के साथ ऐसे मग्न है, जैसे जल के साथ मछली एवं स्वाति बूंद के साथ पपीहा मग्न होता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਸਗਲੀ ਤਿਖਾ ਬੁਝੰਤੀਆ ॥੧॥
जन नानक गुरु पूरा पाइआ सगली तिखा बुझंतीआ ॥१॥
हे नानक ! मैंने पूर्ण गुरु पा लिया है और प्रियतम के दर्शन करने की मेरी सारी प्यास बुझ गई है॥ १॥
ਯਾਰ ਵੇ ਪ੍ਰਿਅ ਹਭੇ ਸਖੀਆ ਮੂ ਕਹੀ ਨ ਜੇਹੀਆ ॥
यार वे प्रिअ हभे सखीआ मू कही न जेहीआ ॥
हे सज्जन ! प्रिय प्रभु की जितनी भी सखियों है, उनमें से मैं तो किसी के भी तुल्य नहीं।
ਯਾਰ ਵੇ ਹਿਕ ਡੂੰ ਹਿਕਿ ਚਾੜੈ ਹਉ ਕਿਸੁ ਚਿਤੇਹੀਆ ॥
यार वे हिक डूं हिकि चाड़ै हउ किसु चितेहीआ ॥
यह सखियाँ एक से बढ़कर एक सुन्दर हैं। इसलिए मुझे किसने याद करना है ?
ਹਿਕ ਦੂੰ ਹਿਕਿ ਚਾੜੇ ਅਨਿਕ ਪਿਆਰੇ ਨਿਤ ਕਰਦੇ ਭੋਗ ਬਿਲਾਸਾ ॥
हिक दूं हिकि चाड़े अनिक पिआरे नित करदे भोग बिलासा ॥
मेरे प्रियतम प्रभु की एक से बढ़कर एक सुन्दर सखियाँ उसके साथ नित्य ही रमण करती हैं।
ਤਿਨਾ ਦੇਖਿ ਮਨਿ ਚਾਉ ਉਠੰਦਾ ਹਉ ਕਦਿ ਪਾਈ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥
तिना देखि मनि चाउ उठंदा हउ कदि पाई गुणतासा ॥
उन्हें देखकर मेरे हृदय में भी चाव उत्पन्न होता है। मैं उस गुणों के भण्डार प्रभु को कब प्राप्त करूँगी।
ਜਿਨੀ ਮੈਡਾ ਲਾਲੁ ਰੀਝਾਇਆ ਹਉ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਮਨੁ ਡੇਂਹੀਆ ॥
जिनी मैडा लालु रीझाइआ हउ तिसु आगै मनु डेंहीआ ॥
जिन्होंने मेरे प्रिय प्रभु को प्रसन्न किया है, मैं अपना मन उनके समक्ष अर्पण करती हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਸੁਣਿ ਬਿਨਉ ਸੁਹਾਗਣਿ ਮੂ ਦਸਿ ਡਿਖਾ ਪਿਰੁ ਕੇਹੀਆ ॥੨॥
नानकु कहै सुणि बिनउ सुहागणि मू दसि डिखा पिरु केहीआ ॥२॥
नानक का कथन है कि हे सुहागिन ! मेरी एक विनती ध्यानपूर्वक सुनो, मुझे बताओ मेरा प्रिय प्रभु कैसा दिखता है॥ २॥
ਯਾਰ ਵੇ ਪਿਰੁ ਆਪਣ ਭਾਣਾ ਕਿਛੁ ਨੀਸੀ ਛੰਦਾ ॥
यार वे पिरु आपण भाणा किछु नीसी छंदा ॥
हे सज्जन ! मेरा प्रिय-प्रभु वही करता है, जो उसे अच्छा लगता है। वह किसी के अधीन नहीं।